अजय टम्टा, कृष्णा राज, रमेश जिगजिनेगी , अर्जुन मेघवाल, रामदास आठवले । राजनीतिक तौर पर इन सभी की पहचान दलित नेता के ही तौर पर है । यानी मोदी मंत्रिमंडल में 19 नये चेहरों में पांच चेहरे दलित राजनीति को साधने वाले। यानी यूपी में 20 फिसदी दलित वोट बैंक को लेकर मायावती की राजनीतिक हवा कैसे निकाली जा सकती है, इस पर मोदी मंत्रिमंडल का ध्यान होगा ही इसे कैसे कोई इंकार करे। अगर और राजनीति की इस लकीर को मंत्रिमंडल के नये चेहरो तले खीचेंगे तो अनुप्रिया पटेल कुर्मी वोट बैंक में सेंध लगाने वाली लगेंगी। यानी नीतीश कुमार जिस तरह यूपी में चुनावी बिगुल कुर्मी वोट बैक को साथ समेटे नजर आने लगे हैं और समाजवादी पार्टी जिस तरह बेनी प्रासद वर्मा को साथ ले आई है, उन्हें अनुप्रिया पटेल के जरीये खारिज किया जा सकता है। यानी यूपी में 8 फीसदी कुर्मी वोट बैंक के लिये अनुप्रिया पटेल मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हो गई है। तो प्रशांत किशोर जिस तरह काग्रेस को यूपी में बिखरे 13 फिसदी ब्राह्मण वोट बैक के अपने साथ लाने के लिये किसी ब्राह्मण चेहरे को सामने लाने की वकालत कर रहे हैं तो फिर चंदौली के सांसद महेन्द्र नाथ पांडे कांग्रेस की बिसात को ध्यान रखकर मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किये गये हैं। गुजरात में भी 2017 नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। और हार्दिक पटेल का आंदोलन गुजरात की सीएम आनंदी बेन से लेकर दिल्ली में बैठे अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी की नींद उड़ा रहा है तो करुअ पटेल पुरुषोत्तम रुपाला को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। जिससे पाटीदार समाज भी बंटे या फिर रुपाला केपी छे खडा हो जाये । और लेउवा पटेल का समाज मनसुख मांडविया के पीछे खड़ा हो जाये। यानी गुजरात की राजनीति के लिये रुपाला और मनसुख भाई फिट बैठते हैं । यानी सामाजिक समीकरण में ही कैसे मंत्रिमंडल फिट हो जाये इसके लिये आदिवासी नेता के तौर पर गुजरात में पहचान बना चुके जंसवत सिंह भभोर हो या मध्यप्रदेश के फग्गन सिंह कुलस्ते। दोनों मोदी मंत्रिमडल में जगह पा गया ।
और इसी तर्ज पर राजस्धान में जाट आरक्षण के राजनीतिक आंदोलन के सिरे को पकड़ने के लिये पूर्व नौकरशाह या शिक्षक के तौर पर पहचान बनाने वाले सीआर चौधरी की पहचान जाट राजनीति को थामने वाली हो गई। और उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिल गई। यानी चुनावी राजनीति कुछ इस तरह सत्ता चलाने तक पर हावी हो चुकी है कि पहली नजर वोट बैक को साधने के लिये उसी समाज के नेता को मंत्री पद देकर होती है। और दूसरी नजर नेता रहित किसी समुदाय केआंदोलन को सियासी नेता मंत्री बना कर देने की होती है। यानी सवाल यह नहीं कि सरकारें काम कर क्या रही है। सवाल यही है कि सरकार हो तो आने वाले वक्त में कहां कौन चुनाव जीतना है उसके लिये मंत्रिमंडल को ही हथियार बना लिया जाये। और अगर वाकई मंत्रिमंडल विस्तार के जरीये नजरें यूपी चुनाव पर ही हैं। तो नरेन्द्र मोदी, मायावती. मुलायम सिंह यादव और प्रियंका गाधी की पहचान है क्या। जाहिर है चारों को या तो देश का नेता होना चाहिये या फिर किसी प्रदेश का। लेकिन चुनाव के खेल में सत्ता के लिये देश हो या प्रदेश। हर नेता की पहचान उसके वोट बैंक से चाहे अनचाहे इस तरह जोड़ दी गई कि हर किसी की जाति ही उसकी पहचान है। और आलम ये हो चला है कि देश के प्रधानमंत्री मोदी को ओबीसी कहने में बीजेपी अध्यक्ष को भी हिचक नहीं होती। और पीएम के ओबीसी होने का जिक्र हर राज्य के चुनाव में बीजेपी ने लगातार किया । तो आप लोहिया को याद कर कह सकते हैं कि जाति तो देश का सच है इसे झुठलाया कैसे जाये। लेकिन क्या जाति के आसरे देश या प्रदेश आगे बढ़ सकता है। क्योंकि बीते 25 बरस से यूपी में कभी मायावती बतौर दलित नेता । तो कभी मुलायम बतौर यादवो के ऐसे सेकुलर नेता जिके साथ मुसलमान जुड़ जायें तो सत्ता मिल जाये। यानी मायावती के राज में दलित घर से बाहर निकलता है,बेखौफ होता है । तो मुलायम के दौर में यादव दबंग हो जाता है । और मुसलिम दोनो ही के दौर में खुद सत्ता के करीब पाकर भी वोट बैक की सहुलियत पाने से आगे बढ़ नहीं पाता। ऐसे में एक नजर प्रियंका गांधी पर भी जा सकती है। क्योंकि प्रियंका की पहचान जाति या धर्म से नहीं बल्कि गांधी परिवार से है।
और यही वजह है कि यूपी चुनाव में जब राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी मंडल की राह पर है और यूपी की बिसात पर जितने भी खिलाड़ी हैं सभी जाति की पहचान के साथ ही अपना अपना वोट बैंक देख रहे हैं। तो प्रियंका गांधी के आसरे कांग्रेस नेहरु इंदिरा से लेकर राजीव तक की छवि को यूपी में भुनाने के लिये तैयार हो रही है। तो क्या इससे कांग्रेस को सत्ता मिल जायेगी। या फिर जिस राष्ट्रीय शंखनाद के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में राष्ट्रीय पहचान बनायी अब वह छोटे छोटे नेताओं के वोट के आसरे बीजेपी को यूपी में सत्ता पाते हुये देख रहे हैं। या बीजेपी की राष्ट्रीय छवि को राज्यों की राजनीति के आसरे बंटते हुये देखना चाह रहे हैं । क्योकि इसी से सत्ता मिलती है तो देश के हर चेहरे के आसरे सवाल यही बड़ा है कि सत्ता के लिये सभी देश को वोट बैंक में बांट रहे हैं। या फिर मंडल पार्ट टू की एसी थ्योरी देश में चल पड़ी है कि देश को स्टेट्समैन नहीं दांव-पेच कर सत्ता पाने वाला नेता ही चाहिये।
ध्यान रहे ऐ बही नेता हैं जो जाती धर्म और वोट बैंक की राजनीति की खिलाफ लंबी चौड़ी भाषण झाड़ते थे,
ReplyDeleteसिर्फ इतना हीं कहूँगा
भ्रष्टाचार की अंधकार में एक चिराग बन के आये थे
जाती ना पूछो नेता की ऐ भाषण देके मोहे थे
न जाने क्या हुआ एक मज़बूत मसीहा जाती के अंधकार में खो गए।