Friday, December 23, 2016

मोदी जी नोटबंदी हो गई, लूटबंदी कब होगी ?

सत्ता में आने से पहले राजनीतिक लूट का जिक्र मोदी करते थे। और सत्ता जाने के बाद सियासत की आर्थिक लूट का जिक्र राहुल गांधी कर रहे हैं । तो आईये जरा देश के सच को परख लें कि आखिर लूट कहते किसे हैं और आजादी के बाद से 2014 तक जो घोटाले घपले किये उसकी कुल रकम 9 करोड10 लाख 6 हजार 3 सौ 23 करोड 43 लाख रुपये है । अगर डॉलर में समझें तो 21 मिलियन मिलियन डॉलर । यानी घोटाले दर घोटाले 1947 में आजादी के बाद से देश की राजनीतिक सत्ता के जरीये हुये । या फिर सत्ता की भागेदारी से । यानी लूट का सिलसिला थमेगा कैसे कोई नहीं जानता । और हर सत्ता के आते ही करप्शन । लूट का जिक्र ही सियासी बिसात पर वजीर का काम करने लगता है । और हमेशा जिक्र गरीब हिन्दुस्तान को चंद हथेलियों के आसरे लूट का ही होता है । तो क्या गरीब हिन्दुस्तान के नाम पर ही करप्शन होता है और करप्शन से लड़ने के ख्वाब देश के हर वोटर में भरे जाते हैं। जिससे सत्ता पलटे तो लूट का मौका उसके हाथ में आ जाये। ये सवाल इसलिये क्योंकि जब देश में इस सच का जिक्र सियासत करती है कि 80 करोड़ लोग दो जून की रोटी के लिये हर दिन संघर्ष कर रहे है । तो खामोशी इस बात पर बरती जाती है कि स्विस बैंक मे  1500 बिलियन डॉलर भारत के रईसों के ही जमा है । और ये रकम ब्लैक मनी है जिसे भारत के गरीबो से छुपायी गई है ।

विकिलिक्स की रिपोर्ट की मानें तो नेता, बड़े उघोगपति और नौकरशाहों की तिकड़ी की ही ब्लैक मनी दुनिया के बैंकों में जमा है । इसके अलावा सिनेमा के धंधे से लेकर सैक्स ट्रेड वर्कर और खेल के धंधेबाजों से लेकर हथियारो के कमीशनखोरो के कालेधन के जमा होने का जिक्र भी होता रहा है। तो क्या देश की लूट की रकम ही दुनिया के बैको में इतनी ज्यादा है कि दुनिया के बैको में जमा चीन, रुस, ब्रिटेन की ब्लैक मनी को मिला भी दिया जाये तो भारत की ब्लैक मनी कही ज्यादा बैठती है । और शायद इसीलिये पीएम बनने से पहले स्वीस बैक की रकम का जिक्र मोदी ने भी किया । और 15 लाख हर अकाउंट में जमा होने का जिक्र भी भाषण में किया । तो क्या लूट के इस सिलसिले को देखकर देश में बार बार कहा जाता है कि अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाकर जितना नहीं लूटा उससे ज्यादा आजादी की खूशबू तले सत्ताधारियो ने देश को लूट लिया । और ये लूट का ही असर है कि आजादी के 70 बरस बाद भी 36 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं। देश में 6 करोड़ रजिस्टर्ड बेरोजगार है । सिंचाई सिर्फ 23 फिसदी खेती की जमीन तक पहुंच पायी है । उच्च शिक्षा महज साढे चार फिसदी को ही नसीब हो पाती है । और हेल्थ सर्विस यानी अस्पताल महज 12 फीसदी तक ही पहुंचा । तो हर जहन में ये सवाल उठ सकता है कि एक तरफ लूट की इक्नामी में भारत अव्वल नंबर पर है और दूसरी तरफ गरीबी भुखमरी में भी भारत अव्वल नंबर पर है ।

