tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-52839177492383418572010-07-12T13:24:00.001+05:302010-07-12T13:26:14.905+05:30जहां हर आक्रोश एफआईआर है या राजनीतिक बयान“अपने साथी की मौत पर भी हमें गुस्सा नहीं आना चाहिये। हम तो अपने गुस्से को शांतिपूर्ण प्रदर्शन के साथ बताना चाहते हैं लेकिन आप इसकी इजाजत भी नहीं देते। हम हाथों को हवा में लहरा कर बैनर पोस्टर से ही अपनी बात कहकर घर लौटना चाहते हैं। लेकिन आप इसकी इजाजत भी नहीं देते। आप तो हमें कोई नारा लगाने भी नहीं देते। तो हम क्या करें। यहा बंदूक तो कोई भी उठा सकता है, हमने तो पत्थर उठाये हैं, लेकिन आप हमारे पत्थरों को भी पालिटिकल स्टेटमेंट मान लेते हो। बंदूक उठायेंगे तो आतंकवादी करार दिये जायेंगे और पत्थर उठायेंगे तो अलगाववादी। आप हमें जीवित नागरिक क्यों नहीं मानते। आप हमें मशीनी कश्मीरी क्यों बनाकर रखना चाहते हो, जो हमेशा मुस्कुराता रहे। आखिर आपकी सोच के अनुसार हर कश्मीरी इस बात पर फख्र क्यों करता रहे कि वह हसीन वादियों में पला बढ़ा है। कश्मीर को लेकर आपकी तस्वीरों में भी कभी हम तो होते नहीं। खूबसूरत वादियो में सिमटा कश्मीर ही आपने अभी भी आंखो में बसा रखा है तो इसमें हमारी क्या गलती है। हम सिर्फ इन वादियों में अपनी जगह चाहते हैं। आप इसके लिये भी तैयार नहीं है।”<br /><br />सोपोर के थाने में दर्ज यह एक कश्मीरी की शिकायत की एफआईआर कॉपी है। जिसे सोपोर के इंजमाम ने केन्द्र सरकार के खिलाफ दर्ज कराया है। पालिटिकल साइंस में ऑनर्स की पढ़ाई कर रहे इंजमाम ने सरकार पर आरोप लगाया है कि 27 जून को अपने मित्र बिलाल की मौत से आहत होकर वह सिर्फ शांति प्रदर्शन करना चाहता था । क्योंकि अर्धसैनिक बलों की गोली उसके मित्र को सड़क पर लगी। और अपने घर में वह बताकर उस प्रदर्शन में शरीक होने पहुंचा जो उसके मित्र के परिवार वाले सोपोर की गलियो में निकाल रहे थे। लेकिन पुलिस और सेना ने उनके नंगे हाथों को भी हवा में लहराने की इजाजत नहीं दी। और एकमात्र बैनर को लोगो की आंखों के सामने बूटों तले कुचल दिया, जिस पर सिर्फ इतना लिखा था, वी वांट जस्टिस। लेकिन 48 घंटे तक जब सेना की गश्त ने उनका घर से निकलना बंद कर दिया तो सोपोर बाजार के थाने में जाकर रपट लिखाने के अलावे और कोई रास्ता नही बचा। थाने ने भी इंजमाम के इस दर्द को दस्तावेजो में समेट लिया । और एफआईआर की शक्ल में एक कॉपी पर सरकारी ठप्पा लगाकर इंजमाम को सौंप भी दिया ।<br /><br />लेकिन इंजमाम की यह मासूमियत कश्मिरियों के दर्द की सिर्फ एक बानगी भर है। बारह साल पहले सोपोर के थाने में हुर्रियत नेता अब्दुल गनी बट ने पुलिस वालों से यह सवाल किया था कि क्या वह आसमान में पंछी को उड़ते देखकर दोनो हाथों को हवा में उठाकर जोर से चिल्ला कर कह सकते हैं कि काश मैं भी इस तरह आजाद होता। तो पुलिसवाले का जबाब था घाटी में आप आजादी शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। यह सरकार के खिलाफ माना जायेगा। तब अब्दुल गनी बट ने थाने में रपट लिखायी कि उनकी शिक्षा बेजा जा रही है और कश्मीर वह छोड़ नहीं सकते। तो सरकार बताये कि वह अगर आजाद पंछी से खुद की तुलना करते हुये कोई कविता लिखे तो उसे पालिटिकल स्टेटमेंट क्यों माना जाता है। और बारह साल पहले भी सोपोर थाने में सरकार के खिलाफ इस शिकायत पर सरकारी ठप्पा लगाते हुये एक कापी अब्दुल गनी बट को सौप दी गयी।