बीस बाईस साल की एक लड़की अचानक मेरे कुर्सी के पास आयी। उसने सीधा सवाल किया-" बिना किसी आरोप के पुलिस-अदालत-सरकार किसी को भी बारह साल तक जेल में कैसे बंद रख सकती है।" मैंने भी कहा- "बिलकुल...असंभव है।" इस पर उस लडकी का मासूम सा जबाब था –"दैन वाट्स द मिनिंग आफ गवर्नमेंट।" मैंने कहा- "सवाल सरकार के होते हुये भी न होने का नहीं है, बल्कि नयी परिस्थितियां तो सराकार के होने पर सवाल खड़ा कर रही है । यानी सरकार है तो स्थिति खराब है..... । जी, मैंने कहा... स्थितियां इससे भी बदतर हो रही है..हम दिल्ली में रहते है ...काम करते हैं, इसलिये अंदाज नहीं लगा पाते कि सरकार का होना भी कितना खतरनाक होता जा रहा है।" सॉरी सर ..बट आई डांट थिंक लाइक दिस...मुझे लगता है कि सरकार है तो सुरक्षा है...एक सिस्टम है...नहीं तो कुछ नहीं बचेगा । ऐसा ही हम सभी को सोचना चाहिये.....ओके सर कांगरेट्स..गोयनका अवार्ड के लिये....मैं हेडलाइंस टुडे में हूं । आई एम सौम्या विश्वानाथन ।
18 अप्रैल 2005 में रात नौ बजे के आसपास का वक्त था..जब मैं "आजतक" में 'दस तक' की तैयारी में था। आंतकवादी कानून टाडा के तहत विदर्भ के सैकडों आदिवासियों को सालों साल जेल में बंद किया गया था और मैंने उन्हीं आदिवासियों पर रिपोर्ट की थी, जिस पर इंडियन एक्सप्रेस का अवार्ड मिला था। उसमे एक आदिवासी को बारह साल जेल में गुजारने पड़े थे, जिसकी रिपोर्ट दिखायी गई तो अदालत और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की पहल के बाद उसे छोडा गया था।
संयोग से 18 अप्रैल 2005 को वह आदिवासी भी नागपुर से हमारे प्रोग्राम में जुड़ा। जिस पर "हेडलाइन्स टुडे" की उस लडकी ने सवाल उठाया था । वहीं सौम्या का पहला परिचय मेरे लिये था। सामान्यता "हेडलाइन्स टुडे" की कोई लड़की आजतक वालों से खबरो को लेकर बातचीत करते मैंने न कभी देखा था, न ही किया था। इसलिये मेरे लिये भी यह एक आश्चर्य की बात थी। जिसका जिक्र मैंने उस वक्त हेडलाइन्स को हेड कर रहे श्रीनिवासन को बधाई देते हुये किया था – "लगता है आपकी मेहनत रंग ला रही है जो खबरो को लेकर हेडलाइन्स की लडकियां बातचीत करने लगी है।"
सौम्या का यह पहला संवाद एक झटके मेरे दिमाग में घुमड गया 30 सितबंर 2008 को। सुबह सुबह हरपाल को मैसेज आया...."जस्ट गॉट ए कॉल फ्रॉम राशिम, सौम्या विश्वानाथन पास्ड् एवे लेट लास्ट नाइट आफ्टर ए कार एक्सीडेंट.. हर क्रिमिनेशन विल टेक प्लेस एट 3 पीएम एट लोधी क्रिमिटोरियम ।" यह मैसेज मेरे लिये विश्वास करने वाला नहीं था। क्योंकि मेरे दिमाग में सौम्या की हर वह तस्वीर घुमड़ रही थी, जो इस भरोसे को डिगा रही थी कि सौम्या चाहती तो भी उसकी उम्र..उसकी समझ...उसके अंदर की कुलबुलाहट...उसकी सरलता..उसकी सादगी उसे मरने नहीं देती । क्योंकि मेरे आंखो के सामने पहली मुलाकात के अगले ही दिन 19 अप्रैल 2005 की सौम्या की वह तस्वीर भी आ गयी, जब वह अचानक सामने आकर खड़ी हो गयी और कहने लगी.. "सर कल जो मैंने कहा आप उससे नाराज तो नहीं है।" मै आश्चर्य में आता..इससे पहले ही वह कह पड़ी "सिस्टम है तो ही सब चल रहा है । इसे नकारा कैसे जा सकता है।" मुझे लगा यह लड़की किसी को नाराज या दुखी करना तो दूर, , इस सोच से भी घबराती है कि कोई उसकी बात से कहीं दुखी या नाराज तो नहीं हो गया । मुझे लगा भी कि जिस तरह की व्यवस्था देश में बनती जा रही है और पत्रकारिता भी जिस लीक पर चल पडी है, उसमें इतना संवेदनशील होना किस हद तक सही है।
