tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-59390509164916418372009-11-15T23:27:00.002+05:302009-11-15T23:27:52.202+05:30बच्चे....सोचा था 14 नवबंर को बच्चों के बारे में लिखूंगा । लेकिन हिम्मत पड़ी नहीं...क्योंकि बच्चों के लिये हमने छोड़ा ही क्या है या क्या बना रहे हैं....जो लिखकर संतोष हो। अर्से पहले हरीश चन्द्र पाण्डे की एक कविता पढ़ी थी । याद आ गयी । तो आप भी इसे पढ़ें । इसका शीर्षक ‘बच्चे’ है। <br /><br />बच्चे<br />चूंकि बच्चे<br />विपक्षी की भूमिका नहीं निभा सकते<br />चूंकि बच्चों की <br />कोई सरकार नहीं होती<br />चूंकि बच्चे<br />अपने खिलाफ जांच में <br />जेबों के अस्तर तक उलट कर रख देते है <br />इसलिये बच्चो के बारे में<br />गंभीरता से सोचो<br />सोचो<br />केवल भूख लगने पर ही क्यों रोते हैं बच्चे<br />ब्रेक फास्ट के समय<br />राष्ट्रगान गाते हैं बच्चे<br />हंसी के एवज में <br />कभी वोट नहीं मांगते बच्चे<br />बच्चे / पेड़ पर लटके फल होते हैं<br />इसलिये <br />संजीदगी से सोचो / बच्चो के बारे में <br />बच्चों के बारे में किए गए निर्णय<br />कागज पर कुएं खोदने या<br />वृक्षारोपण के निर्णय नहीं<br />बच्चो के बारे में किए गए निर्णय<br />काली मिट्टी में <br />कपास उगाने का निर्णय है ।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com6