<br /><br />कविता से पत्थर तक को राजनीतिक बयान मानने के सरकारी मिजाज में कश्मीरी किस तरह फंसा हुआ है इसका अंदाजा कश्मीरी पुलिस और सेना के बीच की दूरी से भी समझा जा सकता है और थानों में दर्ज कश्मिरियों की शिकायत से भी पता चल सकता है। घाटी के थानो में औसतन हर दिन पांच सौ से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं। और इसमें 70 से 80 फीसदी मामले सेना और सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ होते हैं। और हर शिकायत पर मरहम और कोई नहीं कश्मीरी पुलिस ही लगाती है। यह एक अजीबोगरीब त्रासदी है कि स्थानीय पुलिस या कहें राज्य पुलिस कश्मीरियों के मर्म को समझती है और अर्ध सैनिक बलो के खिलाफ हर कश्मीरी के दर्द को थाने में ही सही एक कोना जरुर देती है, जिससे जीने की समूची आस नहीं टूटे।<br /><br />6 जुलाई को जब मारे गये लड़को के शवों को प्रदर्शन के शक्ल में कश्मीरी ले जा रहे थे तो भी सेना से झड़प हुई और शवों को सडक पर छोड कर उनके परिजनो को इस डर से भागना पडा कि कहीं वह भी शव में तब्दील न हो जायें। लेकिन उसी भीड में जे एंड के पुलिस ने भागते कश्मीरियों को रास्ता दिया। लाठी और बंदूक के कुंदे की मार से घायल कश्मिरियों को उठाया। उन्हें शांत रहने की सलाह दी । कश्मीरियो के दर्द के साथ खड़ी स्थानीय पुलिस में सिर्फ इंस्पेक्टर स्तर पर ही ऐसी पहल नही है बल्कि कश्मीरियों के दर्द के दक्षिणी श्रीनगर के एसपी समेत कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियो ने समझा और उनके दर्द पर मलहम लगाने का प्रयास यह कहकर किया कि पुलिस आपके साथ हैं। लेकिन साथ खडे अर्द्दसेनिक बल भी इसे बर्दाश्त नही कर पाये और एसपी स्तर के अधिकारी से सड़क पर ही भिड़ गये। घाटी में तैनात साठ हजार से ज्यादा अर्धसैनिक बल में सत्तर फीसदी जवान दक्षिण भारत के हैं। यानी भाषा और संसकृति के लिहाज से भी कोई मेल कश्मीर के साथ इनका होता नहीं है। समूचे घाटी में रिहायशी इलाकों के बीच अर्धसैनिक बलो के तीन सौ से ज्यादा कैंप टैंट में कंटीली तारो से घेरकर बने हुये हैं जिसमें करीब बारह हजार जवान रहते हैं। वहीं पुरानी इमारतो या स्कूल में करीब सवा सौ से ज्यादा कैंप सीआरपीएफ के हैं। जिसमें छह से सात हजार जवान रहते हैं। यानी कश्मीरियो की दिनचर्या के बीच करीब बीस हजार जवानों की मौजदूगी हमेशा रहती है। लेकिन इस मौजूदगी का मतलब सिवाय कैंप के भीतर का जीवन और हर दिन नौ से बारह घंटे तक सडक पर पैदल पैट्रोलिंग से आगे कुछ भी नही है। लेकिन कश्मीरियों के लिये हर मोड और हर कैप से सामने से सहमते हुये निकलना जीवन का हिस्सा है। जवानों के हर कैंप के सामने बालू की बोरिया और टीन की छत के बीच ड्रम के बीच से झाकती बंदूक की नली कश्मीरियों को देखती रहती हैं। यानी एक आम कश्मीरी और जवानों के बीच संवाद का एकमात्र माध्यम जवानों की गरजती आवाज के बीच सहम कर ठहरे कश्मीरी के कपड़ों की जांच या फिर उसका पहचान पत्र देखना है।