भारत ने पहली बार पाकिस्तानी पोस्ट को फायर एसाल्ट से उडाने की विडियो जारी कर खुद को अमेरिका और इजरायल की कतार में खड़ा कर दिया । क्योंकि सामान्य तौर पर भारत या पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन और रुस भी अपनी सेना का कार्रवाई का वीडियो जारी तो नहीं ही करते हैं। तो इसका मतलब है क्या । क्या अब पाकिसातन अपने देश में राष्ट्रवाद जगाने के लिए कोई वीडियो जारी कर देगा । या फिर समूची दुनिया ही जिस टकराव के दौर में जा फंसी है, उसी में भारत भी एक बडा खिलाड़ी खुद को मान रहा है । क्योंकि दुनिया के सच को समझे तो गृह युद्द सरीखे अशांत क्षेत्र के फेहरिस्त में सीरिया ,यमन , अफगानिस्तान ,सोमालिया , लिबिया , इराक , सूडान और दक्षिण सूडान हैं । तो आतंक की गिरप्त में आये देशों की फेरहिस्त में पाकिस्तान , बांग्लादेश , म्यानमार ,टर्की और नाइजेरिया है।
तो आंतकी हमले की आहट के खौफ तले भारत , फ्रास ,बेल्जियम ,जर्मनी ,ब्रिटेन और स्वीडन हैं । वहीं देशों के टकराव का आलम ये हो चला है कि अलग अलग मुद्दों पर उत्तर कोरिया , दक्षिण कोरिया ,चीन ,रुस ,फिलीपिंस , जापान, मलेशिया ,इंडोनेशिया ,कुर्द और रुस तक अपनी ताकत दिखाने से नहीं चूक रहे। तो क्या दुनिया का सच यही है दुनिया टकराव के दौर में है । या फिर टकराव के पीछे का सच कुछ ऐसा है कि हर कोई आंख मूंदे हुये है क्योकि दुनिया का असल सच तो ये है कि 11 खरब , 29 अरब 62 करोड रुपये का धंधा या हथियार बाजार । जी दुनिया में सबसे बडा धंधा अगर कुछ है तो वह है हथियारों का । और जब दुनिया का नक्शा ही अगर लाल रंग से रंगा है तो मान लीजिये अब बहुत कम जमीन बची है जहा आतंकवाद, गृह युद्द या दोनों देशों का टकराव ना हो रहा हो । और ये तस्वीर ही बताती है कि कमोवेश हर देश को ताकत बरकरार रखने के लिये हथियार चाहिये । तो एक तरफ हथियारों की सलाना खरीद फरोख्त का आंकडा पिछले बरस तक करीब 11 सौ 30 खरब रुपये हो चुका है।
तो दूसरी तरफ युद्द ना हो इसके लिये बने यूनाइटेड नेशन के पांच वीटो वाले देश अमेरिका, रुस , चीन , फ्रासं और ब्रिटेन ही सबसे ज्यादा हथियारो के बेचते है । आंकडो से समझे तो स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्त इस्टीटयूट के मुताबिक अमेरिका सबसे ज्यादा 47169 मिलियन डालर तो रुस 33169 मिलियन डालर , चीन 8768 मिलियन डालर , फ्रास 8561 मिलियन डालर और ब्रिट्रेन 6586 मिलियन डालर का हथियार बेचता है । यानी दुनिया में शांति स्तापित करने के लिये बने यूनाइटेड नेशन के पांचो वीटो देश के हथियारो के धंधे को अगर जोड दिया जाये तो एक लाख 4 हजार 270 मिलियन डालर होता है । यानी चौथे नंबर पर आने वाले जर्मनी को छोड़ दिया जाये तो हथियारों को बेचने के लिये पांचो वीटो देशो का दरवाजा ही सबसे बडा खुला हुआ है । आज की तारीख में अमेरिका-रुस और चीन जैसे देशों की नजर में हर वो देश है,जो हथियार खऱीद सकता है। क्योंकि हथियार निर्यात बाजार का सबसे बड़ा हिस्सा इन्हीं तीन देशों के पास है । अमेरिका के पास 33 फीसदी बाजार है तो रुस के पास 23 फीसदी और चीन के पास करीब 7 फीसदी हिस्सा है ।यानी अमेरिकी राष्ट्रपति जो दो दिन पहले ही रियाद पहुंचे और दनिया में बहस होने लगी कि इस्लामिक देसो के साथ अमेरिकी रुख नरम क्यो है तो उसके पीछे का सच यही है कि अमेरिका ने साउदी अरब के साथ 110 बिलियन डालर का सौदा किया । यानी सवाल ये नहीं है कि अमेरिका इरान को बुराई देशों की फेहरिस्त में रख कर विरोध कर रहा है । सवाल है कि क्या आने वाले वक्त में ईरान के खिलाफ अमेरिकी सेन्य कार्रवाई दिखायी देगी । और जिस तरह दुनिया मैनेचेस्टर पर हमला करने वाले आईएस पर भी बंटा हुआ है उसमें सिवाय हथियारो को बेच मुनापा बनाये रखने के और कौन सी थ्योरी हो सकती है ।
और विकसित देसो के हथियारो के धंधे का असर भारत जैसे विकासशील देसो पर कैसे पडता है ये भारत के हथियारों की खरीद से समझा जा सकता है । फिलहाल , भारत दुनिया का सबसे बडा या कहे पहले नंबर का देश का जो हथियार खरीदता है । आलम ये है कि 2012 से 2016 के बीच पूरी दुनिया में हुए भारी हथियारों के आयात का अकेले 13 फ़ीसदी भारत ने आयात किया. । स्कॉटहोम इंटरनेशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत ने 2007-2016 के दौरान भारत के हथियार आयात में 43 फ़ीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई । और जिस देश में जय जवान-जय किसान का नारा आज भी लोकप्रिय है-उसका सच यह है कि 2002-03 में हमारा रक्षा बजट 65,000 करोड़ रुपये का था जो 2016-17 तक बढ़कर 2.58 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. । जबकि 2005-06 में कृषि को बजट में 6,361 करोड़ रुपये मिले थे जो 2016-17 में ब्याज सब्सिडी घटाने के बाद 20,984 करोड़ रुपये बनते हैं । यानी रक्षा क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत के बावजूद भारत के लिए विदेशों से हथियार खरीदना मजबूरी है। जिसका असर खेती ही नहीं हर दूसरे क्षे6 पर पड रहा है । और जानकारों का कहना है कि भारत हथियार उद्योग में अगले 10 साल में 250 अरब डॉलर का निवेश करने वाला है । यानी ये सवाल छोटा है कि मैनचेस्टर में इस्लामिक स्टेट का आंतकी हमला हो गया । या भारत ने पाकिसातनी सेना की पोस्ट को आंतक को पनाह देने वाला बताया । या फिर सीरिया में आईएस को लेकर अमेरिका और रुस ही आमने सामने है । सवाल है कि टकराव के दौर में फंसी दुनिया के लिये आंतकवाद भी मुनाफे का बाजार है ।
Tuesday, May 23, 2017
Thursday, May 18, 2017
इंसाफ पर ना-पाक मुहर क्यों ?
क्या भारत को वाकई कुलभूषण जाधव मामले में काउंसलर एक्सेस मिल जायेगा। ये सबसे बड़ा सवाल है क्योंकि पाकिस्तान के भीतर का सच यही है कि कुलभूषण जाघव को राजनयिक मदद अगर पाकिस्तान देने देगा तो पाकिस्तान के भीतर की पोल पट्टी दुनिया के सामने आ जायेगी । और पाकिस्तान के भीतर का सच आतंक, सेना और आईएसआई से कैसे जुड़ा हुआ है इसके लिये चंद घटानाओं को याद कर लीजिये। अमेरिकी ट्विन टावर यानी 2001 में 9/11 का हमला। और पाकिस्तान ने किसी अमेरिकी एजेंसी को अपने देश में घुसने नहीं दिया । जबकि आखिर में लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद में मिला । इसी तरह अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या आतंकवादियों ने 2002 में की । लेकिन डेनियल के अपहरण के बाद से लगातार पाकिस्तान ने कभी अमेरिकी एजेंसी को पाकिस्तान आने नहीं दिया। फिर याद कीजिये मुबंई हमला । 26/11 के हमले के बाद तो बारत ने पांच डोजियर पाकिस्तान को सौंपे। सबूतों की पूरी सूची ही पाकिस्तान को थमा दी लेकिन लश्कर-ए-तोएबा को पाकिस्तान ने आंतकी संगठन नहीं माना । हाफिज सईद को आतंकवादी नहीं माना । भारत की किसी एजेंसी को जांच के लिये पाकिस्तान की जमीन पर घुसने नहीं दिया । फिर सरबजीत को लेकर एकतरफा जांच की । पाकिस्तान के ही मानवाधिकार संगठन ने सरबजीत को लेकर पाकिस्तानी सेना की संदेहास्पद भूमिका पर अंगुली उठायी तो भी किसी भारतीय एजेंसी को पाकिस्तान में पूछताछ की इजाजत नहीं दी गई । और जेल में ही सरबजीत पर कैदियों का हमला कर हत्या कर दी।
और दो बरस पहले पठानकोट हमले में तो पाकिस्तान की जांच टीम बाकायदा ये कहकर भारत आई कि वह भी भारतीय टीम को पाकिस्तान आने की इजाजत देगी । लेकिन दो बरस बीत गये और आजतक पाकिस्तान ने पठानकोट हमले की जांच के लिये भारतीय टीम को इजाजत नही दी । यानी अगला सवाल कोई भी पूछ सकता है कि क्या वाकई पाकिस्तान जाधव के लिये भारतीय अधिकारियों को मिलने की इजाजत देगा । यकीनन ये अंसभव सा है । क्योंकि पाकिस्तान के भीतर का सच यही है कि सत्ता तीन केन्द्रों में बंटी हुई है । जिसमें सेना और आईएसआई के सामने सबसे कमजोर चुनी हुई सरकार है. और तीनों को अपने अपने मकसद के लिये आतंकवादी या कट्टरपंछी संगठनो की जरुरत है। और सत्ता के इसी चेक एंड बैलेस में फंसे पाकिस्तान के भीतर कोई भी विदेशी अधिकारी अगर जांच के लिये जायेगा या पिर जाधव से मिलने ही कोई राजनयिक चला गया। तो पाकिस्तान का कौन सा सच दुनिया के सामने आ जायेगा।
लेकिन इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को अगर पाकिस्तान नहीं मान रहा है तो मान लीजिये इसके पीछे बडी वजह पाकिस्तान के पीछे चीन खड़ा है,जो भारत के लिये अगर ये सबसे मुश्किल सबब है , तो पाकिस्तान के लिये सबसे बडी ताकत है । क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को जिस तरह पाकिस्तान ने बिना देर किये खारिज किया उसने नया सवाल तो ये खडा कर ही दिया है कि क्या आईएसजे के फैसले को ना मान कर पाकिस्तान यून में जाना चाहता है । यून में चीन के वीटो का साथ पाकिस्तान को मिल जायेगा ।जैसे जैश के मुखिया मसूद अजहर पर वीटो पर चीन ने बचाया । जाहिर है चीन के लिये पाकिस्तान मौजूदा वक्त में स्ट्रेटजिक पार्टनर के तौर पर सबसे जरुरी है और भारत चीन के लिये चुनौती है । और ध्यान दें तो कश्मीर में आंतकवाद से लेकर इकनामिक कॉरीडोर तक में जो भूमिका चीन पाकिस्तान के साथ खडा होकर निभा रहा है उसमें जाधव मामले में भ चीन पाकिस्तान के साथ खडा होगा इंकार इससे भी नहीं किया जा सकता । लेकिन जाधव मामले में पाकिस्तान का साथ देना चीन को भी कटघरे में खड़ा सकता है । क्योंकि मौजूदा वक्त में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के 15 जजो की कतार में चीन के भी जज जियू हनक्वीन भी है । और आज फैसला सुनाते हुये दो बार रोनी अब्राहम ने सर्वसम्मति से दिये जा रहे फैसले का जिक्र किया । तो एक तरफ चीन के जज अगर फैसले के साथ है तो फिर मामला चाहे यूएन में चला जाये वहा चीन कैसे पाकिस्तान के लिये वीटो कर सकता है । लेकिन ये तभी संभव है जब चीन भी जाधव मामले पर आईएसजे के फैसेल को सिर्फ कानूनी फैसला माने । लेकिन सच उल्टा है . कोर्ट का फैसला भारत पाकिस्तान के संबंधो के मद्देनजर सिर्फ कानून तक सीमित नहीं है और चीन का पाकिस्तान के साथ खडे होना या भारत के खिलाफ जाना कानूनी समझ भर नहीं है । बल्कि राजनीयिक और राजनीति से आगे न्यू वर्ल्ड आर्डर को ही चीन जिस तरह अपने हक में खडा करना चाह रहा है उसमें भारत के लिये सवाल पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है । जिससे टकराये बगैर पाकिस्तान के ताले की चाबी भी नहीं खुलेगी ये भी सच है ।
