दर्जनों सवाल इस तरह उठे, जैसे हम कश्मीर के हिमायती हैं और देश की नहीं सोच रहे हैं। और आप सभी में ज्यादातर को देश का दर्द है। चलिए, अब बतौर राष्ट्रवादी होकर ही ज़मीन पर हुए समझौते का जवाब दे दीजिए।
बंधु...
जम्मू में खुशी है समझौता हो गया है । अस्थायी ही सही 40 हेक्टेअर जमीन श्राईन बोर्ड को दे दी जायेगी, जब अमरनाथ यात्रा शुरु होगी । रंग-अबीर-गुलाल हवा में उड़ाये गए । दो महिने का संघर्ष रंग लाया । लेकिन यह खुशी किसकी है...कौन खुश हो रहा है । क्या वाकई वह हिन्दु खुश है जो सवाल खड़ा कर रहा था कि देश भर में जब मस्जिद-मकबरों को जमीन दी जा सकती है तो बाबा भोले के लिये 800 कनाल ज़मीन क्यों नहीं दी जा सकती है। क्या कश्मीरी पंडित खुश हैं जो दो दशकों के अपने दर्द को भोलेनाथ के नाम पर दी जाने वाली जमीन के आंदोलन के आसरे पहली बार सड़क पर कश्मीरी मुसलमानों के खिलाफ नारे लगा रहा था, जो जमीन दी गयी वह तो निर्धारित जमीन से आधी भी नहीं है।
और 800 कनाल ज़मीन देने पर पर राज्य सरकार की कैबिनेट ने मुहर लगायी थी। वो लागू भी हो गया था । बवाल सिर्फ दो वजहों से हुआ था । पहला, जो जमीन दी गयी थी उस पर स्थायी स्ट्रक्चर बनाया जा रहा था। दूसरा, सरकार को समर्थन दे रही पीडीपी समझ चुकी थी कि कांग्रेस सरकार की अगुवाई में चुनाव हुए तो वह निपट जायेगी । सौदेबाजी के तहत तीन साल की सत्ता पीडीपी भोग चुकी थी । अब जनता के सामने चुनाव में वह किस मुंह से जाती, यह सवाल उसे अंदर से खाए जा रहा था।
अपनी ही सहमति को उसने झटके में कश्मीर की अस्मिता का मुद्दा बना कर सरकार गिरा दी। दिल्ली में ऐसी राजनीति खूब खेली जाती रही है । हां, तो मामला है कि देश तो नब्बे करोड़ हिन्दुओं का है तो फिर 800 कनाल जमीन को लेकर सौदेबाजी की जरुरत क्यों आ गयी । और जो समझौता हुआ वह तो देश के हिन्दुओं के लिये नाक कटाने जैसा है। फिर 40 हेक्टेअर पर सहमति क्यों बना ली गयी। और अगर प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी की माने तो लड़ाई तो राष्ट्रवाद और अलगाववाद में है। अडवाणी जी के मुताबिक प्रधामनंत्री मनमोहन सिंह भी इस बात से सहमत है कि वाकई राष्ट्रवाद के खिलाफ अलगाववाद सामने खड़ा है। अगर सहमति देश की है तो फिर समझौते की जरुरत क्या है।
मुझे नहीं लगता इस समझौते से कोइ हिन्दू खुश है । कोई कश्मीरी पंडित खुश है । बात तो आर-पार की होनी थी फिर समझौता किसने कर लिया। जम्मू में दो महिने के आंदोलन में व्यापारियो को सौ करोड़ से ज्यादा का चुना लगा गया। जम्मू में जो व्यापारी हैं, और कश्मीर में जो बिचौलिये व्यापारी है, उनमे सिखों की तादाद भी खासी है। सिख समुदाय का दबाब पंजाब सरकार पर भी काम कर रहा था कि समझौता जल्द कराये। अन्यथा उनका व्यापार ठप होता जा रहा है। पंजाब में अकाली सरकार का भाजपा से समझौता है। भाजपा जिस तेवर के साथ आरएसएस कैडर के साथ खड़े होने की कोशिश जम्मू में कर रही थी, वही भाजपा की राजनीति और उसका व्यापार उसे चेता रहा था कि एक हद से आगे आंदोलन ले जाने की गलती वह न करे। भाजपा को चुनाव बाद सत्ता दिखायी दे रही है । भाजपा सत्ता में रहती है तो आरएसएस की महत्ता देश में कैसी बढ़ती है, यह वाजपेयी सरकार के दौर में समूचे देश ने महसूस किया। आरएसएस भी अपनी पुरानी थ्योरी जम्मू-कश्मीर-लद्दाख को अलग अलग राज्य बनाने के मुद्दे