बीहड़ में तो बागी रहते हैं। डकैत तो पार्लियामेंट में होते है। याद कीजिये फिल्म पान सिंह तोमर के इस डायलाग पर खूब तालियां बजी थीं। और उसी दौर में जनलोकपाल को लेकर चले आंदोलन में सड़क पर ही संसद की साख को लेकर भी सवाल उठे । दागी सांसदो को लेकर बार बार सवाल उठे कि संसद की गरिमा बचेगी कैसे। हर अपराधी और भ्रटाचार में लिप्ट राजनेता अगर संसद पहुंच जायेगा तो उसके विशेषाधिकार के दायरे को तो़ड़ेगा कौन। खासतौर से बीते दो दशकों में जिस तेजी के साथ आपराधिक मामलों में फंसे राजनेताओं की तादाद लोकसभा में बढ़ती चली जा रही थी और उसी तेजी से गठबंधन सरकारों के आसरे हर कोई सत्ता की मलाई खाने के लिये विचारधारा से लेकर अपने आस्तित्व की राजनीति तक छोड रहे थे वैसे में कौन सा प्रधानमंत्री अपनी गद्दी की कीमत पर दागी सांसदो पर नकेल कसने का सवाल उठाता। यह अपने आप में देश केसामने अनसुलझा सवाल भी था और जबाब ना मिल पाने का सच भी था। लेकिन तीस बरस बाद जनादेश की ताकत ने कायाकल्प किया है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले भाषण में ही दागी सांसदों को लेकर जैसे ही यह सवाल छेड़ा कि फास्ट ट्रैक अदालतो के जरीये साल भर में दागी सांसदों के
मामले निपटाये जायें। वैसे ही पहला सवाल यही उठा कि कही मोदी ने बर्रे के छत्ते में हाथ तो नहीं डाल दिया। क्योंकि बीते दस बरस में संसद के भीतर एक चौथाई सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज है लेकिन सुध किसी ने नहीं ली।
ऐसे में आजादी के बाद पहली बार कोई गैर कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आयी तो अपने पहले ही भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीति के अपराधीकरण पर नकेल कसने के खुले संकेत दे दिये। यानी जो सवाल बीते दो दशक से संसद अपनी ही लाल-हरे कारपेट तले दबाता रहा उसे खुले तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसे सिक्के की तरह उछाल दिया जिसमें अब चित या पट होनी ही है। क्योंकि मौजूदा लोकसभा में 186 सांसद दागदार हैं। और यह तादाद बीते दस बरस में सबसे ज्यादा है। याद कीजिये तो 2004 में यानी १४वी लोकसभा में 150 सांसद दागी थे। तो १५ वी लोकसभा यानी 2009 में 158 सांसद दागी थे । लेकिन बीते दस बरस में यानी मनमोहन सिंह सरकार के वक्त दागी सांसदों का मामला उठा जरुर लेकिन सरकार गिरे नहीं इसलिये चैक एंड बैलेसं तले हर बार दागी सांसदो की बात संसद में ही आयी गयी हो गयी । और तो और आपराधी राजनेता आसानी से चुनाव जीत सकते है इसलिये खुले तौर पर टिकट बांटने में किसी भी राजनीतिक दल ने कोताही नहीं बरती और चुनाव आयोग के बार बार यह कहने को भी नजर्अंदाज कर दिया गया कि आपराधिक मामलों में फंसे राजनेताओ को टिकट ही ना दें । यहा तक की मनमोहन सिंह के 10 बरस के कार्यकाल में लोकसभा में तीन बार और राज्यसभा में 5 बार दागी सांसदों को लेकर मामला उठा। लेकिन हुआ कुछ भी नहीं । वजह यही मानी गई कि सरकार गठबंधन की है तो कार्वाई करने पर सरकार ही ना गिर जाये ।
लेकिन अब पहली बार पूर्ण जनादेश के साथ जब प्रधानमंत्री मोदी को बिना किसी दबाव में निर्णय लेने की ताकत मिली है तो दागी सांसदो के खिलाफ कार्रवाई करने या कहे दागी सांसदों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की दिशा में सरकार कदम उटायेगी इसके संकेत दे दिये गये। वैसे हकीकत यह भी है कि महीने भर पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने ही सरकार को इसकी जानकारी भेजी थी कि दागी सांसदों को लेकर अब यह व्यवस्था की जा रही है कि जिन सांसदों के मामले जिस भी अदालत में चल रहे है वह सभी एक टाइम फ्रेम में मामले को निपटाये। अगर सेशन कोर्ट मामले को निपटाने में देरी करेगें तो मामला खुद ब खुद हाईकोर्ट के पास चला जायेगा । और हाई कोर्ट में देरी होगी तो सुप्रीम कोर्ट मामले को निपटायेगा। और यह पूरी प्रक्रिया बरस भर में पूरी कर ली जायेगी । यानी प्रधानमंत्री ने जो कहा उसकी जमीन सुप्रीम कोर्ट पहले ही बना चुका है । फर्क सिर्फ इतना है कि इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने इससे पहले हिम्मत दिखायी नहीं और मोदी ने यह जानते-समझते हुये हिम्मत दिखायी कि मौजूदा लोकसभा में सबसे ज्यादा दागी सांसद बीजेपी के ही हैं। और सभी फंस गये तो सरकार अल्पमत में आ जायेगी। क्योंकि १८६ दागी सांसदों में से बीजेपी के ९८ सांसद दागी हैं। जबकि दूसरे नंबर पर बीजेपी की ही सहयोगी सिवसेना के १५ सांसद दागी हैं। फिर काग्रेस के ८, टीएमसी के ७ और एआईएडीएमके के ६ सांसद दागी हैं। बीजेपी की मुश्किल तो यह भी है कि ९८ सांसदों में से ६६ सांसदों
