tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post8718642855909654562..comments2024-03-11T07:18:50.122+05:30Comments on पुण्य प्रसून बाजपेयी: सवालों ने बेचैन किया तो जिंदगी की तंग गलियां छोड़ जवाब खोजने मओवादी बना एक इंजीनियरPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-86376041978711466642010-02-20T18:15:36.207+05:302010-02-20T18:15:36.207+05:30bajpeyee ji apka yeh lekh padhkar bahut achha laga...bajpeyee ji apka yeh lekh padhkar bahut achha laga ki apne adiwasio ke bhavnao ke behtar samjha hai...maine adiwasion jiwan sanghars ko bahut karib se dekha hai.....aur main ye bhi janta hoon aj ke humare budhijiwi samaj aur desh ke leadaro ko is se kuch pari nahi hai...<br />lekin jo bhi yeh lekh ek bar padhega sayad unke soch main kuch badlao aye..<br /><br />adiwasion ke bare main to bus itna kahung wo dil ke bahut achhe hote hai...<br />aur unko bhatkana muskil nahi hai..Sankar shahhttps://www.blogger.com/profile/02343476841213079810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-17224614685292869342010-02-07T09:00:41.975+05:302010-02-07T09:00:41.975+05:30आप रेलवे की पटरियोँ की मरमत्त का काम करते आदिवासी ...आप रेलवे की पटरियोँ की मरमत्त का काम करते आदिवासी परिवारोँ को अकसर देखते होँगे! पिताजी की पोस्टिँग आदिवासी इलाकोँ मेँ होने के कारण उन लोगोँ की दुख तकलीफोँ को नज़दीक से देखा है मैँने! इसके बाद जब टीवी पत्रकारिता की शुरुआत की तो आँध्र प्रदेश मेँ काम करने का मौका मिला! जो आदिवासी बहुल इलाका है! हैदराबाद मेँ रह कर छत्तीसगढ के लिये जब बुलेटिन बनाये तो समझ आया छत्तीसगढ मेँ क्योँ पनप रहा है नक्सलवाद ? सलवा-जुडुम के नाम पर गरीब आदिवासियोँ का लहू बहते देखा! तो दिमाग मेँ बिजली सी कौँध गई! जब नक्सलियोँ से निपटने मेँ राज्य की पुलिस ने हाथ खडे कर दिये तो सरकार ने भोले-भाले आदिवासियोँ के हाथोँ मेँ ही बँदूक थमा दी! इसके बाद आये दिन आदिवासियोँ के साथ खूनी सँगर्ष की खबरेँ आने लगी! सलवा जुडुम कार्यकर्ताओँ को नक्सली चुन-चुन कर निशाना बना रहे थे! किसी को हाथ पैर बाँध कर गोली मार दी जाती थी, तो किसी को गाँव की चौपाल पर लटका दिया जाता था! सरकार और पुलिस मूक दर्शक बनी सब देख रही थी! आदिवासियोँ की सुरक्षा करने के बजाये उसने आदिवासियोँ के हाथोँ मेँ बँदूकेँ थमा दी थीँ! हमारे चैनल यानि ईटीवी के सिवाय कोई मीडिया इसकी रिपोर्टिँग नहीँ कर रहा था! क्योँकि दँतेवाडा, बस्तर, के ये इलाके नक्सलियोँ का गढ थे! और इतने इँटीरियर मेँ थे कि किसी भी राष्ट्रीय चैनल का नेटॅवर्क वहाँ तक नहीँ था! आपको ये जान कर हैरानी होगी कि बहुसँख्यक आदिवासी नक्सलियोँ के खिलाफ थे! इसीलिये वे सलवाजुडुम का समर्थन कर रहे थे! जबकि इस आँदोलन मेँ निर्दोष आदिवासी अकारण ही मारे जा रहे थे! अब भी वो विज़वल आँखोँ के सामने घूम रहे हैँ जब आये दिन दँतेवाडा और बस्तर के जँगलोँ मेँ हज़ारोँ आदिवासी स्वप्रेरणा से जुटते थे और नक्सलवाद के खिलाफ एकजुट होने का सँकल्प लेते थे! इनमेँ बच्चे बूढे और जवान सभी लोग थे! सलवा जुडुम और छत्तीसगढ के विकास को लेकर जब मैँने छत्तीसगढ के मुख्यमँत्री रमन सिँह से सवाल किये थे तो मुख्यमँत्री नहीँ बता पाये कि आदिवासियोँ के कल्याण के नाम पर बना आदिवासी राज्य छत्तीसगढ नक्सलवाद का गढ क्योँ बन गया? कमोबेश यही