tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-70483645452473038072009-08-07T13:10:00.000+05:302009-08-07T13:11:37.991+05:30राजपथ से संसद की तस्वीर उतारते चेहरों का सचचना-चबेना यहां नही बेचेंगे तो कहां बेचेंगे । क्यों, पूरी दिल्ली में और कहीं जगह नहीं बची है। लेकिन सर, और कहीं कहां कोई खरीदता है। लेकिन यह वीआईपी इलाका है । यहां खड़े भी नहीं हो सकते। अपना टोकरी-डंडा उठाओ और सीधे इंडिया गेट के पास चले जाओ। दिखायी दे रहा है न इंडिया गेट। लेकिन सर, वहां तो कई हैं बेचने वाले । यहां तो हम अकेले हैं। एक घंटा खड़े रहने दीजिये। फिर चले जायेंगे। अच्छा देख सड़क छोड़कर वह दूर पेड़ के नीचे चला जा...जहां कुछ गोरे लोग फोटो खींच रहे हैं और एक घंटे बाद नजर न आना। <br /><br />संसद के ठीक सामने विजय चौक के किनारे पत्थर पर लिखे 'राजपथ' की ओट में ही पुलिस और चना बेचने वाले के बीच चल रही इस बहस को सुनते हुये मुझे भी आश्चर्य लग रहा था कि संसद के ठीक सामने यह एक ऐसी जगह है, जहां वाकई कोई सड़क पर कुछ भी बेचेने वाला जब खड़ा भी नहीं हो सकता है तो चना वाला अपना सामान बेचने की जिद भी कर रहा है और पुलिस वाला भी पुलिसिया अंदाज के बदले समझाते हुये उसे पेड़ की ओट में चना बेचने की जगह भी दे रहा है। क्योंकि राजपथ लिखे पत्थर के तीर के निशान पर सीधे इंडिया गेट है तो बांयी तरफ संसद भवन का गेट है । वहीं सडक के ठीक दुसरी तरफ राष्ट्रपति भवन है, जिसके दांये बाये नार्थ और साऊथ ब्लॉक है। जिसके बीच में बेहतरीन रायसीना हिल्स। और इस पूरे इलाके की तस्वीर लेने के लिये जनपथ का यही मुहाना सबसे बेहतरीन स्पॉट है। <br /><br />जाहिर है ऐसे में पर्यटकों का हुजूम इसी किनारे जमा होकर कैमरे में खुद के साथ लुटियन की इस विरासत को कैमरे में कैद करता है । लेकिन संसद जब चल रही होती है तो यहां भी आवाजाही बेहद कम कर दी जाती है। ऐसे में चने वाले को देख कर पहली बात मेरे जेहन में यही आयी कि शायद यह यहां हाल फिलहाल में आया है इसलिये इसे इस वीआईपी इलाके के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी। उससे बात करने के ख्याल से पेड़ के नीचे जाते चने वाले को मैंने कहा, मेरे लिये दस रुपये के चने बनाओ मैं वहीं आ रहा हूं। <br /><br />फिर पुलिस वाले से न चाहते हुये भी मैंने पूछा कि, उसे वहां क्यो भेज दिया । यहां तो चाय वाले को आप लोग टिकने नहीं देते हैं। आप सही कह रहे हैं। लेकिन किसे कहां भगाये। बेचारा कुछ बेच लेगा तो रोजी-रोटी का इंतजाम हो जायेगा। मैं हैरत में था कि कोई पुलिस वाला इस तरह बोल रहा है। मैंने पूछा...आप कहां के हो । मैं बुलंदशहर का हूं। वहां खेती है क्या । हां...गांव में खेती है । अपनी काफी जमीन है । लेकिन इसबार जमीन खाली है । कौन देखता है खेती। आप यह सब क्यों पूछ रहे हो । ऐसे ही जानना चाह रहा हूं कि आप जमीन से जुड़े होंगे तभी आपने चने वाले को भी नहीं मारा और उसे भी धंधा करने की जगह बता दी । बस इसीलिये । पत्रकार तो नहीं हो। पत्रकार ही हूं। लेकिन मुझे अच्छा लगा जो आपने उसे थप्पड़-लप्पड़ नही मारा। मैं क्या मारु उसे ..