tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post47805770031967066..comments2024-03-11T07:18:50.122+05:30Comments on पुण्य प्रसून बाजपेयी: आतंकवाद की धार के आगे भोथरी क्यों है सरकारPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-83924856053277171292009-03-15T16:20:00.000+05:302009-03-15T16:20:00.000+05:30प्रसून जी आपने लेख बहुत अच्छा लिखा है। लेकिन आपसे ...प्रसून जी आपने लेख बहुत अच्छा लिखा है। लेकिन आपसे उम्मीद नहीं थी कि आप आंकड़ों से खिलवाड़ कर चमत्कार करने की कोशिश में असलियत से मुंह मोड़ लेंगे। आपने जिक्र किया है कि जयसूर्या की उम्र 37 साल है। जबकि कुछ ही महीनों में वो चालीस साल के हो जाएंगे। उनका डेट ऑफ बर्थ <BR/>30 जून, 1969 है। आपने अपने ब्लॉग और देनिक भास्कर अखबार के अलावा जी न्यूज़ के लाखों दर्शकों को गलत जानकारी दी। अगर आप लेख लिखने से पहले थोड़ा होमवर्क कर लेते तो ऐसी गलती नहीं करते। लेकिन जब इंसान को दंभ हो जाता है तो वो रावणोचित व्यवहार करने ही लगता है।Unknownhttps://www.blogger.com/profile/13551246144970055920noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-39351219171960180542009-03-09T16:02:00.000+05:302009-03-09T16:02:00.000+05:30Please read these links alonwith what I've written...Please read these links alonwith what I've written above sometimes back :<BR/><BR/>http://ibnlive.in.com/news/perform-or-perish-pak-army-chief-tells-zardari/87178-2.html<BR/><BR/>http://ibnlive.in.com/news/afghan-welcomes-obamas-call-to-reach-out-to-taliban/87181-2.html<BR/><BR/>I was quite close to reading the things much earlier.Rishi Rishhttps://www.blogger.com/profile/10540082895582163455noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-19420270036638384742009-03-06T09:37:00.000+05:302009-03-06T09:37:00.000+05:30पाक से सभी खेलों के रिश्ते हर देश को तोड़ लेने चाहि...पाक से सभी खेलों के रिश्ते हर देश को तोड़ लेने चाहिए। पाक ने जिस आश्वासन के साथ लंकाई टीम को अपने घर बुलाया था उस आश्वासन पर पाक सरकार खरी नहीं उतरी। जो टीम ऐसे समय में पाक की इात बचने गई थी जब भारतीय टीम ने वहां जाने से इंकार कर दिया था ऐसी टीम को तो पाकिस्तान में ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा देनी थी, लेकिन हमले ने साबित कर दिया कि पाक में टीम की सुरक्षा पर ध्यान ही नहीं दिया गया। पाक में तो अब क्रिकेट समाप्त ही हो जाएगा। पाकिस्तान जाने के लिए कोई टीम क्या किसी भी देश का आम नागरिक तैयार नहीं होगा।राजकुमार ग्वालानीhttps://www.blogger.com/profile/17819133972010070782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-13829554023234039432009-03-05T13:34:00.000+05:302009-03-05T13:34:00.000+05:30पहली बार मैं आपके आंकलन से सहमत नहीं हूँ । यह एक ...पहली बार मैं आपके आंकलन से सहमत नहीं हूँ । यह एक अच्छा विचार लगता है कि ये हमला लिट्टे ने हरकत-उल-मुजाहिदीन की सहायता से करवाया है, पर प्रथम दृष्टया ये कार्रवाई तालिबान और पाकिस्तानी सेना की मिली-जुली साजिश ज़्यादा प्रतीत होती है । इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं । पहला तो यह कि इस घटना के बाद भारत का पाकिस्तान पर मुंबई हमलों की जाँच और उसके दोषियों को सजा दिलाने की बात को इस घटना की आड़ में आसानी से भुला दिया जायेगा क्योंकि मुंबई हमलों के समान ही इसे बताकर पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह समझाने में कामयाब रहेगा कि वह ख़ुद भी भारत की ही तरह आतंकवाद का शिकार है, और उसके लिए इस वक्त इस घटना की जांच पाकिस्तान की साख पर लगे धब्बे को मिटाने के लिए मुंबई हमलों की जांच से कहीं ज़्यादा जरूरी है । आखिरकार श्रीलंका की टीम उस समय पाकिस्तान जाकर खेल रही थी, जब अधिकांश देशों ने पाकिस्तान में सुरक्षा के हालात