tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-49115992202611352462008-10-03T08:53:00.002+05:302008-10-04T11:44:24.266+05:30क्योंकि मैं अकेला था.....इस बहस के बीच बहुत कुछ याद आ रहा है। दिनकर भी याद आ गए। राष्ट्रकवि दिनकर को 1973 में जब ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था तो उन्होने उस मौके पर काफी कुछ कहा था । दिनकर ने कहा, "मै गांधी और मार्क्स के बीच झुलता रहा। मै रविन्द्रनाथ ठाकुर और इकबाल के बीच झूलता रहा। लेकिन इसी दौर में जब मैंने इलियट को पढ़ा तो मुझे लगा यह किस तरह की कविता है। परिस्थितियों का भेद किस हद तक होता है। इलियट उस दुनिया के कवि है, जो समृद्धि की अधिकता से बेजार है, जिस दुनिया ने आत्मा को सुलाकर शरीर को जगा दिया है." <br /><br />लेकिन अब के हालात देखें तो दोनों दुनिया भारत में है। समृद्धि की अधिकता से लेकर पीठ और पेट के एक होने का सच भी आंखो के सामने मुंह बाएं मौजूद है। इन दो दुनिया या कहे समाज के बीच गांधी या इकबाल किस बिंब में तब्दील हो चुके है, यह कहने या समझाने की जरुरत नहीं है। दिनकर जी का यह भी मानना था कि उन्हे सफेद और लाल रंग ही भारत में नजर आता है। वह भरोसा भी जताते है कि इन दोनो रंगो के मिलने से जो रंग बनेगा वहीं भारत के भविष्य का रंग होगा। लेकिन अब के हालात में देश के बहुसंख्य तबके की दुनिया के सामने गाढ़ी धुंध है, जिसका कोई रंग नहीं है। लेकिन दूसरी दुनिया अभी भी लाल-हरे-भगवा में ही भारत को देखने में बेचैन है। ऐसे मौके पर जर्मनी के पस्टोर मार्टीन निमोलर की एक कविता याद आती है, जो उन्होने-"फर्स्ट दे कम " के नाम से लिखी है। <br /> <br />जब नाज़ी कम्यूनिस्टों के पीछे आए,<br />मैं खामोश रहा<br />क्योकि, मैं कम्यूनिस्ट नहीं था<br />जब उन्होंने सोशल डेमोक्रेट्स को जेल में बंद किया<br />मैं खामोश रहा<br />क्योकि, मैं सोशल डेमोक्रेट नहीं था<br />जब वो यूनियन के मजदूरों के पीछे आए<br />मैं बिलकुल नहीं बोला<br />क्योकि, मैं मजदूर यूनियन का सदस्य नहीं था<br />जब वो यहूदियों के लिए आए<br />मैं खामोश रहा<br />क्योकि, मैं यहूदी नहीं था<br />लेकिन,जब वो मेरे पीछे आए<br />तब, बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था<br />क्योंकि मै अकेला था।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com25