ऐसे में जब शाम ढलते ढलते यह खबर मिली कि सौम्या की मौत एक्सीडेंट से नहीं गोली लगने से हुई है तो एकसाथ सौम्या की मौत की वजह और सौम्या की सरलता दिमाग में घुमने लगी। करीब दो साल के दौर की कोई घटना मुझे याद नहीं आ रही थी, जिससे सौम्या को लेकर यह लकीर खींची जा सकती हो कि सौम्या को गोली मारने वालो ने इस या उस वजह से मारा हो। या फिर मारने वालों को सौम्या ने किसी तरह उकसाया भी होगा। इन सब के बीच मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बयान ने कई सवाल खड़े कर दिये। शीला दीक्षित ने कैमरे के सामने भी ये कहने से नहीं हिचकिचायीं कि "इतनी रात में सौम्या को इतना एडवेंचर्स होने की क्या ज़रुरत थी।" सवाल ये कि क्या रात में लड़कियो के अकेले निकलने का मतलब उनके साथ कुछ भी होने की स्थिति है और उसके बाद राज्य पल्ला झाड लेगा ? या फिर रात में किसी लड़की को राज्य सुरक्षा देने की स्थिति में नहीं है , उसके साथ छेड़-छाड़ होती है...बलात्कार होता है ....गोली मार दी जाती है ...यानी कुछ भी हो सकता है इसकी समझ हर लड़की को अपने अंदर पैदा कर लेनी चाहिये।
मेरे सामने सवाल है कि सौम्या खुले आसमान तले घर से बाहर अपने पैरो पर जब से निकली ..दिल्ली की सत्ता शीला दीक्षित के ही हाथ में है। तो शीला दीक्षित लड़कियो को लेकर जो सौम्या की मौत पर सबको समझाना चाहती है, वह सौम्या जीते जी क्यों न समझ सकी। जब दिल्ली में सीलिंग का हंगामा था तो गुडगांव रोड के फैशनस्ट्रीट की दुकानों को तोड़े जाने पर उच्च वर्ग की महिलाओ की आंखों से आंसू गिरने को दिखाए जाने के दौरान सौम्या भी भावुक थी । उस समय हेडलाइन्स टुडे के हरपाल ने मुझे बताया कि उसके यहां की लड़किया सीलिंग को लेकर भावुक हैं मगर सभी सरकार के रुख का समर्थन भी कर रही हैं। दिल्ली को दिल्ली की तरह सभी देखना चाहते हैं। तो जिस सिस्टम की बात सौम्या ने एक आदिवासी के 12 साल बेवजह जेल में बंद होने पर उठाया था, लेकिन उसके बावजूद सरकार पर भरोसा उसका था और सिस्टम खत्म नहीं हुआ है, इसे वह मानती थी, तो माना जा सकता है युवा तबके के भीतर आस बरकरार है। लेकिन सौम्या की हत्या के हालात ने यह सवाल तो पैदा कर ही दिया कि न्यूज-चैनलों के भीतर का समाज और खुले आसमान के नीचे का समाज अलग अलग है। इस पर युवा पीढी जिस बाजार व्यवस्था को देखकर विकसित भारत का सपना संजोये हुये है, उसमें पहला खतरा ही जान जाने का है । क्योंकि देश - राजनीति- या समाज में कहीं ज्यादा खुरदरापन उसी दौर में आया है, जिस दौर में एक तबके के भीतर चकाचौध आयी है।
सौम्या को न्याय दिलाने की मांग लिये शनिवार को प्रेस क्लब में जब पत्रकार और उसके संगी साथी जमा हुये और एक लड़की ने जब यह बताया कि हेडलाइन्स टुडे की उस कुर्सी पर कोई बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है, जिस पर सौम्या बैठती थी। तो मुझे लगा समाज के भीतर बनते दो समाज की अगली लड़ाई भरोसे के टूटने की होगी। और युवा पीढी का भरोसा अगर सिस्टम को लेकर टूटा तो अंधेरा कहीं ज्यादा घना होगा।
Its asked by saumya that what's the meaning of goverment? is a question by majority of Indians but the politicians never answered properly. What kind of democracy is in India?