पर खामोश रही। यानी अमरनाथ की यात्रा में हर बरस शामिल होने वाले लाखों भक्तों की भावनाओं को भी समझौते में दफ्न कर दिया गया । सवाल यही से खड़ा होता है कि जिस जमीन की राजनीति की शुरुआत कश्मीर की राजनीतिक जरुरत से शुरु हुई उसका पटाक्षेप जम्मू की राजनीतिक जरुरत से हो गया। कश्मीर में आजादी ने नारे ने जम्मू को भड़काया और जम्मू के बंद व्यापार ने कश्मीर को भड़काया। जम्मू से कश्मीर जाने वाले हर रास्ते को बंद कर घाटी को देश से अलग-थलग कर यह बताने का प्रयास भी हुआ कि जम्मू के बगैर कश्मीर जन्नत रह नहीं सकती और कश्मीर ने आजादी का नारा लगा कर इस एहसास को भी उभार दिया कि उन हालातों में रास्ता जम्मू के बदले मुज्जफराबाद जाता है।
संयोग से सत्ता के मुनाफे पर टिकी राजनीति को भी अब बाजार के मुनाफे में ज्यादा उम्दा राजनीति दिखायी देने लगी है । इसी वजह से आर-पार के राष्ट्रवादी आंदोलन को खारिज कर सौदेबाजी की राजनीति को अपनाया गया। 40 हेक्टेअर जमीन का समझौता उस राजनीति का सच है, जिसमे समाज को बांट कर सुधार के उपाय वही संसदीय राजनीति अपनी जेब में रखना चाहती है जो अमरनाथ के जरीये राष्ट्रवाद को उभारती है...जो आजादी के नारे में अलगाववाद का उभरना देखती है।
अब आप इस सवाल को उठा सकते है कि समझौता हुआ तो शांति तो हुई। क्या समझौता न करके हालात बद से बदतर होने दिये जाते । यकीकन यह संभव नही है । लेकिन अगर आपको लगता है कि कश्मीरियों को पाठ पढ़ाना चाहिये...अगर आपको लगता है कश्मीर के लोग आंतकवादियों को पनाह देते है ..अगर लगता है कि कश्मीरियो का दिल पाकिस्तान में है ...अगर लगता है कि महबूबा मुप्ती सरीखी नेता देश की नहीं पाकिस्तानियों-आंतकवादियों की हिमायती है..तो फिर 40 हेक्टेअर जमीन का संमझौता क्यों । यह कैसे संभव है कि कश्मीर को लेकर हम एकबार पाकिस्तान का राग आलापे और दूसरी बार समझौते करके जीत का जश्न मना लें।
यकीन जानिये अमरनाथ यात्रा की जमीन को लेकर किसी दल-संगठन की भावना हिचकोले नही मार रही थी और आप जो उसमे हिन्दुस्तान का बिगड़ता नक्शा देख रहे हैं, उन्हे समझना होगा कि धर्म और राज्य एक साथ नही चल सकते। इतिहास टटोलिये भारत का नक्शा सबसे बड़ा-मजबूत कब था । मुगल काल में औरगंजेब और मौर्य काल में अशोक के दौर में । इन दोनो कालों में इनसे बड़ा शासक कोई दूसरा नही था । लेकिन दोनो का पतन तभी हुआ जब दोनों धर्म के प्रचार प्रसार में लग गये । एक इस्लाम के तो दुसरा बौद्द धर्म के प्रचार-प्रसार में । धर्म और राजनीति के आसरे देश को न समझे तो ज्यादा अच्छा है।
आतंकवाद से कश्मीर और मुसलमान को जिस तरह जो़ड़ कर देखने का माहौल बनाया जा रहा है, उस आंतक की काट आपसी रिश्तों से ही होगी । अन्यथा तथ्यों को समझिये कि देश में किसी राजनीतिक दल को 15 करोड़ वोट नही मिल पाते हैं । सबसे ज्यादा वोट भी किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल को मिलता है तो वह भी 13-14 करोड पार नहीं कर पाता । तो उसे बहुमत के पैमाने पर कैसे मापा जा सकता है। छोड़िए, मै एक और तथ्य सामने रखता हूं.....अमरनाथ मामले पर समझौता इस वक्त इसलिये हुआ क्योकि रमजान का महिना शुरु हो रहा था और इस महिने कश्मीर में खामोशी रहती है और जम्मू के लोग भी नहीं चाहते थे कि रमजान के दौर में आंदोलन-हिंसा का दौर जारी रहे ।
बिल्कुल सही बात करी है आपने.