क्योंकि इससे पहले कभी इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के पैसले को लेकर पाकिस्तान का रुख इस तरह नहीं रहा । क्योकि ये चौथी बार है, जब भारत और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में आमने-सामने हैं। और 1945 में बने इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के इतिहास में ये पहला मौका है जब किसी देश के खिलाफ इतना कडा पैसला दिया गया हो । और याद किजिये तो 18 बरस पहले पाकिस्तान ने इसी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का दरवाजा ये कहकर खटखटा था कि भारत ने जानबूझ कर पाकिस्तान के टोही विमान को मार गिराया । जबकि सच यही था कि सोलह सैनिकों को ले जा रहा पाकिस्तान का विमान जासूसी के इरादे से भारत के कच्छ में घुस आया था । और तब कोर्ट की 15 जजो की पीठ ने 21 जून 2000 को पाकिस्तानं के आरोपों को बहुमत से खारिज कर दिया था । और आज पाकिस्तान की दलील जाधव को जासूस बताने की खारिज हुई ।तो पाकिस्तान को दोनो बार मात मिली है। और पन्नों को पलटें तो 1971 के युद्द के बाद पूर्वी पाकिस्तान को भारत ने जब बांग्लादेश नाम का देश ही खडा कर दिया । और 90 हजार पाकिस्तानी सैनिको को बंदी बनाया । युद्द के बाद 1973 में पाकिस्तान भारत के खिलाफ आसीजे पहुंचा। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि भारत 195 प्रिजनर्स ऑफ वॉर्स को बांग्लादेश शिफ्ट कर रहा है, जबकि उन्हें भारत में गिरफ्तार किया गया है। ये गैरकानूनी है। भारत ने इस मामले लड़ाई लड़ी लेकिन जब तक कुछ फैसला हो पाता दोनों देशों ने 1973 में न्यू दिल्ली एग्रीमेंट साइन कर लिया। और उससे पहले 1971 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन के अधिकार क्षेत्र के खिलाफ एक मामला दायर किया था। पाकिस्तान ने इस संगठन में भारत की शिकायत की थी। इसमें संगठन ने पाकिस्तान का साथ दिया था इसीलिए इस संगठन के खिलाफ भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का रुख किया। लेकिन-आसीजे से भारत को निराशा हाथ लगी क्योंकि 18 अगस्त 1972 को फैसला पाकिस्तान के पक्ष में गया था। उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस की खूब वाहवाही की थी । और आज पाकिस्तान उसी इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को गलत बता रहा है । तो सवाल अब कुलभूषण जाधव पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले का नहीं बल्कि इंसाफ पर पाकिस्तान के नापाक मुहर का है ।
और दो बरस पहले पठानकोट हमले में तो पाकिस्तान की जांच टीम बाकायदा ये कहकर भारत आई कि वह भी भारतीय टीम को पाकिस्तान आने की इजाजत देगी । लेकिन दो बरस बीत गये और आजतक पाकिस्तान ने पठानकोट हमले की जांच के लिये भारतीय टीम को इजाजत नही दी । यानी अगला सवाल कोई भी पूछ सकता है कि क्या वाकई पाकिस्तान जाधव के लिये भारतीय अधिकारियों को मिलने की इजाजत देगा । यकीनन ये अंसभव सा है । क्योंकि पाकिस्तान के भीतर का सच यही है कि सत्ता तीन केन्द्रों में बंटी हुई है । जिसमें सेना और आईएसआई के सामने सबसे कमजोर चुनी हुई सरकार है. और तीनों को अपने अपने मकसद के लिये आतंकवादी या कट्टरपंछी संगठनो की जरुरत है। और सत्ता के इसी चेक एंड बैलेस में फंसे पाकिस्तान के भीतर कोई भी विदेशी अधिकारी अगर जांच के लिये जायेगा या पिर जाधव से मिलने ही कोई राजनयिक चला गया। तो पाकिस्तान का कौन सा सच दुनिया के सामने आ जायेगा।
लेकिन इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को अगर पाकिस्तान नहीं मान रहा है तो मान लीजिये इसके पीछे बडी वजह पाकिस्तान के पीछे चीन खड़ा है,जो भारत के लिये अगर ये सबसे मुश्किल सबब है , तो पाकिस्तान के लिये सबसे बडी ताकत है । क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को जिस तरह पाकिस्तान ने बिना देर किये खारिज किया उसने नया सवाल तो ये खडा कर ही दिया है कि क्या आईएसजे के फैसले को ना मान कर पाकिस्तान यून में जाना चाहता है । यून में चीन के वीटो का साथ पाकिस्तान को मिल जायेगा ।जैसे जैश के मुखिया मसूद अजहर पर वीटो पर चीन ने बचाया । जाहिर है चीन के लिये पाकिस्तान मौजूदा वक्त में स्ट्रेटजिक पार्टनर के तौर पर सबसे जरुरी है और भारत चीन के लिये चुनौती है । और ध्यान दें तो कश्मीर में आंतकवाद से लेकर इकनामिक कॉरीडोर तक में जो भूमिका चीन पाकिस्तान के साथ खडा होकर निभा रहा है उसमें जाधव मामले में भ चीन पाकिस्तान के साथ खडा होगा इंकार इससे भी नहीं किया जा सकता । लेकिन जाधव मामले में पाकिस्तान का साथ देना चीन को भी कटघरे में खड़ा सकता है । क्योंकि मौजूदा वक्त में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के 15 जजो की कतार में चीन के भी जज जियू हनक्वीन भी है । और आज फैसला सुनाते हुये दो बार रोनी अब्राहम ने सर्वसम्मति से दिये जा रहे फैसले का जिक्र किया । तो एक तरफ चीन के जज अगर फैसले के साथ है तो फिर मामला चाहे यूएन में चला जाये वहा चीन कैसे पाकिस्तान के लिये वीटो कर सकता है । लेकिन ये तभी संभव है जब चीन भी जाधव मामले पर आईएसजे के फैसेल को सिर्फ कानूनी फैसला माने । लेकिन सच उल्टा है . कोर्ट का फैसला भारत पाकिस्तान के संबंधो के मद्देनजर सिर्फ कानून तक सीमित नहीं है और चीन का पाकिस्तान के साथ खडे होना या भारत के खिलाफ जाना कानूनी समझ भर नहीं है । बल्कि राजनीयिक और राजनीति से आगे न्यू वर्ल्ड आर्डर को ही चीन जिस तरह अपने हक में खडा करना चाह रहा है उसमें भारत के लिये सवाल पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है । जिससे टकराये बगैर पाकिस्तान के ताले की चाबी भी नहीं खुलेगी ये भी सच है ।
क्योंकि इससे पहले कभी इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के पैसले को लेकर पाकिस्तान का रुख इस तरह नहीं रहा । क्योकि ये चौथी बार है, जब भारत और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में आमने-सामने हैं। और 1945 में बने इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के इतिहास में ये पहला मौका है जब किसी देश के खिलाफ इतना कडा पैसला दिया गया हो । और याद किजिये तो 18 बरस पहले पाकिस्तान ने इसी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का दरवाजा ये कहकर खटखटा था कि भारत ने जानबूझ कर पाकिस्तान के टोही विमान को मार गिराया । जबकि सच यही था कि सोलह सैनिकों को ले जा रहा पाकिस्तान का विमान जासूसी के इरादे से भारत के कच्छ में घुस आया था । और तब कोर्ट की 15 जजो की पीठ ने 21 जून 2000 को पाकिस्तानं के आरोपों को बहुमत से खारिज कर दिया था । और आज पाकिस्तान की दलील जाधव को जासूस बताने की खारिज हुई ।तो पाकिस्तान को दोनो बार मात मिली है। और पन्नों को पलटें तो 1971 के युद्द के बाद पूर्वी पाकिस्तान को भारत ने जब बांग्लादेश नाम का देश ही खडा कर दिया । और 90 हजार पाकिस्तानी सैनिको को बंदी बनाया । युद्द के बाद 1973 में पाकिस्तान भारत के खिलाफ आसीजे पहुंचा। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि भारत 195 प्रिजनर्स ऑफ वॉर्स को बांग्लादेश शिफ्ट कर रहा है, जबकि उन्हें भारत में गिरफ्तार किया गया है। ये गैरकानूनी है। भारत ने इस मामले लड़ाई लड़ी लेकिन जब तक कुछ फैसला हो पाता दोनों देशों ने 1973 में न्यू दिल्ली एग्रीमेंट साइन कर लिया। और उससे पहले 1971 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन के अधिकार क्षेत्र के खिलाफ एक मामला दायर किया था। पाकिस्तान ने इस संगठन में भारत की शिकायत की थी। इसमें संगठन ने पाकिस्तान का साथ दिया था इसीलिए इस संगठन के खिलाफ भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का रुख किया। लेकिन-आसीजे से भारत को निराशा हाथ लगी क्योंकि 18 अगस्त 1972 को फैसला पाकिस्तान के पक्ष में गया था। उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस की खूब वाहवाही की थी । और आज पाकिस्तान उसी इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को गलत बता रहा है । तो सवाल अब कुलभूषण जाधव पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले का नहीं बल्कि इंसाफ पर पाकिस्तान के नापाक मुहर का है ।
Friday, May 12, 2017
घाटी के सफर पर 24 घंटे
कल तक बंदूक का मतलब आतंक था, आज वादी की हवाओं में बारुद है......
जहाज ने जमीन को छुआ और तो खिड़की से बाहर का मौसम कुछ धुंधला धुंधला सा दिखायी दिया। तब तक एयर-होस्टेज की आवाज गूंज पड़ी...बाहर का तापमान 27 डिग्री है । उमस भी है। सुबह के 11 बजे थे और जहाज का दरवाजा खुलते ही गर्म हवा का हल्का सा झोंका चेहरे से टकराया। सीट आगे की थी तो सबसे पहले श्रीनगर की हवा का झोंका चेहरे से टकराया। घाटी आना तो कई बार हुआ और हर बार आसमान से कश्मीर घाटी के शुरु होते ही कोई ना कोई आवाज कानों से टकराती जरुर रही कि कश्मीर जन्नत क्यों है। लेकिन पहली बार जन्नत शुरु हुई और जहाज जमीन पर आ गया और कोई आवाज नहीं आई। गर्मी का मौसम है जहाज खाली। किराया भी महज साढे तीन हजार। यानी सामान्य स्थिति होती तो मई में किराया सात से दस हजार के बीच होता। लेकिन वादी की हवा जिस तरह बदली। या कहें लगातार टीवी स्क्रीन पर वादी के बिगड़ते हालात को देखने के बाद कौन जन्नत की हसीन वादियों में घूमने निकलेगा । ये सवाल जहन में हमेशा रहा लेकिन जहाज जमीन पर उतरा तो हमेशा की तरह ना तो कोई चहल-पहल हवाई अड्डे पर नजर आई ना ही बहुतेरे लोगों की आवाजाही। हां, सुरक्षाकर्मियों की सामान्य से ज्यादा मौजूदगी ने ये एहसास जरुर करा दिया कि फौजों की आवाजाही कश्मीर हवाई अड्डे पर बढ़ी हुई है। और बाहर निकलते वक्त ना जाने क्यों पहली बार इच्छा हुई कि हर एयरपोर्ट का नाम किसी शक्स के साथ जुड़ा होता है तो श्रीनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट किसके नाम पर है। और पहली बार नजर गई एक किनारे में लिखा है शेख-उल-आलम एयरपोर्ट। कौन है शेख-उल-आलम...ये सोच
बाहर निकला तो इकबाल हाथ में मेरे नाम का प्लेकार्ड लिये मिल गया। इकबाल । श्रीनगर के डाउन टाउन में रहने वाला। टैक्सी चलाता है । और आज से नहीं 1999 से इकबाल में पहली बार एयरपोर्ट पर ही मिला था । तब मैं भी पहली बार श्रीनगर पहुंचा था। लेकिन तब साथ में कैमरा टीम थी। क्योंकि अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकी हिंसा की रिपोर्ट करने पहुंचा। और उसके बाद दर्जनों बार इकबाल ही हवाईअड्डे पर दिल्ली से एक फोन करने पर पहुंच जाता । और हर बार मेरे सवालों का जबाब देते देते वह शहर पहुंचा देता। ये शेख-उल-आलम कौन थे । जिनके नाम पर श्रीनगर हवाई अड्डा है।
आप पहले व्यक्ति है जो पूछ रहे हैं। जनाब वो संत थे । उन्हें नुन्द श्रृषि । यहां से 60 किलोमीटर दूर कुलगाम के क्योमोह गांव में जन्म हुआ था । बहुत नामी संत थे । कुलगाम चलेंगे क्या । श्रीनगर से अनंतनाग। वहां से 10 किलोमीटर ही दूर है । न न । मैं झटके में बोला । कल सुबह लौटना भी है। कुछ घंटों के लिये इस बार आये है। हां ..रोज टीवी पर रिपोर्ट दिखाते दिखाते सोचा शनिवार का दिन है छुट्टी है। रविवार को लौट जाऊंगा । जरा हालात देख आऊं । लोग हालात देख कर नहीं आते और आप हालात देखने आये हो। अब ये किसी से संभल नहीं रहा है। या कहे कोई संभाल नहीं रहा। आप जो भी कहो। लेकिन हर कोई तो सड़क पर ह। ना कोई काम है । ना कमाई। स्कूल कालेज चलते नहीं। बच्चे क्या करें। और मां बाप परेशान हैं। ये देखिये गिलानी का घर। चारों