ReplyDeleteपुण्य जी ,जय माता दी, सौम्या विश्वनाथन के जब्ज्बे को सलाम .भगवान उसकी आत्मा को शांती दे और साथ में ऊँचे पद पर बैठे लोगो को इत्ना बुद्धी दें की वे या तो कुछ न बोलें और अगर बोलें भी तो हमारी भावान्वाओ का ख्याल रखें
ReplyDeleteपुण्य जी, मैं आपकी बातों से बिलकुल इत्तफाक रखती हूँ। शीला जी का बयान न सिर्फ गंभीर रुप से खतरनाक बल्कि सौम्या जैसी कई युवतियों के बुलंद हौसलों को कमजोर कर सकता है। उनके मातापिता को डरा सकता है। क्या शीला जी किसी दौरे के समय रात में सड़क पर नहीं निकलती? जाहिर है निकलती होंगी और वर्तमान में ही नहीं युवाअवस्था में भी निकलती होगी। तभी आज एक गरिमामय पद पर हैं। यदि आज की युवति हर मुकाबले में पूरे दमखम से नही खड़ी रहेगी तो न सिर्फ पिछड़ जाएगी बल्कि आने वाली पीढ़ि को भी घिसी-पिटी रिवायतों को सीख देती नजर आएँगी। हमरा पेशा ही ऐसा है कि हमें देर रात में भी सड़क पर निकलना होता है। और मान भी लें यदि हम पत्रकार नहीं सिर्फ किसी की बेटी हैं, अच्छी बहू हैं तब भी यदि घर का पुरूष सदस्य बीमार पड़ा है तो क्या हम देर रात दवाईँ लेने सड़क पर नहीं निकलेंगे? शीला जी का यह बयान खुद की जिम्मेदारियों से बचते हुए एक साहसी, संवेदनशील लड़की के ज़ज्बे पर अंगुली उठाना था ...जो हम जैसी हरएक लड़की के लिए नागवारा है...मेरे अभिभावकों का कहना था कि लड़की शक्ति और शौर्य का संगम होती है....ऐसे में एक महिला जो स्वंय शक्ति और शौर्य का पुंज रही हो..जीवट हो उसके मुख से ऐसी बाते निकलना नितांत निंदनीय है।
ReplyDeleteये बयान एक ऐसे व्यकतित्व के मुख से निकला जो स्वयं इसी समाज का हिस्सा हैं और प्रतिनिधित्व भी करती हैं...समय के साथ पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलने की चेष्टा रखने वाली महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रेरणास्त्रोत शीला दीक्षित का ऐसा बयान निश्चित ही खतरनाक है...मुख्यमंत्री का ये बयान अचंभे में डालने वाला है...इसका एक कारण तो ये कि शीला जी की पुष्टभुमि महिलाओं के हक के लिए लड़ने वाली नेता के रुप में रही है..अगर मैं गलत नहीं तो ये वहीं शख्सियत हैं जिन्होने 1970 में यंग विमेन एसोसिएशन के चेयरपरशन के तौर पर कामकाजी महिलाओं के लिए दो सबसे सफल हॉस्टल खुलवाने का जिम्मा उठाया था..ये वही शीला दीक्षित हैं जिन्होने युनाइटेड नेशन में महिलाओं के हक की लड़ाई का पांच सालों तक भारतीय प्रतिनिधित्व किया था..और सबसे बड़ी बात अगस्त 1990 की एक घटना के बारें में भी कहीं पढ़ा था जिसमें शीला और उनके साथियों को 23 दिनों तक जेल की हवा खानी पड़ी थी..काऱण जानकर आश्चर्यचकित न होइएगा(उनके हालिया बयान से जोड़कर देखने पर)..शीला जी ने उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था ..इस मोर्चे ने आम लोगों में एक लहर पैदा कर दी और लाखों लोग शीला जी के साथ जुड़ गए...इससे पहले महिलाओं के हक के लिए इतनी बुलंद आवाज उठाने की शायद ही किसी महिला ने हिम्मत की थी...जिसे इतने व्यापक रुप में जन समर्थन प्राप्त हुआ हो...आज 2008 में अगर एक महिला पत्रकार की हत्या पर शीला दीक्षित का अपने पुष्टभुमि के विपरित बयान आता है तो इससे तो यही प्रतित होता है कि उन्हे अपने ही शासन पर से भरोसा उठ गया है...या यों कहे अपने लोगों पर से ही भरोसा उठ रहा है..जिनके आगे पंगु सी दिखाई पड़ रही है सरकार और व्यवस्था..आखिर लोगों में इतनी घृणा ...इतना गुस्सा ..इतनी हैवानियत क्यों हैं...कि किसी की हत्या जैसे अपराध करने पर उतारु होना पड़े ..क्या प्रेम और दया जैसे शब्द सिर्फ किताबी रह गए हैं..क्या देश की राजधानी दुनिया में भारत की यही तस्वीर दिखाता है..जिसमें महिलाओं का जीवन और आजादी दोनों हाशिए पर दिखाई पड़ते हैं...क्या अब यहां महिलाओं को नौकरी अपनी सुरक्षा को ताक पर रख कर करना होगा...क्या शासन कि कोई जिम्मेदारी नहीं अपने नागरिकों के प्रति...और क्या नागरिकों को स्वयं में संयम बरतने की जरुरत नहीं हैं ...आज समाज को आत्म मंथन की सबसे ज्यादा जरुरत दिखाई पड़ती है...सौम्या मीडिया कर्मी थी और सभ्रांत परिवार की थी...इसलिए ये मामला इतना छाया हुआ है और जिसके कारण मुख्यमंत्री का बयान भी आया पर ऐसी ना जाने कितनी ही महिलाओं के साथ पूर्व में घटनाएं हुईं हैं पर न शासन न मीडिया किसी ने उसपर बात करने की जहमत नहीं की..