के मद्देनज़र वहां जाने से मना कर दिया था । भारत के मुंबई हमले की जांच और उसके दोषियों पर कारवाई की मांग को बरकरार रखने की दशा में पाकिस्तान इस हमले के तार भारतीय खुफिया एजेंसियों से भी जोड़कर प्रोपगंडा फैला सकता है । इस समय भारत में आम चुनाव होने और उसके बाद नै सरकार के आने कि स्थिति में वैसे भी पाकिस्तान पर लगातार दबाव बनाये रखना सम्भव नहीं है । <BR/><BR/>दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तानी सेना और तालिबान की नूरा-कुश्ती स्वात घाटी में दुनिया देख चुकी है । पाकिस्तानी सेना और खासकर जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ज़रदारी को असफल साबित कर पाकिस्तानी अवाम को ये संदेश देना चाहते हैं कि ऐसे समय में पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार देश को सही तरीके से चलाने में सक्षम नहीं है और तालिबान के बढ़ते क़दमों और अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में मुल्क की खोई हुई इज्ज़त को अगर कोई वापस लौटा सकता है तो वो सेना ही है, और इसमे कोई अचरज नहीं कि पाकिस्तान के अन्दर से ऐसी आवाजें आनी शुरू भी हो गयी हैं । यहाँ तक कि मुशर्रफ़ को सत्ता से हटाने के लिए आसिफ अली ज़रदारी से हाथ मिलाने वाले उनके के कट्टर विरोधी मियां नवाज़ शरीफ ने भी मुशर्रफ़ को ज़रदारी से बेहतर राष्ट्रपति बताया है । पाकिस्तानी सेना और तालिबान का ये लुका-छिपी का खेल अमेरिका पर दवाब बना कर उसको अफगानिस्तान और पाकिस्तान से पीछे हटाने के लिए भी है । क्योंकि एक बार सेना के पाकिस्तान में सत्ता पर काबिज़ होने के बाद तालिबान को वापस अफगानिस्तान लौटने और उनको अफगानिस्तान में सत्ता में साझेदारी के फोर्मूले को सामने रख कर अमेरिका से अफगानिस्तान में शान्ति वहाली और वहां से उसके निकलने के सम्मानजनक रास्ते पर समझौते को आसानी से अमेरिका को बेचा जा सकता है ।Rishi Rishhttps://www.blogger.com/profile/10540082895582163455noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-14431862942177504952009-03-05T08:44:00.000+05:302009-03-05T08:44:00.000+05:30आतंकवाद आज जो शक्ल अख्तियार कर चूका है..उस पर काबू...आतंकवाद आज जो शक्ल अख्तियार कर चूका है..उस पर काबू पाना आसान नहीं लग रहा है..वो भी तब जब दुनियाभर के देशों की सरकारें...रीड की हड्डी से कमजोर साबित हो चुकी हैं..सरकार किसी भी पार्टी की हो..या रही हो...लेकिन मजबूत आतंरिक और सुरक्षा नीति किसी के पास नहीं है..आतंकवाद का मुकाबला मौकापरस्त राजनीति...वोटबैंक के खातिर...दुश्मन को दोस्त बनाने...अपना काम निकालने वाली सोच से नहीं हो सकता है...पूर्व यूएसएसआर से मुकाबला करने के लिये अमेरिका की सीआई ने तालिबान बनाया...वो ही तालिबान आज अमेरिका सहित पूरी दुनिया के लिये खतरा बन चुका है...भारत में आतंक फैलाने के लिये आईएसआई ने लश्कर और दूसरे नाम से आतंकी संगठनों को खड़ा किया..आज ना तो वो आतंकी संगठन आईएसआई के कंट्रोल में हैं ना ही पाकिस्तान की सकार के..उनके सरमायेदार आज पूरी दुनिया में है..दुनियाभर से करोड़ों रूपये की मदद इन संगठनों को मिल रही है..अब ये संगठन सरकार के सामने शर्त रखने..अपनी मर्जी से समझौता करने की हैसियत हासिल कर चुके हैं...ठीक इसी तरह दो दशक पहले अकाली दल के बढ़ते राजनीति प्रभाव का मुकाबला करन के लिये भिंडरवाला नाम का एक जिन्न बोतल से निकाला गया...कई सालों तक पंजाब की धरती खून की होली खेलती रही..अब जाकर खेतो में फिर फसल लहराने लगी है...जहां तक मुझे समझ आता है किसी भी संगठन के हिंसक होने,नक्सली होने,या हाथ से निकलने में...कहीं ना कहीं उन सरकारों की कमी रही है..जो उस वक्त की नब्ज को पकड़ नही पायीं...वो उस गुस्से,असंतोष,पहले चिंगारी को समये रहते बुझा नहीं पायीं...जलती आग पर मुंह से फूंक मारने और मुंह में पानी भरकर फेंकने से काबू नहीं पाया जा सकता...