tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-26179329380003533282010-03-03T13:31:00.000+05:302010-03-03T13:31:03.509+05:30'मेरा बेटा आतकंवादी नही वतन परस्त है’<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;"><b>आतं</b></span><span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;"><b>क को लेकर सरकार से अलग है युवा मन की परिभाषा</b></span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">जिस इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक आमिर रजा खान को लेकर गृह मंत्रालय पुणे धमाके में सीधा आरोप लगा रहा है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">उसी आमिर के पिता रजा खान सीधे कहते है</span>,<span style="mso-ansi-language:EN-US"> <span lang="EN-US">“</span></span><span lang="EN-US"> </span><span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">मेरा बेटा वतन परस्त है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">वह वतन से गद्दारी कर ही नहीं सकता। " पूर्वी कोलकत्ता के मफीदुल इस्लाम लेन पर रजा हसन की एकमंजिली इमारत में ऐसा कुछ भी नहीं है</span><span style="mso-bidi-mso-bidi-language:HI;font-family:Mangal;">,</span><span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;"> जिसे देखने के लिये कोई बैचेन हो</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">लेकिन चार साल पहले जब उत्तर प्रदेश के कई शहरों से घमाको का सिलसिला शुरु हुआ और देश के नौ शहरों में धमाकों के बाद </span>13 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">सितंबर </span>2007 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">को दिल्ली में घमाके के बाद इंडियन मुजाहिदीन का मोड्यूल सामने आया तो पहला नाम आमिर रजा खान का ही था। </span></p><p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;"><br />लेकिन पूर्वी कोलकत्ता के बेनियापुपर इलाके के मफीदुल इस्लाम लेन में इंडियन मुजाहिद्दीन को बनाने वाले आमिर रजा खान से ज्यादा बड़ी बहस आमिर के भाई आसिफ खान को लेकर शुरु हुई। जिसकी मौत गुजरात में नकाउंटर में हुई। चूंकि मौत गुजरात पुलिस की कस्टडी में हुई थी</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">इसलिये एनकाउंटर की थ्योरी पर सवाल उठे और पहली बार रजा खान ने खुले तौर पर कहा कि जब उनके परिवार ने आजादी की लडाई लड़ी है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">तो फिर उनके बेटा आसिफ वतन के खिलाफ कोई पहल कैसे कर सकता है।<br /><br />यह अलग बात है कि आसिफ के एनकाउंटर पर गुजरात में अब भी सवाल उठे हुये हैं और इस बीच दूसरे बेटे आमिर के तार पुणे धमाकों से जोड़े गये हैं। असल में आसिफ या आमिर के इर्द-गिर्द दर्जनों मुस्लिमों लड़को की मौजूदगी भी कई सवाल खड़ा करती है। इंडियन मुजाहिदीन पर दिल्ली पुलिस की सप्लेमेंटरी चार्जशीट में </span>35 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">लड़कों का नाम है, जो फरार हैं। यह चार्जशीट आठ महीने पहले ही दाखिल की गयी है और पुणे ब्लास्ट के बाद अचानक यह सभी फरार मुस्लिम लड़के आतंक के पर्याय माने जा रहे हैं, जिनका ताल्लुक इंडियन मुजाहिद्दीन से कभी भी रहा है।