स्थिति झारखँड की भी है! आदिवासियोँ के कल्याण के नाम पर अलग राज्य बना कर भी अगर आप उनहेँ मूलभूत सुविधायेँ भी नहीँ दे सकते तो इसका सीधा सा मतलब ये है कि आपकी मँशा सही नहीँ है! शोषण से ही आक्रोष पांपता है आप शोषण रोक दीजिये आक्रोष खत्म हो जायेगा! सलवाजुडुम का समर्थन करने वाला आदिवासी समाज कभी व्यवस्था का विरोधी था ही नहीँ! लेकिन व्यवस्था ने कभी उसकी मदद करने की इमानदार कोशिश नहीँ की! अब यदि उससे नाराज़ होकर कुछ लोगोँ ने हथियार उठा लिये तो उनसे मुकाबला करने के लिये गरीब आदिवासियोँ को हथियार देकर किनारा कर लेना और फिर उनकी मौत का तमाशा देखना क्या सही ठहराया जा सकता है? क्योँ नहीँ हमारी सरकारेँ आदिवासी इलाकोँ मेँ विकास कार्योँ पर ज़ोर देती है? क्योँ नहीँ वहाँ बिजली, पानी, सडक, स्कूल, अस्पताल जैसी मूलभूत सुविधायेँ मुहैया करवाती है? क्योँ नहीँ वहाँ ग्राम न्यायालय स्थापित किये जाते और आदिवासियोँ का शोषण करने वालोँ को कडे दण्ड दिये जांते ? सच है आज लोकतँत्र से ज्यादा जरुरत गुड गवर्नेँस की है! <br />लीजिये सुबह हो गई लेकिन उनकी सुबह कब आयेगी?योगेश गुलाटीhttps://www.blogger.com/profile/13535999793144019062noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-54404858492887629812010-02-07T09:00:18.431+05:302010-02-07T09:00:18.431+05:30पुण्यप्रसून जी सबसे पहले तो एक अच्छी पोस्ट लिखने क...पुण्यप्रसून जी सबसे पहले तो एक अच्छी पोस्ट लिखने के लिये आपको साधुवाद! मध्य प्रदेश से हूँ, इसलिये आदिवासी समाज को नज़दीक से देखा और समझा है! ये बात सौ फीसदी सच है कि आदिवसियोँ के साथ लँबे समय से अन्याय होता आया है! आदिवासी समाज बहुत ही भोला और सीधा होता है! लेकिन पूँजीपतियोँ ने इनके इस भोलेपन का फायदा उठाया है! मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ के आदिवासी गाँवोँ की दुर्दशा देख कर कोई भी इस बात का सहज ही अँदाजा लगा सकता है कि आदिवासियोँ के साथ किस हद तक छ्ल हुआ है! आदिवासियोँ के कल्याण के लिये सरकार की तरफ से अरबोँ रुपयोँ की योजनायेँ सिर्फ कागज़ोँ पर ही कार्याँवित हुई हैँ! यानि गरीब आदिवासियोँ का हक भ्रष्ट व्यवस्था की बलि चढ गया! यहाँ तक कि उनकी ज़मीनेँ भी हडॅप ली गई! जँगल पर उनहेँ अधिकार की बात आज़ादी के पाँच दशकोँ तक नहीँ हुई! इसी व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने ही नक्सलवाद को जन्म दिया है! दरअसल हम हर चीज़ का इलाज एलोपौथी से करना चाहते हैँ! हम बीमारी को मिटाना चाहते हैँ उसके कारण तक पहुँचने की कोशिश ही नहीँ करते! नक्सलवाद का इलाज एलोपैथी नहीँ होम्योपैथी है! इस समस्या के कारण को समझ कर उन कारणोँ का इलाज करना होगा जो इस समस्या को बढावा दे रहे हैँ! सतही बातेँ करने से कुछ नहीँ होगा! ना दोषारोपण करने से कुछ होने वाला है! हम कश्मीर मेँ होम्योपैथिक इलाज कर रहे हैँ! जहाँ एलोपैथिक ट्रीतमेँट की ज़रुरत है! आदिवासी हमारे अपने हैँ! हमेँ नहीँ भूलना चाहिये “आदिवासी विद्रोह” जिसने उस वक्त अँग्रेजोँ को चुनौती दी थी जब सारा देश उनकी ताकत के आगे हथियार डाल चुका था! <br />वोट बैँक की राजनीति मेँ आदिवासी वर्ग कहीँ पीछे रह गया! आज झूठे एसटी सर्टिफिकेट के दम पर कईँ लोग उउँचे सरकारी ओहदोँ पर बैठे हैँ! इससे अँदाज़ा लगायाअ जा सकता है कि हमारी व्यवस्था ने आदिवासियोँ को किस हद तक छ्ला है! कोयँकि सच्चे आदिवासी तो दो वक्त की रोटी को मोहताज हैँ! वो अपने जँगलोँ से और अपनी ज़मीनोँ से बेदखल कर दिये गये हैँ!