Tuesday, December 11, 2018

जनादेश ने लोकतंत्र के चौराहे पर ला खडा किया साहेब को......



आसान है कहना कि 2014 में उगा सितारा 2019 में डूब जायेगा । ये भी कहना आसान है पहली बार किसान-मजदूर-बेरोजगारी के समुद्दे सतह पर आये तो शहरी चकाचौंध तले विकास का रंग फिका पड गया । ये कहना भी आसान है कि बीजेपी आंकडो के लिहाज से चाहे विस्तार पाती रही लेकिन अपने ही दायरे में इतनी सिमटी की मोदी-शाह-जेटली से आगे देख नहीं पायी । और ये भी कहना आसान है कि साल भर पहले काग्रेस की कमान संभालने वाले राहुल गांधी ने पप्पू से राहुल के सफर को जिस परिपक्वता के साथ पूरा किया उसमें काग्रेस के दिन बहुरने दिखायी देने लग गये ।  लेकिन सबसे मुश्किल है अब ये समझना कि जिस लोकतंत्र की धज्जियां दिल्ली में उडायी गई उसके छांव तले राजस्थान , छत्तिसगढ और मध्यप्रेदश कैसे आ गये । और अब क्या 2019 के फेर में लोकतंत्र और ज्यादा लहूलुहान होगा । क्योकि जहा जहा दाव पर दिल्ली थी वहा वहा सबसे बुरी हार बीजेपी की हुई । छत्तिसगढ में अडानी के प्रोजेक्ट है तो रुपया पानी की तरह बहाया गया । पर जनादेश की आंधी ऐसी चली कि तीन बार की रमन सरकार ही बह गई । मद्यप्रदेश के इंदौर और भोपाल सरीखे शहरी इलाको में भी बीजेपी को जनता के मात देदी । जहा की सीट और कोई नहीं अमित शाह ही तय कर रहे थे । और राजस्थान में जहा जहा वसुधरा को घुल चटाने के लिये मोदी - शाह की जोडी गई वहा वहा वसुंधरा ने किला बचाया और जिन 42 सीटो को दिल्ली में बैठ कर अमित शाह ने तय किया उसमें से 34 सीटो पर बीजेपी की हार हो गई । तो क्या वाकई 2014 की जीत के नशे में 2019 की जीत तय करने के लिये बीजेपी के  तीन मुख्यमंत्रियो का बलिदान हुआ । या फिर काग्रेस ने वाकई पसीना बहाया और जमीनी स्तर पर जुडे कार्यकत्ताओ को महत्ता देकर अपने आलाकमान के पिरामिड को इस बार पलट दिया । यानी ना तो पैराशूट उम्मीदवार और ना ही बंद कमरो के निर्णयो को महत्व । तो क्या बूथ दर बूथ और  पन्ने दर पन्ने की सोच तले पन्ना प्रमुख की रणनीति जो शाह बनाते रहे वह इस बार टूट गया । हो सकता है ये सारे आंकलन अब शुरु हो लेकिन महज चार महीने बाद ही देश को जिस आमचुनाव के समर में कूदना है उसकी बिसात कैसी होगी और इन तीन राज्यो में काग्रेस की जीत या बीजेपी के हार कौन सा नया समीकरण तैयार कर देगी अब नजरे तो इसी पर हर किसी की होगी । हा , तेलगाना में काग्रेस की हार से ज्यादा चन्द्रबाबू के बेअसर होने ने उस लकीर को चाहे अनचाहे मजबूत कर दिया कि कि अब गठंबधन की शर्ते क्षत्रप नहीं काग्रेस तय करेगी । यानी जनादेश ने पांच सवालो को जन्म दे दिया है । पहला , अब मोदी को चेहरा बनाकर प्रेजीडेन्शिल फार्मेट की सोच की खुमारी बीजेपी से उतर जायेगी । दूसरा , मोदी ठीक है पर विकल्प कोई नहीं की खाली जगह पर ठसक के साथ राहुल गांधी नजर आयेगें । तीसरा , दलित वोट बैक की एकमात्र नेत्री मायावती नहीं है और 2019 में मायावती के सौदेबाजी का दायरा बेहद सिमट गया । चौथा, महागठबंधन के नेता के तौर पर राहुल गांधी को खारिज करने की स्थिति में कोई नहीं होगा । पांचवा, बीजेपी के सहयोगी छिटकेगें और शिवसेना की सौदेबादी का दायरा ना सिर्फ बीजेपी को मुश्किल में डालेगा बल्कि शिवसेना मोदी पर सीधा हमला बोलेगी । तो क्या वाकई काग्रेस के लिये अच्छे दिनो की आहट और बीजेपी के बुरे दिन की शुरूआत हो गई । अगर इस सोच को भी सही मान लें तो भी कुछ सवालो का जवाब जो जनता जनादेश के जरीये दे चुकी है उसे जुंबा कौन सी सत्ता दे पायेगी ये अपने आप में सवाल है । मसलन राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ तीनो सत्ता धाटे के साथ काग्रेस को मिल रही है । यानी सत्ता पर कर्ज है । तीन राज्यो में किसान-मजदूर-युवा बेरोजगार बेहाल है । तीनो राज्यो में उघौगिक विकास ठप पडा है । तीनो राज्यो में खनिज संसाधनो की लूट चरम पर है । मद्यप्रदेश और छतिसगढ में तो संघ के स्वयसेवको की टोलिया का कब्जा सरकारी संस्थानो से लेकर सिस्टम के हर पुर्जे पर है । और सबसे बडी बात तो ये है कि मोजूदा दौर में जो खटास राजनीतिक तौर पर उभरी वह सिर्फ बयानबाजी या राजनीतिक हमले भर की नहीं रही । बल्कि सीबीआई और इनकमटेक्स के अधिकारियो ने काग्रेसी पर मामला भी दर्ज किया और छापे भी मारे । काग्रेस को फाइनेन्स करने वाले छत्तिसगढ के 27 और मद्यप्रदेश के 36 लोगो पर दिल्ली से सीबीआई और इनकमटेक्स के छापे पडे । यानी राजनीतिक तौर तरीके पारंपरिक चेहरे वाले रहे नहीं है । तो ऐसे में सत्ता परिवर्तन राज्य में जिस तल्खी के साथ उभरेगें उसमें इस बात का इंताजार करना होगा कि अब काग्रेस के लिये  संघ का मतलब सामाजिक सांस्कृतिक संगठन भर नहीं होगा । लेकिन बात यही नहीं रुकती क्योकि मोदी भी समझ रहे है और राहुल गांधी भी जान रहे है कि अगले तीन महिने की सत्ता 2019 की बिसात को तय करेगी । यानी सत्ता चलाने के तौर तरीके बेहद मायने रखेगें । खासकर आर्थिक हालात और सिस्टम का काम करना । मोदी के सामने अंतरिम बजट सबसे बडी चुनौती है । तो काग्रेस के सामने नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र को पटरी पर लाने और ग्रामिणो के हालत में सुधार तत्काल लाने की चुनौती है । और संयोग से इनकी तादाद सबसे ज्यादा उन्ही तीन राज्यो में है जहा काग्रेस को जीत मिली है ।  फिर भ्रष्ट्रचार के मुद्दो को उठाकर 2014 में जिस तरह बार बार मोदी ने काग्रेस को घेरा अब इन्ही तीन राज्यो में भ्रष्ट्रचार के मुद्दो के आसरे काग्रेस बिना देर किये बीजेपी को घेरेगी । मद्यप्रदेश का व्यापम घोटाला हो या वसुंधरा का ललित मोदी के साथ मिलकर खेल करना या फिर रमन सिंह का पनामा पेपर । और इस रास्ते को सटीक तरह से चलाने के लिये तीनो राज्यो में जो तीन चेहरे काग्रेस सबसे फिट है उसमें मध्यप्रदेश में कमलनाथ । तो राजस्थान में सचिन पायलट और छत्तिसगढ में भूपेश बधेल ही फिट बैठते है । और ये तिगडी काग्रेसी ओल्ड गार्ड और युवा को भी बैलेस करती है । और बधेल के जरीये रमन सिंह या छत्तिसगढ में अडानी के प्रोजक्ट पर भी लगाम लगाने की ताकत रखती है । पर इस कडी में आखरी सवाल यही है कि अब शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा का क्या होगा । या फिर मोदी - शाह की जोडी अब कौन सी बिसात बिछायेगी या फिर मोदी सत्ता कौन सा तुरुप का पत्ता देश के सामने फेकेगीं जिससे उनमें  है ये मई 2019 तक बरकरार रहे । या फिर बीजोपी के भीतर से वाकई कोई अवाज उठेगी या संघ परिवार जागेगा । लेकिन ध्यान दें तो कोई विकल्प अब बीजेपी के भीतर नहीं है । मोदी के बाद दूसरी कतार के नेता ऐसे है जो अपना चुनाव नहीं जीत सकते है या फिर उनकी कोई पहचान किसी राज्य तो दूर किसी लोकसभा सीट तक की नहीं है । मसलन, अरुण जेटली , धर्मेन्द्र प्रधान , पियूष गोयल या निर्माला सीमारमण । और इस कडी में हारे हुये मुख्यमंत्रियो को अमित शाह कौन सी जगह देगें ये भी सवाल है । यानी जनादेश ने साफ तौर पर बतलाया है कि जादू या जुमले से देश चलता नहीं और मंदिर नहीं सवाल पेट का होगा । सिस्टम गढा नहीं जाती बल्कि संवैधानिक संस्थाओ के जरीये चलाना आना चाहिये । शायद इसीलिये पांच राज्यो के जनादेश ने मोदी को लोकतंत्र के चौराहे पर ला खडा किया है ।

