Saturday, August 18, 2012
कोयला खदान के लाइसेंस बांटने में किसके हाथ हैं काले
बापू कुटिया से लेकर टाइगर प्रोजेक्ट तक की जमीन तले कोयला खादान
इंदिरा गांधी ने 1973 में कोयला खदानों का ऱाष्ट्रीयकरण किया तो मनमोहन सिंह ने 1995 में ही बतौर वित्त मंत्री कोल इंडिया लिमिटेड से कहा कि सरकार के पास देने के धन नहीं है। और उसके बाद कोल इंडिया में दोबारा ठेके पर काम होने लगा। और पावर-स्टील उघोग के लिये कोयला खादान एक बार फिर निजी हाथों में जाने लगा। असल में कैग की रिपोर्ट इन्ही निजी हाथों में खदान देने के लिये अगर बोली ना लगाये जाने पर अंगुली उठाकर 1.86 लाख करोड़ के राजस्व के चूने की बात कर रही है। तो इससे इतर एक दूसरा सवाल इस घेरे में छिप भी रहा है और वह है खादान का लाइसेंस पाने की होड़ में ही कमाई खोजना। और पर्यावरण को ताक पर रखकर खदानों को बांटना। क्योंकि टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में भी कोयला खनन होगा और झारखंड से लेकर बंगाल के आदिवासी बहुल इलाकों में आदिवासियों की जमीन पर कोयला खनन की इजाजत देकर आदिवासियों की कई प्रजातियो के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगेगा। इतना ही नहीं, महाराष्ट्र के वर्धा में जिस बापू कुटिया के लेकर देश संवेदनशील रहता है, उस वर्धा में साठ वर्ग की जमीन के नीचे खदान खोद दी जायेगी। असल में विकास की जिन नीतियों को सरकार लगातार हरी झंडी दे रही है उसमें पावर प्लांट से लेकर स्टील उघोग के लिये कोयले की जरुरत है। और कोयले से करोड़ों का वारा-न्यारा कर मुनाफा बनाने में चालिस से ज्यादा कंपनिया सिर्फ इसीलिये बन गयी जिससे उन्हें कोयला खादान का लाइसेंस मिल जाये। और 2005-09 के दौरान कोयला खादानों के लाइसेंस का बंदरबांट जिस तर्ज पर जिन कंपनियों को हुआ है, अगर उसकी फेरहिस्त देखे और लाइसेंस लेने-देने के तौर तरीके देखे तो पहला सवाल यही उठेगा कि लाइसेंस ले कर लाइसेंस बेचना भी धंघा हो गया। क्योंकि न्यूनतम पांच करोड़ के खेल में जब किसी भी कंपनी को एक ब्रेकेट खादान मिलता रहा है तो 2005-09 के दौरान देश भर में डेढ़ हजार से ज्यादा कोयला खदान के ब्रेकेट का लाइसेंस दिया गया है तो इन सभी को जोडने पर कितने लाख करोड़ के राजस्व का चूना लगा होगा इसकी कल्पना भर ही की जा सकती है। असल में पहले कोयला मंत्रालय खादानो को बांटता था और लाइसेंस लेने के बाद कंपनियो को पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी लेना पड़ाता था। लेकिन अब जिसे भी कोयले खादान का लाईसेंस मिलेगा, उसे किसी मंत्रालय के पास जाने की जरुरत नहीं रहेगी। क्योंकि मंत्रियो के समूह में पर्यावरण मंत्रालय का एक नुमाइंदा भी रहेगा। लेकिन यह हर कोई जानता है कि मंत्रियों के फैसले नियम-कायदों से इतर बहुमत पर होते हैं। यानी पर्यावरण मंत्रालय ने अगर यह चाहा कि वर्धा में गांधी कुटिया के इर्द-गिर्द कोयला खादान ना हो या फिर किसी टाइगर रिजर्व में कोयला खादान ना हो तो भी उसे हरी झंडी मिल सकती है क्योकि मंत्रियों के समूह में वित्त ,वाणिज्य और कृर्षि मंत्री की इसपर सहमति हो कि कोयला खदानों के जरीये ही उघोग के क्षेत्र में विकास हो सकता है।
