tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-60303263435251976142009-02-12T10:00:00.000+05:302009-02-12T10:00:00.817+05:30एक कविता : अराजनीतिक बुद्दिजीवियोंकहते हैं जब सवाल परेशान करें और कोई जवाब न सूझे तो कविता पढ़ लेनी चाहिये। इसलिये इस बार ग्वातेमाला के कवि अटो रेने कस्तिइयो की एक कविता पढ़ें । चर्चा अगली पोस्ट में....<br /><br />कविता का शीर्षक है - अराजनीतिक बुद्दिजीवियों<br /><br />एक दिन / मेरे देश के / अराजनीतिक बुद्दिजीवियों से / जिरह करेंगे / देश के सबसे सीधे सरल लोग / उनसे पूछेगे, वे क्या कर रहे थे / जब उनका देश मरा जा रहा था / धीरे-धीरे /नरम-नरम आग की तरह नन्हा और अकेले ।<br /><br />कोई उनसे नहीं पूछेगा /उनके खूबसूरत लिबास की बात / दोपहर के भोजन के बाद की / लंबी नींद की बात / कोई नहीं जानना चाहेगा / शून्यता के तमाम सिद्दान्त के साथ / उनकी बांझ लड़ाई / कैसी थी / कोई नहीं जानना चाहेगा, वह तरीका कौन सा है / जिसके जरिए उन्होंने इकठ्ठा किया - रुपया पैसा / उनसे सवाल नहीं किया जायेगा / ग्रीक - पुराणों के बारे में / या नहीं पूछा जायेगा / अपने को लेकर उन्हें कितनी उबकाई आ रही थी / जब उनके भीतर / मरना शुरु किया था एक / कायर की मौत / उनका अनूठा आत्मसमर्थन / जिसका जन्म /शुरु से अंत तक झूठ था /छाया में / उसके बार में कोई सवाल नहीं पूछेगा ।<br /><br />उस दिन / आएंगे सीधे सरल लोग / अराजनीतिक बुद्दिजीवियो की किताब या कविता में / जिन्हें जगह नहीं मिली / मगर जो लोग रोज उनके लिये जुटाते गये है / उनकी रोटी और दूध / उनकी तोर्तिया और अण्डे / जिन लोगों ने उनकी कमीज की सिलाई की है /जो लोग उनकी गाड़ी चलाकर ले गये है / जो लोग उनके कुत्ते और बगीचे की देखभाल करते रहे है / और उनके लिये खटे है - / वे पूछेंगे ../ क्या कर रहे थे तुम लोग / जब दुख तकलीफ से नेस्तानाबूद गरीब लोग मरे जा रहे थे, / और स्निग्धता और जीवन / उन में जल भुन कर खाक हो रहे थे? / हमारे इस सुन्दर देश के / अराजनीतिक बुद्दिजीवियों ! / उस समय कोई जवाब नहीं दे पाओगे तुम लोग । /<br /><br /><br />चुप्पी का एक गिद्द / तुम लोगों की गूदा और अंतडी फाड़कर खायेगा, / तुम लोगों की अपनी दुर्दशा ही / खरोंच-काटकर फाड़ती रहेंगी तुम लोगों की आत्मा, / और अपने ही शर्म से सिर झुकाए / तुम लोग गूंगे बने रहोगे ।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com15