tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-65891894004773408872011-04-27T23:46:00.001+05:302011-04-27T23:46:50.074+05:30यह वह सुबह नहीं, जिसका इंतजार हैजिस कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने का रिकार्ड भारत ने बनाया, उसी कॉमनवेल्थ गेम्स को भविष्य में इसलिये याद नहीं किया जायेगा कि भारत ने पदक तालिका में सैकड़ा पार किया य़ा फिर पहली बार स्वीमिंग और जिमनास्टिक में भी पदक जीता। बल्कि इतिहास में 2010 का कॉमनवेल्थ गेम्स भ्रष्टाचार के लिये जाना जायेगा। ऐसा भ्रष्टचार, जिसमें नैतिक जिम्मेदारी की सारी हदें पार की गयीं। आयोजन समिति ने कैसे तीन करोड़ के माल को 107 करोड़ का बना दिया। कैसे अधिकारियों के बीवी-बच्चों को भी नौकरी दे दी। कैसे मॉडल और बालीवुड के कलाकारों में खेल के नाम पर देश का पैसा बांटा। कैसे दिल्ली सरकार से लेकर केन्द्र सरकार के मंत्री, नौकरशाह भ्रष्टाचार का गढ्ढा खोदते हुये दसियों फलाईओवर से लेकर कौडियों के ठेके पर करोड़ों की मुहर मारते हुये गमलो में लगे फूलो की कीमत सवा तीन करोड तक बताकर दिल्ली को चकाचौंध में ढाल कर कामनवेल्थ गेम्स को हर हाल में कराने पर भिड़े रहे। कैसे खेल कराने या ना करा पाने की ब्लैकमेलिंग में 634 करोड का खेल सरकारी फाइल में साढे 37 हजार करोड़ का हो गया। और कैसे समूचा देश हर पदक पर यह जानते समझते हुये तालिया पीटता रहा कि कॉमनवेल्थ गेम्स एक ऐसी लूट है, जिसमें गुब्बारे से लेकर जीत तय करने वाली स्वीस टाईमिग मशीन तक में घपला हुआ है। और कैसे सबकुछ डकारने के बाद जब राजनीति ने ठडी सांस ली तो सीबीआई ने इस खेल के सर्वेसर्वा सुरेश कलमाडी को गिरफ्तार कर लिया। यानी भ्रष्टाचार का एक ऐसा मवाद जिसे पहले पाला-पोसा गया और फिर उसे हटाने में एक ऐसा ऑपरेशन शरु हुआ, जिससे लगे कि डाक्टर हुनरमंद है। <br /><br />असल में जिस 534 पेजी शंगुलु कमेटी की रिपोर्ट को सीबीआई ने आधार बनाया है अगर उसके हर पन्ने को पलटे तो 18 बरस पुरानी सात सौ पेज की वोहरा कमेटी रिपोर्ट भी आंखों के सामने तैरने लग सकती है। और वहीं से यह सवाल खड़ा हो सकता है कि बीते 18 बरस में जब वोहरा कमेटी की रिपोर्ट को किसी सत्ताधारी ने कार्रवाई के काबिल नहीं समझा तो फिर अब भ्रष्टाचार को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यों। और अगर शुंगलु कमेटी की रिपोर्ट इतनी ही प्रभावी है तो फिर इस घेरे में दिल्ली की मुख्यमंत्री और तबके शहरी विकास मंत्री कब आयेंगे। क्योंकि शंगुलु कमेटी की रिपोर्ट का पांचवा चैप्टर सीधे सीधे शीला दीक्षित को कटघरे में खड़ा करता है। और नौंवा अध्याय शहरी विकास मंत्रालयों के अधीन हुये कामकाज पर अंगुली उठाता है। घेरे में दिल्ली के उपराज्यपाल तेजीन्दर खन्ना समेत 18 नौकरशाह भी आते हैं। यानी एक पूरा