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीते 2004 से 2009 तक में 342 खदानों के लाइसेंस बांटे गये। जिसमें 101 लाइसेंसधारकों ने कोयले का उपयोग पावर प्लांट लगाने के लिये लिया। लेकिन इन पांच सालों में इन्हीं कोयला खादानो के जरीये कोई पावर प्लांट नया नही आ पाया। और इन खदानों से जितना कोयला निकाला जाना था अगर उसे जोड़ दिया जाये तो देश में कही भी बिजली की कमी होनी नहीं चाहिये। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यानी एक सवाल खड़ा हो सकता है कि क्या कोयला खदान के लाइसेंस उन कंपनियों को दे दिये गये, जिन्होने लाईसेंस इसी लिये लिये कि वक्त आने पर खादान बेचकर वह ज्यादा कमा लें। तो यकिनन लाइसेंस जिन्हें दिया गया उनकी सूची देखने पर साफ होता है कि खदान का लाइसेंस लेने वालों में म्यूजिक कंपनी से लेकर गुटका, गंजी और अखबार निकालने से लेकर मिनरल वाटर का धंधा करने वाली कंपनी भी है।
इतना ही नही, दो दर्जन से ज्यादा ऐसी कंपनियां हैं, जिन्हे ना तो पावर सेक्टर का कोई अनुभव है और ना ही कभी खादान से कोयला निकालवाने का कोई अनुभव। कुछ लाइसेंस धारकों ने तो कोयले के दम पर पावर प्लांट का भी लाइसेंस ले लिया और अब वह उन्हें भी बेच रहे हैं। मसलन सिंगरौली के करीब तीन पावर प्लांट और छह खदाने बिकने को तैयार हैं। एस्सार इन्हें खरीदना चाहता है और जो बेचना चाहते है वह लगायी जा रही कीमत से ज्यादा मुनाफा चाहते हैं। वही बंगाल, महाराष्ट्र,छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, गोवा से लेकर उडिसा तक कुल 9 राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने कामिशियल यूज के लिये कोयला खादानो का लाइसेंस लिया है। और हर राज्य खदानों को या फिर कोयले को उन कंपनियों या कारपोरेट घरानो को बेच रहा है, जिन्हें कोयले की जरुरत है। इस पूरी फेरहिस्त में डोमको स्मोक लैस फ्यूल लिं., श्री बैघनाथ आर्युवेद भवन लिं, जय बालाजी इडस्ट्री लिमेटेड, अक्षय इन्वेस्टमेंट लिं, महावीर फेरो, प्रकाश इडस्ट्री, पवनजय स्टील, श्याम ओआरआई लि.. समेत 42 कंपनिया ऐसी हैं, जिन्होंने कोयला खदान का लाइसेंस लिया है लेकिन उन्होंने कभी खादानो की तरफ झांका भी नहीं। और इनके पास कोई अनुभव ना तो खदानो को चलाने का है और ना ही खदानो के नाम पर पावर प्लांट लगाने का। यानी लाइसेंस लेकर अनुभवी कंपनी को लाइसेंस बेचने का यह धंधा भी आर्थिक सुधार का हिस्सा है। ऐसे में मंत्रियों के समूह के जरीये फैसला लेने पर सरकार ने हरी झंडी क्यो दिखायी यह समझना भी कम त्रासदीदायक नहीं है। जयराम रमेश ने 2010 में सिर्फ एक ही कंपनी सखीगोपाल इंटीग्रेटेड पावर कंपनी लिं, को ही लाइसेंस दिये जाने पर सहमती जतायी। लेकिन उनके पर्यावरण मंत्री बनने से पहले औसतन हर साल 35 से 50 लाइसेंस 2005-09 के दौरान बांटे गये। असल में जयराम रमेश के बतौर पर्यावरण मंत्री की आपत्तियों को भी समझना होगा कि उन्होंने अडानी ग्रूप का लाइसेंस इसलिये रद्द किया क्योकि वह ताडोबा के टाइगर रिजर्व के घेरे में आ रहा था। लेकिन अब हालात उल्टे है क्योकि इस वक्त कोयला मंत्रालय के पास 148 जगहों के खदान बेचने के लिये पड़े हैं। इसमें मध्यप्रदेश के