tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-77965219880118370052010-07-26T12:22:00.001+05:302010-07-26T12:23:11.473+05:30कई खानों की बंटी बीजेपी को साधेगी आरएसएस!पीएम के खाने के आमंत्रण पर बीजेपी का कोई नेता नहीं जायेगा, यह फैसला लालकृष्ण आडवाणी का था। और इसकी कोई जानकारी बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी को नही थी। फैसला 22 जुलाई को देर शाम में लिया गया। इंडियन एक्सप्रेस के गोयनका पुरस्कार समारोह में सवा सात बजे आडवाणी होटल ताज पैलेस पहुंचे और पांच मिनट में ही वहां से रवाना हो गये। सुषमा स्वराज और अरुण जेटली से गुफ्तगु के बाद शाम आठ बजे प्रणव मुखर्जी को इसकी जानकारी दे दी गयी थी। लेकिन दिल्ली के अपने निवास पर मौजूद नीतिन गडकरी को इसकी कोई जानकारी किसी ने नहीं दी। आडवाणी ने बीते हफ्ते बीजेपी शासित राज्यों के वित्त मंत्रियो के साथ बैठक की। इसकी कोई जानकारी नीतिन गडकरी को नहीं दी गयी। संसद में जातिगत जनगणना के पक्ष में बीजेपी जा रही है इसकी जानकारी नीतिन गडकरी को नहीं दी गयी। जबकि आरएसएस का इस पर खुला विरोध है और गडकरी भी इसके पक्ष में नहीं थे। नीतिन गडकरी ने संजय जोशी को बिहार में चुनाव से पहले सर्वे के लिये लगाया। संजय जोशी ने सवाल खड़ा किया इससे कोई लाभ होगा नहीं क्योकि चुनाव के दौरान अरुण जेटली की चलेगी जो उनके सर्वे से उलट भी होंगे। और आखिर में बात यही होगी कि बिहार में बीजेपी जीती तो वजह अरुण जेटली और हारे तो वजह नीतिन गडकरी। सोहराबुद्दीन फर्जी एनकांउटर पर दिल्ली पहुंच कर नरेन्द्र मोदी को क्या बोलना है, इसके लिये लकीर आडवाणी ने खींची। नीतिन गडकरी से पूछा तक नहीं गया। गडकरी को बिहार के मोदी समेत कई नेताओ ने समझाया कि सोहराबुद्दीन की चाल बिहार चुनाव में बीजेपी-जेडीयू के बीच कही सेंध लगा सकती है, इसलिये संभल कर बयान देना होगा। लेकिन नरेन्द्र मोदी को आडवाणी की लॉबी ने यही समझाया कि गुजरात का किला कभी ठहने ना पाये इसलिये सोहराबुद्दीन पर सीधी लकीर मुस्लिम आतंकवाद और गुजरात विकास के बीच खींचनी होगी। नरेन्द्र मोदी ने यही किया।<br /><br />इसका मतलब यह कि बीजेपी के भीतर कई खानों में कई थ्योरी एकसाथ चल रही हैं। लेकिन पहली बार बीजेपी अध्यक्ष गडकरी को लेकर लालकृष्ण आडवाणी की व्यूह रचना कुछ इस प्रकार है कि 2014 से पहले बीजेपी को जो नया अध्यक्ष मिले वह आरएसएस का नहीं आडवाणी का हो। और गडकरी का नाम उनका टर्न पूरा होने पर 2013 में कोई लेने वाला ना हो। तो क्या आडवाणी में सत्ता को लेकर राजनीतिक समझ अभी से फिर कुलांचे मार रही है । क्योंकि जो राजनीति गडकरी को खारिज कर रची जा रही है, उसमें पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अगर दिल्ली की चौकड़ी एक बार फिर नजर गढ़ाये हुये है तो आरएसएस को साधने के लिये मदनदास देवी भिड़े हैं। संघ और बीजेपी की दिल्ली चौकडी के बीच पुल का काम मदनदास देवी कर रहे हैं। और जो बात मदनदास देवी राजनीतिक अर्थशास्त्र के दायरे में संघ के मुखिया भागवत और सह मुखिया जोशी के सामने रख रहे हैं, उसका लब्बोलुआब यही है कि महंगाई से लेकर पाकिस्तान और सड़ते गेंहू से लेकर कश्मीर तक के मुद्दों को लेकर जितना आक्रोश आम लोगो में है, उसमें विकल्प का सवाल देश में खुद ब खुद खड़ा हो रहा है। बीजेपी को तैयारी उसकी करनी चाहिये और संघ को बीजेपी के लिये ताना-बाना बुनना चाहिये। चूंकि महंगाई, किसान और आदिवासियो के सवाल पर पर आरएसएस के स्वयंसेवको में लगातार चर्चा हो रही है और पहली बार स्वयंसेवकों को मोहन भागवत इस तर्ज पर बांधने की नसीहत भी दे रहे हैं कि संगठन को मजबूत और व्यापक बनाने के लिये मुद्दों का ही आसरा लेना जरुरी है। ऐसे में मदनदास देवी की बात भी संघ में फिट बैठ रही है। मगर मदनदास देवी तो आडवाणी के लिये ही रास्ता बना रहे हैं, इसलिये पीएम के भोजन आमंत्रण को ठुकराने को उन्होंने गलत भी नहीं माना।