tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post6311406243369946595..comments2024-03-11T07:18:50.122+05:30Comments on पुण्य प्रसून बाजपेयी: कांशीराम का चमचा युग और मायावती का मिशनPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-47566640250583637842009-07-22T09:12:27.082+05:302009-07-22T09:12:27.082+05:30दलित को भुना कर सत्ता पाना और बात है, 'दलित...दलित को भुना कर सत्ता पाना और बात है, 'दलित' को पहचान पाना और भी अलग। सबसे बड़ी विसंगति तो हमारे देश में यही है कि दलित नाम एक जाति से जोड़ दिया गया है जहाँ छूआ छूत और सामाजिक भेदभाव को प्रोत्साहन मिलता है। लोग बुत बनाने को प्राथमिकता दे रहे हैं और 'दलित' का नकाब पहन कर बहुत से 'मक्कार' लोग शोहरत पा गये हैं लेकिन दलित का अर्थ शब्दकोश से नहीं अतीत के पन्नों से ही लिया जा रहा है। यही तो रूढ़ी है। दलित का अर्थ अगर शब्दकोष से लिया जाए तो दूसरी जातियों में दलित अधिक मिलेंगे,रोटी खाने के लाले होते हुए भी ऐसे लोग इसलिए दलित नहीं हैं कि वो उस जाति विशेष के नहीं है। पुण्य प्रसून भाई, बुत बनते रहेंगे और बुत सता भी चलाते रहेंगे लेकिन हम भी तो बुत बनकर तमाशा देखने के सिवा कुछ नहीं कर सकते! आपके लेख ने मरे भीतर कई तहों को कुरेदा है। मेरा कमैंट लम्बा हो गया है क्षमा करें!Prakash Badalhttps://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-23965572828268028772009-07-16T07:14:44.078+05:302009-07-16T07:14:44.078+05:30भाई साहब ये पुण्न प्रसून का ब्लाग है ही नहीं. झूठ ...भाई साहब ये पुण्न प्रसून का ब्लाग है ही नहीं. झूठ बोल रहे हैं आप अगर प्रसून जी का ब्लाग है तो वो अपनी परिचय हूं करके लगायेगें हैं करके नहीं समझे झूठ बोल रहे हैशशांक शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/00569926392676984136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-48604106569693929712009-07-14T00:28:11.372+05:302009-07-14T00:28:11.372+05:30पुण्य भाई,
इति चनचोध्याय: संपूर्णम् या कुछ औऱ भी ...पुण्य भाई,<br /><br />इति चनचोध्याय: संपूर्णम् या कुछ औऱ भी द्वितीय अध्याय की प्रतिक्षा रहेगी। कहीं पहले पढ़ा था <br />चमचा एक्कम चमचा, चमचा दूनी चापलूसी, चमचा तीयां देश हताश, चमचा चौके सत्यानाश<br />ग्लोबलाइज़ेशन के बाद अब तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की चमचागिरी हो रही है। मन को मोहने वाले लोग भी तो पश्चिम को अपने इसी फन से कायल कर रहे हैं। बाई द वे 'चमचा'शब्द की उत्पत्ति के बारे में भी कुछ प्रकाश डालें कहां से और कैसे आया ये शब्द। अस्तुAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/16885990187990290194noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-39884760116963299022009-07-13T22:17:14.619+05:302009-07-13T22:17:14.619+05:30अफ़सोस है कि जो दलित आन्दोलन मायावती जी ने मान्यवर ...अफ़सोस है कि जो दलित आन्दोलन मायावती जी ने मान्यवर कांशीराम का आशीर्वाद लेकर चलाया वह आज सत्ता की रोटी सेंकने के अतिरिक्त कुछ नहीं रह गया है। इस पार्टी में भी वे सभी बुराइयां कई गुना होकर आ गयी हैं जिनका विरोध करते हुए इस आन्दोलन का जन्म हुआ। सत्ता का दुरुपयोग, व्यक्ति पूजा, भ्रष्टाचार और समाज में विघटनकारी शक्तियों को प्रश्रय देने का कार्य जिस बड़े पैमाने पर हो रहा है वह पिछले सभी रिकार्ड तोड़ रहा है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-3973258468398990632009-07-13T15:43:35.966+05:302009-07-13T15:43:35.966+05:30मेरा यह मानना है कि इसे सिर्फ मूर्ति स्थापित करने ...