आतंकवाद, उग्रवाद, नक्सवाद में सुलगता देश
कश्मीर में आतंकवाद , नार्थ इस्ट में उग्रवाद तो मध्य भारत में नक्सलवाद। और बीते 16 बरस का सच यही कि कुल 45 हजार 469 लोगों की मौत हो चुकी है।तो कश्मीर के आतंकवाद के मद्देनजर पहले राज्यसभा फिर लोकसभा में चर्चा केदौरान जब कई सवालो का जिक्र उठा तो सवाल ये भी उठा कि कश्मीर नार्थ इस्टऔर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को लेकर सरकार की नीति होनी क्या चाहिये ।क्योंकि तीनों जगहों पर सुरक्षाकर्मियों को लगातार उस हिंसा का सामना करना पड़रहा है, जिसके तार कहीं ना कही सीमा पार से भी जा जुड़े है। गृह मंत्रालयकी ताजा रिपोर्ट भी तीनों जगहों को लेकर उस चिता को ही उभारती है, जहांकश्मीर में आतंक के पीछे पाकिस्तान है । तो नार्थ इस्ट में उग्रवाद के पीछे चीन का होना और बांग्लादेश की जमीन के इस्तेमाल को करना है । और -नक्सलवाद के पीछे अंतराष्ट्रीय माओवादी विचारधारा से मिलती मदद का होना है । यानी तीनो जगहों में लगातार हो रही हिंसा के मद्देनजर केन्द्र की सत्ता बदली हो या राज्यो में सत्ता परिवर्तन हुआ हो । हालातों में कोई अंतर नहीं आया। क्योंकि बीते 16 बरस में केन्द्र की सत्ता भी 360 डिग्री में घूम कर बीजेपी के पास आ चुकी है। और राज्यों में भी र राजनीतिक दल ने सत्ता भोगी है । और मौत के आंकडे तीनो जगहों पर डराने वाले है । कश्मीर में 21 हजार 63 मौतों के अगर बांट दें तो 5262 नागरिक मारे गये । 3335 सुरक्षा कर्मी शहीद हो गये और 12466 आतंकवादी मारे गये । लहुलूहान नार्थ इस्ट भी हुआ है। जहां का 90 फिसदी हिस्सा अंतराष्ट्रीय बार्डर है । और वहां उग्रवाद की वजहों से 12281 लोग मारे जा चुके हैं, जिसमें 5112 नागरिक मारे गये तो 1130 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गये । और 6 हजार 39 उग्रवादी मारे गये । वही नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ, झारखंड,बिहार, उडिसा,महाराष्ट्र, आध्रप्रेदेश और तेलंगाना के 35 जिलों में बीते सोलह बरस में 12 हजार 125 लोग मारे जा चुके है । जिसमें 5900 नागरिक गरीब पिछड़े आदिवासी किसान रहे हैं । 5628 माओवादी मारे जा चुके हैं। और देश के भीतर की हिसा से जुझते ढाई हजार से ज्यादा सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं। और 48 घंटे पहले ही बिहार-झारखंड सीमा पर 10 सुरक्षाकर्मी मारे गये तो सुरक्षाकर्मी ही अपनी सुरक्षा और सुविधा को लेकर फूट पड़े । यानी सुरक्षाकर्मियो के सामने भी आंतक , उग्रवाद या नक्सली हिसा से जुझते हुये अपने अपने संकट है । कही राजनीति आडे आती है । कहीं राज्यों के आपसी टकराव सामने आते है । तो कही केन्द्र राज्य टकराते है । तो कही सुरक्षाकर्मियों को सारी सुविधायें नहीं मिल पाती हैं।
और इन तीन हिस्सों को लेकर ठोस नीति ना होने की वजह से ही सेना, सुरक्षाकर्मी या कहें पुलिस को ही हर परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा है। आलम ये है कि देश के इन तीन जगहों पर करीब नौ लाख सुरक्षाकर्मियों की तैनाती है । यानी राजनीतिक सरोकार पीछे छूट रहे हैं और युद्द से हालात देश के भीतर आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर कैसे बनते चले जा रहे हैं, इस सच को कोई सरकार क्यों नहीं समझ रही है ये भी सवाल है । जाहिर है ऐसे में आतंकवाद , उग्रवाद और नक्सली हिंसा से प्रभावित देश के इन तीन क्षेत्रो का एक सच ये भी है कि यहा राजनीति फैसलो से ज्यादा राजनीतिक सत्ता ने सुरक्षाकर्मियो के आसरे ही हालात पर