<br /><br />वहीं समूचे घाटी में तकरीबन पांच सौ थाने, चौकी और पुलिस मदद केन्द्र हैं। कमोवेश घाटी के हर अस्पताल में एक पुलिस चौकी है, जिससे कोई कश्मीरी गोली खाकर इलाज के लिये पहुंचे तो उसे पुलिस कार्रवाई का इंतजार न करना पडे । यानी गोली से तो जम्मू-कश्मीर पुलिस किसी को नहीं रोक सकती लेकिन इलाज में कोई रुकावट न आये इसके लिये पुलिस का सहयोग है। फिर घाटी के रिहाइशी इलाको में थानो और चौकी पर तैनात पुलिसकर्मियों का घर भी कश्मीर के उन्हीं रिहायय़ी इलाकों में है, जिसमें कोई आम कश्मीरी रहता है। मसलन घाटी में बीस साल पहले जब आतंक की हवा ने मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया के अपहरण से जोर पकड़ा, उस वक्त सोपोर के बाजार थाने का इंस्पेक्टर हुर्रियत नेता के घर किरायेदार था। और अलगाववादियों के आंदोलन ने जबतक राजनीतिक उड़ान नहीं भरी, तब तक हुर्रियत के तमाम नेताओं की आवाजाही कश्मीरियों के बीच ठीक वैसी ही थी, जैसी किसी आम शख्स की होती है। मसलन बेकरी के धंधे में एक साथ कामगार का काम अलगाववादियों से जुडे सैकड़ों कार्यकर्ता भी नजर आते थे ।<br /><br />लेकिन आंदोलन या संघर्ष को जो राजनीतिक जगह दिल्ली और इस्लामाबाद से मिली, उसमें झटके में अलगाववादी कश्मीरियों से कटते गये। क्योंकि जिन्दगी जीने के लिये रोजगार बदल गये। अचानक राजनीति ही रोजगार का रुप ले बैठी। कह सकते हैं रिहाइशी उलाको में आम कश्मीरियो के बीच रहते हुये भी अलगाववादियों का जीवन अलग हो गया। लेकिन इस दौर में पुलिस की जरुरत जब सबसे ज्यादा सरकार को प्रशासन चलाने में पड़ी तो जम्मू-कश्मीर पुलिस आम लोगो से जुडती चली गयी। लेकिन पुलिस के सामने इसी दौर में अगर बाहर से पहुंची सेना के पीछे चलने और रास्ता दिखाने की जिम्मेदारी आयी तो दूसरी तरफ राज्य सरकार का नजरिया भी सेना को कश्मीरियों का दोस्त बनाने और कश्मीरियों की हिंसा को थामने में ही लगा। यानी कश्मीर पुलिस झटके में राज्य सरकार की पहली जरुरत नही बनी। टूटते संवादो के बीच संस्थानो का महत्व भी सत्ता पाने और उसकी ताकत के आसरे ही चल पड़ा ।<br /><br />उमर अब्दुल्ला चाहे विरासत का बोझ उठाये संसद में कश्मीरियो के दर्द का इजहार कर कश्मीरियों के दिल में जगह बनाने में सफल हुये। लेकिन सत्ता के तौर तरीकों में उन्हे सत्ता की मुखालफत कैसे करनी होगी, यह तमीज भी संसदीय राजनीति ने उन्हें सिखा दी। यानी सीआरपीएफ हो या अलगाववादी, राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार , सरकारी महकमो की नीतियां हो या केन्द्र की राहत नीति सबकुछ कश्मीरियों के सामने किसी सत्ता की ठसक की तरह ही आ रही हैं। जिसमें कश्मीरियों के सामने पहली बार कश्मिरी पंडितों सरीखा संकट आया है, जब सारे संस्थान उसके लिये होकर भी उसके नहीं बच रहे क्योकि सत्ता की जरुरत और उसकी भावनाओं के बीच कोई संवाद का जरीया नही बच रहा है। जिसमें पहली बार कश्मिरियों को यह भी समझ में आ रहा है कि टूटते संवादों के बीच वह निरा अकेला होता जा रहा है। क्योकि रोजी रोटी के जुगाड से लेकर शवों को दफनाने तक के बीच उसकी भावनाओ के लिये कोई जगह बच नही है। इसलिये सवाल सिर्फ पत्थर उठाने का नहीं है बल्कि 11 जून को राजौरी कडाल क्षेत्र मारे गये 19 साल के तुफैल से लेकर 6 जुलायी मैहसूना में मारे गये 18 साल अबरार खान के बीच बाकी नौ लडकों की मौत से आहत कुल ग्यारह गांव अलग-थलग हैं। और सभी अलग थलग है। और इस बीच इन ग्यारह जगहो पर तैनात जवान एक गांव से दूसरे गांव पहुंचे है, लेकिन सरकार कहीं नहीं पहुंच पायी। उमर अब्दुल्ला श्रीनगर में ही कैद रहे। ऐसे में सेना और कश्मीरी के बीच सिर्फ जम्मू-कश्मीर पुलिस खड़ी है। और कश्मीरियों के आक्रोश की एफआईआर दर्ज करने के लिये अब भी तैयार है, जिसमें कोई भी थाने में जाकर लिखवा सकता है कि उसे खुली हवा में सांस लेने की इजाजत तो मिलनी चाहिये। या फिर यह भी पालिटिकल स्टेटमेंट है। यकीन जानिये पुलिस इसे भी दर्ज करेगी और यही राहत घाटी में बची है, जो सभी को जिलाये हुये है।