योगेश गुलाटीhttps://www.blogger.com/profile/13535999793144019062noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-37106893102826960302010-02-02T14:29:55.516+05:302010-02-02T14:29:55.516+05:30sir aap ne jo likha sayad us bat ko log sahi tarik...sir aap ne jo likha sayad us bat ko log sahi tarike samaj nahi paye lagte hai sayad isi liye naxlvad par manthan ki jagah bahas suru ho gai hai aapne to ye bata ki koshis ki hai ki jis ladke ko aap kaabhi chatra ke ro me dekah tha aaj vo es rup me aur eske piche ka karan bataye aapne ye to nahi kaha ki ham naxli ban jaye y unke smrthk to kyo na vichar kiya jay un savalo ka hal dhundha jay ki koi aalok fir milind na ban payeVAIBHAV SHIVhttps://www.blogger.com/profile/13449647373369862548noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-21548604801818626282010-02-02T10:55:14.953+05:302010-02-02T10:55:14.953+05:30NA NA SHAMBHOO JI, BAAT KO RAKHNE KA YE TARIKA TO ...NA NA SHAMBHOO JI, BAAT KO RAKHNE KA YE TARIKA TO BILKUL BHI UCHIT NAHI, AISE SHABDO KA PRAYOG KARKE AAP MUDDE KO SATHI BANA RAHE HAI.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11513460068890587554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-75258280655052048062010-02-02T10:30:46.868+05:302010-02-02T10:30:46.868+05:30प्रसूनजी अपने बेटे की गेंद के लिए दूसरे का सर फोड़...प्रसूनजी अपने बेटे की गेंद के लिए दूसरे का सर फोड़ देने वाले ये वो शहरी लोग हैं... जो सड़कों पर कुत्तों को घुमाने के बहाने ट्टी कराते हैं... ये वो शहरी हैं... जो पानी बर्बाद करने का एड बनाकर लाखों कमाते हैं... लेकिन घर में बाथ टब में घुसे रहते हैं... इन दो मुहों लोगों का कोई चरित्र नहीं है... इन्हें क्या पता अपना जमीन, आबरू का लूट जाना क्या होता है... वैसे आत्म सम्मान इनके अंदर भी नहीं होता... रोज नौकरी पेशा बॉस की बेवजह गाली सुनता है... दलाल बड़े दलालों का तलवा चाटता है... और लुटेरे को बाप व्यापारी वर्ग अपने से उपर वालों से लूटता है... लेकिन इनके आत्म सम्मान को चोट नहीं लगती... ये गटर में इतना गिर चुके हैं... कि इनकी गंदगी को आईना भी अब दिखाने से हिचकता है... इनमें कहा दम है कि अपनी लड़ाई के लिए जंगल में चले जाएंगे... वो तो हिम्मत वाले होते हैं... जो जलालत की जिंदगी छोड़ आत्म सम्मान की लड़ाई लड़ने जंगल चले जाते हैं... नक्सली कहने वालों इन साहबों को पता है कि नहीं की कितने लोग हर साल देश में पुलिस अत्याचार से मर जाते हैं... कितने करोड़ों की वसूली नेता, पुलिस दलाल और व्यापारी करते हैं... कितने ईमानदार गरीब बगैर गलती जेल में जमानत के बगैर सड़ रहे हैं.. इन्हें पता है इन लोगों ने कितने जगह झूठ बोलें होंगे... अगर कुछ चंद लोग इमानदार बचे हैं इस देश में तो उनके लिए जंगल या पत्रकारिता ही बचा है... या फिर गरीबी में जीते हुए सोशल एक्टविज्म... ये वो आत्म सम्मान बेच चुके लोग हैं... जिनकी गैरत मर चुकी है... सिर्फ ईमानदारी का ढोंग कर ये जीते रहते हैं... क्या इनमें से कोई बताएगा... कि जंगल में जमीन जोतने वाले किसी आदिवासी ने किसी को लूटा होगा... तो फिर उनके साथ अन्याय क्यों... फिर उनके अधिकार का हनन क्यों... चंद टुकड़ों के लालच में जीने वाले इन शहरी को कौन समझाए... की गाली चाहे इज्जत