नियंत्रण को चाहा है । क्योकि इन इलाको के सियासी अंतर्विरोध को संभालने की हालात में कोई राजदनीतिक सत्ता कभी आ नहीं पाय़ी और देश में सेना हो या अद्दसैनिक बल या फिर राज्यो की पुलिस । सबसे ज्यादा तैनाती उन्हीं इलाकों में है । ग्लोबल सिक्यूरटी रिपोर्ट की माने तो सिर्फ इन तीन इलाकों में करीब नौ लाख सुरक्षाकर्मीयो की तैनैाती हा । जिसमें कशमीर में करीब 4 लाख सुरक्षाकर्मी , नार्थ इस्ट में करीब तीन लाख और नक्सलप्रभावित इलाको में 164 667 सुरक्षाकर्मी । और बीते सौलह बरस में सिर्फ इन्ही क्षेत्रो में 7062 सुरक्षारर्मी शहीद हो चुके है । और इन इलाको को लेकर लगातार यही सवाल बडा होता चला गया कि सुरक्षाकर्मियो के आसरे कैसे आंतकवाद पर या उग्रवाद पर या पिर माओवाद पर नकेल कसी जा सकती है ।
यानी सुरक्षाकर्मियो क्या क्या उपलब्ध कराया जाये जिससे वहा के हालात का सामना सेना, इद्दसैनिक बल कर सके । महत्वपूर्ण है कि गृहमंत्रालय की ताजा रिपोर्ट में ही तैनात सुरक्षाकर्मियो को दी जाने वाली सुविधा, आधुनिकीकरण और मुआवजे को लेकर सवाल है । यानी सेना के आधुनिकरण के साथ साथ । तैनात सुरक्षाकर्मियो को दी जाने वाली सुविधा और शहीद होने के बाद परिनजनो की राहत की राशी बढाने का जिक्र किया गया है । यानी तीनो क्षेत्रो का सुरक्षा बजट बीते 16 बरस में 200 फिसदी तक बढ गया । लेकिन हालात फिर भी नियत्रंण में नहीं आ रहे है तो सवाल समाजिक-राजनीति समाधान के ना खोजने का है । क्योंकि याद कीजिए दंतेवाड़ा में जिस वक्त 76 सीआरपीएफ के जवानों को नक्सलियों ने खूनी भिडंत के बाद मार गिराया था-उस वक्त केंद्र में मनमोहन सरकार थी और उस वक्त बीजेपी ने यह कहते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा था कि पूरी सरकार ही फेल है। और अब तो बीजेपी ही सत्ता में है । और बिहार -झारखंड सीमा पर नक्सली हिसा में 10 सुरक्षाकर्मी मारे जाते है तो सत्त खामोश हो जाती है । लेकिन सवाल सियासत का नहीं सवाल नहीं । सवाल सरकारो के फेल पास का नहीं । बल्कि सवाल हालातो पर नियंत्रण को लेकर किसी नीति के ना होने का है । और असर इसी का है कि 2014 में 1091 नक्सली घटनाओ में 310 मौते हुई । तो 2015 में 1088 नक्सली घटनाओ में 226 मौते हुई । जबकि सरकार के ही आंकडे बताते है कि मौजूदा वक्त में 10 से 15 हजार नक्सली है और डेढ़ लाख से ज्यादा सुरक्षा बल तैनात है । यानी एक नक्सली पर 10 सुरक्षाकर्मी । और सुरक्षाकर्मियो की तैनाती का आलम ये है कि सीआरपीएफ की 85 बटालियन , बीएसएफ की 15 बटालियन, आईटीबीपी और एसएसबी की पांच -पांच बटालियन नक्सलप्रभावित क्षेत्रो में है । तो सवाल यही कि क्या सुरक्षाकरमियो के आसरे ही सामाजिक-आर्थिक हालातो से राजनीति मुंह चुरा रही है । या फिर राजनीतिक चुनावो के अंतविरोधो की वजह से सरकारे कोई ठोस नीति बना नहीं पा रही है । या फिर नीतिया बनाकर भी अमल में ला नहीं पा रही है । और संसद में बार बार यही सवाल कश्मीर को लेकर भी उठा कि समाधान का रास्ता तो राजनीतिक तौर पर ही निकलना होगा । अन्यथा घायलों की बढती तादाद और मौत की बढती संख्या को ही हमेशा गिनना पडेगा ।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति स्वर्गीय बटुकेश्वर दत्त जी की 51वीं पुण्यतिथि
ReplyDeleteऔर ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
समसामयिक पोस्ट
ReplyDeleteसत्ताधारियों का ढुलमुल रवैया सामने वालों का हौसला बढ़ाने के लिए काफी होता है जो बड़े चिंता का विषय है।
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