तरफ पुलिस वाले क्यों है। सिर्फ सिक्यूरिटी फोर्स ही तो है हर जगह। और इकबाल के कहते ही मेरी नजर बाहर सड़क पर गई तो बख्तरबंद गाडियों में सिक्यूरिटी फोर्स की आवाजाही ने खींच लिया। ये सिर्फ हैदरपुरा [ गिलानी का घर ] में है या पूरे शहर में । शहर में आप खुद ही देख लेना । कहां जायेंगे पहले। सीधे लाल चौक ले चलो। जरा हालात देखूंगा । चहल-पहल देखूंगा । फिर यासिन मलिक से मिलूंगा । अब चलती नहीं है सेपरिस्टों की। क्यों दिल्ली से तो लगता है कि अलगाववादी ही कश्मीर को चला रहे हैं। इकबाल हंसते हुये बोला । जब महबूबा दिल्ली की गुलाम हो गई तो आजाद तो सिर्फ सेपरिस्ट ही बचे। फिर चलती क्यों नहीं। क्योंकि अब लोगों में खौफ नहीं रहा । नई पीढी बदल चुकी है । नये हालात बदल चुके हैं । लेकिन सरकारों के लिये कश्मीर अब भी नब्बे के युग में है। आप खुद ही यासिन से पूछ लेना, नब्बे में वह जवान था। बंदूक लिये घाटी का हीरो था । अब सेपरिस्टों के कहने पर कोई सड़क पर नहीं आता । सेपरिस्ट ही हालात देखकर सड़क पर निकले लोगों के साथ खड़े हो जाते हैं। पूछियेगा यासिन से ही कैसे वादी में हवा बदली है और बच्चे-बच्चियां क्यों सडक पर है । रास्ते में मेरी नजरें लगातार शनिवार के दिन बाजार की चहल-पहल को भी खोजती रही । सन्नाटा ज्यादा नजर आया । सड़क पर बच्चे खेलते नजर आये। डल लेक के पास पटरियों पर पहली बार कोई जोड़ा नजर नहीं आया। और लाल चौक। दुकानें खुली थीं। कंटीले तारों का झुंड कई जगहों पर पड़ा था। सुरक्षाकर्मियों की तादाद हमेशा की तरह थी। लाल चौक से फर्लांग भर की दूरी पर यासिन मलिक का घर। पतली सी गली । गली में घुसते ही चौथा मकान। लेकिन गली में घुसते ही सुरक्षाकर्मियों की पहली आवाज किससे मिलना है । कहां से आये है । खैर पतली गली । और घर का लकड़ी का दरवाजा खुलते ही। बेहद संकरी घुमावदार सीढ़ियां । दूसरे माले पर जमीन पर बिछी कश्मीरी कारपेट पर बैठ यासिन मलिक। कैसे आये । बस आपसे मिलने और कश्मीर को समझने देखने आ गये । अच्छा है जो शनिवार को आये । जुम्मे को आते तो मिल ही नहीं पाते। क्यों ? शुक्रवार को सिक्यूरिटी हमें किसी से मिलने नहीं देती और हमारे घर कोई मिलने आ नहीं पाता । यानी । नजरबंदी होती है । तो सेपरिस्टो ने अपनी पहचान भी तो जुम्मे के दिन पत्थरबाजी या पाकिस्तान का झंडा फरहाने वाली बनायी है । आप भूल कर रहे हैं । ये 90 से 96 वाला दौर नहीं है । जब सेपरिस्टो के इशारे पर बंदूक उठायी जाती। या सिक्यूरिटी के खिलाफ नारे लगते । क्यों 90 से 96 और अब के दौर में अंतर क्या आ गया है। हालात तो उससे भी बुरे लग रहे हैं। स्कूल जलाये जा रह हैं। लड़कियां पत्थर फेंकने सड़क पर निकल पड़ी हैं। आतंकी खुलेआम गांव में रिहाइश कर रहे है । किसी आतंकी के जनाजे में शामिल होने लिये पूरा गांव उमड़ रहा है । तो आप सब जानते ही हो तो मैं क्या कहूं । लेकिन ये सब क्यों हो रहा है ये भी पता लगा लीजिये । ये समझने तो आये हैं। और इसीलिये आपसे मिलने भी पहुंचे हैं। देखिये अब सूचना आप रोक नहीं सकते। टेक्नालाजी हर किसी के पास है । या कहे टेक्नालाजी ने हर किसी को आपस मे मिला दिया है । 90-96 के दौर में कश्मीरियों के टार्चर की कोई कहानी सामने नहीं आ पाई । जबकि उस दौर में क्या कुछ हुआ उसकी निशानी तो आज भी मौजूद है । लेकिन देश – दुनिया को कहां पता चला । और अब जीप के आगे कश्मीरी को बांध कर सेना ने पत्थर से बचने के लिये ढाल बनाया तो इस एक तस्वीर ने हंगामा खड़ा कर दिया । पहले कश्मीर से बाहर पढ़ाई कर रहा कोई छात्र परेशान होकर वापस लौटता तो कोई नहीं जानता था। अब पढे-लिखे कश्मीरी छात्रों के साथ देश के दूसरे
हिस्से में जो भी होता है, वह सब के सामने आ जाता है । कश्मीर के बाहर की दुनिया कश्मीरियों ने देख ली है। इंडिया के भीतर के डेवलेपमेंट को देख लिया है । वहां के कालेज, स्कूल, हेल्ख सेंटर , टेक्नालाजी सभी को देखने
के बाद कश्मीरियों में ये सवाल तो है कि आखिर ये सब कश्मीर में क्यों नहीं । घाटी में हर चौराहे पर सिक्यूरिटी क्यों है ये सवाल नई पीढ़ी जानना चाहती है । उसे अपनी जिन्दगी मे सिक्यूरिटी दखल लगती है। आजादी के मायने बदल गये है बाजपेयी जी । अ
अब आजादी के नारो में पाकिस्तान का जिक्र कर आप नई पीढी को गुमराह नहीं कर सकते हैं। तो क्या सेपरिस्टो की कोई भूमिका नहीं है । आतंकवाद यूं ही घाटी में चल रहा है। गांव के गांव कैसे हथियारों से
लैस हैं। लगातार बैंक लूटे जा रहे हैं। पुलिस वालों को मारा जा रहा है । क्या ये सब सामान्य है । मैं ये कहां कह रहा हू सब सामान्य है । मैं तो ये कह रहा हूं कि कश्मीर में जब पीढी बदल गई, नजरिया बदल गया । जबकि दिल्ली अभी भी 90-96 के वाकये को याद कर उसी तरह की कार्रवाई को अंजाम देने की पॉलिसी क्यों अपनाये हुये है । क्या किसी ने जाना समझा कि वादी में रोजगार कैसे चल रहा है । घर घर में कमाई कैसे हो रही है । बच्चे पढाई नही कर पा रहे है । तो उनके सामने भविष्य क्या होगा । तो स्कूल जला कौन रहा है । स्कूल जब नहीं जले तब पांच महीने तक स्कूल बंद क्यों रहे...ये सवाल तो आपने कभी नहीं पूछा । तो क्या सेपरिस्ट स्कूल जला रहे हैं । मैंने ये तो नहीं कहा। मेरे कहने का मतलब है जनता की हर मुश्किल के साथ अगर दिल्ली खड़ी नहीं होगी तो उसका लाभ कोई कैसे उठायेगा, ये भी जले हुये स्कूलों को देखकर समझना चाहिये। हुर्रियत ने तो स्कूलों की जांच कराने को कहा । मैंने खुद कहा कौन स्कूल जला रहा है सरकार को बताना चाहिये। आप नेताओं से मिलें तब आपको सियासत समझ में समझ में आयेगी । फिर आप खुद ही लोगों से मिलकर पूछें कि आखिर ऐसा क्या हआ की जो मोदी जी चुनाव से पहले कश्मीरियत का जिक्र कर रहे थे वह वही मोदी जी चुनाव परिणाम आने के बाद कश्मीरियो से दूरी क्यों बना बैठे । और चुनी हुई महबूबा सरकार का मतलब है कितना । यासिन से कई
मुद्दो पर खुलकर बात हुई । बात तो इससे पहले भी कई बार हुई थी । लेकिन पहली बार यासिन मलिक ने देश की राजनीति के केन्द्र में खडे पीएम मोदी को लेकर कश्मीर के हालात से जोडने की वकालत की । सीरिया और आईएसआईएस के संघर्ष तले कश्मीर के हालात को उभारने की कोशिश की । करीब दो घंटे से ज्यादा वक्त गुजारने के बाद मोहसूना [ यासिन का घर } से निकला तो श्रीनगर में कई लोगो से मुलाकात हुई । लेकिन जब बात एक पूर्व फौजी से हुई और उसने जो नये सवाल खडे किये । उससे कई सवालों के जबाव पर ताले भी जड दिये। मसलन पूर्व फौजी ने साफ कहा , जिनके पास पैसा है । जिनका धंधा बडा है । कमाई ज्यादा है । उनपर क्या असर पडा । क्या किसी ने जाना । और जब वादी के हालात बिगड चुके है जब उसका असर जम्मू पर कैसे पड रहा होगा क्या किसी ने जाना । क्या असर हो रहा है । आप इंतजार किजिये साल भर बाद आप देखेगें कि
जम्मू की डेमोग्राफी बदल गई है । वादी में जो छह महीने काम-कमाई होती थी जब वह भी ठप पडी चुकी है तो फिर धाटी के लोग जायेगें कहा । कमाई-धंधे का केन्द्र जम्मू बन रहा है । सारे मजदूर । सारे बिजनेस जम्मू शिफ्ट हो रहे है ।जिन हिन्दु परिवारो को लगता रहा कि घाटी में मिस्लिम बहुतायत है और जम्मू में हिन्दू परिवार तो हालात धीरे धीरे इतने बदल रहे है कि आने वाले वक्त में मुस्लिमो की तादाद जम्मू में भी ज्यादा हो जायेगी । और जम्मू से ज्यादा बिसनेस जब कश्मीर में है तो फिर जम्मू के बिजनेस मैन भी कश्मीरियो पर ही टिके है । लेकिन चुनी हुई सरकार के होने के बावजूद सेना ही केन्द्र में क्यो है । और सारे सवाल सेना को लेकर ही क्यू है । कोई महबूबा मुफ्ती को लेकर सवाल खडा क्यो नहीं करता । ये बात आप नेशनल कान्प्रेस वालो से पूछिये या फिर किसी भी नेता से पूछिये आपको समझ में आ जायेगा । लेकिन आपको क्या मानना है कि महबूबा बेहद कमजोर सीएम साबित हुई है । महबूबा कमजोर नहीं मजबूत हो रही है । उसका कैडर । उसकी राजनीति का विस्तार हो
रहा है । वह कैसे । हालात को बारिकी से समझे । घाटी में जिसके पास सत्ता है उसी की चलेगी । सिक्यूरटी उसे छुयेगी नहीं । और सिक्रयूरटी चुनी हुई सरकार के लोगोग को छेडेगी भी नहीं । महबूबा कर क्या रही है । उसने
आंतकवादियो को ढील दे रखी है । सेपरिस्टो [ अलगाववादियों ] को ढील दे रखी है । पत्थरबाजो के हक में वह लगातार बोल रही है । तो फिर गैर राजनीतिक प्लेयरो की राजनीतिक तौर पर नुमाइन्दगी कर कौन रहा है । पीडीपी कर रही है । पीडीपी के नेताओ को खुली छूट है । उन्हे कोई पकडेगा नहीं । क्योकि
दिल्ली के साथ मिलकर सत्ता की कमान उसी के हाथ में है । और दिल्ली की जरुरत या कहे जिद इस सुविधा को लेकर है कि सत्ता में रहने पर वह अपनी राजनीति या एंजेडे का विस्तार कर सकती है । लेकिन बीजेपी इस सच को ही समझ नहीं पा रही है कि पीडीपी की राजनीति जम्मू में भी दखल देने की स्थिति में आ रही है । क्योकि जम्मू सत्ता चलाने का नया हब है । और कमान श्रीनगर में है । फिर जब ये खबर ती है कि कभी सोपोर में या कभी शोपिया में सेना ने पत्थरबाजो या तकवादियो को पनाह दिये गांववालो के खिलाफ आपरेशन शुरु कर
दिया है तो उसका मतलब क्या होता है । ठीक कहा आपने दो दिन पहले ही 4 मई को शोपिया में सेना के आपरेशन की खबर तमाम राष्ट्रीय न्यूज चैनलो पर चल रही थी । जबकि शोपियां का सच यही है कि वहा गांव-दर-गांव आंतकवादियो की पैठ के साथ साथ पीडीपी की भी पैठ है । अब सत्ताधारी दल के नेताओ को सिक्यूरिटी देनी है और नेता उन्ही इलाको में कश्मीरियों को साथ खडाकर रहे है जिन इलाको में आंतक की गूंज है । तो सिक्यूरटी वाले करे क्या । इस हालात में होना क्या चाहिये । आप खुद सोचिये । सेना में कमान हमेशा एक के पास होती है तभी कोई आपरेशन सफल होता है लेकिन घाटी में तो कई हाथो में कमान है । और सिक्यूरटी फोर्स सिवाय सुरक्षा देने के अलावे और कर क्या सकती है । हम बात करते करते डाउन-टाउन के इलाके में पहुंच चुके थे । यहां इकबाल का घर था तो उसने कारपेट का बिजनेस करने वाले शौहेब से मुलाकात
करायी । और उससे मिलते ही मेरा पहला सवाल यही निकला कि बैंक लूटे जा रहे है । तो क्या लूट का पैसा आंतकवादियो के पास जा रहा है । शौहेब ने कोई जबाव नहीं दिया । मैने इकबाल तरफ देखा । तो आपस में कस्मीरी में दोनों ने जो भी बातचीत की उसके बाद शौहेब हमारे साथ खुल गया । लेकिन जवाबा इतना ही
दिया कि मौका मिले तो जे एंड के बैंक के बारे में पता कर लीजिये । ये किसको लोन देते है । कौन जिन्होने लोन नहीं लौटाया । और जिन्होंने लोन लिया वह है भी की नहीं । तो क्या एनपीए का आप जिक्र कर रहे है । आप कह