ReplyDeleteआलोक सिंह "साहिल"
हर शुरुआत छोटे रूप से होती है। भारत विरोधी शक्तिओं के पराजय की शुरूआत है।
ReplyDeleteदूसरा आपका यह कहना अर्धसत्य है कि धरम पर आध्आरित राज्य बड़ा नहीं हो सकता। इस्लाम एक हाथ में कुरान और दूसरे में तलवार लेकर ही इतना प्रसार कर पाया।
आपका पूरा लेख पढने के बाद भी स्पष्ट नहीं हुआ कि वे कौन लोग हैं जो इतने खुस हैं। क्या वे कम्युनिस्ट हैं; क्या वे पाकिस्तान-परस्त लोग हैं; क्या वे गैर हिन्दू हैं?
बुद्धीजीवियों की बातें सरलता से समझना आसान नहीं होता. आपकी बातें समझने में असमर्थ हूँ. :(
ReplyDeleteलेख की शुरुआत आपने इस वादे के साथ की थी कि राष्ट्रवाद की बात करते हैं, लेकिन एक चतुर बाजीगर की तरह लोगों का ध्यान एक हाथ की और दिलाकर दूसरे हाथ से खेल कर गये. लीजिए आपकी कुछ बातों का जवाब: -
ReplyDelete1. क्या वाकई वह हिन्दु....कश्मीरी पंडित...खुश है
मुद्दा ही नहीं समझे आप. इसका कोई नतीज़ा निकलता हिन्दू और कश्मीरी पंडित खुश नहीं हो सकते थे. क्योंकि मुद्दा सिर्फ बाबा अमरनाथ की ज़मीन का ही नहीं, उन सब अत्याचारों का है जो घाटी में रह रहे हिन्दू सालों से सहते आये हैं. उन्हें आपकी इन घटिया पॉलिटिकल पार्टियों और लालची अलगाववादी ताकतों ने फिरौती पर रख छोड़ा था.
लेकिन फिर भी हिन्दू और कश्मीरी पंडित खुश हैं, क्योंकि यह शुरुआत है उस प्रोसेस की जिसे प्रतिकार कहेंगे. यह उन दबे कुचले लोगों की आवाज़ है जिन्हें इन्सान की ज़िन्दगी के लायक भी नहीं समझा गया. और अगर आप समझते हैं कि अमरनाथ आंदोलन पर यह खत्म हो जायेगा, तो गलत है.
2. व्यापारी को चूना लगा
व्यापारीयों को चूना तब भी लगता है जब पाकिस्तान के चमचे बाज़ार बंद करवाते हैं, और आतंकवादी राह चलते लोगों को ढेर कर कर्फ्यु की नौबत लाते हैं. इस बार तो व्यापारी भी इस आंदोलन में शामिल थे. इस आंदोलन के लिये दौ सौ करोड़ ही नहीं, कई लोगों के अपनी जानें कुर्बान की हैं. उनकी कीमत क्या लगाते हैं आप? उन्हें क्या फायदा था जो वो शहीद हुये?
क्या आपने नहीं देखा उस भीड़ को जिसका नारा था जीवे-जीवे पाकिस्तान! नुक्सान तो उस भीड़ के बंद से भी हुआ था. लेकिन अब व्यापारी भी इस आंदोलन में शामिल थे. उन्होंने भी निश्चय किया है कि देशद्रोहियों की छूट बंद हो, अगर नुक्सान ही होना है तो देशहित में हो, देशद्रोह में नहीं.
3.अगर आपको लगता है कि कश्मीरियों को पाठ पढ़ाना चाहिये...
सवाल कश्मीर की जनता का नहीं, कश्मीर की लीडरशिप का है. आतंकवाद कश्मीर की जनता स्पान्सर नहीं कर रही, पाकिस्तान स्पान्सर कर रहा है, लेकिन कश्मीर के लीडरान इसका पोषण कर रहे हैं, और मुफ्ती, अबदुल्ला और यासिन मलिक जैसे सत्ता के भुखे कश्मीर की जनता को देश के खिलाफ गुमराह कर रहे हैं.
