tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-11516276085048586992012-02-02T19:00:00.000+05:302012-02-02T19:01:29.813+05:30क्या पुणे में अण्णा को धीमा जहर दिया जा रहा था?<span style="font-weight:bold;">अन्ना हजारे स्वास्थ्य लाभ और नेचुरोपेथी के लिए अब बेंगलुरु पहुंच गए हैं। दिल्ली में वह महज तीन दिन में ठीक हो गए, जबकि पुणे के संचेती अस्पताल में एक महीने में उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। उलटा बिगड़ती गई। तो ऐसा क्या हुआ। अन्ना ने खुद अपने स्वास्थ्य के बारे में क्या कहा और यह पूरा माजरा था क्या। पढ़िए इस रिपोर्ट में।</span><br /><br /> <br /> <br />क्या पुणे के संचेती अस्पताल में अण्णा हजारे को भविष्य में आंदोलन ना कर पाने की स्थिति में लाने की तैयारी की जा रही थी। क्या राजनीतिक तौर पर संचेती अस्पताल को इस भरोसे में लिया गया कि अगर वह अण्णा हजारे को पांच राज्यों में चुनाव के दौरान मैदान में ना उतरने देने की स्थिति ला सकता है तो अस्पताल चलाने वालों का ख्याल रखा जायेगा। क्या पुणे के एक व्यवसायी को भी राजनीतिक तौर पर इस भरोसे में लिया गया कि वह अण्णा से अपनी करीबी का लाभ कांग्रेस को पहुंचाये तो सरकार उसे भी इनाम देगी। क्या अण्णा के सहयोगियों को भी सुविधाओं से इतना भर दिया गया कि वह भी अण्णा को उसी राजनीति के हाथ का खिलौना बना बैठे जिस राजनीति के खिलाफ अण्णा संघर्ष कर रहे थे। यह सारे सवाल अगर रालेगण सिद्दी से लेकर पुणे और मुंबई में अण्णा आंदोलन से जुडे लोगों के बीच घुमड़ रहे हैं तो दिल्ली से सटे गुडगांव के वेदांता अस्पताल से इसके जवाब भी निकलने लगे है। यह सब कैसे और क्यो हुआ। इसे जानने से पहले यह जरुरी है कि इस खेल की एवज में पहली बार क्या क्या हुआ उसकी जानकारी ले लें। पहली बार अण्णा रालेगण के अपने सहयोगी के बिना ही दिल्ली ईलाज के लिये पहुंचे। पहली बार संचेती अस्पताल के कर्ता-धर्ता कांति लाल संचेती को सीधे पद्म विभूषण से नवाज दिया गया। पहली बार अण्णा के करीबी पुणे के व्यवसायी अभय फिदौरिया के भाई काइनेटिक के चैयरमैन अरुण फिरदौरिया को पदमश्री से नवाजा जायेगा। 74 बरस की उम्र के जीवन में पहली बार अण्णा ने यह महसूस किया कि संचेती अस्पताल में ईलाज के दौरान उनसे खुद उठना -बैठना नहीं हो पा रहा है। <br />दरअसल पिछले दो दिनो से गुडगांव के मेंदाता में ईलाज कराते अण्णा के शरीर से करीब तीन किलोग्राम पानी बाहर निकला है। और दो दिन के भीतर ही अण्णा अपना काम खुद कर सकने की स्थिति में आ गये है और मंगलवार को अण्णा को आईसीयू से सामान्य कमरे में शिफ्ट भी कर दिया गया। लेकिन इससे पहले पुणे के संचेती अस्पताल में नौ दिन { 31 दिसबंर 2011 से 8 जनवरी 2012 } भर्त्ती रहे अण्णा को बीते महिने भर से जो दवाई दी जा रही थी वह इलाज से ज्यादा बीमार करने की दिशा में किस तरह बढ़ रही थी य़ह अस्पताल की ही ब्लड और यूरिन रिपोर्ट से पता चलता है । संचेती अस्पताल में 6 जनवरी को अण्णा की ब्लड / यूरिन की रिपोर्ट [ ओपीडी / आईडीनं. 