सकते है एनपीए । लेकिन जब आपने बैंक के लूटने का जिक्र किया तो मै सिर्फ यहीं समझाना चाह रहा हूं कि बैक बिना लूटे भी लूटे गये है । लूटे जा रहे है । लूटने का दिखावा अब इसलिये हो रहा है जिससे बैक को कोई जवाब ना देना पडे । डाउन डाउन में ही हमारी मुलाकात दसवी में पढाई करने वाले छात्र मोहसिन वानी से हुई । निहायत शरीफ । जानकारी का मास्टर । परीक्षा देकर कुछ करने का जनुन पाले मोहसिन से जब हमने उसके स्कूल के बार में पूछा तो खुद सेना के स्कूल में अपनी पढाई से पहले उसने जो कहा , वह शायद भविष्य
के कश्मीर को पहला दागदार चेहरा हमें दिखा गया । क्योंकि जिक्र तो सिर्फ उसकी पढाई का था । और उसने झटके में घाटी में स्कूल-कालेजो का पूरा कच्चा-चिट्टा ये कहते हुये हमारे सामने रख दिया कि अगर अब मुझसे स्कूल और हमारी पढाई के बारे में पूछ रहे है तो पहले ये भी समझ लें सिर्फ 20 दिनों में कोई स्कूल साल भर की पढाई कैसे करा सकता है । लेकिन घाटी में ये हो रहा है । क्योंकि कश्मीर घाटी में बीते 10 महीनो में कुल जमा 46 दिन स्कूल कालेज खुले । आर्मी पब्लिक स्कूल से लेकर केन्द्रीय विद्यालय तक और हर कान्वेंट से लेकर हर लोकल स्कूल तक । आलम ये है कि वादी के शहरों में बिखरे 11192 स्कूल और घाटी के ग्रामीण इलाको में सिमटे 3 280 से ज्यादा छोटे बडे स्कूल सभी बंद हैं । और इन स्कूल में जाने वाले करीब दो लाख से ज्यादा छोटे बडे बच्चे घरो में कैद हैं । ऐसे में छोटे छोटे बच्चे कश्मीर की गलियों में घर के मुहाने पर खड़े होकर टकटकी लगाये सिर्फ सड़क के सन्नाटे को देखते रहते हैं। और जो बच्चे कुछ बड़े हो गये हैं, समझ रहे हैं कि पढ़ना जरुरी है । लेकिन उनके भीतर का खौफ उन्हे कैसे बंद घरों के अंधेरे में किताबो से रोशनी दिला पाये ये किसी सपने की तरह है। क्योंकि घाटी में बीते 10 महीनो में 169 कश्मीरी युवा मारे गये हैं। और इनमें से 76 बच्चे हाई स्कूल में पढ़ रहे थे । तो क्या बच्चो का ख्याल किसी को नहीं । नही हर कोई हिंसा के बीच आतंक और राजनीतिक समाधान का जिक्र तो कर रहा है लेकिन घरो में कैद बच्चो की जिन्दगी कैसे उनके भीतर के सपनों को
खत्म कर रही है और खौफ भर रही है , इसे कोई नहीं समझ रहा है । लेकिन अब तो सरकार कह रही है स्कूल कालेज खुल गये । और बच्चे भटक कर हाथो में पत्थर उठा लिये है तो वह क्या करें । ठीक कह रहे है आप । आप दिल्ली से आये है ना । तो ये भी समझ लिजिये स्कूल कालेज खुल गये हैं लेकिन कोई बच्चा इसलिये स्कूल नहीं आ पाता क्योंकि उसे लगता है कि स्कूल से वह जिन्दा लौटेगा या शहीद कहलायेगा। बच्चे के भीतर गुस्सा देख मै खुद सहम गया । मै खुद भी सोचने लगा जिन बच्चो के कंघे पर कल कश्मीर का भविष्य होगा उन्हे कौनसा भविष्य मौजूदा वक्त में समाज और देश दे रहा है इसपर हर कोई मौन है । और असर इसी का है कि घाटी में 8171 प्राइमरी स्कूल, 4665 अपर प्राईमरी स्कूल ,960 हाई स्कूल ,300 हायर सेकेंडरी स्कूल, और सेना के दो स्कूल में वाकई पढाई हो ही नही रही है । श्रीनगर से दिल्ली तक कोई सियासतदान बच्चों के बार में जब सोच नहीं रहा है । हमारी बातचीत सुन खालिद भी आ गया था । जो बेफ्रिकी से हमे सुन रहा था । लेकिन जब मैने टोका खालिद आप कालेज में पढते है । तो उसी बेफ्रिकी के अंदाज में बोला...पढता था । क्यों अब । वापस आ गया । कहां से । कोटा से । राजस्थान में है । वापस क्यो आ गये । खबर तो बनी थी कश्मीर के लडको को राजस्थान में कैसे कालेज छोडने को कहां गया । मुझे भी याद आया कि सिर्फ राजस्तान ही नहीं बल्कि यूपी में कश्मीरी छात्रो को वापस कश्मीर लौटने के लिये कैसे वही के छात्र और कुछ संगठनो ने दवाब बनाया । बाद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इसका विरोध किया । लेकिन ये मुझे खालिद से मिलकर ही पता चला कि दिल्ली की
आवाज भी कश्मीरी छात्रों के लिये बे-असर रही । फिर भी मैने खालिद को टटोला अब आगे की पढाई । तो उसी गुस्से भरे अंदाज में खालिद बोल पडा सीरिया में बीते 725 दिनों से बच्चों को नहीं पता कि वह किस दुनिया में जी रहे हैं। स्कूल बंद हैं। पढ़ाई होती नहीं । तो ये बच्चे पढ़ना लिखना भी भूल चुके हैं। और समूची दुनिया में इस सच को लेकर सीरिया में बम बरसाये जा रहे हैं कि आईएसआईएस को खत्म करना है तो एक मात्र रास्ता हथियारों का है । युद्द का है। लेकिन वक्त के साथ साथ बड़े होते बच्चों को दुनिया कौन सा भविष्य दे रही है इसपर समूची दुनिया ही मौन है । इसके बाद बातचीत को कईयो से हुई । 90-96 के आंतकवाद के जख्मो को भी टटोला और अगले दिन यानी रविवार को सुबह सुबह जब एयरपोर्ट के निकल रहा था तो चाहे अनचाहे इकबाल बोला , सर
आपको सीएम के घर की तरफ से ले चलता हूं । वक्त है नहीं । फिर मिलना भी नहीं है । अरे नहीं सर ..मिलने नहीं कह रहा हू । आपने फिल्म हैदर देखी थी । हां क्यों । उसमें सेना के जिन कैंपों का जिक्र है । जहां आतंकवादियो को रखा जाता था । कन्सनट्रेशन कैंप । हा, वही कैंप, जिसमें कश्मीरियों को बंद रखा
जाता था । उसे श्रीनगर में पापा कैंप के नाम से जानते हैं। और श्रीनगर में ऐसे तीन कैंप थे । लेकिन मैं आपको पापा-2 कैंप दिखाने ले जा रहा हूं । कन्सनट्रैशन कैंप अब तो खाली होगा । नहीं.. वही तो दिखाने ले जा रहा हूं
। और जैसे ही सीएम हाउस शुरु हुआ ...इकबाल तुरंत बोल प़डा , देख लीजिए,,यही है पापा-2 । तो 1990-96 के दौर के कन्सनट्रैशन कैप को ही सीएम हाउस मे तब्दील कर दिया गया । मैंने चलती गाड़ी से ही नजरों को घुमा कर देखा और सोचने लगा कि वाकई घाटी में जब आंतकवाद 90-96 के दौर में चरम पर था और अब जब आतंकवाद घाटी की हवाओ में समा चुका है तो बदला क्या है आंतकवाद...कश्मीर या कश्मीर को लेकर सियासत का आंतकी चेहरा ।
क्योंकि मेरे जहन में सीएम हाउस को देखकर पापा-टू कैप में रखे गये उस दौर के आंतकवादी मोहम्मद युसुफ पैरी याद आ गया । जिसने आंतक को 90 के दशक में अपनाया । पाकिस्तान भी गया । पाकिस्तान में हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी ली । उसकी पहचान कूकापैरी के तौर पर बनी । वह उस दोर में जेहादियो का आदर्श था । लेकिन पाकिसातन के हालात को देखकर लौटा तो भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया । फिर मुख्यधारा में शामिल होने के लिये इखवान नाम का संगठन शुरु किया । जो आतंकवाद के खिलाफ था । और कूकापैरी जो कि मुसलमान था । कश्मीरी था । आतंकवादी बन कर आजादी के लिये निकला था । वही कूकापैरी जब आंतकवाद के खिलाफ खडा हुआ तो कश्मीर में हालात सामान्य होने लगे । उसी के आसरे 1996 में भारत कश्मीर में चुनाव करा सका । वह खुद भी चुनाव लड़ा । जम्मू कश्मीर आवामी लीग नाम की पार्टी बनायी । विधायक बना । और आंतकवाद के जिस दौर में फारुख अबंदुल्ला लंदन में गोल्फ खेल रहे थे । वह चुनाव लडने 1996 में वापस इंडिया लौटे । और चुनाव के बाद फारुख अब्दुल्ला को दिल्ली ने सत्ता थमा दी । और कूकापैरी को जब बांदीपूरा के हसैन सोनावारी में जेहादियो ने गोली मारी तो उसके अंतिम संस्कार में सत्ताधारी तो दूर । डीएम तक नहीं गया । कश्मीर के आतंक के दौर की ऐसी बहुतेरी यादें लगातार जहन में आती रही और सोचने लगा कि वाकई घाटी में जब आंतकवाद 90-96 के दौर में चरम पर था और अब जब आतंकवाद घाटी की हवाओं में समा चुका है तो बदला क्या है आतंकवाद...कश्मीर या कश्मीर को लेकर सियासत का आतंकी चेहरा । ये सोचते सोचते कब दिल्ली दिल्ली आ गया और कानों में एयर होस्टेज की आवाज सुनाई पड़ी कि बाहर का तापमान 36 डिग्री है । सोचने लगा सुबह 11 बजे दिल्ली इतनी गर्म । और जन्नत की गर्माहट के बीच सुकून है कहां ।
जहाज ने जमीन को छुआ और तो खिड़की से बाहर का मौसम कुछ धुंधला धुंधला सा दिखायी दिया। तब तक एयर-होस्टेज की आवाज गूंज पड़ी...बाहर का तापमान 27 डिग्री है । उमस भी है। सुबह के 11 बजे थे और जहाज का दरवाजा खुलते ही गर्म हवा का हल्का सा झोंका चेहरे से टकराया। सीट आगे की थी तो सबसे पहले श्रीनगर की हवा का झोंका चेहरे से टकराया। घाटी आना तो कई बार हुआ और हर बार आसमान से कश्मीर घाटी के शुरु होते ही कोई ना कोई आवाज कानों से टकराती जरुर रही कि कश्मीर जन्नत क्यों है। लेकिन पहली बार जन्नत शुरु हुई और जहाज जमीन पर आ गया और कोई आवाज नहीं आई। गर्मी का मौसम है जहाज खाली। किराया भी महज साढे तीन हजार। यानी सामान्य स्थिति होती तो मई में किराया सात से दस हजार के बीच होता। लेकिन वादी की हवा जिस तरह बदली। या कहें लगातार टीवी स्क्रीन पर वादी के बिगड़ते हालात को देखने के बाद कौन जन्नत की हसीन वादियों में घूमने निकलेगा । ये सवाल जहन में हमेशा रहा लेकिन जहाज जमीन पर उतरा तो हमेशा की तरह ना तो कोई चहल-पहल हवाई अड्डे पर नजर आई ना ही बहुतेरे लोगों की आवाजाही। हां, सुरक्षाकर्मियों की सामान्य से ज्यादा मौजूदगी ने ये एहसास जरुर करा दिया कि फौजों की आवाजाही कश्मीर हवाई अड्डे पर बढ़ी हुई है। और बाहर निकलते वक्त ना जाने क्यों पहली बार इच्छा हुई कि हर एयरपोर्ट का नाम किसी शक्स के साथ जुड़ा होता है तो श्रीनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट किसके नाम पर है। और पहली बार नजर गई एक किनारे में लिखा है शेख-उल-आलम एयरपोर्ट। कौन है शेख-उल-आलम...ये सोच
बाहर निकला तो इकबाल हाथ में मेरे नाम का प्लेकार्ड लिये मिल गया। इकबाल । श्रीनगर के डाउन टाउन में रहने वाला। टैक्सी चलाता है । और आज से नहीं 1999 से इकबाल में पहली बार एयरपोर्ट पर ही मिला था । तब मैं भी पहली बार श्रीनगर पहुंचा था। लेकिन तब साथ में कैमरा टीम थी। क्योंकि अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकी हिंसा की रिपोर्ट करने पहुंचा। और उसके बाद दर्जनों बार इकबाल ही हवाईअड्डे पर दिल्ली से एक फोन करने पर पहुंच जाता । और हर बार मेरे सवालों का जबाब देते देते वह शहर पहुंचा देता। ये शेख-उल-आलम कौन थे । जिनके नाम पर श्रीनगर हवाई अड्डा है।
आप पहले व्यक्ति है जो पूछ रहे हैं। जनाब वो संत थे । उन्हें नुन्द श्रृषि । यहां से 60 किलोमीटर दूर कुलगाम के क्योमोह गांव में जन्म हुआ था । बहुत नामी संत थे । कुलगाम चलेंगे क्या । श्रीनगर से अनंतनाग। वहां से 10 किलोमीटर ही दूर है । न न । मैं झटके में बोला । कल सुबह लौटना भी है। कुछ घंटों के लिये इस बार आये है। हां ..रोज टीवी पर रिपोर्ट दिखाते दिखाते सोचा शनिवार का दिन है छुट्टी है। रविवार को लौट जाऊंगा । जरा हालात देख आऊं । लोग हालात देख कर नहीं आते और आप हालात देखने आये हो। अब ये किसी से संभल नहीं रहा है। या कहे कोई संभाल नहीं रहा। आप जो भी कहो। लेकिन हर कोई तो सड़क पर ह। ना कोई काम है । ना कमाई। स्कूल कालेज चलते नहीं। बच्चे क्या करें। और मां बाप परेशान हैं। ये देखिये गिलानी का घर। चारों