पेंच कन्हान का वह इलाका भी है जहा टाइगर रिजर्व है। पेंच कन्हान के मंडला ,रावणवारा,सियाल घोघोरी और ब्रह्मपुरी का करीब 42 वर्ग किलोमीटर में कोयला खदान निर्धारित किया गया है । इसपर कौन रोक लगायेगा यह दूर की गोटी है। लेकिन कोयला खदानो को जरीये मुनाफा बनाने का खेल वर्धा को कैसे बर्बाद करेगा, इसकी भी पूरी तैयारी सरकार ने कर रखी है। महाराष्ट्र में अब कही कोयला खादान बेचने की जगह बची है तो वह वर्धा है। इससे पहले वर्धा में बापू कुटिया के दस किलोमीटर के भीतर पावर प्लांट लगाने की हरी झंडी राज्य सरकार ने दी। तो अब बापू कुटिया और विनोबा भावे केन्द्र की जमीन के नीचे की कोयला खादान का लाइसेंस बेचने की तैयारी हो चुकी है। वर्धा के 14 क्षेत्रों में कोयला खादान खोजी गयी है।
किलौनी, मनौरा,बांरज, चिनौरा,माजरा, बेलगांवकेसर डोगरगांव,भांडक पूर्वी,दक्षिण वरोरा,जारी जमानी, लोहारा,मार्की मंगली से लेकर आनंदवन तक का कुल छह हजार वर्ग किलोमिटर से ज्यादा का क्षेत्र कोयला खादान के घेरे में आ जायेगा। यानी वर्धा की यह सभी खादानो में जिस दिन काम शुरु हो गया उस दिन से वर्धा की पहचान नये झरिया के तौर पर हो जायेगी। झरिया यानी झारखंड में धनबाद के करीब का वह इलाका जहा सिर्फ कोयला ही जमीन के नीचे धधकता रहता है। और यह शहर कभी भी ध्वस्त हो सकता है इसकी आशंका भी लगातार है। खास बात यह है कि कोयला मंत्रालय ने वर्धा की उन खादानो को लेकर पूरा खाका भी दस्तावेजों में खींच लिया है। मसलन वर्धा की जमीन के नीचे कुल 4781 मिट्रिक टन कोयला निकाला जा सकता है। जिसमें 1931 मिट्रिक टन कोयला सिर्फ आनंदवन के इलाके में है। इसी तरह आदिवासियों के नाम पर उडीसा में खादान की इजाजत सरकार नहीं देती है लेकिन कोयला खदानों की नयी सूची में झरखंड के संथालपरगना इलाके में 23 ब्लाक कोयला खादान के चुने गये हैं। जिसमें तीन खादान तो उस क्षेत्र में है जहा आदिवासियो की लुप्त होती प्रजाति पहाड़िया रहती है। राजमहल क्षेत्र के पचवाडा,और करनपुरा के पाकरी व चीरु में नब्बे फीसदी आदिवासी हैं। लेकिन सरकार अब यहा भी कोयला खादान की इजाजत देने को तैयार है। वहीं बंगाल में कास्ता क्षेत्र में बोरेजोरो और गंगारामाचक दो ऐसे इलाके हैं जंहा 75 फिसदी से ज्यादा आदिवासी हैं। वहां पर भी कोयला खादाना का लाइसेंस अगले चंद दिनो में किसी ना किसी कंपनी को दे दिया जायेगा। कैग रिपोर्ट आने के बाद किसी घोटाले का कोई आरोप कोयला मंत्रालय पर ना लगे इसके लिये 148 कोयला खदानो के लिये अब बोली लगाने वाला सिस्टम लागू किया जा रहा है। लेकिन जिन इलाको में कोयला खोजा गया है इस बार वहीं इलाके कटघरे में हैं।
Thanks a lot sir for such a valuable article for Indian people to understand ki hamare desh me aakhir vikas ke naam per kis had tak ghinona khel khela ja raha hai ....aur iss bat ko jald hi janta ko samjhna hoga kyonki 2014 ka chunaw ab karib aata dikhai de raha hai ...
ReplyDeletesir, thanks lekin me kuch nahi kahunga, kyonki jo bhi likhunga wo kisi na kisi ne ya mene khud kaha hoga, matlab virodh me likhne ke liye sabd nahi hai mere pass.........