<br /><br />इस फेरहिस्त में आजमगढ़ से लेकर उड्डपी तक के पते हैं</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">जहां जहां से लड़के आमिर रजा खान के साथ जुड़े। कोलकत्ता के बेनियापुपर इलाके में मुस्लिमों को टटोलने पर किसी भी सवाल का जबाब आने से पहले सभी तल्खी के साथ एक ही सवाल करते है</span>, "<span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">जब मां बच्चे को रोने से पहले दूध तक नहीं पिलाती तो हमारी कौन सुनेगा।" समझना होगा कि बेनियापुपर वहीं इलाका है, जहां सबसे पहले तस्लीमा नसरीन को लेकर आग भड़की थी और उसके बाद तस्लीमा को बंगाल छोड़ना पड़ा था। यहां उठने वाले सवालो का जबाब राजनीतिक तौर पर क्या हो सकता है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">यह किसी से छुपा नहीं है। फिर इंडियन मुजाहिद्दीन से जुडे लड़कों का प्रोफाइल बताता है कि कमोवेश सभी उस उम्र में आतंक से जुड़े हैं, जब वह अपने सपनों को साकार करने को दौर में पहुंचे। यानी बेसिक शिक्षा सभी के पास है। कई प्रोफेशनल हैं। कुछ तो अपने क्षेत्र में इतने हुनरमंद है कि</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">उनका प्रयोग जिस दिशा में बढ़ जाये कयामत ढा सकता है।<br /><br />पुणे का पीर भोय अगर कम्पयूटर हैक कर सकता है तो उड्डपी का शाहरुख विस्फोटक में कैमिकल की थ्योरी को किसी माइनिंग इंजीनियर से ज्यादा जानता है। वहीं इंडियन मुजाहिद्दीन से जुडे यूपी के छह फरार लड़कों का प्रोफाइल देखने से साफ लगता है कि इनमें से कोई ऐसा नहीं है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">जिसे रोजगार के जरिये जिन्दगी से जोड़ा न सकें । यही स्थिति ढाई साल पहले सूरत में ब्लास्ट फेल होने पर पकड़े गये लड़कों को देखकर समझी जा सकती है। धमाको की कड़ी में पहली बार अल-कायदा सरीखा धमाका करने का मंसूबा इंडियन मुजाहिद्दीन के लडकों ने बनाया था। लेकिन जिस गाड़ी में आरडीएक्स भरा गया, वह फटा ही नहीं। आतंक के मद्देनजर आल-कायदा का जुनून भी इसी दौर में उसी युवा पीढी में समाया है, जिसे आतंक का नया पाठ यह कह कर बताया जा रहा </span>, "<span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">अगर तुम्हारे घर में खिड़की है</span>, <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">तुम्हे आजान की आवाज सुनायी जरुर देगी और अगर उस खिड़की से ताजी हवा भी आये तो वह बोनस होगा। "<br /><br />यह बोनस पाकिस्तान में अगर इस्लाम के लिये है तो भारत में अपनी पहचान से जोड़ा जा रहा है। पाकिस्तान के सोहेल अब्बास की किताब </span>, " <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">प्रोबिंग द जेहादी माइंडसेट " में उन युवा लडकों का इंटरव्यू है, जो आतंकवादी हिंसा में शामिल होने के लिये घर छोड़ कर निकल गये । कुछ तालिबान के साथ जुडे तो कुछ अल-कायदा के साथ । लेकिन सभी के जेहन में इस्लाम की रक्षा के लिये आतंक का जुनून अमेरिका को लेकर है। यानी जेहाद शब्द यहां नहीं है। यहां आतंक के खिलाफ आतंक का सवाल भी खड़ा किया गया है। मसलन </span>27 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">साल के असलम के मुताबिक उसके पिता सेना में थे। जिनकी मौत बार्डर पर हुई। मां ने पढ़ाई-लिखाई जारी रखवायी और साफ-सुथरा रहना सिखाया । असलम के मुताबिक उसने तालिबान को भी समझा और </span>9/11 