कॉकस कैसे भ्रष्टाचार के किसी खेल को अंजाम देता है और एक-दूसरे को बचाने की प्रक्रिया में कैसे हर संस्थान को भ्रष्ट बनाया जाता है, इसका अनूठा सच है शुंगलू रिपोर्ट। <br /><br />लेकिन यहीं से बड़ा सवाल खड़ा होता है कि इस दौर में ऐसा क्या है, जिसमें भ्रष्टाचार की कालिख वहीं पुती हुई दिखायी पड़ने लगी है जो आर्थिक सुधार के दौर में आदर्श रहे हैं। अब कलमाडी का रास्ता भी तिहाड़ जेल ही जा रहा है, जहा पर पहले से पूर्व कैबिनट मंत्री ए राजा के साथ कॉरपोरेट घरानो के ऐसे नगीने हैं, जिनपर भारत की आधुनिक युवा पीढी ही गर्व नहीं करती बल्कि वर्ल्ड इकनामिक फोरम से लेकर फोर्ब्स पत्रिका को भी गर्व रहा है। <br /><br />यूनिटेक के संजय चन्द्रा डीबी रियल्टी के शाहिद बलवा की कारपोरेट छलांग तो आईआईएम में बतौर कोर्स भी रहा और अनिल अंबानी की कंपनी के तौर तरीके को लेकर आईआईटी-आईआईएम के कैंपस इंटरव्यू का हिस्सा भी रहा है। फिर जिस अर्थव्यवस्था के आसरे इस वक्त भी नागरिकों से ज्यादा उपभोक्ताओ को अधिकार और सुविधा मुहैया हो रही है, उसका संविधान भी उसी कारपोरेट भीड़ से निकला है जिसके दामन पर दाग पहली बार दिखायी दे रहा है। तो क्या गडबड़ी देश की आर्थिक नीति में है। या फिर सत्ता के तौर तरीको ने ही भ्रष्टाचार की जमीन पर चकाचौंध भारत का सपना पैदा कर दिया है,जिसकी आगोश में देश का युवा सपना संजोये हैं या फिर कारपोरेट की उडान अर्थव्यवस्था की देसी सीमा तोड़ते हुये अब विश्वबाजार में भी भारत की खरीद-फरोख्त करने लगी है। क्योंकि इसी दौर में देश के टाटा-रिलांयस समेत आधे दर्जन कॉरपोरेट घरानो की तीन दर्जन कंपनियां ने दुनिया की कई ऐसी कंपनियों को खरीद लिया जिनके सामने महज 10 बरस पहली इनकी हैसियत सिर्फ दो से दस फिसदी इक्विटी खरीदने भर की थी। इसी दौर में सत्ता से करीब कारपोरेट घरानों का टर्न-ओवर भी तीन सौ फीसदी तक बढ़ा । इसी दौर में देश में उच्च शिक्षा और पांच सितारा स्वास्थ्य सेवा के लिये ऐसी हरी झडी दी गयी कि दोनो क्षेत्र सबसे कमाऊ इंडस्ट्री के तौर पर पहचाने जाने लगे। जब देश में एक लाख 76 हजार करोड़ का सबसे बडा टेलिकॉम घोटाला सामने आया उसी दौर में स्वास्थ्य सेवा में इन्फ्रास्ट्रचर के बाद सबसे ज्याद पूंजी लगी और मुनाफा भी देने लगी। बीते मार्च में रीयल इस्टेट और टेलिकाम को भी हेल्थ सर्विस में लगने वाली पूंजी ने पछाड़ दिया। कमोवेश यही हालत शिक्षा को लेकर भी उभरी। प्रधानमंत्री की ही साइंस एडवाइजरी काउंसिल ने माना कि शिक्षा के क्षेत्र में जितना पैसा देश का बाहर जा रहा है उसे रोकने के लिये और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में इन्वेस्टमेट लाने के लिये दुनिया के सौ टॉप इस्टीटयूट में से 10 तो भारत के होने ही चाहिये। इसीलिये बीते दो बरस में कुल 51 केन्द्रीय