tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-27341373024615784902010-08-16T10:29:00.006+05:302010-08-16T16:31:31.314+05:30एक अदद तिरंगे की खोज<div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRYgUWKzFRSF_SNogfk9DngwMgUFsXgfhwstEREF6mcbQZ3p4zf6AC3hv-RbmT_B_ksvisOKBvipQbMp95CBnuyZY935uN4hYLr4iaN3ltpMHQJb0JMBVfbYXYWkEMCExjK6D0Athsl10w/s1600/150820103152.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5505920400113682082" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRYgUWKzFRSF_SNogfk9DngwMgUFsXgfhwstEREF6mcbQZ3p4zf6AC3hv-RbmT_B_ksvisOKBvipQbMp95CBnuyZY935uN4hYLr4iaN3ltpMHQJb0JMBVfbYXYWkEMCExjK6D0Athsl10w/s320/150820103152.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div>चाय की चुस्की और सिगरेट के धुएं के बीच अचानक दीपक ने सवाल किया-पंडित जी, लग नहीं रहा है कि आज आजादी का जश्न है। बसंत बिहार से बंगाली मार्केट के बीच कही राष्ट्रीय ध्वज लहराता हुआ दिखा नहीं। दिल्ली के बंगाली मार्केट के फुटपाथ पर बैठ कर चाय-सिगरेट के साथ भीनी भीनी बारिश को महसूस करने के बीच दीपक के इस सवाल ने अचानक मेरे मन में भी गाजियाबाद से बंगाली मार्केट आने के दौरान के सारे दृश्यों को आंखों के सामने लाना शुरु किया। दिल्ली-गाजियाबाद की सीमा। निजामुद्दीन पुल। प्रगति मैदान। श्रीरामसेंटर। और बंगाली मार्केट का चौराहा।<br /><br />बंधु मुझे भी कोई कहीं झंडा दिखायी दिया नहीं। अरे यार , बारिश के डर से कहीं फहराया नहीं गया होगा। या फिर बारिश को देख कर उतार लिया गया होगा। अचानक नाज़िम कुछ ऐसे बोले, जिसे सुन कर एकाएक लगा कि हो सकता है....यह सोच भी हो। फिर लगा देश की अभी ऐसी हालत हुई नहीं है। मेरे मुंह से तुरंत निकला-बंधु...चलते है इंडिया गेट। 15 अगस्त। आखिर जिस विजय चौक पर 1947 में 16 अगस्त की पहली सुबह झंडा फहराया गया था....आज के दिन वहां क्या हाल...जायजा लिया जाये। नाज़िम ने तुंरत गाड़ी निकाली और बंगाली मार्केट से कोपरनिकस सड़क से होते हुये गाड़ी जब इंडिया गेट की तरफ बढ़ी...तो कतार में कई राज्यों के भवनों की तरफ बरबर ही नजर उठती चली गयी। बंधु...तिरंगा तो कहीं नजर आता नहीं। प्रसून जी...अहाते में फहराया होगा..जो सड़क से नजर आ नहीं रहा। अरे नाजिम साहब दाहिने भी देखें। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दफ्तर है । तिरंगा तो यहां भी नजर नहीं आ रहा। अरे बंधु शाम के पांच बज रहे रहे हैं। तिरंगा उतार लिया होगा। अरे क्या पंडित जी...यह देखिये आर्मी गेस्ट हाउस । यहां तो तिंरगा लहरा रहा है। गुरु मुझे लगता है .... इस बार आजादी पर संडे हावी हो गया। तो आर्मी गेस्ट हाउस पर क्यों। .......क्योकि आर्मी के लिये तो संडे होता नहीं...हर दिन एक जैसा। </div><br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXxuigYv5SWVQw6dzLjBDN4JL-PPmGpcRsxM-kQrrwzGVqvgjVA5mI5TKzJXU-XevLgxd774tvFtk0jOVBTcta4bMOmpKCLgWBWHVS9UEKO1v3w0DsxwWP7F5CeRggpWh_rJrww49wJFNl/s1600/salami-flag.