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font: minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">से पहले उसका कोई झुकाव अल-कायदा की तरफ नहीं रहा लेकिन जब उसने देखा कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश ने सबसे गरीब देश अफगानिस्तान पर हमला कर दिया से लगा कि मस्जिदों में जो कहा जा रहा है, वह सही है। उसके बाद उसने बंदूक उठा ली। लाल मस्जिद घटना के बाद असलम गिरफ्तार हुआ। असलम आज की तारीख में मानता है कि वह चाहे शहीद ना हो पाया लेकिन वह गाजी जरुर है। कुछ ऐसी ही परिस्थितियां हाशिम के साथ भी हुईं। </span>30 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">साल के कारपेन्टर हाशिम की शादी कम उम्र में हो गयी। जी-तोड़ मेहनत के बाद भी परिवार के लिये दो-जून की रोटी कमानी मुश्किल होती। एक बार बेटी बीमार पडी तो दवाई खरीदना मुश्किल हो गया। मस्जिद में तकरीर यही सुनी की इस्लाम बचेगा तो ही बेहतर जिन्दगी होगी। बेटी की दवाई की जुगाड़ में जब मस्जिद से निकलते किसी बन्दे ने पांच सौ रुपये हाथ में रख दिये और वह शख्स बिना बोले चला गया</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language: HIfont-family:Calibri;">तो हाशिम को यही लगा कि खुदा ने मदद की अब उसे इस्लाम को बचाना है। अमेरिका के खिलाफ बंदूक उठानी है। बस घर में बेटी के लिये दवाई की व्यवस्था कर वह पेशावर से तालिबान के रास्ते चल पड़ा। अब भी उसका यही मानना है कि इस्लाम के लिये वह दुबारा बंदूक उठाने के लिये तैयार है।<br /><br />किताब प्रेबिंग द जेहादी माइंटसेट में अल-कायदा या तालिबान को लेकर इन युवा आंतकवादियों का क्या मानना है, वह गौरतलब है। इनमें कोई नहीं मानता कि ओसामा बिन लादेन ने </span>9-11 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">किया । </span>65 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">फीसदी कहते हैं कि हम जानते नहीं। तो </span>35 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">फीसदी कहते है बिलकुल नहीं। लादेन के पीछे तालिबान को भी </span>65 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">फिसदी सही ठहराते है। और </span>79.3 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">फीसदी की राय तो यही है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला इस्लाम को खत्म करने के लिये किया । खास बात यह है कि सिर्फ </span>31.3 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">फीसदी ही ऐसे युवा आंतकवादी हैं, जो मानते हैं कि उनका जेहाद इस्लाम को लेकर है। बाकि </span>68.7 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font: minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">फीसदी सीधे अमेरिकी आतंक का जबाब आतंक से देना चाहते हैं। और इनमें से </span>10.3 <span lang="HI" style="font-family:"Mangal","serif"; mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin;mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language:HIfont-family:Calibri;">फीसदी तो अब भी मानव बम बनने को तैयार हैं।