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-23526201042685440192010-02-17T08:05:00.003+05:302010-02-17T08:05:55.565+05:30क्या फिर भी पाकिस्तान से बात की जाये<p class="MsoNormal">"<span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family: Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI">कश्मीर की आजादी ही हमारा संघर्ष है। भारत की फौज ने कश्मीरियों को बंदूक और बूटों तले रौंद रखा है। वहां लोग गुलाम हैं। हम अपना संघर्ष कश्मीर की आजादी के लिये जारी रखेंगे।" यह ऐलान जेहादी काउंसिल का है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की राजधानी मुज्फ्फराबाद में </span>4-5<span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family: Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI"> फरवरी को जेहादी काउंसिल की इस बैठक में हिजबुल मुजाहिदीन के चैयरमैन सैयद सलाउद्दीन ने अध्यक्षता की। और लश्कर-ए-तोएबा के मुखिया मोहम्मद हाफिज सईद ने मुख्य भाषण दिया</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HI">जिसमें कश्मीर को लेकर स्वतंत्रता संग्राम जारी रखने का ऐलान किया गया। </span></p><p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HI"><br />ऐसा नहीं है कि भारत की तरफ से इस पर आपत्ति नहीं की गयी और पाकिस्तान ने इस पर खामोशी बरती। भारत ने </span>26/11<span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family: Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI"> यानी मुंबई हमले के मुख्य आरोपी लश्कर के मुखिया हाफिज सईद के इस तरह खुली तकरीर पर आपत्ति भी की। लेकिन पाकिस्तान की तरफ से जो जबाब आया, वह कहीं ज्यादा चौंकाने वाला है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने साफ कहा कि</span>, " <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HI">कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की नीति में कोई अंतर नहीं आया है। भारत के साथ बातचीत से कश्मीर के लोगों को राहत मिलेगी क्योंकि हम उनके हक की बात कहते हैं।" बातचीत को लेकर पाकिस्तान का रुख इस बात से भी समझा जा सकता है कि वह मुंबई हमलों के बाद पहली बार खुले तौर पर इस बात को भी कहने से नहीं कतरा रहा है कि बातचीत की गाड़ी उसने नहीं भारत ने रोकी थी और अब भारत ही बातचीत के लिये जोर डाल रहा है।<br /><br />सवाल है भारत के सामने कौन सी मुश्किल है</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language: HI">जिसके तहत वह पाकिस्तान से इस शर्त पर बात कर रहा है कि चर्चा सिर्फ आतंकवाद पर होगी। दूसरे किसी द्वपक्षीय समझौतो को लेकर बातचीत नहीं होगी। क्या इसके पिछे सिर्फ आतंकवादी हमलों को लेकर पाकिस्तान की साफगोई है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HI">जिसके अंतर्गत वह कहता है कि आतंकवाद <span style="mso-spacerun:yes"> </span>तो उसके काबू में ही नहीं है फिर वह कैसे गांरटी ले लें कि भारत पर कोई दूसरा हमला नहीं होगा। या फिर अमेरिका की रुचि है कि कश्मीर को लेकर भारत पाकिस्तान अगर साथ बैठे तो दोनो देश अफगानिस्तान को लेकर अमेरिकी नीति को अंजाम देने में सहायक होंगे ।