से दी जाए या बेइज्जत करके... गाली गाली होता है... अगर शहरी इतने ही समझदार हैं तो फिर इनके लिए इतने पुलिस की जरूरत क्या है... कोर्ट कचहरी की जरूरत क्या है... सबसे बड़ा नक्सली इस देश का शहरी है... जिसका लुटना ही कर्म और धर्म है... शायद इन शहरियों के लिए नक्सली विशेषण भी ठीक नहीं होगा... ये तो नक्सली का अपमान है...Shambhu kumarhttps://www.blogger.com/profile/13570601825632015400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-72955185696921806122010-02-01T13:46:43.727+05:302010-02-01T13:46:43.727+05:30पुन्यजी, इस पोस्ट की आपकी बातोसे संपूर्ण सम्मत हु....पुन्यजी, इस पोस्ट की आपकी बातोसे संपूर्ण सम्मत हु. यहाँ हम सभ्य समाज जिसे कहते हे वो सबसे घटिया समाज हे. यहाँ पूंजीपतिओ की अगली १० प्रायोरिटी में समाज के पिछड़े तबके को साथ ले आगे बढ़ने की बात नहीं हे. तमाम सुविधाए पा लेने के बाद पूंजी को ज्यादा उपभोग में लगाते हे. गांधीजी से किसीने उसके मन में चल रही कोई एक चिंता के बारे में प्रश्न किया था, गाँधी का जवाब था, 'देश के शिक्षित लोगो में संवेदनशीलता कम होती जा रही हे ये परिवर्तन मुझे सबसे ज्यादा चिंताजनक लगता हे.' <br />कुछ टिप्पणीकार इस पोस्ट का विरोध कर रहे हे इसमें कुछ सोच या विवेक नहीं दिखता हे, वो शब्दों से रंडीबाजी का काम करवा रहे हे.himmathttps://www.blogger.com/profile/05307951658539549529noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-58134701263527060292010-02-01T01:05:41.189+05:302010-02-01T01:05:41.189+05:30जी प्रसून, शायद यही कहते कहते मै भी रूक गया था कि...जी प्रसून, शायद यही कहते कहते मै भी रूक गया था कि इंजिनियर अगर माओवादी हो जाये तो खतरा सभ्य समाज पर तो है ? मैं जिस बूढे दंपति की बात कर था वह उस वर्ग का प्रतिनिधि है जिसे एक वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं होती. मेरे हिसाब से वह ज्यादा सभ्य है क्योंकि वह अभी भी हथियार उठाने के बजाय भूखा सोना ज्यादा पसंद करता है और अगले दिन फिर लग जाता है अपने काम पर... अपनी उन्हीं बूढें कांपते हाथों से... अपनी रोजी रोटी के लिए... मैं उस दंपति को नमन करना पसंद करूंगा बजाय उस माओवादी बने इंजिनियर के.Tarit Prakash (तड़ित प्रकाश)https://www.blogger.com/profile/00600243182782826977noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-47316796087560127002010-01-31T12:51:35.935+05:302010-01-31T12:51:35.935+05:30इंजिनियर अगर माओवादी हो जाये तो खतरा सभ्य समाज पर ...इंजिनियर अगर माओवादी हो जाये तो खतरा सभ्य समाज पर तो है ?<br /><br /> <br /><br />इंजिनियर बनने के बाद देश के लिये एक उपभोक्तावादी नागरिक हो कर जीने की जगह अगर कोई माओवादी बन कर हथियार उठा लें तो वह सभ्य समाज का संकेत नहीं है । लेकिन इस देश की त्रासदी यही है कि हम सभ्य समाज है क्या और बाकि के देश की हालत जो पढे-लिखे युवको को परेशान कर देती है उस पर चर्चा करने की जगह माओवाद और नक्सलवाद पर चर्चा करने लगते है । फिर यह शब्द आते ही यह भी लगने लगता है कि कही बात आंतक के दायरे में ना जाये । अगर इस बहस में से माओवादी और नक्सलवाद शब्द निकाल दिजिये तो आप बेहद राहत महसूस करेंगे । चूकिं माओवाद को आंतक की पर्याय उसी राज्य ने बनाया है जिसकी नीतियो की वजह से देश के 40 करोड लोग आज गरीबी की रेखा से नीचे है । हैरत ना किजिये यह आंकडा आजाद भारत की जनसंख्या से भी 4 करोड ज्यादा का है । 