कश्मीर की जनता आतंकवादियों को प्यार नहीं करती, उनसे डरती है, और उन्हें अपने देश से प्यार करने से रोकते हैं आपके उपर लिखित दोस्त. अगर आज कश्मीर मे सारे आतंकवादियों को नष्ट कर दिया जाये, और साथ ही वहां के ये लीडर देशद्रोह बंद कर दें तो कश्मीर को वापस स्वर्ग बनते देर नहीं लगेगी.
4. मुगल काल में औरगंजेब और मौर्य काल में अशोक...। दोनो का पतन तभी हुआ जब दोनों धर्म के प्रचार प्रसार में लग गये ।
इतिहास पढ़ना दूसरा है, समझना दूसरा. आपने पढ़ा, लेकिन समझा नहीं.
अ. औरंगजेब और अशोक इन दोनों मे एक और समानता थी. दोनों ने ही राज्य प्राप्ति के लिये अपने कुल, अपने भाइयों की हत्या की. इसलिये इन दोनों के सत्ता में आने के बावजूद इनके प्रति राज्य में बहुत दुर्भावना थी.
औरंगजेब ने दीन को अपना कवच बनाया, और मौलवियों का सपोर्ट जीतने के लिये धार्मिकता का आडंबर किया, और दीन के नाम पर न जाने कितने अत्याचार किये. याद रखिये जब तक औरंगजेब ज़िंदा रहा उसके इस प्रपंच के चलते मुगल सल्तनत का सूरज नहीं ढला, लेकिन उसके वशंज इतने बड़े राजनीतिज्ञ न बन सके.
कुलहंता अशोक का ब्राहम्णों से 36 का आंकड़ा था, क्योंकि वो उसकी सत्ता में खुश नहीं थे. उन्हीं का प्रभाव कम करने के लिये अशोक ने बुद्ध धर्म का इस्तेमाल किया. लेकिन उसकी मृत्यु के बाद ब्राह्मणों ने दूसरे राज्यों का सहारा लेकर बुद्ध धर्म का भारत से विनाश किया.
अगर आप ध्यान दें तो इन दोनों ने ही सत्ता के लिये धर्म का इस्तेमाल किया, ठीक उसी तरह जिस तरह मुफ्ती, और अबदुल्ला और मलिक कर रहे हैं. यकीनन इनका परिणाम भी वीभत्स ही होगा.
क्यों न आप इन्हें समझायें?
पाक हिन्दुस्तानी (Pure Indian)
बाजपेयी जी आपकी बातों से लगता है कि आप ही इस समझौते से खुश नही है. वरना समझौते में राजनीति की बू नही सूंघने लगते. हमें खुशी है कि जम्मू के लोगो ने प्रतिकार करना सीख लिया. जहाँ तक बात भाजपा या संघ की है तो उन्हें दोषी ठहराकर धरम निरपेक्ष दिखने वालो कि यहाँ कमी नही... इस आन्दोलन को हक़ की लड़ाई की शुरुआत के रूप में देखिये. परिणाम से आप भी खुश हो जायेंगे.
ReplyDeleteइरान में कोइ शरीयत का उल्लंघन नही करता , लडकियां बुरके में रहकर आसमान को छुने के लिये तैयार है जो पश्चमी देशों और विकसीत राष्ट्र की महिलाएं कर रही है ...इरान को विकासीत नही तो कम से कम पिछडा राष्ट्र भी नही कहा जा सकता । सवाल काश्मिर का है ..लेकिन आपने धर्म और राजनीति का घालमेल के बारे में बिल्कुल सही तथ्य को फरमाया है । कम्युनिष्टों के लिये वकौल मार्कस धर्म जनता के लिये अफीम है ..लेकिन बंगाल और केरल को लिजीये ..बंगाल के दशहरे का मुकाबला देश का अन्य शहर नही कर सकता ..उसी तरह केरल में क्या चर्च के अस्तित्व को नकार दिया गया ? सिद्धांत के मूलभूत चीजों को अपनाइये ..लेकिन इसका अनुवाद मत किजीये ..क्यूंकि क्रांति और विचार दोनों परिस्थितियों के अनुसार बनाये और ढाले जाते है । इसलिये बंगाल और केरल में मार्कसवाद अपनी जडें जमाये हुए है भले ही यूरोप और सोवियत संघ में इस विचारधारा की पराजय हो चुकी है । धर्म का इस्तेमाल यहां की तथाकथित पार्टियों ने अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिये किया ..एक मुद्दा नरम पडता है ..दूसरें की तलाश शुरु हो जाती है । जिस मुल्क में गणेश जी दूध पी सकते है ...गुलामी के प्रतीक बाबरी मस्जिद को गिराकर हिन्दु राष्ट्र की गरिमा कायम करने की अहं तुष्टी की जा सकती है ..वहां रोज नये नये काश्मिर , जम्मू ,और खालिस्तान के बोहरान से ये मुल्क के सामने दरपेश होते रहेंगे ।