<br /><br />यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण है क्योकि जैसे ही भारत विदेश सचिवो की वार्ता पर जोर डालता है वैसे ही न्यूयार्क में अफगानिस्तान-पाकिस्तान मामलों को देखने वाले होलब्रुक यह कहने से नही कतराते हैं कि अफगानिस्तान की सीमा से सटे देश चाहे वह पाकिस्तान हो या चीन और इन दोनो देशों से सटे देश चाहे वह भारत ही क्यों ना हो</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HI">उन्हें समझना होगा कि अफगानिस्तान की चिंगारी इन्हें अपने घेरे में ले सकती है। इसलिये भारत-पाकिस्तान अगर अपने उलझे मुद्दों पर बातचीत करते हैं तो तनाव की जगह इस पूरे क्षेत्र में स्थायित्व आयेगा। जो अफगानिस्तान के समाधान के लिये जरुरी है। होलब्रुक का यह कथन अचानक नहीं आया। लेकिन पहली बार बातचीत की मेज पर लाने के लिये अमेरिका ने अंग्रेजी का पसंदीदा अक्षर "के" का जिक्र नही किया। "के" यानी कश्मीर जिसका जिक्र अमेरिका अगर अंतरराष्टीय मंच पर बीते एक दशक में सात बार प्रयोग कर चुका है तो पाकिस्तान ने अठारह बार किया है। सबसे ज्यादा जनरल मुशर्रफ ने कश्मीर को लेकर कूटनीति भी की और जेहादी काउंसिल को हवा भी दी।<br /><br />लेकिन कश्मीर का सीधे नाम लेने से बचते हुये पहली बार अमेरिका और पाकिस्तान दोनों कश्मीर के जरीये आतंकवाद पर बातचीत करने का रास्ता निकाल चुके हैं। पाकिस्तान को इस बात का एहसास है कि भारत में मुंबई हमले को लेकर तल्खी बरकरार है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HI">लेकिन पाकिस्तान इस हकीकत को भी समझ रहा है कि न्यूक्लियर डील से लेकर आर्थिक सुधार की मनमोहन पालिटिक्स जिस तरह ओबामा के बिना अधूरी है. उसका दूसरा सच यह भी है कि ओबामा की अफगान नीति पाकिस्तान के सहयोग के बिना अधूरी है। इसीलिये तालिबान को लेकर भी अमेरिका पाकिस्तान की तर्ज पर अच्छे और बुरे तालिबान की बात करने लगा है। और पाकिस्तान की सीमा से सटे उस समूचे अफगानिस्तान पर खामोशी बरते हुये है जो आतंक के गढ़ है और पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन या सीधे कहे तो जेहादी काउंसिल से जुड़े हैं।<br /><br />खुद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान के बाजौर</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HI">मोहमंड</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HI">खैबर</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family: Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI">खुर्रम</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HI">पूर्वी और दक्षिणी वजीरिस्तान के हिस्से में सक्रिय तालिबान के छह से ज्यादा संगठनों के साथ पैसे और हथियार का जुडाव जेहादी काउंसिल के साथ है । जिसमें तहरीक-ए-तालिबान के साथ हरकत मुजाहिदीन के फजरुरहमान खलीली</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family: Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI">जैश-ए-मैहम्मद के मौलाना मसूद अजहर</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family: Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI">तहरीक इरपान के मौलाना अब्दुल्ला शाह मजहर</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family: Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI">सिपाहे सहाबा पाकिस्तान के