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5505960762574067122" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 250px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXxuigYv5SWVQw6dzLjBDN4JL-PPmGpcRsxM-kQrrwzGVqvgjVA5mI5TKzJXU-XevLgxd774tvFtk0jOVBTcta4bMOmpKCLgWBWHVS9UEKO1v3w0DsxwWP7F5CeRggpWh_rJrww49wJFNl/s320/salami-flag.jpg" border="0" /></a><br /><div><br /><div><br /><br /><div>नाजिम भाई गाडी इंडिया गेट के सामने से राष्ट्रपति भवन की तरफ मोड़ें....या राजपथ पर तो झंडा जरुर लहराया जाता है। बकायदा एंटीक स्ट्रीट लाइट के साथ ही झंडा लहराने के लिये लोहे की छड़ भी लगी है । दीपक...अचानक चहक कर बोला मान लीजिये....आजादी का जश्न नहीं छुट्टी की मस्ती में है यह भीड़ । कहीं कोई झंडा दिखायी नहीं दिया और भीड के सैलाब को देखकर दीपक ने जैसे ही कहा वैसे ही नाजिम भी बोल पड़ा वाकई...कहीं कोई झंडा नहीं। ना बेचने वाला । ना किसी के हाथ में। तभी मेरी नजर कानों में एयर फोन लगाये एक शख्स पर इसलिये पड़ी क्योंकि उसके हाथ में तिरंगा बैंड लगा था। यार दीपक इसे ही तिरंगा मान लो...अब यही है तिंरगे का विकल्प। और आजादी का जश्न भी इसी तरह रंगो में सिमट कर किसी मैच के दौरान गालों पर या फिर टी-शर्ट की शक्ल में नजर आता है। लेकिन तभी नाजिम साहब चहके...देखिये..देखिये सामने कोई तिंरगा झंडा उठाये जा रहा है। गुरु गाड़ी वहीं ले चलो । सामने राष्ट्पति भवन पर लहराता झंडा दिखने लगा तो थोडी राहत मिली। लेकिन नजर बांयीं तरफ कृषि भवन की तरफ उठी तो वहा भी तिरंगा दिखायी नहीं दिया। लेकिन तब तक गाड़ी उस झंडे के पास पहुंच गयी। लेकिन यह क्या दो युवक बकायदा सडक पर साष्टांग करते हुये आगे बढ़ते जा रहे है और उनके बायी तरफ एक लड़का बकायदा चार फीट का झंडा लहराते हुये चल रहा था और दायीं तरफ एक झोले में से पर्चे निकाल कर बांटती एक लड़की चल रही थी। कहां से आ रहे है...कहां जा रहे है....और यह सब क्यों ....<br /><br />नाजिम के एक साथ इतने सवाल दागे तो लडकी ने झट से झोले में से एक पर्चा निकाल कर बढ़ा दिया। पर्चा पढ़ा तो उसमें सरकार से सिर्फ एक ही मांग थी कि जब यूनिक आईडी कार्ड समूचे देशवासियों के लिये बनाया जा रहा है और यह पहचान पत्र सभी के लिये होगा तो फिर उसका नाम य़ूनिक आईडेंटिट कार्ड की जगह इंडियन कार्ड कहा जाना चाहिये। राजस्थान के हनुमानगढ के वीर सिंह भारतीय के नाम से छपे इस पर्चे में मोबाइल नंबर 9829960909 लिखा था । लेकिन पूछने पर पता चला कि इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक यह दोनों लडके इसी तरह साष्टांग करते हुये जायेंगे। लेकिन यह पर्चा सौपेगे किसे...यह इन दोनो को पता नहीं था । अगर संभव हुआ तो राष्ट्रपति भवन में दे देंगे। हमने सामने नजर आ रहे राष्ट्पति भवन को निहारा...जिसके दांये बांये साउथ और नार्ड ब्लाक पर भी तिरंगा लहराते हुये नजर आ रहा था। बंधु...यहां तो संडे वाला भाव नहीं है...मैंने यह कह कर दीपक को छेड़ा....तो दीपक बोला यह जगह तस्वीर खिंचने वालो के लिये है....तो तिरंगा.....ना ना राष्ट्रपति भवन जाने का रास्ता है और आज की शाम में यहां कर आजादी को महसूस करने वालो की तादाद कम जरुर हुई होगी लेकिन खत्म नहीं हुई है इसीलिये तो गाड़ियों का रेला देखिये किस तेजी से जा रहा है। लेकिन अचानक गाड़ी के सामने सीटी बजाकर गाड़ी को रोकते पुलिस कर्मियों को देख नाजिम भड़का....अरे भाई आजादी के दिन तो बंदिश ना लगाये। ना ना आगे नहीं जा सकते ....