ReplyDeleteआदरणीय प्रसून जी,
ReplyDeleteपिछले ब्लॉग में आपने अपने पसंदीदा टोपिक पर लिखा था। Newslaundary पर आपका मधु त्रेहन के साथ interview देखा, जिसमे आपने अपनी राजनीती और मीडिया को लेकर चिंता जताई है और आज आपने मेरी चिंता पे ब्लॉग लिखा । CAG के शुक्रगुजार हैं हम जिसने कोयले को lime-light में ला खड़ा किया है । CAG ने तो कोयले के ब्लो्क्स के आवंटन की धांधलियों के बारे में रिपोर्टें लिखा है पर कोयले के खदानों में कितनी धांधली है, इसकी रिपोर्ट किसी ने नहीं लिखी । ये तो बहोत पहले ही मीडिया में आना चाहिए था पर कभी भी न प्रिंट मीडिया में न टीवी पे कोई रिपोर्ट देखने को मिला । इस देश की बदकिस्मती ही है की आँख के सामने हो रही लूट को भी हम उजागर नहीं कर पाते । मै आपके ब्लॉग के माध्यम से लिख कर मीडिया का ध्यान आकर्षित करने की कोशिस कर रहा हूँ । आप अगर चाहें तो documentary बना सकते हैं ।
मैं पेसे से भूगर्भशास्त्र का छात्र हूँ और झारखण्ड के उस इलाके से हूँ जहाँ कोयले की ना जाने कितनी खदाने है । जब मैं हजारीबाग में पढ़ रहा था तो Geological Field Work के लिए हमें गर्गा नदी के section को देखने का मौका मिला था । उस Field Work के दौरान मैंने देखा की लोग वहां कोयले का कैसे इल्लीगल खनन करते हैं । नदी के section ke across रास्ता बनाकर लोगों ने उस कोयले के खदान से न जाने कितने बड़े इलाके से कोयला निकल चुके थे । ऊपर से तो सब सामान्य नज़र आता है पर जब आप अन्दर जायेंगे तो पता चलता है कितने बड़े इलाके से अवैध खनन हुआ है । और आश्चर्य वाली बात ये थी की एक बहोत बड़े हिस्से में आग भी लगी थी । जमीन के निचे यह आग कितना ज्यादा होगा इसका अनुमान आप इससे लगा सकते हैं की सतह पर एक बहोत बड़े हिस्से पर दरार थी और जलते कोयले का धुआं बाहर निकल रहा था ।
झरिया में इससे भी कई गुना ज्यादा बड़े हिस्से में बरसों से आग लगी हुई है । ये आग कोई नया नहीं है बहोत पुराना है पर इस आग को बुझाने को कोई सफल प्रयास कभी नहीं किया गया । इस आग के कारन न जाने कितना मीट्रिक टन कोयला बर्बाद बर्बाद हो चूका है इसका कोई थाह नहीं । धनबाद और झरिया में इस आग के कारन कितने घरों में दरार पैदा हो चुके है और कितने लोगों को अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा है इसकी भी कोई गिनती नहीं है । जब मैं IIT Roorkee में पढ़ रहा था तो मेरे एक साथी ने प्रोफेस्सर R P Gupta के साथ मिलकर Remote Sensing द्वारा झरिया का Thermal Imaging भी किया है और रिपोर्ट्स international journals में पुब्लिश भी हुए हैं पर कोई एक्शन नहीं हुआ आज तक और ना कभी इसकी कोई रिपोर्टिंग हुई ।
अगर आप बोकारो से हजारीबाग की ओर जायेंगे तो आपको ना जाने कितने अवैध खनन होते हुए कोयले के खदान मिल जायेंगे। चरही, मांडू बेरमो फुसरो झरिया धनबाद बोकारो और न जाने कितने ही इलाके है जहाँ धड़ल्ले से अवैध खनन हो रहा है बे रोक टोक ।
ब्रजेश
मुंबई
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ReplyDeletevery fine observation and what a detailed analysys !!
ReplyDeleteSuddenly Two Filmy Lines came in my mind
> "Saiyaan(govt) karte ji koal bazaari !!" ( from 'kalaa re' song of gangs of wasseypur -2)
> "We live in a capitalist dictatorship." [ quote form 2004 german movie The Edukators ]
कम से कम अब पीएम को इस्तीफा दे देना चाहिए ..
ReplyDeleteKya sir ye samajh liya jaye ki desh main janha man ho ye dil kare ghotal kiya ja sakta hain aur hum Gandhi ke TEEN Bander ban ke reh jaye.
ReplyDeleteDesh main garibi, bhukhmari hain NETA ka paisa Swis bank main sar raha hai kya Sardar Patel ne is BHARAT ki kalpana ki thi.
TO SIR JI AAP BATAO KI DESH KO SALAM KARE YA NETA KO?