ना कल ना आज, ना आने वाले कल...vipin dev tyagihttps://www.blogger.com/profile/08588455493873526666noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-15914433628317593712009-03-04T20:57:00.001+05:302009-03-04T20:57:00.001+05:30आतंकवादी संगठनों का भुमंदलिकरण तो हो रहा है और ये ...आतंकवादी संगठनों का भुमंदलिकरण तो हो रहा है और ये बड़े सुनियोजित रूप से MoU पर हस्ताक्षर कर के आपसी सहयोग से अपने कार्यवाहिओं को अंजाम दे रहे हैं पर दिमाग में खलल तब होती है की आखिर हम उनके नापाक इरादों के खिलाफ कोई साझा संगठन क्यों नहीं खडा कर पाते हैं,`लेकिन आचे विचारों चोर-चोर मौसेरा भाई`ये कहावत तो सुनते आया हूँ लकिन अच्छे विचारून का कोई रिश्ते बने ऐसा देखने को नहीं मिला है..लेकिन मैं मनुष्य के भविष्य से निराश नहीं हूँ !aahsashttps://www.blogger.com/profile/13511746890496691656noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-58469216770460342582009-03-04T20:57:00.000+05:302009-03-04T20:57:00.000+05:30आतंकवादी संगठनों का भुमंदलिकरण तो हो रहा है और ये ...आतंकवादी संगठनों का भुमंदलिकरण तो हो रहा है और ये बड़े सुनियोजित रूप से MoU पर हस्ताक्षर कर के आपसी सहयोग से अपने कार्यवाहिओं को अंजाम दे रहे हैं पर दिमाग में खलल तब होती है की आखिर हम उनके नापाक इरादों के खिलाफ कोई साझा संगठन क्यों नहीं खडा कर पाते हैं,`लेकिन आचे विचारों चोर-चोर मौसेरा भाई`ये कहावत तो सुनते आया हूँ लकिन अच्छे विचारून का कोई रिश्ते बने ऐसा देखने को नहीं मिला है..लेकिन मैं मनुष्य के भविष्य से निराश नहीं हूँ !aahsashttps://www.blogger.com/profile/13511746890496691656noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-56224666625903803452009-03-04T13:02:00.000+05:302009-03-04T13:02:00.000+05:30कई लोग ये कयास लगा रहे हैं कि पाकिस्तान में इन हमल...कई लोग ये कयास लगा रहे हैं कि पाकिस्तान में इन हमलों के पीछ रॉ का हाथ हो सकता है। देखिए संसार के किसी देश की खुफिया एजेंसी दूध की धुली नहीं हो सकती। जैसी रणनीतिक चालें जनता के तताकथित हित में नक्सली और वामपंथी चलते हैं ऐसी चाल खुफिया एजेंसियां भी अपने देशों के हित में चलती हैं। अब मुंबई हमलों का आरोप अगर आईएसआई पर आया तो रातों रात पाकिसतान की एजेंसी ने यह भी पता लगा लिया कि लाहौर के हमले के आतंकवादी भारत एक रास्ते आए और उन्हे सूबूत भी मिल गए। जिस तरह बिहार पुलिस को चोरी की वारदातों का पहले से पता होता है वैसे ही उन्हें भी इन हमलों का लगता है पहले से ही पता था क्या। आतंकवाद और हिंसा अपने किसी भी स्वरुप में निंदनीय है। भारत इससे कैसे निपटेगा..वैसे ही जैसे निपटना चाहिए। हिंसा का जवाब प्रतिहंसा से देकर। तालिबान के खिलाफ गांधीगीरी कामयाब नहीं होने वाली..।Manjit Thakurhttps://www.blogger.com/profile/09765421125256479319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-31072395276639332182009-03-04T11:11:00.000+05:302009-03-04T11:11:00.000+05:30आज के अख़बार में जब पढ़ा कि भारत की खुफ़िया एजेंसि...आज के अख़बार में जब पढ़ा कि भारत की खुफ़िया एजेंसियां इसके पीछे हो सकती हैं, तो सकते में आ गई। लिट्टे, तालिबान, आईएसआई, रॉ कितने दोस्त हैं दहशतगर्दों के।वर्षाhttps://www.blogger.com/profile/01287301277886608962noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-81463908528884827332009-03-04T11:09:00.000+05:302009-03-04T11:09:00.000+05:30लेख वैचारिक है।दरअसल, यह हकीकत है कि सरकारें आतंकव...लेख वैचारिक है।<BR/>दरअसल, यह हकीकत है कि सरकारें आतंकवाद पर गंभीर नहीं हैं। सरकारों के लिए सत्ता और वोट और इसके सहारे पनपने वाला भ्रष्टाचार ही अहम है। वे जनता के हित नहीं, अपने हित सत्ता की जमीन पर तय करती हैं।<BR/>याद रखें, आतंकवाद और आतंकवादी की मार नेता, सरकार या सत्ताएं नहीं सिर्फ जनता की झेलती है। और झेलती रहेगी।Anshu Mali Rastogihttps://www.blogger.com/profile/01648704780724449862noreply@blogger.com