क्यों....पीएम आने वाले हैं....हटिये सामने से .....गाड़ी घुमाइये ......वापस लौटिये.....अरे गुरु राष्ट्पति भवन में हाई-टी होगा, उसी में यह गाड़ियो का रेला जा रहा होगा....दीपक बोला । पास या स्टीकर लाइये....तो ही जा पायेंगे.....यह है वीवीआईपी हाई-टी। लौटो यार बंगाली मार्केट की चाय भी इस चक्कर में बर्बाद हुई। तो या वह दोनों लड़के जो साष्टांग करते हुये आ रहे है उनका क्या होगा । बस विजय चौक तक। उसके आगे उनका पर्चा पतंग में बदल जाये तो भी उड़ कर नहीं जा सकता। तो वह पर्चा सोपेंगे किसे। किसी को नहीं। चौक पर खडे सिपाही को थमायेंगे। वापस लौट जायेंगे। नाजिम ने गाड़ी वापस मोडी ।<br /><br />जैसे ही गाड़ी इंडिया गेट के पास पहुंची....मैंने कहा बंधु...कुछ यहां की आबो-हवा भी महसूस कीजिए ....गाड़ी से उतरा जाये...गाड़ी किनारे लगाये नाजिम साहब। बायीं तरफ खड़ी दो गाड़ियों के बीच जगह देखकर जैसे ही नाजिम ने गाड़ी लगायी अचनक कहीं से एक ट्रफिक पुलिस वाला आ टपका। यहां गाड़ी खड़ी मत करे। कुछ मजे और कुछ आक्रोश में नाजिम ने उसी पुलिस वाले से कहा...यार आज तो आजादी से रहने दो । आज तो ना रोका । अब आजादी पर भी रोक लगा दोगे । अरे नहीं आप वहा दूर दायी तरफ गाड़ी लगा लें । उसने दूर खड़ी बसों की तरफ इशारा करके कहा । अरे वहां कहां जायेंगे । कुछ देर खड़े रहने दीजिये । नहीं काम सिस्टम से होना चाहिये। सिस्टम बनाता कौन है। जनता बनाती है। जनता कहां है इस देश में। उसे तो आपके एक इशारे पर डरना पड़ता है। आप डराते बहुत है । आज आजादी के दिन तो ना डराइये। ना ना हम डरा नही रहे है। तो फिर छोडिये प्रदीप जी.....अचानक दीपक भी गाड़ी से निकल कर बोले । प्रदीप कुमार, एच ओ । छाती पर यही नाम टंगा हुआ था और अपना नाम सुन कर पुलिस वाले को झटके में कुछ अपना सा लगा और फिर नरम होकर बोला... नहीं देखिये हमें तो अपनी ड्यूटी करनी है। लेकिन जनता की कोई पूछ है नहीं कभी वर्दी उतारने के बाद आप सोचियेगा...मेरे यह कहते ही प्रदीप बोला ....ना ना हम भी समझते है । यह कहते हुये प्रदीप ने कास्टेबल वाली सफेद हेलमेट उतारी और बोलते हुये फूट पड़ा.....समझते तो हम भी है। लाल बहादुर शास्त्री को देखा तो नहीं है लेकिन उनके बारे में सुना जरुर है.....एक वह और अब अटल बिहारी वाजपेयी । बाकि तो कोई मतलब ही नहीं है....पीएम का मतलब है ...जो देश की स्थिति है उसे और उपर ले जाना .....और नीचे ना ले जाना ।<br /><br />तो मनमोहन सिंह का क्या किया जाये......अब जो भी कहिये और आगे जो भी बने....चाहे राहुल गांधी ही पीएम हो जाये....लेकिन पीएम देश को आगे बढाये....नाम फैलाये तभी तो मतलब है। तो आपको भी दुख होता है..देश की जो हालत है....नाजिम के इस सवाल पर उसकी आंखों ने जवाब दे दिया...जिसमें आंसू आ गये थे......चलिये नाजिम साहब....पुलिस कास्टेबल की आंखों में अटके आसूंओ को देखते ही हमें भी कुछ समझ ना आया सिवाय गाड़ी में बैठते ही प्रधानमंत्री के लालकिले पर सुबह भाषण का वह अंत एक साथ हम तीनों को याद आ गया । जिसमें अपनी ही बंधी मुठ्ठी को हवा में ना लहरा पाने के बावजूद लहराकर प्रधानमंत्री सामने तिरंगे की शक्ल में जमा बच्चो से कह रहे थे जय हिंद...जय हिंद...जय हिंद...।</div></div></div></div>Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com9