ReplyDeleteManywar,Aapko tv par bhi dekhte sunte hain. Hamesha lagta hai ki aap sawal jyada uthate hain aur samadhan aapke paas kisi ka nahin hai. aap chit bhi meri put bhi meri ki bhasha men baat karte hain. kai baar lagta hai ki aap jaise varisth patrakaar ko poorvagrah se grasit nahi hona chahiye parantu lagta hai ki hain. aap ghoom phir kar sangh pariwar par aa jate hain aur har problem ki jad aapko sangh ya bjp men dikhai deti hai. Samjhota hua to kya yah desh ke hit men nahi hai? kya ghati ko aur jalne dena chahiye tha? agar samjhouta nahin hota to kya aapki nazar men sangh pariwar ya bjp iske liye jimmedar nahi hote?Bhai koi to stand hona chahiye aapka bhi. kahin aisa to nahin ki channel mein kaam karne wale yeh sochte hain ki unse bada bhuddi jeevi aur koi nahi hai. kyun ki weh bade bade netaon ko parde par apni man marzi ka sawal puch kar unhe musibat mein daal dete hain aur agar saamne wala bhari padjaye to us matter koi edit kardiya jaata hai.
ReplyDeleteसिर्फ़ एक सवाल....... कभी श्रीनगर में घूमते आपसे अगर पूछा जाये..... की भारत से आया है ?आप को कैसा लगेगा
ReplyDeleteअनुराग जी का सवाल कम शब्दो मे बहुत बड़ा है,
ReplyDeleteऔर वाजपेइजी की पोस्ट पर लंबी बहस हो रही है,
मैं तो इतना ही समझता हूँ की हमे पाकिस्तान पर हमला कर देना चाहिए और पाक अंडर कश्मीर को आपने साथ मिला लेना चाहिए
kaash buddhijeevi dharm-nirpeksh na hote! mere hisab se buddhijeevi apni jeevika ke liye buddhi bechte hain aur phir baaki ke baare me kya kaha jaa sakta hai???
ReplyDeletedoosri baat dharm-nirpeksh desh kitne hain duniya men, agar yeh theory itni hi umdaa hoti to baaki saare desh apnate.
teesri ki dharm-nirpeksh neta aur buddhijeevi iran, iraq, pak, bangla desh, china, amrerica me jaakar vahan bhi dharm-nirpekshta ki shuraat kyon nahi karte
वैचारिक मतभेद तो रहेंगे। किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुँचना आसान नहीं है।
ReplyDeleteसही बात करी है आपने.
ReplyDeleteप्रसून जी,
ReplyDeleteआपसे पिछली पोस्ट पर भी असहमति थी और इस पोस्ट को पढ कर भी निराशा ही हाँथ लगी। पता नहीं किंतु प्रतीत होता है जैसे किसी खीझ को उतारने के लिये आपने यह आलेख लिखा है। टीवी पत्रकारों को कैमरे के आगे हर बात वैसे भी स्थापित कर देने की प्रवृत्ति होती है चूंकि वहा तो कोई प्रतिकार कर नहीं सकता यही कारण है कि गलत दृष्टिकोण को भी आप कितनी साफगोई से रख पा रहे हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
भाजपा-संघ के माथे ठीकरा फ़ोड़ना "बुद्धूजीवियों" (बुद्धिजीवी नहीं) का एक प्रिय शगल रहा है, यही यहाँ भी हो रहा है। औरंगज़ेब को "महान" बताने की चाल भी स्पष्ट दिखाई दे गई वाजपेयी जी…
ReplyDeleteप्रसून जी ,
ReplyDeleteबात तीस या चालीस एकड़ जमीन की नही है बात है हिन्दु अस्मिता की ये जीत है हिन्दु आत्म सम्मान की ....इस समझौते से भाई लोगों को ये सन्देश एक बार फिर मिल गया होगा....(एक बार फिर) शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूँ कि ये संदेश गुजरात में पहली बार मिल चुका है इसलिए देश में दोबारा फिर कहीं दंगे नही हुए ....और ये संदेश है कि भारत का हिन्दु अब .....बुधिया की लुगाई नही रहा जिसे कोई भी धमका कर जिना कर ले....और ये संदेश भारत की नपुंसक राजनेताओं को भी गया है जो हमेशा ही इनके आगे हिन्दु हितों की बलि चढाते आये हैं.....