तरफ पुलिस वाले क्यों है। सिर्फ सिक्यूरिटी फोर्स ही तो है हर जगह। और इकबाल के कहते ही मेरी नजर बाहर सड़क पर गई तो बख्तरबंद गाडियों में सिक्यूरिटी फोर्स की आवाजाही ने खींच लिया। ये सिर्फ हैदरपुरा [ गिलानी का घर ] में है या पूरे शहर में । शहर में आप खुद ही देख लेना । कहां जायेंगे पहले। सीधे लाल चौक ले चलो। जरा हालात देखूंगा । चहल-पहल देखूंगा । फिर यासिन मलिक से मिलूंगा । अब चलती नहीं है सेपरिस्टों की। क्यों दिल्ली से तो लगता है कि अलगाववादी ही कश्मीर को चला रहे हैं। इकबाल हंसते हुये बोला । जब महबूबा दिल्ली की गुलाम हो गई तो आजाद तो सिर्फ सेपरिस्ट ही बचे। फिर चलती क्यों नहीं। क्योंकि अब लोगों में खौफ नहीं रहा । नई पीढी बदल चुकी है । नये हालात बदल चुके हैं । लेकिन सरकारों के लिये कश्मीर अब भी नब्बे के युग में है। आप खुद ही यासिन से पूछ लेना, नब्बे में वह जवान था। बंदूक लिये घाटी का हीरो था । अब सेपरिस्टों के कहने पर कोई सड़क पर नहीं आता । सेपरिस्ट ही हालात देखकर सड़क पर निकले लोगों के साथ खड़े हो जाते हैं। पूछियेगा यासिन से ही कैसे वादी में हवा बदली है और बच्चे-बच्चियां क्यों सडक पर है । रास्ते में मेरी नजरें लगातार शनिवार के दिन बाजार की चहल-पहल को भी खोजती रही । सन्नाटा ज्यादा नजर आया । सड़क पर बच्चे खेलते नजर आये। डल लेक के पास पटरियों पर पहली बार कोई जोड़ा नजर नहीं आया। और लाल चौक। दुकानें खुली थीं। कंटीले तारों का झुंड कई जगहों पर पड़ा था। सुरक्षाकर्मियों की तादाद हमेशा की तरह थी। लाल चौक से फर्लांग भर की दूरी पर यासिन मलिक का घर। पतली सी गली । गली में घुसते ही चौथा मकान। लेकिन गली में घुसते ही सुरक्षाकर्मियों की पहली आवाज किससे मिलना है । कहां से आये है । खैर पतली गली । और घर का लकड़ी का दरवाजा खुलते ही। बेहद संकरी घुमावदार सीढ़ियां । दूसरे माले पर जमीन पर बिछी कश्मीरी कारपेट पर बैठ यासिन मलिक। कैसे आये । बस आपसे मिलने और कश्मीर को समझने देखने आ गये । अच्छा है जो शनिवार को आये । जुम्मे को आते तो मिल ही नहीं पाते। क्यों ? शुक्रवार को सिक्यूरिटी हमें किसी से मिलने नहीं देती और हमारे घर कोई मिलने आ नहीं पाता । यानी । नजरबंदी होती है । तो सेपरिस्टो ने अपनी पहचान भी तो जुम्मे के दिन पत्थरबाजी या पाकिस्तान का झंडा फरहाने वाली बनायी है । आप भूल कर रहे हैं । ये 90 से 96 वाला दौर नहीं है । जब सेपरिस्टो के इशारे पर बंदूक उठायी जाती। या सिक्यूरिटी के खिलाफ नारे लगते । क्यों 90 से 96 और अब के दौर में अंतर क्या आ गया है। हालात तो उससे भी बुरे लग रहे हैं। स्कूल जलाये जा रह हैं। लड़कियां पत्थर फेंकने सड़क पर निकल पड़ी हैं। आतंकी खुलेआम गांव में रिहाइश कर रहे है । किसी आतंकी के जनाजे में शामिल होने लिये पूरा गांव उमड़ रहा है । तो आप सब जानते ही हो तो मैं क्या कहूं । लेकिन ये सब क्यों हो रहा है ये भी पता लगा लीजिये । ये समझने तो आये हैं। और इसीलिये आपसे मिलने भी पहुंचे हैं। देखिये अब सूचना आप रोक नहीं सकते। टेक्नालाजी हर किसी के पास है । या कहे टेक्नालाजी ने हर किसी को आपस मे मिला दिया है । 90-96 के दौर में कश्मीरियों के टार्चर की कोई कहानी सामने नहीं आ पाई । जबकि उस दौर में क्या कुछ हुआ उसकी निशानी तो आज भी मौजूद है । लेकिन देश – दुनिया को कहां पता चला । और अब जीप के आगे कश्मीरी को बांध कर सेना ने पत्थर से बचने के लिये ढाल बनाया तो इस एक तस्वीर ने हंगामा खड़ा कर दिया । पहले कश्मीर से बाहर पढ़ाई कर रहा कोई छात्र परेशान होकर वापस लौटता तो कोई नहीं जानता था। अब पढे-लिखे कश्मीरी छात्रों के साथ देश के दूसरे
हिस्से में जो भी होता है, वह सब के सामने आ जाता है । कश्मीर के बाहर की दुनिया कश्मीरियों ने देख ली है। इंडिया के भीतर के डेवलेपमेंट को देख लिया है । वहां के कालेज, स्कूल, हेल्ख सेंटर , टेक्नालाजी सभी को देखने
के बाद कश्मीरियों में ये सवाल तो है कि आखिर ये सब कश्मीर में क्यों नहीं । घाटी में हर चौराहे पर सिक्यूरिटी क्यों है ये सवाल नई पीढ़ी जानना चाहती है । उसे अपनी जिन्दगी मे सिक्यूरिटी दखल लगती है। आजादी के मायने बदल गये है बाजपेयी जी । अ
अब आजादी के नारो में पाकिस्तान का जिक्र कर आप नई पीढी को गुमराह नहीं कर सकते हैं। तो क्या सेपरिस्टो की कोई भूमिका नहीं है । आतंकवाद यूं ही घाटी में चल रहा है। गांव के गांव कैसे हथियारों से
लैस हैं। लगातार बैंक लूटे जा रहे हैं। पुलिस वालों को मारा जा रहा है । क्या ये सब सामान्य है । मैं ये कहां कह रहा हू सब सामान्य है । मैं तो ये कह रहा हूं कि कश्मीर में जब पीढी बदल गई, नजरिया बदल गया । जबकि दिल्ली अभी भी 90-96 के वाकये को याद कर उसी तरह की कार्रवाई को अंजाम देने की पॉलिसी क्यों अपनाये हुये है । क्या किसी ने जाना समझा कि वादी में रोजगार कैसे चल रहा है । घर घर में कमाई कैसे हो रही है । बच्चे पढाई नही कर पा रहे है । तो उनके सामने भविष्य क्या होगा । तो स्कूल जला कौन रहा है । स्कूल जब नहीं जले तब पांच महीने तक स्कूल बंद क्यों रहे...ये सवाल तो आपने कभी नहीं पूछा । तो क्या सेपरिस्ट स्कूल जला रहे हैं । मैंने ये तो नहीं कहा। मेरे कहने का मतलब है जनता की हर मुश्किल के साथ अगर दिल्ली खड़ी नहीं होगी तो उसका लाभ कोई कैसे उठायेगा, ये भी जले हुये स्कूलों को देखकर समझना चाहिये। हुर्रियत ने तो स्कूलों की जांच कराने को कहा । मैंने खुद कहा कौन स्कूल जला रहा है सरकार को बताना चाहिये। आप नेताओं से मिलें तब आपको सियासत समझ में समझ में आयेगी । फिर आप खुद ही लोगों से मिलकर पूछें कि आखिर ऐसा क्या हआ की जो मोदी जी चुनाव से पहले कश्मीरियत का जिक्र कर रहे थे वह वही मोदी जी चुनाव परिणाम आने के बाद कश्मीरियो से दूरी क्यों बना बैठे । और चुनी हुई महबूबा सरकार का मतलब है कितना । यासिन से कई
मुद्दो पर खुलकर बात हुई । बात तो इससे पहले भी कई बार हुई थी । लेकिन पहली बार यासिन मलिक ने देश की राजनीति के केन्द्र में खडे पीएम मोदी को लेकर कश्मीर के हालात से जोडने की वकालत की । सीरिया और आईएसआईएस के संघर्ष तले कश्मीर के हालात को उभारने की कोशिश की । करीब दो घंटे से ज्यादा वक्त गुजारने के बाद मोहसूना [ यासिन का घर } से निकला तो श्रीनगर में कई लोगो से मुलाकात हुई । लेकिन जब बात एक पूर्व फौजी से हुई और उसने जो नये सवाल खडे किये । उससे कई सवालों के जबाव पर ताले भी जड दिये। मसलन पूर्व फौजी ने साफ कहा , जिनके पास पैसा है । जिनका धंधा बडा है । कमाई ज्यादा है । उनपर क्या असर पडा । क्या किसी ने जाना । और जब वादी के हालात बिगड चुके है जब उसका असर जम्मू पर कैसे पड रहा होगा क्या किसी ने जाना । क्या असर हो रहा है । आप इंतजार किजिये साल भर बाद आप देखेगें कि
जम्मू की डेमोग्राफी बदल गई है । वादी में जो छह महीने काम-कमाई होती थी जब वह भी ठप पडी चुकी है तो फिर धाटी के लोग जायेगें कहा । कमाई-धंधे का केन्द्र जम्मू बन रहा है । सारे मजदूर । सारे बिजनेस जम्मू शिफ्ट हो रहे है ।जिन हिन्दु परिवारो को लगता रहा कि घाटी में मिस्लिम बहुतायत है और जम्मू में हिन्दू परिवार तो हालात धीरे धीरे इतने बदल रहे है कि आने वाले वक्त में मुस्लिमो की तादाद जम्मू में भी ज्यादा हो जायेगी । और जम्मू से ज्यादा बिसनेस जब कश्मीर में है तो फिर जम्मू के बिजनेस मैन भी कश्मीरियो पर ही टिके है । लेकिन चुनी हुई सरकार के होने के बावजूद सेना ही केन्द्र में क्यो है । और सारे सवाल सेना को लेकर ही क्यू है । कोई महबूबा मुफ्ती को लेकर सवाल खडा क्यो नहीं करता । ये बात आप नेशनल कान्प्रेस वालो से पूछिये या फिर किसी भी नेता से पूछिये आपको समझ में आ जायेगा । लेकिन आपको क्या मानना है कि महबूबा बेहद कमजोर सीएम साबित हुई है । महबूबा कमजोर नहीं मजबूत हो रही है । उसका कैडर । उसकी राजनीति का विस्तार हो
रहा है । वह कैसे । हालात को बारिकी से समझे । घाटी में जिसके पास सत्ता है उसी की चलेगी । सिक्यूरटी उसे छुयेगी नहीं । और सिक्रयूरटी चुनी हुई सरकार के लोगोग को छेडेगी भी नहीं । महबूबा कर क्या रही है । उसने
आंतकवादियो को ढील दे रखी है । सेपरिस्टो [ अलगाववादियों ] को ढील दे रखी है । पत्थरबाजो के हक में वह लगातार बोल रही है । तो फिर गैर राजनीतिक प्लेयरो की राजनीतिक तौर पर नुमाइन्दगी कर कौन रहा है । पीडीपी कर रही है । पीडीपी के नेताओ को खुली छूट है । उन्हे कोई पकडेगा नहीं । क्योकि
दिल्ली के साथ मिलकर सत्ता की कमान उसी के हाथ में है । और दिल्ली की जरुरत या कहे जिद इस सुविधा को लेकर है कि सत्ता में रहने पर वह अपनी राजनीति या एंजेडे का विस्तार कर सकती है । लेकिन बीजेपी इस सच को ही समझ नहीं पा रही है कि पीडीपी की राजनीति जम्मू में भी दखल देने की स्थिति में आ रही है । क्योकि जम्मू सत्ता चलाने का नया हब है । और कमान श्रीनगर में है । फिर जब ये खबर ती है कि कभी सोपोर में या कभी शोपिया में सेना ने पत्थरबाजो या तकवादियो को पनाह दिये गांववालो के खिलाफ आपरेशन शुरु कर
दिया है तो उसका मतलब क्या होता है । ठीक कहा आपने दो दिन पहले ही 4 मई को शोपिया में सेना के आपरेशन की खबर तमाम राष्ट्रीय न्यूज चैनलो पर चल रही थी । जबकि शोपियां का सच यही है कि वहा गांव-दर-गांव आंतकवादियो की पैठ के साथ साथ पीडीपी की भी पैठ है । अब सत्ताधारी दल के नेताओ को सिक्यूरिटी देनी है और नेता उन्ही इलाको में कश्मीरियों को साथ खडाकर रहे है जिन इलाको में आंतक की गूंज है । तो सिक्यूरटी वाले करे क्या । इस हालात में होना क्या चाहिये । आप खुद सोचिये । सेना में कमान हमेशा एक के पास होती है तभी कोई आपरेशन सफल होता है लेकिन घाटी में तो कई हाथो में कमान है । और सिक्यूरटी फोर्स सिवाय सुरक्षा देने के अलावे और कर क्या सकती है । हम बात करते करते डाउन-टाउन के इलाके में पहुंच चुके थे । यहां इकबाल का घर था तो उसने कारपेट का बिजनेस करने वाले शौहेब से मुलाकात
करायी । और उससे मिलते ही मेरा पहला सवाल यही निकला कि बैंक लूटे जा रहे है । तो क्या लूट का पैसा आंतकवादियो के पास जा रहा है । शौहेब ने कोई जबाव नहीं दिया । मैने इकबाल तरफ देखा । तो आपस में कस्मीरी में दोनों ने जो भी बातचीत की उसके बाद शौहेब हमारे साथ खुल गया । लेकिन जवाबा इतना ही
दिया कि मौका मिले तो जे एंड के बैंक के बारे में पता कर लीजिये । ये किसको लोन देते है । कौन जिन्होने लोन नहीं लौटाया । और जिन्होंने लोन लिया वह है भी की नहीं । तो क्या एनपीए का आप जिक्र कर रहे है । आप कह
सकते है एनपीए । लेकिन जब आपने बैंक के लूटने का जिक्र किया तो मै सिर्फ यहीं समझाना चाह रहा हूं कि बैक बिना लूटे भी लूटे गये है । लूटे जा रहे है । लूटने का दिखावा अब इसलिये हो रहा है जिससे बैक को कोई जवाब ना देना पडे । डाउन डाउन में ही हमारी मुलाकात दसवी में पढाई करने वाले छात्र मोहसिन वानी से हुई । निहायत शरीफ । जानकारी का मास्टर । परीक्षा देकर कुछ करने का जनुन पाले मोहसिन से जब हमने उसके स्कूल के बार में पूछा तो खुद सेना के स्कूल में अपनी पढाई से पहले उसने जो कहा , वह शायद भविष्य