तो क्या देश के बजट में जो बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिये 1947 से अब तक खर्च होना चाहिये था वह हुआ ही नहीं । और अगर नहीं हुआ तो क्या बजट तक का पैसा लूट लिया गया । ये सवाल इसलिये क्योकि 1950 से 67 तक जीडीपी का 4.4 फिसदी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च हुआ । 1967 से 84 तक जीडीपी का 4.1 फिसदी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च हुआ । 1984-91 तक जीडीपी का 5.9 फिसदी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च हुआ । 1991--2010 तक जीडीपी का 4.5 फिसदी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च हुआ यानी सिलसिलेवार तरीके से समझे तो 1947-48 वाले नेहरु के पहले 171 करोड के बजट में भी खाना-पानी-घर की जरुरत का जिक्र था और -2016-17 के मोदी के बजट में भी गरीबों की न्यूनतम जरुरतों पर ही समूचा बजट केन्द्रित कर बताने की कोशिश हुई । तो क्या जो काम देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर होना चाहिये वह हुआ ही नहीं । या फिर जितना बजट बनाया गया उस बजट की लूट भी नेता-उघोगपति-नौकरशाह की तिकडी तले होती रही । यानी सिस्टम ही लूट का कुछ इस तरह बनाया गया कि लूट ही सिस्टम हो गया । यानी लूट होती क्या है ये बीपीएल के लिये मनरेगा और मिड-डे मिल की लूट से भी समझा जा सकता है और प्राइवेट क्षेत्र में शिक्षा के जरीये देश के शिक्षा बजट से दो सौ गुना से ज्यादा की कमाई से भी जा ना जा सकता है । और हर बरस खेती या सिंचाई के इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिये बडट की रकम जोडकर भी समझा जा सकता है । जिसे किसानों में ही बांट दिया जाता तो देश की खती की समूची जमीन पर सिचाई का इन्फ्रास्ट्रक्चर काम कर रहा होता । तो क्या देश में इक्नामिक व्यवस्था ही चंद हाथों के लिये चंध हाथों में सिमटी हुई है । क्योंकि जरा इस आंकडे को समझे। रियालंस इंडस्ट्री ( ₹ 3,25,828 करोड़ ) , टीसीएस ( ₹ 5,10,209 करोड़) , सन फार्मा ( ₹2,09,594 करोड़ ), एल एंड टी ( ₹1,69,558 करोड़ ) , अडानी ग्रुप ( ₹1,45,323 करोड़ ) यानी ये सवा लाख करोड से लेकर पांच लाख करोड से ज्यादा का टर्नओवर वाली भारत की ये टापमोस्ट पांच कंपनियां हैं । जाहिर है इन कंपनियों के टर्नओवर देखते वक्त कोई भी सोच सकता है कि इनकी सालाना आय करोडों में ही होगी । ज्यादा भी हो सकती है । और इसी अक्स में जब नेताओं की संपत्ति के बढ़ने की रफ्तार कोई देखे तो कह सकता है कि भारत तो बेहद रईस देश है। क्योंकि भारत जैसे गरीब देश मायावती के पास 2003 में महज 1 करोड संपत्ति थी । जो 2013 में बढ़कर 111 करोड़ हो गई । तो वित्त मंत्री की संपत्ति की रफ्तार तीन बरस में 80 करोज बढ़ गई और अमर सिंह की संपत्ति तो दो बरस में 37 करोड बढ़ गई । तो क्या भारत वाकई इतना रईस देश हो चुका है कि एक तरफ सरकार दावा करे कि प्रति व्यक्ति आय हन जल्द ही एक लाख रुपये कर देंगे। और मौजूदा वक्त में बीते एक बरस में देश में प्रति व्यक्ति आय की रफ्तार में 8 हजार रुपये की बढोतरी भी हो गई । और इसी दौर में बीपीएल परिवारों की लकीर प्रतिदिन 27 रुपये और 35 रुपये की बहस में ही जब अटकी रही । यानी जब देश में एक तरफ 40 करोड लोग सालाना 10 हजार रुपये से कम पाते हो । और दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति आय सालाना 93,293 हजार रुपये आते हो । तो समझ लेना चाहिये कि देश में असमानता की खाई है कितनी चौडी । और जब देश में प्रधानमंत्री मोदी ने समाजवाद का सपना नोटबंदी के जरीये जगा ही दिया है । तो इस सोच के तहत क्या लोकतंत्र का मतलब सिर्फ हर व्यक्ति को एक बराबर एक वोट मान लिया जाना चाहिये । यानी एक तरफ देश का बजट । देश की नीतियां ही जब पूंजी से पूंजी बनाने के खेल में जा फंसी हो और सत्ता ङर किसी के बराबर वोट के नाम पर मिलती हो तो क्या नीतियो से लेकर व्यवस्था परिवर्तन की जरुरत नहीं है । क्योंकि जब राहुल कहते है -एक फीसदी के पास देश की 50 फीसदी संपत्ति है । तो वह गलत नहीं कहते । क्योंकि साल 2000 में देश के एक फीसदी अमीर लोगों के पास देश की 36.5 फीसदी संपत्ति थी,जो अब करीब 53 फीसदी हो चुकी है । लेकिन सवाल है कि इस असमानता को दूर करने की किसी ने सोची क्यों नहीं । और देश में जब हर बरस होने वाले चुनाव के जरीये ही अपनी नीतियो की हार-जीत सत्ता -विपक्ष आंकता है तो फिर वोट की ताकत भी गरीबों की ज्यादा क्यो नहीं हो जानी चाहिये। जिससे कंधे पर ढोते बीबी के शव। कंधे पर इलाज न मिलने पर दम तोड़ता बेटा । और नोटबंदी के दौर में कतारों में खड़े खडे मौत आ जाना। और सत्ता का उफ तक ना कहना। संकटकाल की आहट तो है ।