प्रसून जी,
ReplyDeleteहिन्दु खुश इसलिए है कि शायद पहली बार इसने अस्तित्व की अहिंसात्मक लड़ाई में सरकारी जीत दर्ज की है.... मामला जमीन का नही अस्तित्व को ललकारने का था....आप देख लीजिए न वादियों में मायूसी छा गयी है इसलिए नही कि चालीस एकड़ जमीन पर कुछ माह की अस्थायी प्रभुत्व किसी का चला गया है बल्कि इसलिए कि उन्हें लगने लगा है कि धर्म कि धार पर अब वो परचम नही लहरा पायेंगे कश्मीर की जमीन तो चीनी ने भी कब्जा जमा रखा है..और पाकिस्तान ने ही उसे ऐसे चीर रखा है कि उसकी शल्य चिकित्सा पता नही कब संभव होगी इन पर,,तो उन्हें गम है ही नही आपने । कभी मुसलमानी सोच के करीब बैठने की या तो कोशिश नही की है या हिम्मत नही जूटा पाये है और अगर ये दोनों स्थितियाँ असत्य है तो सच बोलने की शायद सोच नही बना पाये हैं । मुसलमानी सोच की हकीकत ये है कि वो महमूद गजनवी से लेकर बहादुर शाह जफर तक के शासन काल को ही अब तक अपने अधिकार का दस्तावेज मानते रहे हैं.... हर इंसान बराबर है हर देश बराबर है इसे सिर्फ हिन्दुस्तान ही मानता है क्योंकि यहाँ कि मूल सोच है वसुधैव कुटुम्बकम् औऱ कोई देश या कोई औऱ धर्म - संस्कृति इसे व्यवाहारिक धरातल पर कहाँ मानता है....
आप अपने टीवी कार्यक्रमों में बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन यहाँ भटके क्यों दिखते हैं
कुतर्क करना कोई कुमार आलोक से सीखे....चाटुकारिता करने के लालच में ये ऐसी वाहियात बौद्धिक पेचिश करता है कि चारो तरफ बदबू फैल जाती है....चाटुकारिता के ही चक्कर में ये पिछली पोस्ट की कमेंट में धारा 370 को उचित बता रहा था....और अब इरान में शरीयत की बात कर रहा है....और बुरके को उचित ठहरा रहा है ....जिस तालिबान को पूरी दुनिया खत्म करने पर तुली है उस तालिबान का ये प्रवक्ता यहाँ दिल्ली में खुले आम घूम रहा है ....बंगाल के दशहरे के बारे में ये कुतर्की भूल गया है कि वहाँ सिर्फ दशहरा रह गया है....टाटा नैनो का काम धाम बटोर रही है ....बिना रोजगार के दशहरे में सिर्फ फुलझड़ियाँ छुड़ाओ....इस रावण के भतीजे को ये नही मालूम कि सत्तर के दशक तक भारत की आर्थिक राजधानी वामपंथी शासन की वजह से कहाँ है और देश के दूसरे शहर मुम्बई, दिल्ली औऱ बंगलुरु औऱ नोएडा जैसे नए शहर कहां है....
ReplyDeleteप्रसून जी कुल मिलाकर कुमार आलोक का मूल मकसद चाटुकारिता करना ही होता है....अगर आप खमेर रूज या हिटलर की भी झूठी तारीफ कर दें तो ये चाटुकार न.1 भी अपनी कलम की सारी स्याही उनकी तारीफ में खत्म कर देगा ..यकीन न हो तो आजमा लें....ये रवीश के कस्बे पर भी चाटूकारिता के नए आयाम स्थापित कर चुका है....और मोहल्ले पर भी चाटुकारिता करता नजर आ जाता है....इससे बचके रहियेगा कहीं चाटुकारिता की बीमारी आपको भी न लगा दे....क्योंकि इसी की वजह से रवीश कुमार इस बीमारी के भयंकर प्रकोप से घिरे हैं....
accha laga ki jyadatar log prasunji ko impress karne ke liyae nahi bola. yae alg baat hai ki duragrah me galat bola.
ReplyDeleteपूरे घटनाक्रम में बस इसी एक धर्मनिर्पेक्ष एंगल की कमी थी. आपने पूरा कर दिया.