यूनिव्रसिटी,आईआईटी, आईआईएम.,और एनआईटी को हरी झडी दी गयी। जबकि इसमें जितना पैसा लगेगा उसके एक चौथाई के बजट से देश के वह तीन करोड़ बच्चे स्कूल जा सकते हैं, जिन्होने स्कूल होता क्या है यह भी आज तक नहीं जाना। और देश के तेरह करोड बच्चे 5वी या 8वी के आगे पढ़ नहीं सकते। इनकी आंखों में कौन से सपने होगे यह कहना वाकई मुश्किल है लेकिन हर साल देश के उच्च संस्थानों से निकलने वाले 6 से 8 लाख युवा सपनों में कारपोरेट की चकाचौंध के जरीये ही विकसित भारत बनाया जा सकता है यह समझना जरुरी है । जबकि कारपोरेट पूंजी ने एक ऐसा समाज भी इसी दौर में दे दिया जिसमें एक प्राथमिक अस्पताल खोलने में आने वाला पौने दो लाख रुपये सरकार के पास नहीं है। लेकिन पांच सितारा अस्पताल में दो लाख का मरीज का बेड जरुर पड़ा है। कमोवेश देश के 80 करोड लोगो की न्यूनतम जरुरत भी कैसे मुनाफेतंत्र का हिस्सा बनकर कमाई कराने लगी और इसे ही विकास की छड़ी मान लिया गया। यह सोच ही एक तरफ 510 रुपये पाने वाले शहरी व्यक्ति को गरीब नही मानती और 310 रुपये पाने वाले गांववाले को गरीब नहीं कहती लेकिन 10 लाख करोड का कालाधन छुपाने वालो के नाम बताने से सुप्रीम कोर्ट के सामने इंकार भी कर देती है। इस आईने में जो तस्वीर देश की सामने है उसमें ए राजा के जेल जाने के बाद आज कलमाडी और कल करुणानिधि की बेटी कानीमोझी के जेल में जाने से खुश होना चाहिये या दुखी संयोग से यह अदा भी नहीं बच रही है। क्योंकि यह कैसे माना जा सकता है कि सीबीआई और आईबी के डायरेक्टरों से युक्त 1993 में गृह सचिव वोहरा की अगुवाई वाली टीम ने जब अपनी रिपोर्ट में उसी वक्त लिख दिया ता कि देश में एक ऐसा तंत्र बन रहा है जो हथियार, नारको से लेकर हवाला और मनी लाडरिंग के जरीये सरकार के अंदर और सरकार के बाहर के प्रभावी लोगो के साथ साथ मीडिया में अपना प्रसार-संबंध बना रहा है। और इस पर नकेल नहीं कसी गयी तो यह देश की नीतियो को भी प्रभावित करते हुये चुनावी लोकतंत्र में भी सेंघ लगा देगा। लेकिन वोहरा कमेटी की यह रिपोर्ट हर सरकार ने ठडे बस्ते में डाल दी और मुश्किल यह भी है कि इस दौर में हर राजनीतिक दल सत्ता में भी आया इसलिये सवाल यह नहीं है कि राजनेता, नौकरशाह और कारपोरेट घंघेबाज पहली बार जेल जा रहे हैं। सवाल यह है कि भ्रष्टाचार की इस सफाई में हर पहल के साथ आज भी राजनीतिक सत्ता की सहूलियत जुड़ी हुई है, जो अब किसी रिपोर्ट से नहीं जनभागेदारी से ही टूट सकती है । इसलिये इंतजार कलमाडी के जेल जाने का नहीं बल्कि 29 अप्रैल को अन्ना हजारे की बनारस की सभा का करना होगा जिसमें जनभागेदारी बढ़ी तो रास्ता उसी राजनीतिक विकल्प की दिशा में जायेगा जिसपर राजनीतिक सत्ता हमेशा लोकतंत्र का नारा लगाकर सेंध लगा देती है।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com8