1201003826 ] में सब कुछ सामान्य पाया गया । लेकिन हर दिन जिन आठ दवाईयों को खाने के लिये दिया गया उसमे स्ट्रीआईड का ओवर डोज है। और एंटीबायटिक की चार दवाईयां इतनी ज्यादा मात्रा में शरीर पर बुरा असर डाल सकती है कि किसी भी व्यक्ति को इसे खाने के बाद उठने में मुश्किल हो। असल में ईलाज ऐसा क्यो किया जा रहा था इसका जवाब तो किसी के पास नहीं है लेकिन इस इलाज तो गुडगांव के मेंदाता में तुरंत बंद इसलिये कर दिया क्योकि यह सारी दवाईया अण्णा हजारे के शरीर में घीमे जहर का काम कर रही थीं।<br /> <br />खास बात यह भी है कि संचेती अस्पताल की डिस्चार्ज रिपोर्ट में डां कांति लाल संचेती के बेटे डा पराग लाल संचेती के हस्ताक्षर के साथ यह लिखा गया कि एक महिने यानी 8 फरवरी तक अण्णा हजारे को सिर्फ आराम ही करना है । कोई काम नहीं करना है । खासकर अस्पताल छोडते वक्त 8 जनवरी को अण्णा बजारे को संचेती अस्पताल के डाक्टर ने यह भी कहा कि लोगो से मिलना-जुलना बंद रखे । <br />लेकिन अण्णा का इलाज बदला और अन्ना दो दिन में कासे ठीक हुये । पेट से लेकर मुह, हाथ , पांव की सूजन खत्म हुई तो 31 जनवरी की सुबह 10 बजे पुणे से डा पराग संचेती अण्णा से मिलने गुडगांव के मेंदाता अस्पताल आ पहुंचे । करीब एक घंटे तक जब उन्होंने आईसीयू के कमरे में अकेले बैठकर अपने संबंधों का रोना रोया और पुणे से लेकर मुंबई तक संचेती अस्पताल पर लगते दाग का दर्द बताया । अपने पिता कांति लाल संचेती को पद्म विभूषण सम्मान पर उठती अंगुलियों का जिक्र किया तो अण्णा हजारे ने उन्हे माफ करने के अंदाज में सबकुछ भूल जाने को कहा । तो डां पराग संचेती ने इस बात पर जोर दिया जब तक अण्णा अपने हाथ से लिखकर कोई बयान जारी नहीं करते तबतक उन्हें मुश्किल होगी । ऐसे में अण्णा ने लिखा, "मुझे नही लगता कि दवाईया गलत नियत से दी गई थी । शायद मेरा शरीर उसे बर्दाश्त नहीं कर पाया । और डां संचेती के पद्मविभूषण को मेरे ईलाज से जोड़ना गलत है। " सवाल है अण्णा का यह बयान कुछ दूसरे संकेत भी देता है। क्योकि अण्णा पहली बार गुडगांव के अस्पताल में बिना किसी रालेगण के सहायक के हैं। जबकि बीते एक बरस के दौरान जंतर मंतर हो या रामलीला मैदान या फिर मुंबई । उनके साथ रालेगण के उनके सहयाक सुरेश पठारे हमेशा रहे। लेकिन इसी दौर में अण्णा के करीबियो के पास व्लैक बेरी और एप्पल के आई फोन समेत बहुतेरी ऐसी सुविधायें आ गयी जिसकी कीमत लाख रुपये से ज्यादा की है। यह सुविधा रालेगण में अण्णा को घेरे कई सहायकों के पास है। और अण्णा के रालेगण में रहने के दौरान पुणे के व्यवसाय़ी की पैठ यह सबसे ज्यादा हो गयी। जबकि इस दौर में पुणे से लेकर मुंबई तक में चर्चा यही है कि पुणे के जिस व्यवसायी को पदमश्री और जिस डाक्टर को पदम-विभूषण मिला उनका नाम इससे पहले पुणे के सांसद सुरेश कलमाडी ने प्रस्तावित किया था लेकिन कलमाडी के दागदार होने के बाद इनकी फाइल बंद कर दी गयी लेकिन जैसे ही अण्णा का संबंध इनसे जुडा तो सरकारी चौसर पर दोनो ने अपने अपने संबंधो की सौदेबाजी के पांसे फेंक कर सम्मान पा लिया।