ReplyDeleteआपको कैसे पता चला कि इस फैसले से कोई हिन्दू या कश्मीरी पण्डित खुश नहीं है? जरा उस स्रोत का जिक्र भी कर दीजिए या फिर आप जो सोच सकते हैं उसे ही हिन्दुओं और कश्मीरी पण्डितों की राय मानकर हम आपकी बात स्वीकार कर लें?
आपसे ऐसे ब्लाग लेखन की उम्मीद न थी.
सारे राष्ट्रभक्त पुण्यप्रसून के ब्लॉग पर भोथरे तर्कों को लेकर पहुंच गए हैं. चलो भाई-बहनों, इन राष्ट्रवादी जज्वों को बचाकर रखना. क्योंकि अमरनाथ के बाद फिर कुछ उछलेगा और आपलोगों को उसकी वकालत करनी पड़ेगी. आपकी राष्ट्रभक्ति में कुछ बेहद ज़रूरी चीज़ों की कमी है बस एक बार याद दिला देना चाहता हूं: धैर्य, सहिष्णुता, जवाबदेही, सार्वजनिक संपत्तियों और संस्थाओं के प्रति सम्मान तथा इमानदारी. अगर आखिरी वाला तत्व अर्थात इमानदारी हो तो सोचिएगा, समस्याएं भी समझ जाएंगे आप और समाधान भी नज़र आने लगेंगे आपको.
ReplyDeleteआपका राष्ट्र उस जर्जर मकान की तरह है जिस पर रंग-रोगन हर साल होता है, पकी मूछों को घी-तेल के सहारे नुकीली बनाए दरवान उसकी रखवाली करते हैं लेकिन उसमें रहता कोई नहीं है. मुबारक़ हो आपको आपका राष्ट्र.
आपको सुना बहुत था काफी अच्छे पत्रकार है,आपकी समय से विदायी पर मुझे काफी दुख हुआ था, कई ब्लागर पत्रकारो से मैने पूछा कि प्रसून जी किस चैनल पर आने वाले है, शायद यह आपकी अच्छी प्रस्तुति का नतीजा था किन्तु आज आपकी बातों को पढ़कर काफी अफशोस हुआ, इसलिये भी जिसे हम आदर्श मान कर चलते है, उसी की बातों से हृदय पर कुठाराघात होता है। ऐसा नही था कि गोड़से गांधी विरोधी था इसलिये उनकी हत्या किया था वास्तविकता ये थी कि वो बहुत बड़ा गाधी भक्त था इस कारण गांधी के दूषित विचारों को जान कर उनकी हत्या किया था। सच में आज आपने अपने असंख्य श्रोताओं का दिल तोड़ा है, और ऐसे ही होती है गांधी हत्यायें।
ReplyDeleteप्रसून जी जिस मुल्क ने १८३४ तक जजिया ( हिंदू होने का कर) दिया हो उसे शायद यह समझोता सम्मानजनक जरुर लगेगा .हम चाहे कितनी भी कोशिस कर ले ११९२ के बाद के इतिहास से पीछा छुडाना मुश्किल है. बहरहाल एक इतिहास और भी है की हिंदू और मुसलमान इस मुल्क में पिछले १५०० साल से साथ रहते आए है और इतिहास इसे भी दुहराता रहेगा
ReplyDeletePrasun ji jugad laga rahe hai......koi party join karne ke liye? ye sab jugadu log hai..........
ReplyDeleteanup
Ashmat Hoo Aaki Bato Se
ReplyDeletelagta hai ki aapka koi bihar ki baad mien bah gaya hai isiliye aapko sadma lag gaya hai aur aap aisi bakwas kar rahien hai.
ReplyDeleteaur anuragji ka sawaal bahut hi achcha tha so bajpai think about it.