के कश्मीर को पहला दागदार चेहरा हमें दिखा गया । क्योंकि जिक्र तो सिर्फ उसकी पढाई का था । और उसने झटके में घाटी में स्कूल-कालेजो का पूरा कच्चा-चिट्टा ये कहते हुये हमारे सामने रख दिया कि अगर अब मुझसे स्कूल और हमारी पढाई के बारे में पूछ रहे है तो पहले ये भी समझ लें सिर्फ 20 दिनों में कोई स्कूल साल भर की पढाई कैसे करा सकता है । लेकिन घाटी में ये हो रहा है । क्योंकि कश्मीर घाटी में बीते 10 महीनो में कुल जमा 46 दिन स्कूल कालेज खुले । आर्मी पब्लिक स्कूल से लेकर केन्द्रीय विद्यालय तक और हर कान्वेंट से लेकर हर लोकल स्कूल तक । आलम ये है कि वादी के शहरों में बिखरे 11192 स्कूल और घाटी के ग्रामीण इलाको में सिमटे 3 280 से ज्यादा छोटे बडे स्कूल सभी बंद हैं । और इन स्कूल में जाने वाले करीब दो लाख से ज्यादा छोटे बडे बच्चे घरो में कैद हैं । ऐसे में छोटे छोटे बच्चे कश्मीर की गलियों में घर के मुहाने पर खड़े होकर टकटकी लगाये सिर्फ सड़क के सन्नाटे को देखते रहते हैं। और जो बच्चे कुछ बड़े हो गये हैं, समझ रहे हैं कि पढ़ना जरुरी है । लेकिन उनके भीतर का खौफ उन्हे कैसे बंद घरों के अंधेरे में किताबो से रोशनी दिला पाये ये किसी सपने की तरह है। क्योंकि घाटी में बीते 10 महीनो में 169 कश्मीरी युवा मारे गये हैं। और इनमें से 76 बच्चे हाई स्कूल में पढ़ रहे थे । तो क्या बच्चो का ख्याल किसी को नहीं । नही हर कोई हिंसा के बीच आतंक और राजनीतिक समाधान का जिक्र तो कर रहा है लेकिन घरो में कैद बच्चो की जिन्दगी कैसे उनके भीतर के सपनों को
खत्म कर रही है और खौफ भर रही है , इसे कोई नहीं समझ रहा है । लेकिन अब तो सरकार कह रही है स्कूल कालेज खुल गये । और बच्चे भटक कर हाथो में पत्थर उठा लिये है तो वह क्या करें । ठीक कह रहे है आप । आप दिल्ली से आये है ना । तो ये भी समझ लिजिये स्कूल कालेज खुल गये हैं लेकिन कोई बच्चा इसलिये स्कूल नहीं आ पाता क्योंकि उसे लगता है कि स्कूल से वह जिन्दा लौटेगा या शहीद कहलायेगा। बच्चे के भीतर गुस्सा देख मै खुद सहम गया । मै खुद भी सोचने लगा जिन बच्चो के कंघे पर कल कश्मीर का भविष्य होगा उन्हे कौनसा भविष्य मौजूदा वक्त में समाज और देश दे रहा है इसपर हर कोई मौन है । और असर इसी का है कि घाटी में 8171 प्राइमरी स्कूल, 4665 अपर प्राईमरी स्कूल ,960 हाई स्कूल ,300 हायर सेकेंडरी स्कूल, और सेना के दो स्कूल में वाकई पढाई हो ही नही रही है । श्रीनगर से दिल्ली तक कोई सियासतदान बच्चों के बार में जब सोच नहीं रहा है । हमारी बातचीत सुन खालिद भी आ गया था । जो बेफ्रिकी से हमे सुन रहा था । लेकिन जब मैने टोका खालिद आप कालेज में पढते है । तो उसी बेफ्रिकी के अंदाज में बोला...पढता था । क्यों अब । वापस आ गया । कहां से । कोटा से । राजस्थान में है । वापस क्यो आ गये । खबर तो बनी थी कश्मीर के लडको को राजस्थान में कैसे कालेज छोडने को कहां गया । मुझे भी याद आया कि सिर्फ राजस्तान ही नहीं बल्कि यूपी में कश्मीरी छात्रो को वापस कश्मीर लौटने के लिये कैसे वही के छात्र और कुछ संगठनो ने दवाब बनाया । बाद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इसका विरोध किया । लेकिन ये मुझे खालिद से मिलकर ही पता चला कि दिल्ली की
आवाज भी कश्मीरी छात्रों के लिये बे-असर रही । फिर भी मैने खालिद को टटोला अब आगे की पढाई । तो उसी गुस्से भरे अंदाज में खालिद बोल पडा सीरिया में बीते 725 दिनों से बच्चों को नहीं पता कि वह किस दुनिया में जी रहे हैं। स्कूल बंद हैं। पढ़ाई होती नहीं । तो ये बच्चे पढ़ना लिखना भी भूल चुके हैं। और समूची दुनिया में इस सच को लेकर सीरिया में बम बरसाये जा रहे हैं कि आईएसआईएस को खत्म करना है तो एक मात्र रास्ता हथियारों का है । युद्द का है। लेकिन वक्त के साथ साथ बड़े होते बच्चों को दुनिया कौन सा भविष्य दे रही है इसपर समूची दुनिया ही मौन है । इसके बाद बातचीत को कईयो से हुई । 90-96 के आंतकवाद के जख्मो को भी टटोला और अगले दिन यानी रविवार को सुबह सुबह जब एयरपोर्ट के निकल रहा था तो चाहे अनचाहे इकबाल बोला , सर
आपको सीएम के घर की तरफ से ले चलता हूं । वक्त है नहीं । फिर मिलना भी नहीं है । अरे नहीं सर ..मिलने नहीं कह रहा हू । आपने फिल्म हैदर देखी थी । हां क्यों । उसमें सेना के जिन कैंपों का जिक्र है । जहां आतंकवादियो को रखा जाता था । कन्सनट्रेशन कैंप । हा, वही कैंप, जिसमें कश्मीरियों को बंद रखा
जाता था । उसे श्रीनगर में पापा कैंप के नाम से जानते हैं। और श्रीनगर में ऐसे तीन कैंप थे । लेकिन मैं आपको पापा-2 कैंप दिखाने ले जा रहा हूं । कन्सनट्रैशन कैंप अब तो खाली होगा । नहीं.. वही तो दिखाने ले जा रहा हूं
। और जैसे ही सीएम हाउस शुरु हुआ ...इकबाल तुरंत बोल प़डा , देख लीजिए,,यही है पापा-2 । तो 1990-96 के दौर के कन्सनट्रैशन कैप को ही सीएम हाउस मे तब्दील कर दिया गया । मैंने चलती गाड़ी से ही नजरों को घुमा कर देखा और सोचने लगा कि वाकई घाटी में जब आंतकवाद 90-96 के दौर में चरम पर था और अब जब आतंकवाद घाटी की हवाओ में समा चुका है तो बदला क्या है आंतकवाद...कश्मीर या कश्मीर को लेकर सियासत का आंतकी चेहरा ।
क्योंकि मेरे जहन में सीएम हाउस को देखकर पापा-टू कैप में रखे गये उस दौर के आंतकवादी मोहम्मद युसुफ पैरी याद आ गया । जिसने आंतक को 90 के दशक में अपनाया । पाकिस्तान भी गया । पाकिस्तान में हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी ली । उसकी पहचान कूकापैरी के तौर पर बनी । वह उस दोर में जेहादियो का आदर्श था । लेकिन पाकिसातन के हालात को देखकर लौटा तो भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया । फिर मुख्यधारा में शामिल होने के लिये इखवान नाम का संगठन शुरु किया । जो आतंकवाद के खिलाफ था । और कूकापैरी जो कि मुसलमान था । कश्मीरी था । आतंकवादी बन कर आजादी के लिये निकला था । वही कूकापैरी जब आंतकवाद के खिलाफ खडा हुआ तो कश्मीर में हालात सामान्य होने लगे । उसी के आसरे 1996 में भारत कश्मीर में चुनाव करा सका । वह खुद भी चुनाव लड़ा । जम्मू कश्मीर आवामी लीग नाम की पार्टी बनायी । विधायक बना । और आंतकवाद के जिस दौर में फारुख अबंदुल्ला लंदन में गोल्फ खेल रहे थे । वह चुनाव लडने 1996 में वापस इंडिया लौटे । और चुनाव के बाद फारुख अब्दुल्ला को दिल्ली ने सत्ता थमा दी । और कूकापैरी को जब बांदीपूरा के हसैन सोनावारी में जेहादियो ने गोली मारी तो उसके अंतिम संस्कार में सत्ताधारी तो दूर । डीएम तक नहीं गया । कश्मीर के आतंक के दौर की ऐसी बहुतेरी यादें लगातार जहन में आती रही और सोचने लगा कि वाकई घाटी में जब आंतकवाद 90-96 के दौर में चरम पर था और अब जब आतंकवाद घाटी की हवाओं में समा चुका है तो बदला क्या है आतंकवाद...कश्मीर या कश्मीर को लेकर सियासत का आतंकी चेहरा । ये सोचते सोचते कब दिल्ली दिल्ली आ गया और कानों में एयर होस्टेज की आवाज सुनाई पड़ी कि बाहर का तापमान 36 डिग्री है । सोचने लगा सुबह 11 बजे दिल्ली इतनी गर्म । और जन्नत की गर्माहट के बीच सुकून है कहां ।
Wednesday, May 3, 2017
सवाल जन-विश्वास का है ना कि केजरीवाल-कुमार विश्वास का
आप की राजनीति चुक गई लेकिन आंदोलन की जमीन जस की तस है
तो क्या केजरीवाल-विश्वास के बीच दरार की वजह सिर्फ अमानतुल्ला थे । और अब अमानतुल्ला को पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया तो क्या केजरीवाल का विश्वास कुमार पर लौट आया । या फिर कुमार के भीतर केजरीवाल को लेकर विश्वास जाग गया । क्योंकि केजरीवाल से लंबी बैठक के बाद मनीष सिसोदिया के साथ खड़े होकर कुमार ने अपना विश्वास आप में लौटते हुये दिखाया जरुर । लेकिन आप के भीतर का संकट ना तो अमानतुल्ला है ना ही कुमार विश्वास का गु्स्सा। और ना ही केजरीवाल की लीडरशिप। और ना ही आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला । आप के संकट तीन हैं। पहला , आप नेताओ को लगता है वही आंदोलन है । दूसरा, आंदोलन की तर्ज पर गवर्नेंस चलाने की इच्छा है । तीसरा , चुनावी जीत के लिये पार्टी संगठन का ताना-बाना बुनना है। यानी करप्शन और आंदोलन की बात कहते कहते कुमार विश्वास राजस्थान के प्रभारी बनकर महत्व पा गये।
यानी पारंपरिक राजनीतिक दल के पारपंरिक प्रभावी नेता का तमगा आप और कुमार विश्वास के साथ भी जुड़ गया । तो क्या आने वाले वक्त में कुमार की अगुवाई में आप राजस्थान जीत लेगी । यकीनन इस सवाल को दिल्ली के बाद ना तो पंजाब में मथा गया। ना गोवा में मथा गया । ना ही राजस्थान समेत किसी भी दूसरे राज्य में मथा जा रहा है। चूंकि आप के नेताओं को लगता है कि वही आंदोलन है । तो चुनाव को भी आप आंदोलन की तरह ना मान कर पारंपरिक लीक को ही अपना रही है। तो बड़ा सवाल है, जनता डुप्लीकेट को क्यों जितायेगी। और दिल्ली चुनाव के वक्त को याद किजिये। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का परचम देश भर में कांग्रेस की सत्ता के खिलाफ लहराया। लेकिन दिल्ली में आप इसलिये जीत गई क्योंकि चुनाव आप नहीं आम जनता लड़ रही थी। आम जनता के भीतर पारंपरिक बीजेपी-काग्रेस को लेकर सवाल थे । यानी आप में ठहराव आ गया । चुनावी जीत की रणनीति को ही जन-नीति मान लिया गया । सिस्टम से लड़ते हुये दिखना ही सिस्टम बदलने की कवायद मान लिया गया । तो याद कीजिये आंदोलन की इस तस्वीर को। आप के नेता जनता को रामलीला मैदान में बुला नहीं रहे थे। जनता खुद ब खुद रामलीला मैदान में आ रही थी । यानी आंदोलन से विकल्प पैदा हो सकता है ये जनता ने सोचा । और विकल्प चुनाव लड़कर, जीत कर किया जा सकता है ये उम्मीद आप पार्टी बनाकर केजरीवाल ने जगायी। लेकिन चुनावी जीत के बाद के तौर तरीके उसी गवर्नेंस में खो गये, जिस गवर्नैंस में पद पर बैठकर खुद को सेवक मानना था । वीआईपी लाल बत्ती कल्चर को छोडना था । जन सरकार में खुद को तब्दील करना था । तो बदला कौन । जनता तो जस की तस है । आंदोलन के लिये जमीन भी बदली नही है । सिर्फ आंदोलन की पीठ पर सवार होने की सोच ने सत्ता की लड़ाई में हर किसी को फंसा दिया है । इसलिये चुनाव आप हार रही है । हार की खिस आंदोलन को परफ्यूम मान रही है । और केजरीवाल हो या कुमार विश्वास बार बार सत्ता की जमी पर खडे होकर आंदोलन का रोना रो रहे है ।