मेरा यह मानना है कि इसे सिर्फ मूर्ति स्थापित करने तक का खेल अथवा मात्र एक बचकानी हरकत समझने की भूल ना की जाए ! यह बात किसी से छिपी नहीं कि बाबा भीम राव आंबेडकर एक महान हस्ती थे लेकिन हमने अपने स्वार्थो की पूर्ती के लिए जिस तरह उनकी मूर्तिया पार्को और खाली पड़े प्लोटो में सिर्फ इसलिए स्थापित कर दी, ताकि उन पर अवैध कब्जा किया जा सके, उसके नतीजन पिछले ५०-६० सालो में अनेको खून-खराबे और सार्वजनिक संपत्ति को नुकशान की घटनाएं इस देश ने देखी! हम भले ही क्षणिक लाभ प्राप्त करने में सफल रहे हो मगर यह बात शायद खुद आंबेडकर भी जानते होंगे कि हमने ऐसा करके उनके कद को छोटा करने की ही कोशिश की उसे ऊँचा उठाने की नहीं ! <br /><br />अब इस नए मूर्ती एपिसोड से जो बात निकली है वह भी बहुत दूर तक जायेगी ! इन मूर्तियों के माध्यम से इस देश में जाने, अनजाने विघटन, हिंसा और साम्प्रदायिकता के कुछ और बीज बो दिए गए है, जो आगे चलकर वक्त आने पर पेड़ बनकर उन्नत फल देंगे और जिन्हें चखने के लिए हमारी भावी पीढियों को वाध्य होना पडेगा !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-87331382592911873862009-07-13T15:02:15.720+05:302009-07-13T15:02:15.720+05:30दरअसल, जो काम कांसीराम या डॉ आंबेडकर न कर सके, वह ...दरअसल, जो काम कांसीराम या डॉ आंबेडकर न कर सके, वह मायावती ने कर दिखाया। कोई माने या न माने मायावती दलितों की मसीहा हैं। वे मसीहा बनी रहें इसीलिए प्रयासरत हैं कि अपनी मूर्तियां स्थापित करवाएं। दलितों को उन्हें पूजने को मजबूर करें। ताकि उनकी मसीहा होने-बनने की तमन्ना यूंही जीवित रह सके। मूर्तियों के सहारे राजनीति कैसे की जाती है यह मायावती ने हमें सिखाया है। अब उनके मूर्ति-प्रेम पर किसी को आपत्ति हो तो होए। कोर्ट भी उनके साथ है।Anshu Mali Rastogihttps://www.blogger.com/profile/01648704780724449862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-40017790348490898202009-07-13T14:57:24.074+05:302009-07-13T14:57:24.074+05:30shayad mayawati ke bad ya fir mayawati ke dekhte h...shayad mayawati ke bad ya fir mayawati ke dekhte hi dekhte dulit aandolan bikhar jayega....<br />anjuleshyam<br />http://muhurat.blogspot.comanjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-16372536660272818622009-07-13T14:15:06.112+05:302009-07-13T14:15:06.112+05:30पुण्य प्रसूनजी
मायावती का बुत प्रेम एक पूरे आंदोलन...पुण्य प्रसूनजी<br />मायावती का बुत प्रेम एक पूरे आंदोलन को खत्म कर रहा है। मौका लगे तो इसे पढ़िएगा<br /><br />http://batangad.blogspot.com/2009/06/blog-post_30.htmlBatangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-82122612863549477062009-07-13T14:06:52.094+05:302009-07-13T14:06:52.094+05:30चूंकि आंबेडकर-कांशीराम-मायावती के बुत समूचे राज्य ...चूंकि आंबेडकर-कांशीराम-मायावती के बुत समूचे राज्य में अभी तक जितने लगे है, अगर उनकी जगहो पर आंबेडकर की शिक्षा पर जोर देने वाले सच के दलित उत्थान को पकड़ा जाता तो संयोग से राज्य में उच्च शिक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर की तीन यूनिवर्सिटी और राज्य के हर गांव में एक प्राथमिक स्कूल खुल सकता था। <br /><br /><br />बिलकुल सही कहा आपने.......<br /><br />असल में सत्ता सीन या सत्ता की राह पर रहे व्यक्ति का कोई जात पात या सिद्धांत नहीं होता.......वहां एक ही भाषा एक ही कोड चलता है और वह है...किसी भी कीमत पर कुर्सी पर बने रहना.....चाहे इसके लिए जो भी करना पड़े....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.com