<br /><br />जाहिर है यह परिस्थितियां पाकिस्तान के संदर्भ में कह कर टालना कितना जायज होगा, यह समझना चाहिये क्योंकि जिन परिस्थितियों में इंडियन मुजाहिद्दीन के आंतक को लेकर युवा लड़कों का खाका खुद सरकार के पास है</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif";mso-ascii-font-family:Calibri;mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-hansi-mso-hansi-theme-font:minor-latin;mso-bidi-language: HIfont-family:Calibri;">और आमिर रजा खान को लेकर सरकार मान रही है कि उसके तार लश्कर से जुड़े हैं और लश्कर के साथ अल-कायदा खड़ा है। ऐसे में अगर आमिर के पिता रजा खान कहते है कि उनका बेटा वतन परस्त है और अब उन्हें डर है कि अब कहीं पाकिस्तान में उसे मरवा ना दिया जाये <span style="mso-spacerun:yes"> </span>तो सवाल सिर्फ इंडियन मुजाहिद्दीन या पुणे घमाके का नहीं है। हकीकत कहीं ज्यादा कटु हो सकती है ।</span></p>Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-44422683575466571582009-02-21T14:16:00.000+05:302009-02-21T14:16:00.351+05:30मीडिया बंदूक से लड़ सकता है, पूंजी से नहींबंदूक का जवाब कलम से देंगे। ये कोई नारा नहीं, पाकिस्तान में मीडिया का सच है। पाकिस्तान में जियो न्यूज चैनल के पत्रकार मूसा खानखेल के शरीऱ में पैतीस गोलियां दागी गयीं। फिर सर कलम कर दिया गया।<br /><br />28 साल के पत्रकार मूसाखानखेल उस रैली को कवर करने स्वात गये थे, जो मुल्लाओं की जीत का जश्न था। या कहें पाकिस्तान सरकार के घुटने टेकने का जश्न था। जिस सरकार ने घुटने टेक दिये वहां का पत्रकार छाती तानकर खड़ा हो सकता है ....वह भी पाकिस्तान में, यह किसी भी भारतीय के लिये अचरच की बात है। क्योंकि भारत के चश्मे से पाकिस्तान को देखने का मतलब कट्टमुल्लाओं की फौज नज़र आती है। फिर मुंबई हमलों के बाद से तो पाकिस्तानी मीडिया को पाकिस्तान के ही रंग में रंगा माना जा रहा है।<br /><br />लेकिन पत्रकार मूसा खानखेल की हत्या के बाद स्वात इलाके में जा कर पाकिस्तान के पत्रकारों ने जिस हिम्मत से भविष्य के संघर्ष के संकेत दिये, उससे भारतीय मीडिया या भारत के पत्रकारों का दिल जरुर हिचकोले खा रहा होगा। खासकर जब बात पाकिस्तान और भारत के मीडिया की होती है तो सभी के दिमाग में पाकिस्तान की बंदिशें मीडिया को भी मुल्लाओं के रंग में रंग देती है। लेकिन जब मुल्लाओं के खिलाफ ही जम्हुरियत का सवाल पाकिस्तान का मीडिया उठा रहा है तो भारत में पत्रकारो को अपने भीतर झांकना होगा।<br /><br />मुंबई हमलों के बाद से किसी पत्रकार की इतनी हिम्मत नहीं रही कि वह कह सके कि पाकिस्तान से आये आंतकवादियो को कहीं ना कही स्थानीय मदद मिली होगी। यहां तक की आईबी की उस रिपोर्ट को भी तत्काल दफ़न किया गया जो बताती है कि किस तरह कोस्टल गार्ड से लेकर नौ सेना की खुफिया एजेंसी न सिर्फ फेल हुई बल्कि जो खुफिया रिपोर्ट इन्हे फैक्स की गयी ...कार्यवाही उस पर भी नहीं हुई । मीडिया में देशभक्ति का जज्बा कुछ इस तरह जागा और सरकार ने लगाम लगाने की तर्ज पर मीडिया को देशभक्ति का पाठ कुछ इस तरह पढ़ाया कि सरकार और मीडिया के सुर एक सरीखे हो गए।