तो फिर याद किजिये 2011 में हो क्या रहा था । कोयला घोटाला ,राडिया टेप , आदर्श घोटाला , 2 जी घोटाला ,कामनवेल्थ घोटाला ,कैश फार वोट, सत्यम घोटाला ,एंथेक्स देवास घोटाला । यानी कांग्रेस के दौर के घोटालो ने रामलीला मैदान को रेडिमेड आंदोलन की जमीन दे दी थी । यानी लोगों में गुस्सा था । जनता विकल्प चाहती थी । तब बीजेपी लड़खड़ा रही थी और चुनावी राजनीति से इतर रामलीला मैदान बिना किसी नेता के आंदोलन में इसलिये बदल रहा था क्योंकि करप्शन चरम पर था। और तब की मनमोहन सरकार ही कटघरे में थी और मांग उच्च पदों पर बैठे विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के खिलाफ जनलोकपाल की नियुक्ति का सवाल था । तब रामलीला मैदान की भीड़ को नकारने वाली संसद भी झुकी। और लोकपाल प्रस्ताव पास किया गया। तो हालात ने रामलीला मैदान के मंच पर बैठे लोगो को लीडर बना दिया और यही लीडरई आप बनाकर चुनाव जीत गई । लेकिन मौजूदा सच यही है लोकपाल की नियुक्ति अभी तक हुई नहीं है। रोजगार का सवाल लगातार बड़ा हो रहा है । महंगाई जस की तस है/ । कालाधन का सवाल वैसा ही है । किसी का नाम सामने आया नही । कश्मीर के हालत बिगडे हुये है । किसानो की खुदकुशी कम हुई नहीं है । पाकिस्तान की नापाक हरकत लगातार जारी है । यानी मुद्दे अपने अपने दायरे में सुलझे नहीं है । लेकिन आप चुनाव जीतने के तरीकों को मथ रही है । और मुद्दों के आसरे चुनाव जीतने की सोच में बीजेपी से आगे आज कौन हो सकता है । जिसके अध्यक्ष अमित शाह बूथ लेवल पर संगठन बना रहे हैं । अभी से 2019 की तैयारी में लग चुके हैं । अगले 90 दिनो में 225 लोकसभा सीट को कवर करेंगे। तो चुनाव जीतने की ही होड़ में जब आप भी जा घुसी है तो वह टिकेगी कहां और जनता -डुप्लीकेट को जितायेगी क्यों। यानी आप के भीतर का झगडा सिर्फ चुनावी हार का झगड़ा भर नहीं है । बल्कि आंदोलन की राजनीतिक जमीन को गंवाना भी है । जिसके भरोसे आप को राजनीतिक साख मिली। वह खत्म हो चली है । लेकिन समझना ये भी होगा कि देश में आंदोलन की जमीन जस की तस है । नया सवाल ये हो सकता
है कि गैर चुनावी राजनीति से इतर किस मुद्दे पर नया आंदोलन कब कहां खड़ा होगा ।
तो क्या केजरीवाल-विश्वास के बीच दरार की वजह सिर्फ अमानतुल्ला थे । और अब अमानतुल्ला को पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया तो क्या केजरीवाल का विश्वास कुमार पर लौट आया । या फिर कुमार के भीतर केजरीवाल को लेकर विश्वास जाग गया । क्योंकि केजरीवाल से लंबी बैठक के बाद मनीष सिसोदिया के साथ खड़े होकर कुमार ने अपना विश्वास आप में लौटते हुये दिखाया जरुर । लेकिन आप के भीतर का संकट ना तो अमानतुल्ला है ना ही कुमार विश्वास का गु्स्सा। और ना ही केजरीवाल की लीडरशिप। और ना ही आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला । आप के संकट तीन हैं। पहला , आप नेताओ को लगता है वही आंदोलन है । दूसरा, आंदोलन की तर्ज पर गवर्नेंस चलाने की इच्छा है । तीसरा , चुनावी जीत के लिये पार्टी संगठन का ताना-बाना बुनना है। यानी करप्शन और आंदोलन की बात कहते कहते कुमार विश्वास राजस्थान के प्रभारी बनकर महत्व पा गये।
यानी पारंपरिक राजनीतिक दल के पारपंरिक प्रभावी नेता का तमगा आप और कुमार विश्वास के साथ भी जुड़ गया । तो क्या आने वाले वक्त में कुमार की अगुवाई में आप राजस्थान जीत लेगी । यकीनन इस सवाल को दिल्ली के बाद ना तो पंजाब में मथा गया। ना गोवा में मथा गया । ना ही राजस्थान समेत किसी भी दूसरे राज्य में मथा जा रहा है। चूंकि आप के नेताओं को लगता है कि वही आंदोलन है । तो चुनाव को भी आप आंदोलन की तरह ना मान कर पारंपरिक लीक को ही अपना रही है। तो बड़ा सवाल है, जनता डुप्लीकेट को क्यों जितायेगी। और दिल्ली चुनाव के वक्त को याद किजिये। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का परचम देश भर में कांग्रेस की सत्ता के खिलाफ लहराया। लेकिन दिल्ली में आप इसलिये जीत गई क्योंकि चुनाव आप नहीं आम जनता लड़ रही थी। आम जनता के भीतर पारंपरिक बीजेपी-काग्रेस को लेकर सवाल थे । यानी आप में ठहराव आ गया । चुनावी जीत की रणनीति को ही जन-नीति मान लिया गया । सिस्टम से लड़ते हुये दिखना ही सिस्टम बदलने की कवायद मान लिया गया । तो याद कीजिये आंदोलन की इस तस्वीर को। आप के नेता जनता को रामलीला मैदान में बुला नहीं रहे थे। जनता खुद ब खुद रामलीला मैदान में आ रही थी । यानी आंदोलन से विकल्प पैदा हो सकता है ये जनता ने सोचा । और विकल्प चुनाव लड़कर, जीत कर किया जा सकता है ये उम्मीद आप पार्टी बनाकर केजरीवाल ने जगायी। लेकिन चुनावी जीत के बाद के तौर तरीके उसी गवर्नेंस में खो गये, जिस गवर्नैंस में पद पर बैठकर खुद को सेवक मानना था । वीआईपी लाल बत्ती कल्चर को छोडना था । जन सरकार में खुद को तब्दील करना था । तो बदला कौन । जनता तो जस की तस है । आंदोलन के लिये जमीन भी बदली नही है । सिर्फ आंदोलन की पीठ पर सवार होने की सोच ने सत्ता की लड़ाई में हर किसी को फंसा दिया है । इसलिये चुनाव आप हार रही है । हार की खिस आंदोलन को परफ्यूम मान रही है । और केजरीवाल हो या कुमार विश्वास बार बार सत्ता की जमी पर खडे होकर आंदोलन का रोना रो रहे है ।
तो फिर याद किजिये 2011 में हो क्या रहा था । कोयला घोटाला ,राडिया टेप , आदर्श घोटाला , 2 जी घोटाला ,कामनवेल्थ घोटाला ,कैश फार वोट, सत्यम घोटाला ,एंथेक्स देवास घोटाला । यानी कांग्रेस के दौर के घोटालो ने रामलीला मैदान को रेडिमेड आंदोलन की जमीन दे दी थी । यानी लोगों में गुस्सा था । जनता विकल्प चाहती थी । तब बीजेपी लड़खड़ा रही थी और चुनावी राजनीति से इतर रामलीला मैदान बिना किसी नेता के आंदोलन में इसलिये बदल रहा था क्योंकि करप्शन चरम पर था। और तब की मनमोहन सरकार ही कटघरे में थी और मांग उच्च पदों पर बैठे विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के खिलाफ जनलोकपाल की नियुक्ति का सवाल था । तब रामलीला मैदान की भीड़ को नकारने वाली संसद भी झुकी। और लोकपाल प्रस्ताव पास किया गया। तो हालात ने रामलीला मैदान के मंच पर बैठे लोगो को लीडर बना दिया और यही लीडरई आप बनाकर चुनाव जीत गई । लेकिन मौजूदा सच यही है लोकपाल की नियुक्ति अभी तक हुई नहीं है। रोजगार का सवाल लगातार बड़ा हो रहा है । महंगाई जस की तस है/ । कालाधन का सवाल वैसा ही है । किसी का नाम सामने आया नही । कश्मीर के हालत बिगडे हुये है । किसानो की खुदकुशी कम हुई नहीं है । पाकिस्तान की नापाक हरकत लगातार जारी है । यानी मुद्दे अपने अपने दायरे में सुलझे नहीं है । लेकिन आप चुनाव जीतने के तरीकों को मथ रही है । और मुद्दों के आसरे चुनाव जीतने की सोच में बीजेपी से आगे आज कौन हो सकता है । जिसके अध्यक्ष अमित शाह बूथ लेवल पर संगठन बना रहे हैं । अभी से 2019 की तैयारी में लग चुके हैं । अगले 90 दिनो में 225 लोकसभा सीट को कवर करेंगे। तो चुनाव जीतने की ही होड़ में जब आप भी जा घुसी है तो वह टिकेगी कहां और जनता -डुप्लीकेट को जितायेगी क्यों। यानी आप के भीतर का झगडा सिर्फ चुनावी हार का झगड़ा भर नहीं है । बल्कि आंदोलन की राजनीतिक जमीन को गंवाना भी है । जिसके भरोसे आप को राजनीतिक साख मिली। वह खत्म हो चली है । लेकिन समझना ये भी होगा कि देश में आंदोलन की जमीन जस की तस है । नया सवाल ये हो सकता
है कि गैर चुनावी राजनीति से इतर किस मुद्दे पर नया आंदोलन कब कहां खड़ा होगा ।
Monday, May 1, 2017
पाकिस्तान से ना युद्द, ना दोस्ती में फंसा भारत?
तो नॉर्दन कमान ने बकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि पुंछ जिले में कृष्णा घाटी सेक्टर में लाइन आफ कन्ट्रोल के दो पोस्ट पर रॉकेट और मोर्टार से पाकिस्तान ने गोलाबारी की, जिसमें एक सेना का जवान और एक बीएसएफ का जवान शहीद हो गया। लेकिन पाकिस्तानी फौज ने भारतीय सैनिकों के शव को क्षत-विक्षत कर दिया। तो ये ना तो पहली घटना है। और हालात बताते हैं कि ये ना ही आखिरी घटना होगी। क्योंकि करगिल युद्द के बाद से पाकिस्तान ने आधे दर्जन से ज्यादा बार जवानों के सिर काटे हैं। मई 1999 में जवान सौरभ कालिया का सिर काटा। जून 2008 में 2/8 गोरखा रेजिमेंट के एक जवान का सिर काटा। जुलाई 2011 में कुमाऊं रेजिमेंट के जयपाल सिंह अधिकारी और लांस नायक देवेन्द्र सिंह के सर काटे। 8 जनवरी 2013 लांस नायक हेमराज का सिर काटा। अक्टूबर 2016 जवान मंजीत सिंह का सिर काटा। नवंबर 2016 तीन जवानों का शव क्षत-विक्षत किया। और 5 महीने बाद यानी 1 मई 2017 को पुंछ जिले के कृष्णा सेक्टर में दो जवानों के शव के साथ खिलवाड़ किया गया। और याद कीजिये 2013 में एलओसी पर लांस नायक हेमराज का सिर कटा हुआ पाया गया था तो उसके बाद संसद में तब की विपक्षी पार्टी जो अब सत्ता में है वह बिफर पड़ी थी। और सत्ता में आने पर एक सिर के बदले दस सिर काटने का एलान भी किया था। तब सभी ने तालियां बजायी थीं। लेकिन उसके बाद तो वही विपक्ष सत्ता में आया और पहली बार 29 सितबंर 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक किया गया । और माना गया कि पाकिस्तान को सीख दे दी गई है। लेकिन हुआ क्या । ना सीजफायर थमा, ना आतंकी घुसपैठ थमी। ना सैनिकों की शहादत रुकी, ना पाकिस्तान ने कभी अपना दोष माना। और इस दौर में ये सवाल ही बना रहा कि पाकिस्तान को पडोसी मान कर युद्द ना किया जाये। या फिर युद्द से पहले बातचीत को तरजीह दी जाये । या फिर परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान के साथ युद्द का मतलब विनाश तो नहीं होगा। तो आईये जरा परख ही लें कि ना युद्द ना दोस्ती के बीच अटके संबंध में भारत ने क्या और कितना गंवाया है। विभाजन के बाद युद्द और बिना युद्द के बीच फंसे भारत के जवानों की शहादत कभी रुकी नहीं। कुल 13,636 जवान सीमा पर या फिर कश्मीर में शहीद हो चुके हैं।
लेकिन ये भी देश की त्रासदी है कि इनमें से 7295 जवान तो युद्द में शद हुये जबकि 6341 जवान बिना युद्द ही शहीद हो गये। और इन हालातों को परखें तो पाकिस्तान से तीन युद्द। पहला 1965 में हुआ जिसमें 2815 जवान शहीद हुये। दूसरा युद्द 1971 में हुआ जिसमें 3900 जवान शहीद हुये और 1999 में हुये करगिल युद्द के वक्त 530 जवान शहीद हुये। और इन तीन युद्द से इतर भी कश्मीर और पाकिस्तान से लगी सीमा के हालातो में कुल शहीद हुये 6341 जवानों में से 6286 जवान आतंकी हमले में शहीद हुये । जबकि 55 जवान सीमा पर शहीद हुये । इनमें से 40 जवान एलओसी पर तो 15 जवान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर शहीद हुय़े । यानी युद्द भी नहीं और दोस्ता भी नहीं । सिर्फ बातचीत का जिक्र और कश्मीर में आतंक को शह देते पाकिस्तान को लेकर दिल्ली से श्रीनगर तक सिर्फ खामोश निगाहो से हालातों को परखते हालात कैसे युद्द से भी बुरे हालात पैदा कर रहे हैं। ये इससे भी समझा जा सकता है कि पाकिस्तान का कश्मीर राग पाकिस्तान की हर सरकार को राजनीतिक ताकत देता है। पाकिस्तान का सीजपायर उल्लघन पाकिस्तानी सेना को पाकिस्तानी सरकार से बड़ा करता है। पाकिस्तान से आतंकी घुसपैठ आईएसाई को ताकत देती है। यानी एक तरफ विभाजन के बाद से ही पाकिसतान की चुनी हुई सत्ता हो या सेना या आईएसआई । जब तीनों की जरुरत कश्मीर में हिसा को अंजाम देना है तो फिर भारत के लिये सही रास्ता होगा कौन सा । क्योंकि विभाजन के बाद से पाकिस्तान से हुये हर युद्द में जितने जवान शहीद हुये जितने घायल हुये । जितने नागरिक मारे गये अगर उन तमाम तादाद को जोड भी दे । तो भी सच यही है कि कश्मीर में आंतक के साये 1988 से अप्रैल 2017 तक 44211 मौतें हो चुकी हैं। जिसमें 6286 जवान शहीद हुये । वही 14,751 नागरिक आतंकी हिंसा में मारे गये । जबकि सुरक्षाकर्मियों ने 23,174 आतंकवादियो को मार गिराया। यानी एक वक्त समूचे कश्मीर को जीतने का जिक्र होता था और अब कश्मीर में आतंकी हिसा पर पाकिस्तान को आतंकी देश कहने से आगे बात बढ नहीं रही है ।