31 comments:

  1. Really very good explain and thanks for easy language.

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  2. You are doing very well god bless you, really we proud on you.

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  3. Ye cm selection agar rahul Gandhi and his party agar samajh gayi to 2019 k liye aasaani hogi

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  4. Lekin puny ji kendra mai 2019 congress nahi bjp hi chahiy

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  5. Please write for INC what to do to maintain the mandate and give your suggestions to improve the working of government.

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    1. MP,CG aur Rajasthan me Aisa kaam krke Dikhaye inn 4 mahino me ki Desh ki Janta ko Majburan Congress ko Vote dena pade. Aur yahi wo 3 states jinse hasiye pe padi congress waps jinda ho sakti hai.apna Facebook ID link yanha daale ham apko follow krna chahte hai. Thank you so much.🙏

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  6. Very nice.मोदीजी को किसानों,गामीण , नौजवानों एवं सरकारी कर्मचारियों के बारे में तुरन्त सोचने की जरूरत है।

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  7. आपकी याद आती है महाशय..... कब वापसी करेंगे...????

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  8. अब तो आदत सी लग गई है, आपकी ब्लॉग का इंतजार करता हूं, सर।

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  9. Glt likha h Rajasthan m modi ki vjah se itni seete mili h

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  10. Bahot behtaren lekh sir ji.
    Aapko bahot yaad kiya hamne kal aur daily miss karte hai.
    Aap koi channel join kariye sir please��������

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    1. Modi deserves to be repeated in 2019,because rahul lacks of confidece of public

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  11. Bahot behtaren lekh sir ji.
    Aapko bahot yaad kiya hamne kal aur daily miss karte hai.
    Aap koi channel join kariye sir please��������

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  12. Mai khud mp se hu maine jameeni star pe reality bhut kharab h umeed hai congres thik karegi pls join news show waiting

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  13. Thank you Sir aap aise hi likhte Rahen.
    Waiting to see you on TV.

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  14. Dear sir aapka article padhkar lagta h me news hi dekh raha hu aap yese hi likte rahe
    waiting to see you on TV

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  15. लगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन नहीं है। लोकतन्त्र में नेता/जनप्रतिनिधि बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
    सत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र का अर्थ - गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआँतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र, अवैध व्यापारतन्त्र, अवैध व्यवसायतन्त्र, हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) आदि है। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
    निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। यही कारण है कि देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी, प्रान्तीय, मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी समस्यायें बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
    गलत चुनाव पद्धति के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय उम्मीदवार और राजनैतिक दल करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।

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  16. आप हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं, सिख हैं ईसाई हैं और अपने अपने दड़बों पर गर्व भी है । तो सहयोग अपने दड़बे से माँगिये, रोजगार अपने दड़बों से माँगिये, सुरक्षा अपने दड़बों से माँगिये । क्योंकि ये सभी दड़बे यह दावा करते हैं कि उनका दड़बा दूसरे दड़बे से श्रेष्ठ है ।

    साम्प्रदायिक उन्माद या उत्पात मचाने के लिए लाखों में धार्मिक इकट्ठे हो जाते हैं । धार्मिक जुलूस, रथयात्रा, मंदिर मस्जिद उत्पात में भी लाखों इकट्ठे हो जाते हैं । लेकिन इनके अपने ही दड़बे में कोई लाचार, शोषित, पीड़ित या भूमाफियाओं, रिश्वतखोरों से त्रस्त है, तो ये लाखों की भीड़ गधे के सर के सींग की तरह गायब हो जाती है । परोपकार, सेवा, सहयोग, परमार्थ जैसे शब्द मोदी के जुमले सिद्ध हो जाते हैं ।

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  17. The reason of defeat inthe states is due to vibhisans in the party and formation of congress government is alternat, not due to good work. Dinesh Shukla

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