<br /><br />लेकिन पीएम के खाने के आमंत्रण को ठुकराने के बाद अब गडकरी ने संघ के मुखिया का सामने यह सवाल खड़ा किया है कि जिन मुद्दों पर संगठन को व्यापक करना है और बीजेपी को अपना कैडर बढ़ाना है, उसी मुद्दों पर अगर प्रधानमंत्री से संसद सत्र से पहले बात होती तो संसदीय राजनीति में बीजेपी का सकारात्मक रुप भी दिखायी देता। गडकरी ने संघ के मुखिया के सामने यह सवाल भी खड़ा किया है कि संसदीय राजनीति के ही इर्द-गिर्द अगर समूचे बीजेपी संगठन को लगाया जायेगा तो फिर संगठन और संसदीय सत्ता के बीच लकीर कैसे बनेगी। महत्वपूर्ण है कि आरएसएस में भी इस बात को लेकर बैचैनी है कि दिल्ली की राजनीति की धारा एक ही झोके में एक ही दिशा में जिस तरह बहती है, उससे ना तो बीजेपी का भला हो सकता है और ना ही संघ के प्रति अच्छी राय बन सकती है।<br /><br />आरएसएस के भीतर अब नये सवाल बीजेपी के भीतर बंटती राजनीति को लेकर उफान पर है । खासकर गडकरी को आरएसएस का प्यादा करार देकर तमाम राजनीतिक निर्णयो से गडकरी को दूर रखने की प्रक्रिया में पहली बार संघ के भीतर भी यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या गडकरी को कठोर निर्णय लेने होंगे। क्या गडकरी के जरीये आरएसएस उन मुद्दों को उठायेगी जो सत्ता की राजनीति में हाशिये पर ढकेल दिये गये हैं। असल में संघ के भीतर नरेन्द्र मोदी को लेकर भी कई सवाल हैं। नागपुर में संघ के आइडियोलॉग एमजी बैघ ने मोहन भागवत के सामने पार्टी और संगठन से बडे मानने वाले नेताओं को सबसे घातक माना है। खासकर आडवाणी की मनमानी और मोदी के एकला चलो को वह संघ और बीजेपी संगठन दोनो के लिये घातक मानते हैं। संघ के मुखिया के सामने एमजी वैघ का कद क्या मायने रखता है, यह इससे भी समझा जा सकता है कि वैघ के बेटे मनमोहन वैघ फिलहाल संघ की टीम में प्रचारकों की कमान थामे हुये हैं। और उन्होने बीजेपी की सत्ता केन्द्रित राजनीति की वजह से संघ के प्रति सामाजिक धारणा प्रदूषित होने की बात भी कही थी।<br /><br />एक महीने पहले कर्नाटक के दक्षिण जिलों में संपन्न संघ शिक्षा वर्ग में जब भष्ट्रचार का मामला चर्चा में उठा तो साढे आठ सौ प्रतिनिधियों के बीच राजनीतिक भ्रष्ट्राचार को लेकर रेड्डी बंधुओ का सवाल भी स्वयंसेवकों ने उठाया और उस चर्चा में भी यही बात उभरी की बीजेपी की समूची राजनीति अगर सत्ता बचाने या बनाने के लिये होती है तो उसमें स्वयंसेवकों की भूमिका किस तरह की होनी चाहिये। और महत्वपूर्ण है स्वयसेवको ने इस पर सहमति जतायी कि बीजेपी अध्यक्ष को इस्तीफा दे चुके लोकायुक्त को समझाने आने की कोई जरुरत नहीं थी। यह चर्चा अनौपचारिक थी जो शिक्षा सत्र के दौरान होती है। लेकिन संघ के यही शिक्षा वर्ग एक तरह से संघ की जमीन का विस्तार करते हैं। और देश भर में 39823 शाखाओं को इससे जोड़ा भी जाता है। असल में संघ की समझ में गडकरी फिट बैठे और अब कठोर निर्णय लें इसके लिये संयोग से नागपुर में संघ के साथ उसी दौर में गडकरी की बैठक शुरु होगी जब संसद के भीतर गुजरात मामले पर सीबीआई को लेकर हंगामा शुरु होगा।<br /><br />इस मुद्दे पर सोमवार को संसद चले या ना चले लेकिन सोमवार को नागपुर के संघ मुख्यालय में नीतिन गडकरी की संघ के नेताओ के साथ बैठक में गुजरात या अमित शाह या सीबीआई मुद्दा नहीं होगा। संघ चाहता है कि गौ-ग्राम पर बीजेपी शासित सरकारें ठोस पहल करें और कश्मीर, नक्सलवाद, मणिपुर, पाकिस्तान, मंहगाई और जातिगत जनगणना के विरोध में बीजेपी कैसे संघ से सुर मिलाये इस पर गडकरी ना सिर्फ ठोस पहल शुरु करें बल्कि पार्टी में ऐसा वातावरण भी बनायें, जिससे संसदीय राजनीति में ही सबकुछ ना सिमटे।<br /><br />जाहिर है इसके लिये नीतिन गडकरी को कड़े फैसले लेने होंगे और टकराव भी होगा। सवाल है क्या गडकरी में इतनी कुव्वत है कि वह आडवाणी से टकरा सकें या फिर संघ एक बार फिर बीजेपी की दिल्ली चौकड़ी से दो दो हाथ करने की तैयारी में है।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com5