1947 में भारत की जनसंख्या 36 करोड थी । यानी विकसित होते इंडिया में एक पूरा भारत गरीबी की रेखा से नीचे है । और करीब इतने ही लोग यानी 43 करोड की आय आज भी बीस रुपये प्रतिदिन से ज्यादा नहीं हो पायी है । यानी देश के बाकि बचे 40-45 करोड जनसंख्या के लिये ही सरकार है उसकी नीतिया है और लोकतंत्र है । और इस लोकतंत्र के घेरे में आने वाले लोग उस 75-80 करोड के भारत की तरफ देखने से डरे इसके लिये माओवाद और नक्सलवाद का आंतक है । जिस देश की आर्थिक नीतिया ही विदेशी पूंजी को लाभ पहुचाने के लिये बनती है वहा आदिवासियो के बीच किस विदेशी शक्ति के इशारे पर राष्ट्रद्रोह रचा जा रहा होगा...यह सोचने वाला आरोप है । करीब सौ बरस पहले गांधीजी ने हिन्द स्वराज लिखते वक्त उस भूमंडलीकरण का जिक्र किया था । जो यूरोपिय देश अलग अलग जगह पर साम्राज्य स्थापित करके वहा के संसधानो का उपयोग कर अपने देश में औघोगिक क्रांति कर रहे थे । लेकिन सौ बरस बाद ाज हम जिस भूमंडलीकरण का सामना कर रहे है वह बाजार है । जो आर्थिक सुधार देश में चल रहे है और उसके घेरे में जो पूंजी देश में आ रही है उसमें 80 पिसदी तो सट्टा बाजार में लगी है । यानी पूंजी से पूंजी बनाने का व्यापार । पूंजी से कुछ उत्पादित करने का व्यापार नहीं है । उत्पादन तो विकसित देसो में हो रहा है और सस्ता हो रहा है । इसलिये सरकार भी किसानो को भी उस राह पर ले जाना चाहती है जहा वह खेती ना करें , मजदूरी चाहे कर लें । क्योकि विकसित देश तो कह ही रहे है कि आपको खेती करने की क्या जरुरत है , हम आपको कम पैसे में अनाज दे देगें । इसी तरह वह कल कारखाने भी बंद करवाना चाहते है । और आर्थिक सुधार के दौर में बारत ने इस राह को पकडा भी है । छह लाख से ज्यादा कामगार इसलिये बोरोजगार हो गये है कि फैक्ट्रियो में ताला पड गया है । और किसान तो करोडो में है, जो सरकार की नीति की वजह से मजदूर हो गये । इसलिये अब बात गुड गवनेंस की हो रही है । और माना जाने लगा है कि लोकतंत्र से बेहतर तो गुड गवनेंस होता है । तो लोकतंत्र का सवाल तो सरकार ने नीति के तहत ही हाशिये पर ला दिया है । ऐसे में कोई इंजिनियरिंग का छात्र लोकतंत्र के तहत मिलने वाले अधिकारो का सवाल उठाकर खुद को बैचेन करेगा तो बेवकूफ तो कहलायेगा ही । क्योकि ग्रामिण आदिवासियो की बोली सरकार तो क्या शहर के उपभोक्ता नागरिक भी समझ नहीं पाते है और अपनी सभ्य जीवनचर्या में खलल मानते है । तो जिस समाज में खून बहाये बगैर ही हर महिने दस हजार से ज्यादा किसान-ग्रामिण-आदिवासी खुदकुशी कर लेते हो वहा इंजिनियर का बंधूक उठाना और माओवादी हिंसा में हर महिने सौ से ज्यादा लोगो का मारा जाना सभ्य समाज के लिये खतरा तो है ।Unknownhttps://www.blogger.com/profile/13688488098214673286noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-71002459881080442722010-01-31T10:45:31.990+05:302010-01-31T10:45:31.990+05:30सवाल खङा करना और उस ओर विचार करना लोकतन्त्र को मजब...सवाल खङा करना और उस ओर विचार करना लोकतन्त्र को मजबुती देता है..यहॉ किसी एक पक्ष का साथ देना किसी मकसद की ओर नही ले जाता है..हिन्सा कही से वाजिब नही है..हमारा मकसद होना चाहिए कि वर्त्तमान अर्थव्यवस्था का कोई विकल्प है भी या नहीं..क्या हमें टपकन सिध्दांत के अनुरूप ही चलना है या जमीन से जुङे व्यक्ति का पहला हक हो...