तो सारे सवाल क्या पाकिस्तान को आतंकी देश कहने भर से थम जायेंगे। क्योंकि कश्मीर के हालात को समझे उससे पहले इस सच को भी जान लें कि 1947 में विभाजन के वक्त भी दोनो तरफ से कुल 7500 मौते हुई थीं। 18,000 घायल हुये थे । लेकिन अब उससे कई गुना जवान बिना युद्द शहीद हो चुके हैं। तो सवाल सिर्फ भारत के गुस्से भर का नहीं है । सवाल आगे की कार्वाई का भी है क्योंकि पाकिस्तान लगातार सीजफायर उल्लंघन कर रहा है । कश्मीर घाटी में लगातार हिंसक घटनाओं में ईजाफा हो रहा है। आलम ये है कि 2017 में पाकिस्तानी सेना 65 बार सीजफायर उल्लघन कर चुकी है। 2016 में 449 बार सीजफायर उल्लंघन की थी। 2015 में 405 बार सीजफायर उल्लंघन किया था। यानी सितंबर 2016 में हुये सर्जिकल स्ट्राइक का कोई असर पाकिस्तान पर दिखायी नहीं दे रहा है। और उस पर पाकिस्तान का सच यही है कि वह पाकिस्तान की रणनीति के केंद्र में कश्मीर है, और कश्मीर को सुलगाए रखना उसका मुख्य उद्देश्य। यही वजह है कि आतंकवादी और सेना अगर जमीन पर कश्मीर के हालात को बिगाड़ने का काम करते हैं तो कूटनीतिक और राजनीतिक तौर पर सरकार कश्मीर को गर्माए रखना चाहती है। आलम ये कि सिर्फ 2016 में यानी बीते साल कश्मीर मुद्दे पर चार बार पाकिस्तानी संसद में प्रस्ताव पास हुए। 8 जुलाई को पहला 22 जुलाई को दूसरा। 29 अगस्त को तीसरा और 7 अक्टूबर को चौथा प्रस्ताव पाकिस्तान की संसद में पास किया गया । तो क्या वाकई पाकिस्तान को लेकर भारत के पास कोई रणनीति नहीं है। और जो सवाल हर बार युद्द को लेकर हर जहन में दशहत भर देता है वह परमाणु युद्द की आहट का हो। तो इसका भी सच परख लें। यूं परमाणु बम भारत के पास भी हैं लेकिन भारत का दुनिया से वादा है कि किसी भी युद्ध में पहले परमाणु बम का इस्तेमाल वो नहीं करेगा अलबत्ता दुनिया को पाकिस्तान से इसलिए डर लगता है या कहें कि आशंका रहती है कि कहीं पाकिस्तान परमाणु बम का इस्तेमाल न कर दे। तो आइए पहले समझ लें कि परमाणु बम का इस्तेमाल हुआ तो क्या होगा। परमाणु विस्फोट विश्लेषण करने वाली साइट न्यूकमैप के मुताबिक अगर पाकिस्तान का 45 किलो टन का सबसे शक्तिशाली परमाणु बम भारत के तीन शहरों दिल्ली-मुंबई और कोलकाता पर गिरता है तो दिल्ली में करीब 3 लाख 67 हजार लोग मारे जाएंगे और 12 लाख 85 हजार से ज्यादा लोग रेडिएशन से प्रभावित होंगे । मुंबई में परमाणु बम गिरा तो 5 लाख 86 हजार लोग मारे जाएंगे और करीब 20 लाख 37 हजार लोग प्रभावित होंगे ।कोलकातामें बम गिरा तो करीब 8 लाख 66 हजार लोग मारे जाएंगे और करीब 19 लाख 25 हजार लोग प्रभावित होंगे। जाहिर है ये सिर्फ मौत का आंकड़ा है क्योंकि परमाणु बम का नुकसान तो बरसों बरस पर्यावरण से लेकर बीमारियों के हालात के रुप में शहर को देखना पड़ता है। जैसे हीरोशिमा और नागासाकी को देखना पड़ा है। लेकिन-दूसरा सच यह भी है कि परमाणु बम से शहर खत्म नहीं हो जाता। क्योंकि अगर पाकिस्तान के पास 100 से 120 परमाणु बम हैं तो भारत के पास भी 90-100 परमाणु बम हैं । लेकिन बारत की सैन्य शक्ति पाकिसातन से कई गुना ज्यादा है । आलम ये कि अमेरिका-चीन-रुस और सऊदी अरब के बाद भारत अपनी रक्षा ताकत बढ़ाने पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च करने वाला देश है । स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारी हथियार खरीद के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है और इसने 2012 से 2016 के बीच पूरी दुनिया में हुए भारी हथियारों के आयात का अकेले 13 फ़ीसद आयात किया। दुनिया के 126 देशों मे सैन्य ताकत के मामले में भारत का नंबर चौथा और पाकिस्तान का 13वां है । ऐसे में सच ये भी है कि चाहे परमाणु युद्ध ही क्यों न हो। नुकसान भारत का होगा तो पाकिस्तान पूरा खत्म हो जाएगा। लेकिन सवाल यही है कि युद्ध नहीं होगा तो पाकिस्तान से कैसे निपटें-इसकी रणनीति भारत के पास नहीं है।
लेकिन ये भी देश की त्रासदी है कि इनमें से 7295 जवान तो युद्द में शद हुये जबकि 6341 जवान बिना युद्द ही शहीद हो गये। और इन हालातों को परखें तो पाकिस्तान से तीन युद्द। पहला 1965 में हुआ जिसमें 2815 जवान शहीद हुये। दूसरा युद्द 1971 में हुआ जिसमें 3900 जवान शहीद हुये और 1999 में हुये करगिल युद्द के वक्त 530 जवान शहीद हुये। और इन तीन युद्द से इतर भी कश्मीर और पाकिस्तान से लगी सीमा के हालातो में कुल शहीद हुये 6341 जवानों में से 6286 जवान आतंकी हमले में शहीद हुये । जबकि 55 जवान सीमा पर शहीद हुये । इनमें से 40 जवान एलओसी पर तो 15 जवान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर शहीद हुय़े । यानी युद्द भी नहीं और दोस्ता भी नहीं । सिर्फ बातचीत का जिक्र और कश्मीर में आतंक को शह देते पाकिस्तान को लेकर दिल्ली से श्रीनगर तक सिर्फ खामोश निगाहो से हालातों को परखते हालात कैसे युद्द से भी बुरे हालात पैदा कर रहे हैं। ये इससे भी समझा जा सकता है कि पाकिस्तान का कश्मीर राग पाकिस्तान की हर सरकार को राजनीतिक ताकत देता है। पाकिस्तान का सीजपायर उल्लघन पाकिस्तानी सेना को पाकिस्तानी सरकार से बड़ा करता है। पाकिस्तान से आतंकी घुसपैठ आईएसाई को ताकत देती है। यानी एक तरफ विभाजन के बाद से ही पाकिसतान की चुनी हुई सत्ता हो या सेना या आईएसआई । जब तीनों की जरुरत कश्मीर में हिसा को अंजाम देना है तो फिर भारत के लिये सही रास्ता होगा कौन सा । क्योंकि विभाजन के बाद से पाकिस्तान से हुये हर युद्द में जितने जवान शहीद हुये जितने घायल हुये । जितने नागरिक मारे गये अगर उन तमाम तादाद को जोड भी दे । तो भी सच यही है कि कश्मीर में आंतक के साये 1988 से अप्रैल 2017 तक 44211 मौतें हो चुकी हैं। जिसमें 6286 जवान शहीद हुये । वही 14,751 नागरिक आतंकी हिंसा में मारे गये । जबकि सुरक्षाकर्मियों ने 23,174 आतंकवादियो को मार गिराया। यानी एक वक्त समूचे कश्मीर को जीतने का जिक्र होता था और अब कश्मीर में आतंकी हिसा पर पाकिस्तान को आतंकी देश कहने से आगे बात बढ नहीं रही है ।
तो सारे सवाल क्या पाकिस्तान को आतंकी देश कहने भर से थम जायेंगे। क्योंकि कश्मीर के हालात को समझे उससे पहले इस सच को भी जान लें कि 1947 में विभाजन के वक्त भी दोनो तरफ से कुल 7500 मौते हुई थीं। 18,000 घायल हुये थे । लेकिन अब उससे कई गुना जवान बिना युद्द शहीद हो चुके हैं। तो सवाल सिर्फ भारत के गुस्से भर का नहीं है । सवाल आगे की कार्वाई का भी है क्योंकि पाकिस्तान लगातार सीजफायर उल्लंघन कर रहा है । कश्मीर घाटी में लगातार हिंसक घटनाओं में ईजाफा हो रहा है। आलम ये है कि 2017 में पाकिस्तानी सेना 65 बार सीजफायर उल्लघन कर चुकी है। 2016 में 449 बार सीजफायर उल्लंघन की थी। 2015 में 405 बार सीजफायर उल्लंघन किया था। यानी सितंबर 2016 में हुये सर्जिकल स्ट्राइक का कोई असर पाकिस्तान पर दिखायी नहीं दे रहा है। और उस पर पाकिस्तान का सच यही है कि वह पाकिस्तान की रणनीति के केंद्र में कश्मीर है, और कश्मीर को सुलगाए रखना उसका मुख्य उद्देश्य। यही वजह है कि आतंकवादी और सेना अगर जमीन पर कश्मीर के हालात को बिगाड़ने का काम करते हैं तो कूटनीतिक और राजनीतिक तौर पर सरकार कश्मीर को गर्माए रखना चाहती है। आलम ये कि सिर्फ 2016 में यानी बीते साल कश्मीर मुद्दे पर चार बार पाकिस्तानी संसद में प्रस्ताव पास हुए। 8 जुलाई को पहला 22 जुलाई को दूसरा। 29 अगस्त को तीसरा और 7 अक्टूबर को चौथा प्रस्ताव पाकिस्तान की संसद में पास किया गया । तो क्या वाकई पाकिस्तान को लेकर भारत के पास कोई रणनीति नहीं है। और जो सवाल हर बार युद्द को लेकर हर जहन में दशहत भर देता है वह परमाणु युद्द की आहट का हो। तो इसका भी सच परख लें। यूं परमाणु बम भारत के पास भी हैं लेकिन भारत का दुनिया से वादा है कि किसी भी युद्ध में पहले परमाणु बम का इस्तेमाल वो नहीं करेगा अलबत्ता दुनिया को पाकिस्तान से इसलिए डर लगता है या कहें कि आशंका रहती है कि कहीं पाकिस्तान परमाणु बम का इस्तेमाल न कर दे। तो आइए पहले समझ लें कि परमाणु बम का इस्तेमाल हुआ तो क्या होगा। परमाणु विस्फोट विश्लेषण करने वाली साइट न्यूकमैप के मुताबिक अगर पाकिस्तान का 45 किलो टन का सबसे शक्तिशाली परमाणु बम भारत के तीन शहरों दिल्ली-मुंबई और कोलकाता पर गिरता है तो दिल्ली में करीब 3 लाख 67 हजार लोग मारे जाएंगे और 12 लाख 85 हजार से ज्यादा लोग रेडिएशन से प्रभावित होंगे । मुंबई में परमाणु बम गिरा तो 5 लाख 86 हजार लोग मारे जाएंगे और करीब 20 लाख 37 हजार लोग प्रभावित होंगे ।कोलकातामें बम गिरा तो करीब 8 लाख 66 हजार लोग मारे जाएंगे और करीब 19 लाख 25 हजार लोग प्रभावित होंगे। जाहिर है ये सिर्फ मौत का आंकड़ा है क्योंकि परमाणु बम का नुकसान तो बरसों बरस पर्यावरण से लेकर बीमारियों के हालात के रुप में शहर को देखना पड़ता है। जैसे हीरोशिमा और नागासाकी को देखना पड़ा है। लेकिन-दूसरा सच यह भी है कि परमाणु बम से शहर खत्म नहीं हो जाता। क्योंकि अगर पाकिस्तान के पास 100 से 120 परमाणु बम हैं तो भारत के पास भी 90-100 परमाणु बम हैं । लेकिन बारत की सैन्य शक्ति पाकिसातन से कई गुना ज्यादा है । आलम ये कि अमेरिका-चीन-रुस और सऊदी अरब के बाद भारत अपनी रक्षा ताकत बढ़ाने पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च करने वाला देश है । स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारी हथियार खरीद के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है और इसने 2012 से 2016 के बीच पूरी दुनिया में हुए भारी हथियारों के आयात का अकेले 13 फ़ीसद आयात किया। दुनिया के 126 देशों मे सैन्य ताकत के मामले में भारत का नंबर चौथा और पाकिस्तान का 13वां है । ऐसे में सच ये भी है कि चाहे परमाणु युद्ध ही क्यों न हो। नुकसान भारत का होगा तो पाकिस्तान पूरा खत्म हो जाएगा। लेकिन सवाल यही है कि युद्ध नहीं होगा तो पाकिस्तान से कैसे निपटें-इसकी रणनीति भारत के पास नहीं है।