ReplyDeleteSUNIL PANDEY SAID.....
ReplyDeleteभगवान सौम्या के आत्मा को शांति दे...आपने सौम्या के व्यक्तित्व के बारे में इतने विस्तार से बताया इसके लिए आपको धन्यवाद...अगर शीला जी मन से महिला हैं तो उनको सौम्या की आत्मा और पूरे महिला वर्ग से माफ़ी मांगनी चाहिए...सबसे गम्भीर बात जो आपने लिखा है वो है सिस्टम के बारे में, वाकई अगर नौजवानों को पुलिस, सिस्टम और सरकार पर से भरोसा उठ गया तो वो दिन सोच कर ही डर लगता है पता नहीं क्या होगा...
Sir,
ReplyDeleteone thing i want to share with your blogg,that is kya ab samay aa gaya hai ki kahi na kahi samaj me jouranalism ek hashiye pe aa gaya hai. aisa main is liye kah raha hoon ki na to kisi politician ne na to aam janta ne saumya k hak me koi awaj uthai hai. hum bhi isi profession se jude hai. ek samay tha jab kisi newspaper k editor ki tabiyat khrab hoti thi to neta khud chal kar aaj aa jate the. lekin ab aisa nahi dikhta. ya to hamre neta rajniti me itne busy ho gaye hai ya phir wo jante hain ki wo kuch bhi kare reporter to unhe dikhayenge hi.
Abhinav shah
अभिनव भाइ ढिक कहते है पहले नेता घर जाता था पत्रकारों की तबियत बिगडने पर ..और अब स्वधन्यमान पत्रकार जाते ..नेता जी को छिंक क्या आ जाती है पूरे पत्रकारिता जगत को सर्दी हो जाती है ...शीला आंटी तो सीएम है ...अरे अब तो छुटभइये नेता भी पत्रकारों को सरेआम जलील कर देते है ।उसके लिये पत्रकार विरादरी ज्यादा जिम्मेदार है नेताओं के बजाय। सौम्या की मौत को भी पुलीस प्रशासन और शासनतंत्र रफा दफा करने पर तुली है ...इश्वर उनकी आत्मा को शांति दें ..और दोषियों को कडी सजा मिले ।
ReplyDeletepunya ji namaskar. i'm a student of hindi journalism from IIMC. its very shoking that the chief of delhi is talking in such a manner, which is absolutely not acceptable in a civilised society. we r ready to protest to any extent against government. plz take some initiative sir.
ReplyDeleteplz reply sir , my cell no is 9990476926 n my gmail account is ranveer28singh@gmail.com.
ReplyDeleteIt is naive to think that government provides deterrence against crime. In our country people are generally law abiding therefore some semblance of sanity. The government and its extension the government employee is in a comfortable fix making laws and maintaining law to help each other. The government-people interface is so stern that most feel relieved at not having to do anything with the government.
ReplyDeleteअंधेरा तो बढ़ ही रहा है।
ReplyDeletesir ap se ek baat puch sakti. jo bayan cm ne diya hi esase to yahi lagta hi ki ladkiyo ko night duity nahi karna chaiye. jabki media mi to teno sift mai kam karna padta hi or agar nahi hum log mana karege to hamare boss ka sirf yahi javab hoga ki ap log nukri na kare ghar par rahe.eska matlab hum kabhi age nahi badh sakte hi. plz ap batiye hame kya karna cahiye.