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-12858839787294987062011-04-25T23:43:00.001+05:302011-04-25T23:43:43.977+05:30जेएनयू की हवा में अन्ना की खुशबूशनिवार की रात अक्सर जेएनयू में जागरण की रात होती है। किसी मुद्दे पर चर्चा कर रात बिताने का मजा जेएनयू हॉस्टल की नयी परंपरा है। 16 अप्रैल को कोयना हॉस्टल जागा। मुद्दा 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले का था । लेकिन हवा में अन्ना हजारे के आंदोलन से पैदा हुई बहस थी। जेएनयू गेट पर ही आकाश मिला, जिसने देखते ही टोका अन्ना के आंदोलन ने संसदीय राजनीतिक सत्ता को नहीं चेताया है बल्कि उस वर्ग को घमकाया है जो मनमोहन सिंह की इकनॉमी में खूब फल-फूल रहा है। और आप भी यह ना दिखाये कि सारे भ्रष्ट नेता एकजुट है बल्कि यह बताइये कि जो बाजार अर्थव्यवस्था पर मजे लूट रहे हैं, उन्हे अन्ना खतरा लगने लगे हैं। <br /><br />कुछ आगे ही सप्तर्षी कोयना हॉस्टल ले जाने के लिये खड़ा मिला। उसे साथ ले कर जैसे ही हॉस्टल गेट पर पहुंचे, एक छात्र ने फिर टोका अन्ना हजारे तो आरएसएस के हैं। कैसे। मंच पर भारत माता की तस्वीर बनाने की जरुरत क्यों पड़ी। हॉस्टल के गेट पर घेरा बनाकर खडे छात्रों में से एक दूसरे छात्र ने आरएसएस से अन्ना को जोडने पर बेहद तल्खी के साथ टोका, क्यों जेल की दीवार पर भगत सिंह ने भी तो भारत का नक्शा बनाया था। फिर अन्ना हजारे ने गांधी के साथ भगत सिह, राजगुरु, सुखदेव की भी तस्वीरे अन्ना के मंच के पीछे लगी थी लेकिन किसी ने अन्ना के तार अल्ट्रा-लेफ्ट से तो नहीं जोड़े। जितनी बार अन्ना ने भगत सिह का नाम मंच से लिया अगर कोई दूसरा आंदोलन होता तो सभी को सरकार नक्सलवादी करार देती। लेकिन यह आंदोलन सरकार के लिये फिट बैठ रहा था तो उसे हवा देने में कोई देर भी नही लगी। सरकार तो फंस गयी। उसे लाभ कैसे मिला। फंसी तो बाद में पहले तो सरकार को यही लगा कि भ्रष्टाचार में गोते लगाते कांग्रेसियों के लिये इससे बडी राहत क्या हो सकती है कि भ्रष्टाचार पर देशभर में आंदोलन है और उसमें वही विपक्ष नहीं है जिसने भ्रष्ट्चार के मुद्दे पर सरकार को घेरा और संसद ठप कर रखी थी। और आंदोलन ही अब सरकार से मांग कर रहा है कि भ्रष्टाचार पहले पर नकेल कसने के लिये जन-लोकपाल पर सहमति बनाइये। <br /><br />जोर पकड़ती चर्चा के बीच हॉस्टल के अंदर से छात्र-छात्रायें निकल आये और कहा कि पहले स्पेक्ट्रम पर