tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post3149811987647656833..comments2024-03-11T07:18:50.122+05:30Comments on पुण्य प्रसून बाजपेयी: माओवाद से आगे जाते आंदोलनPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-16150810857493251722011-06-25T20:58:12.989+05:302011-06-25T20:58:12.989+05:30पंडित जी आप का चिंतन तो सही है..
एक पत्रिका में आप...पंडित जी आप का चिंतन तो सही है..<br />एक पत्रिका में आप का काफी पहले माओवाद पर लेख पढ़ा था वही यहाँ भी प्रतिबिंबित हो रहा है..<br />प्रश्न यह है की अगर लोकतान्त्रिक व्यवस्था को चन्द लोगों ने कुछ इस तरह जकड रखा हो की किसी सामान्य व्यक्ति का घुसना नामुमकिन हो तो आम आदमी क्या करे???<br />आप को क्या लगता है ये सरकारे चाहें खान्ग्रेश हो या बीजेपी जन्तरर्मंतर और रामलीला मैदान से डर कर लोकपाल या कालाधन वापस लाएगी...ऐसा नहीं है..भगत सिंह और गाँधी का सम्मिश्रण किये बिना व्यवस्था में परिवर्तन हो ही नहीं सकता..चाहे अन्ना या बाबा सरकार इसलिए झुकी(अगर कभी थोडा बहुत ) की उन्हें जनसमूह के भगत सिंह की राह अख्तियार करने का डर था...न की अन्ना के मर जाने का...<br />बाबा के विषय में आप की मीडिया भी कटघरे में है ..बाबा विरोध के लिए खान्ग्रेस ने भारत निर्माण के प्रचार की रेवड़ी बात दी और आप लोगो ने फिक्स कर लिया बाबा विरोध...मीडिया के तोपों का मुह खान्ग्रेस से बाबा की और मुड गया.. <br />जाहिर है क्रांति कभी अम्बानी सोनिया या <br />जी टीवी के महानुभावों ने नहीं की क्रांति हमेशा दबे कुचलों ने ही की ही जो भूख से मर रहें है...<br />आज लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ (उम्मीद करता हूँ खान्ग्रेस का स्तम्भ बनने से शायाद बच जाये) में भी दलाली धर्म घुस चुका है..नाम लेना उचित नहीं होगा आप के ब्लॉग पर मगर आज तक की एक हस्ती और दूसरा चेहरा थे श्रीमान .............. ये अमर सिंह से किस तरह दलाली खा कर न्यूज़ फिक्स कर रहे हैं आप ने शायद टेप सुना हो..<br />ये रास्ता घूम फिर कर फिर भारत के नक़्शे में लाल गलियारे को ही बढ़ने वाला है हाँ हो सकता है रंग और विचारधारा अलग हो जाये ...<br /><br />सुन्दर ज्ञानवर्धक रचना की प्रस्तुति के लिए आभारआशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-84845707361714153332011-06-25T04:27:29.302+05:302011-06-25T04:27:29.302+05:30उठते उफान को जब शब्द नहीं मिलते है
तो मंजिल ऐ उन...उठते उफान को जब शब्द नहीं मिलते है <br />तो मंजिल ऐ उन्हें हथकढ़ी मिलती है <br />और सिलसिला ता उम्र चलता है <br />तारीख पेशी सजा , और इनकाउनतर <br />हालत ऐ इनाम मिलता है <br /><br />जो समझ रखते है शब्द की <br />परिभाशाओ की ,मर्यादायो की <br />उन्हें आधी रात उखाड़ा जाता है <br />भूखो को, महिलाओ को मासूमो को |<br /><br /><br />फरमान आया है <br />मुनादी बजवा दो <br />की कोई बाबा या गाँधी <br />फिर जनता को न जगाएं <br />इसका इलाज न करे <br />ये जनता कुछ दिनों की मेहमान है <br />फिर ये जिन्दा लाशे <br />हमारा ही निवाला होंगी | <br /><br /> <br /><br />पर क्यों ? <br />कही एक <br />राहगीर जे पी के समय से <br />एक राह तलाश रहा है <br />आजादी की <br />चहरे तलाश रहा है <br />आजादी के <br />क्यों ?<br />छुट्टी पे होने के बाबजूद <br />सुबह ५-६ बजे आया <br />क्यों ?<br />बंधाई उस हिम्मत को <br />उन क्रांतियो को <br />एक राह दिखाई <br />उसने आवाज़ दी <br /><br />क्योकि सम्बेदना न मर जाये <br />इन हौसलों बालो कीAMBRISH MISRA ( अम्बरीष मिश्रा )https://www.blogger.com/profile/12068476262948941211noreply@blogger.com