tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post4209151814840118761..comments2024-03-11T07:18:50.122+05:30Comments on पुण्य प्रसून बाजपेयी: दिल्ली की नीतियों तले कलम छोड़ फिर बंदूक न उठा लें कश्मीरी ?Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-58460183384843203452015-03-01T06:55:42.860+05:302015-03-01T06:55:42.860+05:30Dear sir,is information & analysis ko hum tak ...Dear sir,is information & analysis ko hum tak pahuchane ke liye aapka bahut shukriya...aise hi likhte rahiye...we love you...budget ke baare mein bhi aapke analysis ka inyazaar rahegatapasvi bhardwajhttps://www.blogger.com/profile/10411816632416754102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-12778343830184627862015-02-26T19:09:37.431+05:302015-02-26T19:09:37.431+05:30दुसरे लाइन में 'महीन' की जगह 'कहीं'...दुसरे लाइन में 'महीन' की जगह 'कहीं' होगा,,,<br />यानी,,,,'...पुरे भारत में कुछ भी कहीं भी हुआ...''निरंजन कुमार मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/06129850919118724260noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-70556446815441702262015-02-26T19:07:08.691+05:302015-02-26T19:07:08.691+05:30‘’यूँ मेरे हौसले आजमाए गए मेरी साँसों पे पहरे लगाए...‘’यूँ मेरे हौसले आजमाए गए मेरी साँसों पे पहरे लगाए गए,<br />पुरे भारत में कुछ भी महीन भी हुआ, मेरे मासूम बच्चे उठाए गए,<br />यूँ उजड़ मेरे सारे घरौंधे गए, मेरे जज्बात बूटों से रौंदे गए,<br />जिसका हर लब्ज आंसू से लिखा गया खून में डूबी हुई ऐसी शमशीर हूँ,<br />हाँ मैं कश्मीर हूँ, हाँ मैं कश्मीर हूँ,,,,<br />‘कश्मीर की आवाज बन कर ‘इमरान प्रतापगढ़ी’ के कलम से निकले ये शब्द सिर्फ एक कविता नहीं है बल्कि हकीकत है धरती के उस स्वर्ग की जिसे हम पुरे हक़ से अपना कहते तो हैं लेकिन इसके जख्मों पर करीने से मरहम नहीं लगा पाते. आपके द्वारा दिए गए आंकड़े इस हकिकत को बयां करने के लिए काफी है कि कश्मीरी टुकड़ो में जीते हैं. जी हाँ देशभक्ति की कीमत चुकाने और दगाबाजी का दंश झेलने की मजबूरी के बाद भी अगर जान बाकी रही तो दिल्ली की कुर्सी पर बैठने वाली शक्सियत फैसला करती है कि कश्मीरियों का आगामी 5 साल कैसे बीतेगा. शाह फैजल के 2010 में आईएएस टॉप करने के बाद कश्मीरी युवक भी पढाई को लेकर कुछ ज्यादा जागरूक हुए और इस जागरूकता को बल मिला सरकार की नीतियों से. लेकिन ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करने वाली मोदी सरकार की यह नई निति भारत के मस्तक पर ही कुठाराघात करने वाली है जो कतई कश्मीरी युवकों के भविष्य के लिए ठीक नहीं है. <br />निरंजन कुमार मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/06129850919118724260noreply@blogger.com