बहस शुरु कर लें। लेकिन पांच मिनट के औपचारिक शुरुआत के तुरुरंत बाद ही फिर मौका मिला की हॉस्टल के मेस के बाहर खड़े छात्रों से अन्ना पर चर्चा शुरु हो। क्योंकि कार्यक्रम के शुरु में पत्रकार प्रांजयगुहा ठाकुरता की 2जी स्पेक्ट्रम पर बनायी डाक्यूमेंट्री दिखायी जानी थी। रात के सवा दस बजे थे और डक्यूमेन्ट्री पचास मिनट की थी। तो बाहर निकलते ही आकाश सामने दिखा और मैंने बिना देर किये सीधे पूछा-यह जेएनयू की बीमारी अभी तक है कि वर्ग संघर्ष के दायरे में ही हर आंदोलन को देखा जाये। जबकि जंतर-मंतर ही नहीं देश भर में अन्ना हजारे के समर्थन में तो हर वर्ग के लोग थे। मैंने इससे कहां इंकार किया लेकिन अनशन टूटने के बाद क्या हो रहा है जरा इसे समझें। विरोध कौन कर रहे हैं। वही लोग हैं, जिन्हे एक खास मान्यता अपने अपने दायरे में मिली हुई है। उसमें नेता भी है और सरकारी कर्मचारी भी। उघोग घराने भी है और बुरा ना मानिये तो बडे-नामी कॉलमिस्ट पत्रकार भी हैं। इन सभी को दो बातें खाये जा रही हैं। पहली, आंदोलन चल निकला तो उनकी जरुरत कहां फिट बैठेगी। और दूसरी, जिस दौर में पैसा आया बाजार बढ़ा उसी दौर में भ्रष्टाचार के घेरे में अगर ज्यादा पैसा होना या बाजार थ्योरी का ही भ्रष्ट होना करार दे दिया गया तो उनकी रईसी पर टिकी उनकी मान्यता कहां टिकेगी। <br /><br />नहीं लेकिन इतनी सरलता से विरोध को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। मैरेड हास्टल में रहने वाले शाहिद ने बीच में टोका। हांलाकि आकाश की बात वहा सही जरुर है जहा अच्छा-खासा जीवन जीने वालो को अचानक लगने लगा कि कोई इमानदारी की चादर लिये अचानक ऐसे सवाल खड़ा करने लगा, जिसके एवज में समूची अर्थव्यवस्था खड़ी है। लेकिन समझना यह भी होगा कि संसदीय लोकतंत्र का दायरा कितना तंग है या फिर खुली अर्थव्यवस्था का लाभ ही कितनों को मिला है। और अगर दोनो को मिला दिजिये तो पहली बार समझ में यह भी आयेगा कि समाज हर क्षेत्र में कितना बंटा हुआ है। नीतीश कुमार के पाल नैतिक साहस है, जो उन्हे जनता के वोट से मिला है इसलिये वह अन्ना के आंदोलन की हवा तेज करना चाहेंगे। लेकिन नरेन्द्र मोदी के लिये यह शातिरना राजनीति है,जिसमें वह अपनी राजनीतिक गोटी के दाग भी धोना चाहेंगे। जबकि देश के दूसरे नेताओ के पास पूंजी की शक्ति है। तो वह उस पर तब तक आंच नहीं आने देगे या कहे तबतक लडेंगे, जब तक देश में यह ना तय हो जाये कि सत्ता मिलने के तरीके क्या होंगे। <br /><br />आप तरीके ईमानदार रखिये फिर आपको इसी समाज में सैकड़ों अन्ना हजारे मिल जायेंगे। लेकिन अरबपति शांति भूषण को लेकर आप क्या कहेंगे। हिन्दी विभाग से जुडे फर्ट् ईयर के छात्र ने सिविल सोसायटी के नुमाइन्दों की घोषित संपत्ति का सवाल उठाते हुये हास्टल की सीढ़ियों पर बैठे सभी से ही सवाल किया। अगर किसी धंधे में अरबों की