<br />वो तो भला हो चुनाव का वक्त है तो पीएम बनने का इंतजार करते आडवाणी ने संसद में ही दलील दे दी कि बिना स्थानीय मदद के मुंबई में आतंकवादी हमला कर ही नहीं सकते थे। लेकिन बात मीडिया की है। संयोग से भारत की खुशकिस्मत है कि मीडिया हाउसों के मालिक पत्रकार भी रहे हैं। खासकर न्यूज चैनलो के मालिकों की फेरहिस्त देखे तो सारे अग्रणी न्यूज चैनलो के मालिक पेशे से पत्रकार रहे हैं। इसलिये भारत में लोकतंत्र के चौथे पाये को लेकर आजादी का राग कुछ ज्यादा ही गाया जाता है। इमरजेन्सी में मीडिया की भूमिका ने इसे सही भी साबित किया । लेकिन छाती पर लगा यह तमगा बीते 34 साल में न सिर्फ जंग खा चुका है बल्कि इसपर पूंजी का लेप भी कुछ ऐसा चढ़ा है कि देशभक्ति का मतलब मुनाफे और सरकार की चाकरी पर आ टिका है।<br /><br />यहीं से पाकिस्तान के मीडिया का संघर्ष और भारतीय मीडिया की त्रासदी का अंतर समझा जा सकता है । पाकिस्तान में जनरल यानी मुशर्रफ ने ही न्यूज चैनलों को पहली हरी झंडी दिखायी थी। जियो न्यूज चैनल का जन्म उसी के बाद हुआ । जब 2001 में वाजपेयी से मिलने मुशर्रफ आगरा पहुंचे थे, तब उन्हे मीडिया की ताकत का असल एहसास हुआ था । मुझे याद है किस तरह सुबह के नाश्ते के लिये मुशर्रफ ने भारतीय पत्रकारों को आमंत्रित किया था और एनडीटीवी को उसके लाइव प्रसारण की इजाजत देकर भारतीय कूटनीति की हवा निकाल दी थी। जो बात वाजपेयी खुले तौर पर कह नही रहे थे और पाकिस्तान जो बात खुले तौर पर कहना चाहता था, उसे मुशर्रफ ने भारतीय मीडिया के जरीये ही कह दिया। उस दिन देश में वाजपेयी की बात कम और मुशर्रफ के जरीये एनडीटीवी की बात ज्यादा हो रही थी।<br /><br />आगरा से इस्लामाबाद लौटने के बाद ही प्राइवेट न्यूज चैनलों को इजाजत पाकिस्तान में मुशर्रफ ने दी । जियो न्यूज चैनल को चलाने की पूरी ट्रेनिग उन्ही विदेशियों ने दी, जो “आजतक” न्यूज चैनल को लांच करने से पहले उसमें काम करने वाले पत्रकारो को ट्रेनिग दे रहे थे। चूंकि आजतक लांच करने के दौरान की दो महिने चली ट्रेनिग में मै खुद एक सदस्य था और उन्हीं विदेशी गुरुओं ने मुझसे एंकरिंग करवायी तो उनसे संवाद का सिलसिला न सिर्फ लंबा रहा बल्कि आजतक लांच होने के बाद वही टीम जब पाकिस्तान में जियो न्यूज चैनल लांच करने की ट्रेनिग दे रही थी तो आजतक के रिपोर्टिग-एंकरिग के टेप ले जाकर उन्हें दिखाती भी थी। किस तरह आजतक भारत में छाया है और ट्रेनिग के बाद कैसे आजतक के पत्रकार काम करते है। मुझे याद है मुशर्रफ की आगरा यात्रा से ठीक पहले मै पाकिस्तान गया था तो हामिद मीर से मिला था। उस वक्त वह एक आखबार निकाला करते थे । वो उसके संपादक भी थे । उस दौर की पहचान ने (आगरा ने) मुझे पाकिस्तान खेमे से खबरे निकालने में मदद की और हामीद मीर को आजतक पर इंटरव्यू के लिये तीन दिनों तक बार बार लाया । उस वक्त हामिद मीर ने कहा था कि भारतीय मीडिया की पावर अगर पाकिस्तान में भी आ जाये तो हुकुमते मनमाफिक तो नहीं कर पायेंगी।<br /><br />स्वात घाटी में पत्रकारों के बीच जब पत्रकार मूसा खानखेल की हत्या के बाद हामिद मीर कलम से बंदूक का सफाया करने का ऐलान कर रहे थे तो मुझे 2001 का वह दौर भी याद गया, जब मै पहली बार आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा के मुखिया मोहम्मद हाफिज सईद का इंटरव्यू ले कर लौटा था। उस वक्त आजतक के मालिक अरुण पुरी ने मेरी पीठ ठोंकी थी। खुद इंटरव्यू देखा था। और उस दौर में वाजपेयी सरकार के भीतर से यह संकेत दिये जा रहे थे कि इस इंटरव्यू को न दिखाया जाए । इससे कश्मीर के आतंकवाद को और हवा मिलेगी। लेकिन अरुण पुरी ने न सिर्फ इंटरव्यू दिखाने का निर्णय लिया बल्कि अखबारो में विज्ञापन निकाला –“आजतक कैचेज लश्कर चीफ” ।