ReplyDeleteप्रसून सर, काश श्रीमती दीक्षित से कोई यह पूछे कि क्या घर से बिना निकले ही आज वह दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गयीं? क्या रात में सिर्फ़ और सिर्फ़ अराज़क तत्वों को स्वछन्द विचरण करने का अधिकार है? कल को किसी लेडी डॉक्टर को किसी की जान बचाने निकलना हो, तो क्या वह रात को इस डर से न निकले कि कहीं कोई वारदात न हो जाए और शीला मैडम उसे ऐडवेंचर साबित कर पल्ला झाड़ लेंगी.
ReplyDeleteइस देश की संस्कृति में तो यह कहीं न था कि मृतात्मा के लिए ऐसे बेतुके शब्द बोले जाएँ, क्या आतंकवाद की राजनीति करते करते मैडम यह भी भूल गयीं कि हमारा साथ छोड़ कर जाने वाली एक युवा पत्रकार थी जो एक अपराधिक हादसे का शिकार हुई है.
वैसे दिल्ली की मुख्य मंत्री साहिबा का क्या कहना, महोदया एक वक्त तो ब्लू लाइन को भी क्लीन चिट दे चुकी थीं. सड़क पर चलने वालों को ही दोषी बना दिया था, मरने वालों पर राजनीति करना शीलाजी हों या अमर सिंह, यह तो इनकी प्रजाति और बिरादरी का जन्मसिद्ध अधिकार है.
जिस चालाकी से यह बिरादरी काम करती है, उसका अंदाजा आप आपके शरीर में इनके विष दंत घुस जाने का बाद ही लगा पाएंगे. अब जैसे कि हमारे देश के, सदी के महनायक के छोटे भइया का उदहारण ले लें.
उन्होंने दरियादिली दिखाते हुए दिल्ली पुलिस के एक जज्बाती और मामूली से इंसपेक्टर के मरने पर पूरे दस लाख रूपये उसके परिवार को देने कि घोषणा कर दी, इंसपेक्टर भी जज़्बाती था, इसीलिए बेटे को अस्पताल में छोड़कर तो जान से हाथ धो बैठा और उस से ज्यादा जज़्बाती यह भारत नाम का राष्ट्र, किसी कमबख्त की नज़र ही नही गई कि चेक पर, शब्दों में तो दस लाख लिखा है पर अंकों में सिर्फ़ एक लाख.
इस देश कि बेवकूफ जनता यह नही समझ पायी कि यह बिरादरी हमेशा से गिनती गिनने में शब्दों और अंकों में फर्क करती रही है.
हम लोग शीला दीक्षित के बयान को सही से समझ नहीं रहे! वो कहना चाहती थीं कि लोग घर पे बैठें, नौकरी न करें, दिल्ली की सरकार उनको बिठा के खिलाएगी।
ReplyDeleteअब तो बस यही उम्मीद है कि हत्या की गुत्थी जल्दी सुलझे!
पुण्य जी, मैं सौम्या को नहीं जानता... पर इतना जरुर जानता हू की सौम्या या फिर किसी और को भी...इतनी बेरहमी से कत्ल करने का हक किसी को नहीं है...पर आरुषि के मर्डर को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने वाली मीडिया अपने एक साथी की हत्या पर चुप क्यों है..ये बात मेंरी समझ के परे है....
ReplyDeleteशीला दीक्षित का यह बयान निंदा योग्य है. उन्हें दिल्ली की मुख्य मंत्री बने रहने का अब कोई नेतिक अधिकार नहीं रहा.
ReplyDeletevajpeyi ji,
ReplyDeleteplease visit my blog for
Koshi Kavita,
the reality of New Bihar.
I am working in Bihar, IPS
officer, now as DIG muzaffarpur
अपराध करे जो, बचा रहे
व्यभिचार करे जो, बचा रहे
नौकर, मालिक की चाल चले
नौकरशाही फूले व फले
तब लोकतंत्र गल जाता है
नौकर, मालिक बन जाता है
सर आपकी बात सही है , लेकिन इससे आगे एक बात और है जिसे समझना जरुरी होता है वह यह है की हम किस के समाज और सरकार के बीच रह रहे है। शायद सोम्या ये भुल गयी थी , गुलामी के अगर कूछ है तो वह आजादी है और आजादी अगर कूछ है तो वह जिम्मेदारी होती है , तो समाज को ले के सारी जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की है, देश में आज भी 70 प्रतिशत से ज्यादा आदमी गुलामी के लायक है । और ऐसे लोगों ठीक करने के जब सरकार काम करती है तो पत्रकार हल्ला .........
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