tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post3739731334824257044..comments2024-03-11T07:18:50.122+05:30Comments on पुण्य प्रसून बाजपेयी: हत्यारों को कठघरे में कौन खड़ा करेगा?Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-6199539005925774762017-09-21T00:02:14.719+05:302017-09-21T00:02:14.719+05:30लड़ाई अगर विचारधारा की है तो दिल खोल कर बहस होनी चा...लड़ाई अगर विचारधारा की है तो दिल खोल कर बहस होनी चाहिए। अपनी बात को मनवाने के लिए दलीलें होनी चाहिये लेकिन शायद समय बदल रहा है दलीलों के बजाए कारतूस का इस्तेमाल किया जा रहा है क्योंकि दलील के जवाब में डर है कि दूसरी दलील पहली दलील पर भारी पड़ जाएगी ऐसे में एक कारतूस का उपयोग और सारी दलील धरि की धरी रह जायेAnzar ullahhttps://www.blogger.com/profile/14233213088767047696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-1289316357903682312017-09-11T06:24:58.407+05:302017-09-11T06:24:58.407+05:30bahut badhiya lekh dukhi sab hain gauri lankesh ki...bahut badhiya lekh dukhi sab hain gauri lankesh ki hatya par aur ilzaam bhi lagaane se koi chook nahi ho rahi hai <br /><br /><br />http://www.pushpendradwivedi.com/%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A4%BE/pushpendra dwivedihttps://www.blogger.com/profile/04998674402519036551noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-46139533882304682252017-09-07T23:46:25.302+05:302017-09-07T23:46:25.302+05:30👍👍👍👍👍 शानदार लेख 👍👍👍👍👍 शानदार लेख Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10590396751841984639noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-88362788728778056022017-09-07T09:40:24.609+05:302017-09-07T09:40:24.609+05:30सुप्रभात,
कितनी जल्दी रहती है मीडिया और इस देश के ...सुप्रभात,<br />कितनी जल्दी रहती है मीडिया और इस देश के सेकुलरों को हत्यारोपियों का निर्धारण करने की, पार्वती लंकेश जी की हत्या को ही देख लीजिए। ऐसा लगता है कि पार्वती लंकेश के विवाद सिर्फ धार्मिक कट्टरों से थे..उनके पारिवारिक विवाद नहीं थे, उनके राजनैतिक विवाद नहीं थे। और तो और इस देश में पत्रकारों की हत्याओं में क्या सारे मामलों में धार्मिक कट्रपंथी ही शामिल हैं? शहाबुद्दीन, अतीक, और दूसरे बाहुबली क्या धार्मिक कट्टरपंथ का प्रतीक हैं? क्या पत्रकारों और आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं धार्मिक कट्टरपंथियों ने की हैं? क्या इस देश का सेकुलर, समाजवादी और लिबरल राजनीतक तबका भ्रष्ट नहीं है? क्या वे अपने ऊपर आरोप लगाने वाले और खोजी पत्रकारिताय करने वाले पत्रकारों और RTI कार्यकर्ताओं को धमकी नहीं देते रहते हैं? क्या ही में रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों को RJD के कर्ताधर्ता लोगों ने ऑन कैमरा धमकी नहीं दी है?<br />क्या इस देश में क्रिमिनल अदालतों में चल रहे हत्याओं के बहुसंख्य मुकदमे धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा की गयी हत्याओं के ही हैं? क्या पारिवारिक विवादों में हत्याएं नहीं होती है? क्या माओवादियों से सहानुभूति रखने वाले लोगों को और माओवादियों के पुर्नवास में लगे लोगों की पहले माओवादियों ने हत्या नहीं की है? <br />लेकिन नहीं..देश के एक तबके को अपने जैसे लोगों के हत्यारों को बस एक ही मौत का डर होता है और वो है उनके द्वारा परिभाषित कट्टरपंथियों द्वारा उनको मारा जाना। जबकि तथ्य ठीक इसके विपरीत है। इस देश में विचारों के अंतर के कारण नागरिकों की सबसे अधिक हत्याएं करने वाली विचाराधारा वही है जिस विचारधारा को पार्वती जी आत्मसात किए हुए थीं। क्या वे इन माओवादियों से सहानुभूति नहीं रखती थी और उनके पुनर्वास में सक्रिय नहीं थी तो पहला शक इन माओवादियों पर किया जाना चाहिए जो उनके इस पुनर्वास कार्यक्रम से खीजे हुए थे। <br />लेकिन नहीं, माओवादियों के साथ काम करने वाले ये लोग (जो आज धार्मिक कट्टरपंथ को इस हत्या का कारण बताते हैं) अपने ही इन भाई बंधुओं के विवादों को निपटाने के इस तरीके से भली भांति परिचित हैं, और जानते हैं कि उनका भी नंबर लगा सकते हैं ये नक्सली, इसीलिए लेफ्ट में गए हत्यारे को राइट में गया दिखाने का शोर मचाया जा रहा है।<br />इस बात की तस्दीक उन शोर मचाने वालों के इतिहास से की जा सकती है कि वे किस विचारधारा के पोषक और पालक रहे हैं। <br />दरअसल इस देश में वामपंथियों ने एक षडयंत्र के तहत समाजवादियों और कांग्रेसियों को बेवकूफ बनाते हुए ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया है जिसमें वे खुद को मध्यममार्गी के रूप में स्थापित करने में सफल रहे हैं। और बस इसीलिए अपने ही भाई बंधुओं और परिवार की लड़ाई में हुई हत्याओं को वैचारिक विरोधियों द्वारा की जाने वाली हत्याओं के रूप में स्थापित करने का शगल चल निकला है। <br />125 करोड़ लोगों के इस मुल्क में धार्मिक आस्था वालों को नहीं वामपंथियों को अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है और चूंकि वे अपनी लड़ाई में ईमानदार नहीं हैं और अपने स्वार्थ को ऊपर रख कर चलते हैं इसलिए हर मोर्चे पर पिछड़ रहे हैं और हार रहे हैं। ये हत्या भी उसी आपाधापी का ही एक अंग है। <br />सेकुलर, लिबरल, वामी, इस पूरे षडयंत्र को समझ रहे हैं लेकिन उनमें इतनी हिम्मत नहीं है कि अपने पैदा किए इस भिंडरावाले को बेनकाब कर सकें। संभवतः इनको ये भय है कि कहीं इनकी ही जमात के दूसरे बुद्धिजीवी इनकी बुद्धिजीविता को संघी ना घोषित कर दें सो ये भी उसी शोर का हिस्सा बनते जा रहे है।<br />आपको हमारी शुभकामनाएं! Ashutosh Mitrahttps://www.blogger.com/profile/12956358435578751392noreply@blogger.com