के खिलाफ गंभीर किस्म के अपराध दर्ज हैं। क्या मोदी सरकार यह कदम उठायेगी। असल में सवाल सिर्फ कदम उठाने का नहीं है। सवाल संसद की साख को लौटाने का भी है। क्योंकि सांसदों के खिलाफ जिस तरह के मामले दर्ज है उसमें हत्या का आरोप,हत्या के प्रयास का आरोप,अपहरण का अरोप,चोरी -डकैती का आरोप,सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप,महिलाओ के खिलाफ अपराध का आरोप यानी ऐसे आरोप सांसदों के खिलाफ है जो सिर्फ राजनीतिक तौर पर लगाये गये हो या राजनीतिक तौर पर सत्ताधारियो ने आरोप लगाकर राजनेताओ को फांसा हो ऐसा भी हर मामले में नही हो सकता । वैसे बीजेपी के भीतर से बार बार आपराधिक मामलो में फंसे राजनेताओ को टिकट ना देने की बात कही गयी । लेकिन हर बार यह कहकर मामला दबा दिया गया कि राजनीति में आने पर नेताओ को मुकदमों का सामना करना ही पडता है । ऐसे में अब मोदी सरकार के लिये यह पहला और शायद सबसे बडा एसिड टेस्ट होगा कि वह दागी सांसदों के मामले के लिये सुप्रिम कोर्ट की पहल पर तुरंत कारवाई शुरु करें । जिससे संसद की साख लौटे और राजनेताओ को लेकर जनता में भरोसा जागे । क्योकि लोकसभा में तो चुन कर दागी पहुच गये लेकिन राज्यसभा में तो लोकसभा सदस्यो ने ही दागियो को चुन लिया । मौजूदा राज्यसभा के २३२ सदस्यों में से ३८ के खिलाफ मामले चल रहे हैं। जिसमें से १६ राज्यसभा सदस्यो के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं। देश के लिये यह सवाल इसलिये भी सबसे बडा है क्योकि संसद के बाद का रास्ता विधानसभाओ की तरफ जायेगा । और अगर संसद की सफाई हो गयी तो हर राज्य सरकार पर भी यह दबाब होगा कि दागी विधायकों के खिलाफ जल्द से जल्द फाइल निपटायी जाये। क्योंकि दागी विधायको की तादाद तो देश को ही हैरान करने करने वाली है । देश के चार हजार से बत्तीस विधायकों में से एक हजार दो सौ अंठावन विधायक दागी है । यानी ३१ फिसदी विधायकों के खिखाफ देश भर की अलग अलग अदालतो में मामले चल रहे है । इसमें से ७० विधायकों के खिलाफ खासे गंभीर मामले दर्ज है।
यह पूरा मामला इस मायने में भी खासा गंभीर है कि दागी सांसद या विधायको की संपत्ति में सबसे ज्यादा इजाफा उनके सांसद या विधायक बनने के बाद होता है । देश के कुल ४१८१ चुने हुये नुमाइंदों में से ३१७३ नुमाइंदो की संपत्ति संसद या विघानसबा पहुंचने के बाद बढ जाती है । और सिर्फ दागियों की बात हो तो ९८ फिसदी दागियों की संपत्ति में सौ से दो हजार गुना तक की वृद्दी उसके चुने जाने के बाद होती रही है । यानी दागी की संपत्ति क्यो बढती है । दागी चुनाव में कैसे जीत जाते है । दागी को ही टिकट देते समय क्यो प्राथमिकात दी जाती है । और दागियों की वजह से ही चुनाव सबसे मंहगा और सत्ता मलाई का प्रतीक तो नहीं बनी है। यह सब आने वाला वक्त तय करेगा लेकिन शर्त यही है कि प्रधानमंत्री मोदी दागियो को लेकर अब कोई समझौता ना करें ।
आप समझे ही नहीं मोदी की चाल, अगर मोदी के कारण भाजपा और बाकि दलों के दागी नप गए और मोदी सरकार गिर गयी तो समझो मोदी ने वो कर दिया जो आज तक कोई प्रधानमंत्री सोचने की हिम्मत भी नहीं करता था। और उसके बाद चुनाव हुए तो मोदी को कितना प्रचंड बहुमत मिलेगा इसकी कल्पना कीजिये, बगैर कोई चुनावी वादा पूरा किये ही मोदी का नाम इतिहास में अंकित हो जायेगा। तो मोदी कम से कम उन तथाकथित क्रन्तिकारी राजनेताओं से तो बेहतर हैं जिन्होंने व्यवस्था परिवर्तन को लेकर कहा बहुत कुछ, लेकिन जब कुछ करने का अवसर मिला तो छोड़ कर भाग गए दूसरा चुनाव लड़ने, और अब छाती पीट रहे हैं।
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ReplyDeleteमंशा तो ठीक हैं पर
ReplyDeleteपहले जो पापी न हो वो पहले पत्थर मारे .... शुरूवात तो हो ......
मंशा तो ठीक हैं पर
ReplyDeleteपहले जो पापी न हो वो पहले पत्थर मारे .... शुरूवात तो हो ......
Kam se kam modi ji ne ye baat to kahi ki jinke khilaf mukkadme darz hai Unka faisla jaldi ho.
ReplyDeleteacchi shuruwat hai good going. Dekhte hai Aage hoga kya? Kya pata kya khabar. Namskar!