Lokesh Yadav
मैने पिछले कुछ महीनों में पुण्य प्रसून जी की काफी चर्चा सुनी है। सहारा में उनके प्रयासों को देखते हुए मैनें उनपर एक लेख भी लिख डाला था क्योंकि मुझे लगा कि शायद वे कुछ विशेष करना चाहते हैं। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद मुझे काफी अफसोस हुआ कि मैंने अपना लेख जल्दबाजी में लिखा था। पुण्य प्रसून वास्तव में करना क्या चाहते हैं वे स्वयं भी नहीं जानते। उनके विचारों में स्पष्टता नहीं है, उलझाव है। वे एक आडम्बर में जी रहे हैं तभी तो एक करोड के सालाना पैकेज पर सहारा में जाकर सामाजिक सरोकार की बात करते हैं और सामाजिक समानता की बात करते हैं। आखिर समाज सुधार ही करना था तो साधारण वेतन पर काम करते। इतना ही नहीं उनके आडम्बर का ये हाल है कि स्वयं को संघ के निकट भी बताते है तो कभी नक्सलियों की हिमायत करते हैं। जिन्हें मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा है वे सोमवार के जनसत्ता में उनका भारी भरकम आलेख पढ लें जो देखकर लगता है कि वे राज्य के विरुद्ध माओवदियों का समर्थन करते हैं। अब रही सही कसर उन्होंने जम्मू में अमरनाथ भूमि विवाद के साम्प्रदायीकरण से कर दी। सर्वप्रथम तो मेरा लोगों से आग्रह है कि वे पुण्य प्रसून जैसे लोगों को महत्व देना बन्द करें जिसको यह भी नहीं पता कि उनकी विचारधारा क्या है, या फिर वे करना या कहना क्या चाहते हैं। जिस प्रकार पिछले कुछ महीनों में नक्सली और इस्लामी आतंकवादी एक हो रहे हैं ऐसे में इस प्रकार के नक्सल समर्थक और फिर कश्मीर के राष्ट्रविरोधी तत्वों के समर्थन में लिखे गये आलेख किसी बडे षडयंत्र की ओर संकेत करते हैं। आज यह आवश्यक हो गया है कि देश में कोई ऐसा कानून बने जो राष्ट्रविरोधी तत्वों और अलगाववादी तत्वों का साथ देने वाली शक्तियों को देशद्रोह के आरोप में जेल में डाले फिर वह कश्मीर की आजादी पर एक घण्टे का विशेष शो दिखाने वाला टीवी चैनल हो या फिर किसी बडे अंग्रेजी समाचार पत्र का सम्पादक हो स्तम्भकार हो या फिर कोई पुलित्ज़र विजेता लेखिका हो। क्योंकि आज हिन्दुत्व के बहाने राष्ट्रवाद और देशभक्ति को गाली दी जा रही है।
ReplyDeleteबाजपेयी जी सटीक पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई। अभी तबीयत जरा ठीक नहीं है माफ किजीये, विस्तृत टिप्पणी बात में दे पाउंगा।
ReplyDeleteभाई राहुल क्यो अपना संघी छाप खाली भेजा लिये जहा देखो वहा टांग अडाते फिरते हो। पोस्ट व तमाम टिप्पणीया देख तो मुझे नहीं लग रहा कि बहस आलोक पर चल रहीं हो, इतनी अच्छी बहस में आलोक को टारगेट करने में कहा लग गये आप। इस तरह व्यक्तिगत खुन्नस सार्वजनिक स्थलो पर निकाला जाना अच्छे मैनर्स की निशानी नहीं है।
धारा 370 लगने के पिछे आपकी हिन्दू महासभा की क्या भूमिका रहीं जरा पता लगाये के आये, गद्दार हिंदू राजा के दरबार में जी हुजुरी कौन करता बैठा था? काश्मीर में तो कम्युनिस्टो ने आजादी के पहले भी कुर्बानी दी अब आतंकवादीयों से निपटने के लिये भी वे ही खडे है। आपके पाकिस्तानी भगौडे पी एम के दावेदार को काहे नहीं भिजवाते आतंकवादीयों से लडने। वैसे आप भी जा सकते है वहा।
राहुल भाई मौका तो नहीं है पर आपने जब पुछा ही तो जवाब देते चलता हू - हमारी तो बडी कोशिश है कि बंगाल डेवलप करे पर ममता दीदी व आप जैसे शुभचिंतकों के चलते ही बंगाल विकास नहीं कर पा रहा है। इंशाअल्लाह ममता के किये का अवाम तगडा जवाब देगी, देखते रहिये आप।
अच्छा प्रवचन है,जय हो स्वामी जी
ReplyDeletevajpaye ji namaste,
ReplyDeletei want to post a comment earlier.but not because i want to read you some more.
and after reading you i see that
1->you are unable to understand wha you want to say.
2->you should study or see a subject
from every side.not from only minority side.
3->its not good for journalist to pleasant the people who are in power or near this.
reply must want to discuss with you.
bhartiya youth.
whitedutt@gmail.com
आप किस एंगल से बात कहते हैं... आप ब्लॉग पर लिख रहे हैं या स्टूडियो में किसी के दबाव में प्रस्तुत कर रहे हैं.
ReplyDeleteसमझना मुश्किल है.