इसबार तो उपर वाला ही सबको मार रहा है। पिछले शनिवार ही बुलंदशहर गया था । ताऊजी खेती देखते हैं, और बता रहे थे कि इस बार सारे बीज ही जल गये। दोबारा बीज बोये हैं लेकिन एक चौथाई फसल भी हो जाये तो घरवालों का पेट भरेगा। नहीं तो सरकारी राहत की आस देखनी होगी। आपका इलाका भी तो मायावती ने सूखा करार दिया है। क्या वही राहत गांव गांव पहुंचेगी । अब गांव में जो पहुंचे लेकिन वहा अगर तो आप दलित या पिछड़े हो तब तो आपकी बात अधिकारी सुनते हैं। नहीं तो राहत लेने के लिये इतने कागज-दस्तावेज मांगे जाते हैं, जिन्हें जुगाडने का मतलब है साल बीत जाना। आप पुलिस में हो, तो क्या आपकी भी नहीं चलती। गांव में तैनात पुलिस वालो की ही जब नहीं चलती तो मेरी क्या चलेगी। जाति पर चलता है । पिछडी जाति से तो एसपी भी घबराता है। कोई दलित रपट लिखाने थाने पहुंच जाये तो उसे कुर्सी पर बैठाया जाता है और कोई दूसरा पहुंचे तो उसी के खिलाफ हरिजन एक्ट में मामला दर्ज करने की धमकी देकर सब बात अनसुनी कर दी जाती है। <br /><br />बात आगे बढ़ती, लेकिन उसी बीच चना वाला आवाज देता हुआ आता दिखायी दिया। मैंने पुलिसवाले से फिर मिलने के इरादे से कहा, आपकी बात तो संसद में भी उठनी चाहिये । कोई उठायेगा तो आपको बताऊंगा । वह भी सड़क पार करते करते बोला, लिख लो खेती और गरीबी पर संसद में मामला उठ ही नहीं सकता है। फिर यूपी में तो मायावती और राहुल गांधी में दो दो हाथ हो रहा है । राजनीति हम समझते नहीं...चलते हैं कह कर वह पुलिस कांस्टेबल सड़क पार कर गया। मुड़ा तो चना वाला चना लेकर हाजिर था। मैंने उसे टोकते हुये कहा। वहीं चलो नहीं तो पुलिस वाला तुमको यहां से भी भगा देगा । यह कहकर मैं पेड़ की ओट में रखी उसकी टोकरी की तरफ उसके साथ ही बढ़ चला । सर, दस रुपये दीजिये । अरे जल्दी क्या है ...दे रहा हूं । नाम क्या है तुम्हारा । अशोक । पूरा नाम । अशोक शांडिल्य । अरे वाह...बढ़िया नाम है, कहां से आये हो । बिहार से । बिहार में कहां से । गया से । पुलिस वाला चाहता तो तुम्हे बंद भी कर सकता था, लेकिन वह अच्छा व्यक्ति था। बेटा, इसलिये बच गया तू । अशोक तेवर में बोला..आप इंतजार करो सभी अच्छे हो जायेंगे। मैंने कहा मतलब । मतलब कुछ नहीं । मै एमए पास हूं । मैं जब यहां चने बेच सकता हूं तो दूसरा कोई बुरा होकर भी मेरा क्या बिगाड़ लेगा । पुलिसवला मुझे बंद कर देता तो थाने या जेल में कुछ तो मिलता। मुझे झटके में लगा कि एमए पास एक लड़के में इतना आक्रोष क्यों है। गया में क्या करते थे, मैं कुछ गुस्से में ही उससे पूछ बैठा । आप बिहार कभी गये हो । मैंने कहा, वहीं का हूं । गया तो कई कई बार गया हूं। यह बताओ वहां करते क्या थे। क्या करता था ...सर पढ़ता था । फिर दिल्ली क्यों आ गये। क्या करता घरवालों को मरते हुये देखता । खाने के लाले पड़े हुये हैं वहां पर । पानी है नहीं। खेत में तो दूर पीने का पानी तक नहीं है। बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है। रोजगार है नहीं। अब आप ही बताओ गया में रहूं या घर छोड़कर कहीं भागना अच्छा है। तो दिल्ली आ गया हूं । वहां पीने का पानी भी नहीं है। <br /><br />फिर, अशोक ने बिना सोचे सीधा सौदा किया। अगर दस रुपये का चना और लोगे तो रुक कर बताऊंगा नही तो मैं चला। मैंने तुरंत हामी भरी। और अशोक ने जो कहा उससे मैं अंदर से हिल गया। गया के टेकरी थाना में मेरा घर है। मेरे परिवार के खिलाफ थाने में पुलिस ने मामला दर्ज कर खेत में पड़े पंप को इसलिये जब्त कर लिया क्योंकि खेत में पंप चलाने से जमीन के नीचे का पानी और नीचे