वर्तमान आर्थिक सन्कट ने पून्जीवादियो को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सिर्फ मूनाफा कमाना ही उनका मकसद हो या उपभोक्ता को मजबुत बनाया जाए..RISHIKESHhttps://www.blogger.com/profile/10064120249440048522noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-33066170529992466932010-01-31T10:41:54.546+05:302010-01-31T10:41:54.546+05:30सवाल खङा करना और उस ओर विचार करना लोकतन्त्र को मजब...सवाल खङा करना और उस ओर विचार करना लोकतन्त्र को मजबुती देता है..यहॉ किसी एक पक्ष का साथ देना किसी मकसद की ओर नही ले जाता है..हिन्सा कही से वाजिब नही है..हमारा मकसद होना चाहिए कि वर्त्तमान अर्थव्यवस्था का कोई विकल्प है भी या नहीं..क्या हमें टपकन सिध्दांत के अनुरूप ही चलना है या जमीन से जुङे व्यक्ति का पहला हक हो...वर्तमान आर्थिक सन्कट ने पून्जीवादियो को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सिर्फ मूनाफा कमाना ही उनका मकसद हो या उपभोक्ता को मजबुत बनाया जाए..RISHIKESHhttps://www.blogger.com/profile/10064120249440048522noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-84306799530861474882010-01-31T00:30:39.322+05:302010-01-31T00:30:39.322+05:30बड़ा वह होता है जो अपने द्वार खुले रखता है
संभावन...बड़ा वह होता है जो अपने द्वार खुले रखता है <br />संभावनाओ के लिए <br />न की वो जो अपने को स्वमभू समझता हैडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-29418151995416622282010-01-31T00:27:49.079+05:302010-01-31T00:27:49.079+05:302003 और 2010
में दुनिया बहुत बदल गयी है2003 और 2010 <br />में दुनिया बहुत बदल गयी हैडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-91009129611373591542010-01-31T00:25:40.543+05:302010-01-31T00:25:40.543+05:30जब पत्रकार भी अपनी जमीन छोड़ दें तो आम इंसान का सह...जब पत्रकार भी अपनी जमीन छोड़ दें तो आम इंसान का सहारा क्या होगा ?डॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-53122075394485396052010-01-30T23:54:04.559+05:302010-01-30T23:54:04.559+05:30प्रसूनजी आपने तो सात साल पहले की याद दिला दी. 200...प्रसूनजी आपने तो सात साल पहले की याद दिला दी. 2003 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद पहले विधानसभा चुनावों के दौरान मैं जगदलपुर पंहुचा. जब अगले दिन सुबह टीम रवाना हो रही थी तो पता चला कि टीम के सदस्य शहर से बाहर जाने को तैयार नही हैं, पूछने पर पता चला कि शहर जगदलपुर जो कि जो कि बस्तर जिले का मुख्यालय है के बाहर जाना खतरे से खाली नहीं है, पता नहीं आप शाम को लौटे या नहीं, नक्सल प्रभावित क्षेत्र का इतना भय मैं जहानाबाद के बाद दूसरी बार देख रहा था, मैने निर्णय लिया कि कोई जाए न जाए मैं तो अवश्य जाउंगा. कुछ साथी और साथ हो गए. शहर के बाहर निकलते ही क्षेत्र की कहानी ही बदल जाती है, जगदलपुर में जहां स्कूटर पर र्स्काफ बांध धुआं उडाती बाला के दर्शन होगें वहीं शहर को छोडते ही एक धोती में लिपटी जंगल की बेटी भी मिल जाएगी. जगदलपुर को राजधानी रायपुर से जोडने के लिए जहां टपाटप सडक है वहीं नारायणपुर, दंतेवाडा के कई इलाकों जिसका दौरा हमने अगले तीन दिनों में किया, आप कब पक्की से कच्ची पर आ जाते हैं पता ही नहीं चलता. उन्हीं पगडंडियों पर एक युवक से मुलाकात हुई जो एमए करने के बाद यह जानना चाह रहा था कि वह क्या करे. रामशरण जोशी की पुस्तक का वह अंश भी मुझे याद आया कि कैसे एक 'बिस्कूट' के पैकेट के लिए एक जवान अपना पूरा दिन