<br /><br />लेकिन वक्त बदल चुका है। सरकार अपनी कमजोरी छुपाकर मीडिया को सीख दे रही है कि उसे क्या करना चाहिये.......और मीडिया भी पत्रकारिता का ककहरा सरकार से सीखने को बेताब है। दरअसल, यह बेताबी सत्ता से मिलने वाले मुनाफे में हिस्सेदारी की चाह में पत्रकारिता न करने की एवज का ही नतीजा है। पत्रकारिता ताक पर रखकर अगर मुनाफे में हिस्सेदारी हो सकती है तो पत्रकारिता की जरुरत ही क्या है। जियो न्यूज उस कसाब को पाकिस्तानी साबित कर देता है जिसे पाकिस्तान की सरकार पाकिस्तानी मानने से इंकार कर देती है । जियो कराची के उस घर को दिखा देता है, जहां मुंबई हमले की साजिश रची गयी...जबकि पाकिस्तानी सरकार साजिश में पाकिस्तान को महज एक हिस्सा भर बताती है।<br /><br />दूसरी तरफ भारत में किसी न्यूज चैनल की हिम्मत नहीं होती कि वह मंत्री या नौकरशाहों की राष्ट्रभक्ति भरी चेतावनी को खारिज कर आतंकी हमले के पीछे के आतंक और उसके सच को सामने रख सके । मुंबई की लोकल में हुये सीरियल ब्लास्ट से लेकर दिल्ली में हुये सीरियल ब्लास्ट और उसके बाद बटला हाउस इन्काउटर को लेकर जिनकी गिरफ्तार हुई और पुलिस के पकडे गये आरोपियों को लेकर जो जो कहानियां गढ़ी गईं, अगर उसकी तह में तो जाना दूर उसे ऊपर से ही परख ले तो सुरक्षा के नाम पर पुलिस की कार्रवाई देश को कैसे असुरक्षित कर रही है...खुद -ब-खुद सामने आ जायेगा। लेकिन किसी भी न्यूज चैनल के भीतर पाकिस्तान की तरह अपने ही बाजुओं को खोखला बताने की हिम्मत है कहां ?<br /><br />भारत में न्यूज चैनलों की हालत किस स्थिति तक जा पहुंची है, इसका खूबसूरत नजारा फिल्म “दिल्ली-6” में देखा जा सकता है । जहां फिल्म की स्क्रिप्ट ही न्यूज चैनलों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करती है । और फिल्म में बकायदा एक न्यूज चैनल न सिर्फ अपने चैनल चिन्ह बल्कि रिपोर्टर - एंकर के जरिये भी छाती ठोंक कर उस फिल्मी कहानी को आगे बढ़ाता है, जो फिल्म खत्म होने का बाद उस सोच को समाज का कलंक करार देती है। फिल्म के आखिर में डायरेक्टर ने बेहद हेशियारी से पर्दे पर उस आईने को टांग दिया है जो फिल्म सभी चरित्रों को दिखाते हुये कहता है कि इसमें अपनी तस्वीर देख कर इसका एहसास करो की असल चोर तुम्हारे ही अंदर है। अंत में हर चरित्र इस आईने में खुद देखता है लेकिन चैनल का पत्रकार यहां भी आइने में अपनी तस्वीर देखने नहीं आता। संयोग से असल में यह चैनल भी पत्रकार का ही है और इसमें काम करने वाले भी पत्रकार ही है।<br /><br />लेकिन भारतीय परिवेश में यह पत्रकार भी छाती ठोंक कर चल सकते हैं और पाकिस्तान के मीडिया को ताजी हवा का झोंका मान सकते है । लेकिन दोनों देशों के मीडिया का वर्तमान सच यही है कि पाकिस्तान में उसे बंदूक से दो दो हाथ करने है..जहां मूसा खानखेल सरीखे पत्रकार की जान जायेगी और भारत में पूंजी बनाने के लिये पहले सरकार से यारी फिर खबरों को दरकिनार कर फिल्मी कहानी का हिस्सा बनकर पत्रकारिता को प्रोफेशनल बनाने का राग गुनगुनाना है। दिलचस्प है कि मंदी के दौर में जहां लाखों लोगों की नौकरियां जा रही है,वहां मीडिया की जिम्मेदारी ज्यादा बनती है,लेकिन सिनेमाई दर्शन में खुद से अभिभूत और पूंजी से संचालित मीडिया का ध्यान सिर्फ लाखों रुपए पीटने में लगा है।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com17