tag:blogger.com,1999:blog-82376613912458528172024-03-16T11:19:08.602+05:30पुण्य प्रसून बाजपेयीPunya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8237661391245852817.post-61323229565349629232008-12-22T09:22:00.000+05:302008-12-22T09:22:00.196+05:30अंधेरी रात में जलती मशालबंधु...। सरकार आतंकवाद के खिलाफ कुछ करना चाहती है, यह तो लग रहा है लेकिन फिलहाल मामला कड़े कानून तक ही है। लेकिन आतंकवादियों पर लगाम कसने के लिये बने कानून के दायरे में नक्सली भी आएंगे। मैंने सोचा और नक्सलियों की प्रतिक्रिया इस पर लेनी चाही, क्योंकि कोई आतंकवादी इस दायरे में कब ,यह तो देखेंगे...लेकिन नक्सलियों पर इसके जरिये लगाम लगाने की कोशिश जरुर<br />होगी। संपर्क साधा। कामरेड महिला से मुलाकात हुई। मुलाकात के दौरान क्या बात हुई और क्या निकला इस पर बाद में लिखेंगे। क्योंकि कामरेड का मानना है अभी तो कानून बनाने की पहल शुरु हुई है, जब लागू होगा तब मिजाज समझ में आयेगा। लेकिन उस महिला ने दक्षिण अफ्रीकी कवि ग्लेरिया म्तुंगवा की एक कविता भेंट की। लेकिन साथ ही चिन्ह-मिन्ह की जेल में लिखी कविता की दो लाइनें भी सुनायी....<br /><br />लेकिन, पहले भेंट की गयी कविता आप भी पढ़ें--<br /><br />निर्भिक विद्रोहिणी<br /><br /><br />कोमल और कमजोर स्त्रीत्व की उसकी चाह कभी नहीं रही,<br />उसने अपने जन्मदिवस पर ढेर फूल नहीं चाहे,<br />राजसी ऐशो आराम और भड़कीली गाडियों की चाहत नहीं की ।<br /><br />स्त्री मुक्ति का अर्थ वह बच्चे से अलग होना वहीं मानती,<br />स्त्री मुक्ति का अर्थ उसके लिये घर से बिखराव नहीं है,<br />स्त्री मुक्ति उसके लिये गुलाम और परेशान पिता से विद्रोह भी नहीं है ।<br /><br />वह तो अपने लोगों की छोटी से छोटी आवश्यक्ताएं पूरी करती रही,<br />उनके लिये वह बार-बार अपमानित भी हुई, लेकिन उसने बुरा नहीं माना,<br />हां,आततायी के सामने उसने आंसू बहाने से इंकार कर दिया ।<br /><br />अब न्याय की लंबी लडाई में मारे गए निर्दोषों पर भी वह नहीं रोती ।<br />उसकी केवल एक चाह है स्वतंत्रता<br />उसकी केवल एक चाह है-<br />मशाल बराबर जलती रहे ।<br /><br />भ्रष्ट्र और अनैतिक अल्पमत के अत्याचारों के समक्ष,<br />वह विद्रोहिणी निर्भीक खड़ी है,<br />ओढाई गई कृत्रिम भीरुता को उसने जीत लिया है<br />वह एक बडी लड़ाई को प्रतिश्रुत है ।<br /><br />वह सुंदर लग रही है,<br />उसके सौंदर्य को अब तक के प्रतिमानों से नहीं नापा जा सकता,<br />उसका मानदंड मानवता के प्रति उसका समर्पण है ।<br /><br />इस कविता का अनुवाद अर्चना त्रिपाठी ने किया है । जिसकी फोटो स्टेट कॉपी<br />देने के बाद कामरेड ने मुझे चिन्ह-मिन्ह की जेल में लिखी कविता की दो<br />पंक्तियां सुनायीं----<br /><br />विपत्ति आदमी की सच्चाई की कसौटी है।<br />जो अन्याय का विरोध करते है, वे सच्चे इन्सान हैं।Punya Prasun Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/17220361766090025788noreply@blogger.com3