मौलाना आजम तारिक </span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family: Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI">लश्कर-ए-जहानगबी के मौलाना हक नवाज और लश्कर के हाफिज सईद तो कई मौको पर साझा सभी भी कर चुके हैं। यानी एक तरफ तालिबान को लेकर अमेरिका पाकिस्तान को अलग भी मान रहा है और कश्मीर को लेकर भारत को पाकिस्तान से बातचीत करने के लिये उकसा भी रहा है। वहीं पाकिस्तान खुद समझ रहा है कि वह तालिबान से जिस तरह गुथा है, उसमें अमेरिकी हित साधने के लिये वह अपने स्वार्थ के घेरे में कश्मीर और आंतकवाद को अलग कर सौदा कर सकता है। तब सवाल है इसमें भारत है कहां। खासकर तब जब मुंबई हमलों के बाद पाकिस्तान का रुख भारत पर निशाना साधने वाला रहा। भारत के डोजियर मे बताये गये तथ्यों को खारिज करते हुये से पाकिस्तान ने श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर हमले से लेकर बलूचिस्तान में अस्थिरता फैलाने और कश्मीर को बातचीत के दायरे में लाने की खुली वकालत की। सवाल यह भी है कि बातचीत जिस दौर में होगी अगर उस वक्त बारत की खुफिया एजेंसी रॉ की पाकिस्तान को लेकर तैयार रिपोर्ट पर ही गौर करें तो सरकार खुद सवालों के घेरे में आती है। रॉ की रिपोर्ट के मुताबिक </span>, "<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language: HI">जेहाद पाकिस्तान की राज्य नीति का हिस्सा है । और आतंकवाद उसका आधुनिक चेहरा। जिसके जरिये भारत की सैन्य शक्ति के साथ चैक-एंड बैलेंस का खेल पाकिस्तान खेलता है। असल में पाकिस्तान की जमीन से दुनिया में इस्लाम के उस रसूख को लौटाने के नाम पर जेहाद का खेल आधुनिक तरीके से खेला जा रहा है, जिससे पाकिस्तान की सरकार को आर्थिक मदद मिले और आतंकवाद मदद के लिये सौदेबाजी का हथियार बन सके। इसलिये धर्म और विचार का घालमेल कर इस्लाम को कवच बनाकर जो खेल शुरु किया गया है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HI">उसके पांच चेहरे हैं। सैयद कुतुह</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HI">ओसामा बिन लादेन</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language: HI">अब्दुल्ला आजम</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family: Calibri;mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HI">इब्न तैयंमिंया और हाफिज सईद। "<br /><br />जाहिर है बातचीत से पहले भारत को समझना होगा कि हाफिज सईद </span>26-11<span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-font-family:Calibri;mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HI"> का गुनहगार भी है और पाकिस्तान में सबसे शक्तिशाली भी । फिर बातचीत क्यों । जहा तक पुणे घमाके को लेकर बातचीत ना करने के बीजेपी का उठाया सवाल है तो वह कोई मायने नहीं रखता। क्योंकि धमाके अगर आतंकवादी करते है तो वह वाकई नहीं चाहेगे कि बातचीत हो और अगर धमाकों के पीछे कुछ दूसरे तत्व है तो बातचीत रुकनी नहीं चाहिये। यूं भी संसद पर हमले के बाद खुद वाजपेयी सरकार ने मुशर्रफ से बात की थी। इसलिये सवाल बीजेपी का नहीं सरकार का है। अगर क्रिकेट और सिनेमा से उसका मन भर चुका हो तो वह आतंकवाद के मद्देनजर पाकिस्तान के इरादों और अमेरिका की मंशा को समझे ....फिर पूछेगे बातचीत क्यों। </span></p>Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com7