टूरिस्ट के पीछे बीता देता है. उन तीन दिनों में जब इलाके को करीब से देखा तो समझ में आया कि गरीबी कैसे आपको मजबूर कर देती है जब वहां एक साप्ताहिक बाजार में एक बूढा दंपति मात्र 20 रूपये में अपनी पूरी दूकान मुझे देने को तैयार हो गया क्योंकि उसे उससे ज्यादा की गिनती नहीं आती थी... ... ...Tarit Prakash (तड़ित प्रकाश)https://www.blogger.com/profile/00600243182782826977noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-79735222738578101132010-01-30T23:42:32.658+05:302010-01-30T23:42:32.658+05:30This comment has been removed by the author.Tarit Prakash (तड़ित प्रकाश)https://www.blogger.com/profile/00600243182782826977noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-39036260856404090542010-01-29T16:58:31.659+05:302010-01-29T16:58:31.659+05:30prasoonji aap is desh ke sarvashretha patrakaron m...prasoonji aap is desh ke sarvashretha patrakaron me se ek hain aur na jane kitne patrakaron ke aadarsh bhi aapki kai baton se hum bhi sahmat hote hain. par aaj har aam bharatvashi me milind basa hua hai par kinhin samasyaon aur majbooriyon ki vajah se vah ubhar kar bahar nahin aa pa raha hai. ummed karta hun ki jald hi ye milind sabke andar se bahar aaye aur loktantra ka asli chehra aur uski anubhooti hum kar paye. please write more such articles. padh kar achha lagta hai ki hum akele nahin hain.Kaptan Malihttps://www.blogger.com/profile/11322853122770182711noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-67611419523874642752010-01-29T13:23:27.525+05:302010-01-29T13:23:27.525+05:30mudda samvedansheel hai, isliye ise kripya do log ...mudda samvedansheel hai, isliye ise kripya do log hi (sinha jee aur tiwari jee) tippanibajee na karein. aap apne vichar dein, bajpayee jee kya kahte hain, unka jawab aane deejiye. vaise unhonne naxalvad kee pairavi nahin kee hai, iske peechhe ke karan apni yaddasht ke aadhar par bataye hain. anil jee ne unhe bastar bulaya hai, main aap sabhi ko kashmir jane ke liye kahta hoon, vahan bhi bteh, mteh engeneer atankvadiyon ke saath hain. naxalvadi to haq chahte hain, desh ke tukde karna nahin. bavjood unke andolan ko jayaj nahin thaharaya ja sakta hai. is vishay par kuchh sujhav bhi aate to baat banti.<br />thanx<br />www.bolaeto.blogspotप्रदीप मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/03608225774750908417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-51618379309108918432010-01-29T00:22:15.147+05:302010-01-29T00:22:15.147+05:30अगर पुण्य प्रसून बजपायी ब्लॉग में पोस्ट कर के ही अ...अगर पुण्य प्रसून बजपायी ब्लॉग में पोस्ट कर के ही अपनी जिम्मेदारी को विराम देते हैं तो ये उनकी सोच है .<br /><br />यहाँ लोगों को उनका जवाब भी चाहिए .<br /><br />ये पारंपरिक मीडिया जगत नहीं है जहाँ आप सिर्फ अपनी बात करके आगे बढ़ जायें .डॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-18107776325396596422010-01-29T00:17:06.092+05:302010-01-29T00:17:06.092+05:30@अमृत कुमार तिवारी