चला जाता है। जिससे पूरे इलाके में हैंडपंप ने काम करना बंद कर दिया है । जिनके पास खेत नहीं है , उन्होंने थाने में शिकायत की । और जिनके पास खेत हैं यानी रोजी-रोटी खेत पर ही टिकी है, वह क्या करें । करीब 25 लोगो के खेत पंप जब्त कर लिये गये और मामला पानी सोकने का दर्ज कर लिया गया । अशोक के मुताबिक उसने थाने में जाकर माना कि पहली जरुरत पीने के पानी की है लेकिन कोई रास्ता तो बताये कि वह लोग खेती कैसे करें। एमए पास अशोक के मुताबिक पहले जमीन के नीचे 50 फीट में पानी निकल जाता था । लेकिन जिस तरह क्रंक्रीट के मकान बने हैं और पेड़-हरियाली खत्म की गयी है, उससे जमीन के नीचे पानी 200 फीट तक चला गया गया है। वहीं सरकार ने पानी बचाने की पुरानी सारी व्यवस्था घ्वस्त कर दी है । या कहें कोई नयी व्यवस्था वाटर कन्जरवेशन की है नहीं । इसलिये पानी नालों में ही बहता है । ताल-तलाब-पोखर सरीखे पानी रोकने के पारंपरिक तरीके ध्वस्त हो चुके है । खेती होगी कैसे इसका एकमात्र तरीका पंप से जमीन के नीचे का पानी खिंचना भर है। और पंप चलाने के लिये डीजल चाहिये । जिसके लिये पूंजी होनी चाहिये। लेकिन नीतिश कुमार तो शहरो की बिजली काट कर गांव में सप्लायी कर रहे हैं। तो पंप तो उससे भी चल सकते हैं। आप क्या बोल रहे हैं। आपने खेत में कहीं बिजली का खंभा देखा है क्या। खेत तक बिजली पहुंचेगी कैसे । और जिनके खेत गांव से एकदम सटे हुये हैं, वहां भी सिंगल फेस ही है। जिसमें मोटर पंप चल ही नहीं सकता। नीतिश कुमार के गांव प्रेम से जरुर हुआ है कि गांव में कुछ देऱ पंखे की हवा मिलने लगी है। लेकिन इससे खेती का कोई भला नहीं हो रहा है। फिर खेती की हर योजना तो फेल है। डीजल महंगा है । यहा सब्सिडी का डीजल लेने के लिये जो दस्तावेज बाबूओं को चाहिये, उसमें सभी का कमीशन ही कुछ इस तरह जुड़ा रहता है कि सस्ते में डीजल मिल ही नही सकता इसलिये सरकार का आंकडा आप चेक कर लिजिये गया में डीजल की सब्सिडी का नब्बे फिसदी वापस हो गया। सरकार ने एक मिलियन सेलो ट्यूबवेल स्कीम निकाली । जिसमें ट्यूबवेल किरासन से चलता । लेकिन किरासन तेल तो सिर्फ गरीबी रेखा के नीचे वालों को ही मिलता है। तो यह भी गांव में पहुंचते पहुंचते फेल हो गया। क्योंकि बीपीएल होने के लिये जो कमीशन देने पहंचा और उसके बाद किरासन तेल मिलता तो उसकी किमत डीजल से महंगी पडने लगी। ऐसे में लोग लोन लेकर डीजल से पंप चलाने लगे तो मामला सरकारी हैडपंप को बर्बाद करने का और पीने का पानी खत्म करने का आरोप लगने लगा। <br /><br />अब आप ही बचाइये गया में रहकर क्या करता । मैं खामोश रह कर संसद की तरफ बढ़ने लगा । लेकिन विजय चौक पर खडे पत्रकार साथी ने बता दिया कि अंबानी भाइयों के गैस मामले में महंगाई का मुद्दा रफूचक्कर हो चुका है और अब सीधे शर्म-अल-शेख में जारी साझा बयान पर चर्चा होगी, जिसमें बलूचिस्तान का जिक्र है । मुझे लगा राजपथ पर खड़े होकर संसद की तस्वीर उतारते किसी भी पर्यटक की आंखों में जब बुलंदशहर या गया का दर्द दिखायी नही देता है तो संसद के भीतर खेत-किसान-महंगाई का दर्द कौन देखेगा। संसद को तो गैस का बिजनेस और बलूचिस्तान का खौफ ही डरा रहा है। ऐसे में, राजपथ पर मानवीय पुलिसवाले और एमए पास चने वाले की क्या औकात कि वह संसद को आइना दिखा दे ।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com18