tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-59324298902381763932010-10-18T10:39:00.000+05:302010-10-18T10:40:24.697+05:30कोसी के मैले आंचल में चुनावी बीनसुबह उठते ही कोसी का पानी बर्तन, डिब्बो,बाल्टी में भरना। फिर कोसी के पानी को ही छान कर पीना। कोसी के पानी में ही नहाना-धोना। कोसी के पानी से ही सब्जी-दाल-चावल धोना और बनाना। और कोसी के किनारे रात गुजार कर फिर सुबह उठ कर जिन्दगी का अगला दिन काटना। कोसी के तटबंध पर यह जीवन सौ-दो सौ परिवारों का नहीं करीब चार से पांच हजार लोगों का जीवन है। वह भी साल भर से। यानी जिस कोसी ने जिन्दगी बर्बाद कर दी, वही कोसी ही हजारों हजार परिवार को आश्रय दिये हुये है। और इस दौर में कभी कोई राजनीतिक व्यवस्था या सरकारी व्यवस्था ने उनके झोपड़ की कुंडी पर दस्तक नहीं दी। <br /><br />ऐसे में एकाएक कोई भी राजनीतिक दल अगर भोजन, पानी, कपड़े और घर दिलाने का वायदा करें तो कौन किस पर भरोसा करेगा? नीतिश कुमार कोसी इलाके का कायाकल्प करने का भरोसा दिला रहे हैं। तो भाजपा कोसी बाढ़ से प्रभावितों को एक बेहतर जीवन देने का वायदा कर रही है। वहीं लालू यादव कोसी के तटबंधो पर आश्रय लिये परिवारों को भोजन,पीने का पानी, इलाज की सुविधा और घर देना का भरोसा दिला रहे हैं। लेकिन कांग्रेस यह कहने से बच रही है कि उसने कोसी बाढ़ पीडितों के लिये कितनी मदद दी। कांग्रेस यह जरुर कह रही है कोसी को राष्ट्रीय विपदा मनमोहन सरकार ने ही माना। मगर उसकी एवज में तटबंधों पर टिके हजारों परिवारों को क्या राहत मिली इस पर कांग्रेस खामोश है। <br /><br />भाजपा भी यह बोलने से कतरा रही है कि नीतीश कुमार ने कोसी बाढ़ राहत के लिये नरेन्द्र मोदी के पांच करोड़ रुपये क्यों लौटा दिये । जबकि कोसी के तटबंध पर टिके परिवारों के लिये पांच रुपया भी दिनभर के जीने का जरिया बन जाता है। तटबंध पर टिके पांच हजार परिवारों को जाति और इलाकों में बांटना मुश्किल है। महादलित से लेकर मैथली ब्राह्मण परिवार भी सबकुछ डूब जाने के बाद एकसाथ एक कतार में तटबंध पर जी रहे हैं, और कुछ मुस्लिम परिवार भी इसी कतार में रह रहे हैं। और इलाके तो कई जिलों को यहां एक किये हुये हैं। बारा पंचायत, कोनापट्टी , घमदट्टा, चौसा से लेकर पसराहा तक के क्षेत्रों में रहने वाले तटबंधों पर टिके हुये हैं। तटबंधो पर टिका कुशवाहा परिवार हो या रामजनम का परिवार या फिर अंसारी परिवार। सभी की जरुरत एक सी है और राजनीतिक दलों के जातीय खांचे में बंटे लुभावने वायदों में इन्हे बांटा भी नहीं जा सकता। <br /><br />पांच साल पहले किसी के इलाके में नीतीश कुमार का तीर चला था तो किसी के इलाके में लालू यादव की लालटेन जली थी। लेकिन पांच साल पहले यह तमाम इलाके किसी राजनीतिक दल के लिये मायने नहीं रखते थे मगर पांच साल बाद आज की तारीख में हर राजनीतिक दल के लिये यह इलाके इतने मायने रखते हैं कि हर के चुनावी घोषणापत्र में इन्हे जगह मिली है। मगर चुनाव को लेकर हो रहे दावों-प्रतिदावों से दूर यह पूरा इलाके में नीतीश कुमार का बीते पांच बरस का विकास मायने नहीं रखता। क्योंकि यहा सिर्फ पगडंडी है। सड़क नहीं। कानून व्यवस्था का सुधार मायने नहीं रखता। क्योंकि अपराध है नहीं। कभी पुलिस वाला या कोई नेतानुमा जरुर दो से पांच रुपये प्रति घर वसूली कर ले जाता है। लेकिन यह अपराध नहीं भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। और नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार के दौरान यहा वायदा किया है कि वह सत्ता में लौटे तो अगली लड़ाई भ्रष्टाचार को लेकर शुरु करेंगे। यहां राहुल गांधी प्रचार में नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी और आरएसएस का साथी बता कर उनकी घर्मनिरपेक्ष छवि पर हमला करते हैं। लेकिन यह प्रचार भी यहां मायने नहीं रखता। क्योंकि हिन्दु-मुस्लिम दोनों ही तटबंध पर घर-परिवार के साथ न्यूनतम जरुरतो के जुगाड़ की बराबर की लडाई एकसाथ लड रहे है। लालू यादव यहा नीतीश के विकास को फर्जी करार देते हुये कोसी पीड़ितो को सबकुछ दिलाने का चुनावी प्रचार करते हैं। लेकिन यहां यह भी मायने नहीं रखता। क्योंकि हर दिन खाना-पानी जुगाड़ने से लेकर रोजगार की तलाश में व्यवस्था का फर्जीवाडा उन्हें हर रोज भोगना पड़ता है। राशन कार्ड होने पर भी सस्ता गेहूं चावल नहीं मिलता। नरेगा का रोजगार कार्ड होने पर भी रोजगार नहीं मिलता। और तटबंध के किनारे टिके लोगों को रिहायशी इलाके में पीने का पानी तक चंपाकल से भरने नहीं दिया जाता। तटबंध पर टिके बडे बूढ़ों को चुनावी राजनीति से ज्यादा अतीत याद आ रहा है। कैसे चार दशक पहले बाढ़ के कहर से बचाने में संघ के स्वयंसेवक लगे। कैसे सरकार ने सालो साल तक पूड़ी-सब्जी की व्यवस्था करायी थी। कैसे उस वक्त पीने का पानी टैंकर में भर कर आता था। कैसे इलाज के लिये कैंप लगे थे और डाक्टर रात में भी डिबरी की रोशनी में उलाज करने से नहीं कतराते थे। और कैसे कुछ जगहो पर बच्चों को पढ़ाने के लिये कुछ स्वंयसेवी संगठनों ने ब्लैक बोर्ड लटकाया था। <br /><br />लेकिन तटबंध पर टिके हजारों परिवारों का साथ छोड़ते ही महज एक किलोमीटर चलने के बाद ही नीतिश,लालू और राहुल की गूंज साफ सुनायी देने लगती है। चूंकि वोटिंग का आगाज कोसी के इलाके से ही होना है। और 21 अक्टूबर को सहरसा,अररिया, किशनगंज,पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा और मधुबनी की 47 सीटो के लिये वोट डाले जायेंगे तो जिन रिहायशी इलाको में तटबंध पर टिके लोगों को पानी भरने नहीं दिया जाता, उन जगहों पर चुनाव को लेकर अभी से असली चिल्लम-पौ इसी बात को लेकर है कि कोसी के इलाके में पांच साल पहले नीतीश कुमार को वोट मिले थे...क्या वह इस बार भी मिलेंगे या बंट जायेंगे। और मुस्लिम वोट किधर जायेंगे या वह किस नेता का दामन थामेंगे।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com3