जमीनी हालत देखने हैं तो उस जम...@अमृत कुमार तिवारी <br /><br />जमीनी हालत देखने हैं तो उस जमीन को छूना पड़ेगा .<br />मीडिया आज सबसे बड़े कटघरे में खड़ा है अपनी वास्तविकता साबित करने के लिएडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-45875534512558597332010-01-28T23:59:24.155+05:302010-01-28T23:59:24.155+05:30आपसे ये उम्मीद न थी।आपसे अनुरोध है आईये एक बार बस्...आपसे ये उम्मीद न थी।आपसे अनुरोध है आईये एक बार बस्तर मे रूकिये कुछ दिन और फ़िर बताईये सच क्या है तो बहुत अच्छा लगेगा।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-15884872839472030712010-01-28T23:58:56.467+05:302010-01-28T23:58:56.467+05:30"मिलिन्द भी हम जैसा सुविधाभोगी मध्यवर्गीय बन ..."मिलिन्द भी हम जैसा सुविधाभोगी मध्यवर्गीय बन सकता था। लेकिन नहीं बना। नैतिक रूप से मैं उसे अपने जैसे लोगों से बेहतर मानता हूँ।"<br /> <br />रंगनाथ जी आपने बिल्कुल सही कहा है।अमृत कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/00404648697774307768noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-1049482040637134072010-01-28T23:54:22.186+05:302010-01-28T23:54:22.186+05:30महेश सिन्हा जी..आपकी बातों से बहुत हद तक इत्तेफाक ...महेश सिन्हा जी..आपकी बातों से बहुत हद तक इत्तेफाक रखता हूं। लेकिन जो कुछ सरकार की तरफ से चल रहा है वो डेमोक्रेटिक सेट-अप का लक्षण नहीं है। अब ये बताइए कि सलवा जुडूम का क्या औचित्य है? एक तरफ सरकार कानून हाथ में नहीं लेने को कहती है और दूसरी तरफ नागरिकों के हाथ में बंदूक थमाती है। क्यों? पुलिस तंत्र तो तब खतम कर दिया जाना चाहिए। नागरिक स्वयं की रक्षा करे। ऐसे में नक्सलियों को अगर बंदूक कहीं और से मिल रही है तो बात बराबर है। एक शख्स संविधान की बातों से इत्तेफाक रखकर कानून हाथ में ले रहा है। दूसरा संविधान से इत्तेफाक नहीं रखते हुए हथियार उठाए हुए हैं। इसे क्या कहेंगे। <br />सरकार भी उसी गाय को संरक्षण दे रही है जो दुधारू है। सिस्टम भी उसी को बढ़ावा दे रहा है, जिसके पास पहले से ही गतिशीलता बनी है। बाकी सब दूसरी जमातों को गति प्रदान करने के नाम पर अपनी स्पीड में बढ़ोत्तरी की जा रही है।अमृत कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/00404648697774307768noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-80917841805356951622010-01-28T23:46:28.103+05:302010-01-28T23:46:28.103+05:30किसी शायर ने कहा है, "सच कहना बगावत है तो सम...किसी शायर ने कहा है, "सच कहना बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं।" महानगरों और नगरों से आगे बढ़कर देश की बात करने वालों के लिए मिलिन्द हो जाना सहज मानवीय है। उसमें साहस था। हम में नही है। बस इतनी सी बात है। मैं दिल्ली में रहकर आराम से यह सब लिख सकता हूँ। अपने इस आराम को बनाए रखने के लिए मेरा नक्सली हिंसा का विरोध करना जरूरी हो जाता है। वरना कोई तार्किक कारण नहीं कि इसे गलत माना जाय। मिलिन्द भी हम जैसा सुविधाभोगी मध्यवर्गीय बन सकता था। लेकिन नहीं बना। नैतिक रूप से मैं उसे अपने जैसे लोगों से बेहतर मानता हूँ।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-53724530153941742292010-01-28T23:39:36.836+05:302010-01-28T23:39:36.836+05:30@ अमृत कुमार तिवारी
न जाने क्यों आपने इतने जल्दी ...@ अमृत कुमार तिवारी<br /><br />न जाने क्यों आपने इतने जल्दी कदम वापस ले लिए ?डॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.com