कमाई होती भी है तो भी देश की हालत देखकर कोई कैसे अरबपति के आसरे भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की पहल को इमानदार कह सकता है। देश में जो हालात है उसमें सिर्फ कानून के जरीये ईमानदार होना चाहेगे तो फिर सबको बराबर खेलने देने का मौका भी आपको देना होगा। और यह कानून से नहीं सामाजिक समझ से संभव है। सही कह रहे है आप । शांतिभूषण की ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं है । लेकिन जब सीधे राजनीति और संसद को पाठ पढ़ाने का सवाल जन-लोकपाल के जरीये जुडा है तो फिर पचास करोड़ दान करके कूदना चाहिये। लेकिन फिर वही सवाल है कि क्या उसके बाद तैयार ड्राफ्ट के जरीये देश में इमानदार पहल शुरु हो जायेगी। <br /><br />रंजना ने सवाल किया तो जवाब छात्रा ने ही दिया। एसआईएस की छात्रा ने अन्ना के आंदोलन पर सवालिया निशान लगाते हुये ही पूछा , क्या आप सभी को नहीं लगता कि आंदोलन से किसी राजनीतिक समझ के बगैर ही शुरु हुआ लेकिन इसके विरोध के तरीको ने उसके मिजाज को राजनीतिक भी बना दिया है और यह संदेश भी देने की कोशिश की जा रही है कि इस आंदोलन में एकतरह की राजनीतिक शून्यता है। अंग्रेजी और हिन्दी के अखबारों की रिपोर्टिंग और उसमें छपने वाले आर्टिकल से भी यह समझा जा सकता है और राजनीतिक लाईन छोडकर कांग्रेस-भाजपा के एक सुर को भी हास्टल के मेस से बुलावा आया कि फिल्म खत्म हो गई। और अंदर जब 2जी स्पेक्ट्रम को जड़ से उघाडती डाक्यूमेन्ट्री को देखचुके छात्रो से संवाद शुरु हुआ तो सवाल घूमफिरकर अन्ना की हवा में जा घुसा, जहां सवाल सीधे और तल्खी भरे थे। क्या कानून के जरीये भ्रष्टाचार पर नकेल कसी जा सकती है , जब सत्ता पाने के तरीके भ्रष्ट हों। कहीं भ्रष्टाचार के मामले और अब नकेल कसने को हवा देना भी उस व्यवस्था की जरुरत तो नहीं है जिसपर से आम लोगो का भरोसा उठता जा रहा है । अगर राजा स्पेक्ट्रम के दोषी है तो एस बैंड के लिये पृथ्वीराज चौहान क्यो नहीं, जबकि पीएम ने बकायदा उनका नाम लिया। क्या सामाजिक परिस्थितियो में कोई बदलाव की जरुरत है या फिर अर्थव्यवस्था ने ही सामाजिक परिस्थितियों को बदल दिया है, जिसे हमारा एक तबका पचा नहीं पा रहा है । क्या ऐसा नहीं लगता कि एक बार फिर भ्रष्टाचार को लेकर शुरु हुई लडाई भी चंद चेहरो में सिमट गयी है और आम आदमी की पहलकदमी जानबूझ कर रोक दी गयी है । क्या हर बदलाव से भरोसा उठाने की कोशिश नहीं हो रही है। जाहिर है यह सारे सवाल ही है जो जेएनयू से निकले और आधी रात के बाद तक चली इस चर्चा में उठे। लेकिन अंत में झटका तब लगा जब चर्चा का आयोजन करने वाले तपस को चर्चा करवाने के लिये बधाई देते छात्रो ने कहा, यार सबकुछ है लेकिन इस बहस में कही लेफ्ट नहीं है। और वाम छात्र संगठन के तपस ने भी खामोशी ओढ़ ली।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com5