tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-22046872056217830062011-11-27T13:02:00.001+05:302011-11-27T13:02:58.375+05:30संडे स्पेशल : कुछ और आपके लिएपाकिस्तान के महान् कॉमेडियन उमर शरीफ़ द्वारा एक पत्रकार का लिया गया इंटरव्यू<br /><br />उमर- आप जो कहेंगे सच कहेंगे सच के सिवा कुछ नहीं कहेंगे।<br />पत्रकार- माफ़ कीजिए हमें ख़बरें बनानी होती है।<br />उमर- क्या क़बरें बनानी होती हैं?<br />पत्रकार- नहीं-नहीं ख़बरें।<br />उमर- ओके ओके। सहाफ़त (पत्रकारिता) और सच्चाई का गहरा बड़ा ताल्लुक़ है, क्या आप ये जानते हैं?<br />पत्रकार- बिल्कुल, जिस तरह सब्ज़ी का रोटी से गहरा ताल्लुक़ है, जिस तरह दिन के साथ रात बड़ा गहरा ताल्लुक़ है, सुबह का शाम के साथ बड़ा गहरा ताल्लुक़ है, चटपटी ख़बरों का अवाम के साथ बड़ा गहरा ताल्लुक़ है, इसी तरह अख़बार के साथ हमारा भी बड़ा गहरा ताल्लुक़ है।<br />उमर- क्या आपको मालूम है मआशरे (समाज) की आप पर कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है?<br />पत्रकार- देखिए आप मेरी उतार रहे हैं।<br />उमर- ये आपकी ख़्वाहिश है, मेरा इरादा नहीं है, जी बताइए।<br />पत्रकार- हां, हमें मालूम है हम पर मां-बाप की ज़िम्मेदारी है, हम पर भाई-बहन की ज़िम्मेदारी है, बीवी-बच्चों की कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है, रसोई गैस, पानी और बिजली के बिल की कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है, कोई समाज की एक मामूली ज़िम्मेदारी ही नहीं है।<br />उमर- पत्रकारों पर एक और इल्ज़ाम है कि आप लोग फ़िल्मों को बड़ी कवरेज देते हैं, क्या ये हीरो लोग आपको महीने का ख़र्चा देते हैं?<br />पत्रकार- देखिए आप मेरी उतार रहे हैं।<br />उमर- कुछ पहन के आए हैं तो डर क्यों रहे हैं, बताइए फ़िल्म वाले आपको महीने का ख़र्चा देते हैं क्या?<br />पत्रकार- आप नहीं समझेंगे।<br />उमर- क्यूं, मैं छिछोरा नहीं हूं क्या, आप रिपोर्टरों ने पाकिस्तान के लिए 50 साल में क्या किया?<br />पत्रकार- देखिए आप मेरी उतार रहे हैं।<br />उमर- आप मुझे मजबूर कर रहे हैं, चलिए बताइए।<br />पत्रकार- जो देखा वो लिखा, जो नहीं देखा वो बावसूल ज़राय (सूत्रों से प्राप्त जानकारी के आधार पर) से लिखा, करप्शन को हालात लिखा, रिश्वत को रिश्वत लिखा, रेशम नहीं लिखा, सादिर (नेतृत्व करने वाले) को नादिर (नादिर शाह तानाशाह का संदर्भ) लिखा।<br />उमर- ये आपको ख़ुफ़िया बातों का पता कहां से चलता है?<br />पत्रकार- अजी छोड़िए साहब, हमें तो ये भी मालूम है कि रात को आपकी गाड़ी कहां खड़ी होती है? लंदन में होटल के रूम नम्बर 505 में आप क्या कह रहे थे? सिंगापुर में आप....।<br />उमर (रिश्वत देते हुए)- चलिए ख़ुदा हाफ़िज़।<br />पत्रकार- शुक्रिया, शुक्रिया फिर मिलेंगे, ख़ुदा हाफ़िज़।<br /><br /><br /><br />(ड्रामा ‘उमर शरीफ़ हाज़िर हो’ के दृष्टांत से लिखा गया)Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com7