5 comments:


  1. प्रसून जी
    ब्यक्तिगत तौर पर में आपके प्रसंशक हूँ क्यों की आप के उपस्थापना की की शैली निराला हैं और दर्शक को सोचने के लिए मजबूर करता हैं बरना आज कल तो न्यूज चैनल के पत्रकार अभिनय पे उतर आये हैं खैर
    जनाब
    आप की बात तो हमें समझ में आती है पर कृपा करके ऐ भी बतायें की इन सबकी जिम्मेदार कौन है और इसकी समाधान क्या हैं?
    क्यूँ की जब हम भ्रष्टाचार को मुद्दा मानके बोट देते हैं तब आप ही पत्रकार लोग कुछ दिन बाद जाती ब धर्म को इस देश के सामने बड़ा मुद्दा बताते हैं।
    और जब लोग जाती, धर्म को मुद्दा बना बोट करते हैं तब आप लोग फिर यू टर्न ले लेते हो।
    खुद को समाज का आईना बताने बाले पत्रकार जब नेताओं के साथ सेटिंग करबाती हों और उन्ही कारपोरेट के लिए सत्ता से दलाली करते हो।
    तो यकीन किया जाए तो किसे ?
    इस लिए जो हो गया सो हो गया।
    अब अगर बर्तमान की सरकार इन तमाम सामाजिक बुराइयों को उखाड़ ने का दम्भ भर रहे हैं।
    तो एक पत्रकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए पहली कदम के कमियों के बारे में बताना चाहिए या उस कदम को ही कठघरे में खड़ा करना चाहिए?
    तो एक चिंता शील नागरिक के नाते हमें उनकी साथ खड़े होना चाहिए ना की दूसरे को जो आपकी नजर में सही है उसे सत्ता प्राप्त कराने में मदद करना चाहिए?
    सोचिएगा जरूर क्यूँ की सवाल आप ही को करना हैं और हमें हर ५ बरष में बोट..

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  2. मैं बहुत दिनों से सोच रहा था कि सिर्फ रवीश और पुण्यप्रसुन को छोडक़र बाकी पूरी टीवी न्यूज मीडिया भक्ति में लीन हो गई है। अगर रवीश को प्राईम टाईम और पुण्यप्रसुन को 10तक से हटा दिया जाये तो सत्ता और सत्ताधीशों के किसी भी गलत कार्य को बताने के लिये , कोई भी विरोधी स्वर टीवी न्यूज जगत में नही बचता है। रवीश और पुण्यप्रसुन कहानी के उस बालक की तरह है, जिसे नही पता है कि राजदरबार में, राजा की नई पोशाक की प्रसंशा ही करनी है(भले ही राजा पोशाकलेस ही क्यों न हो)। और वह बालक चिल्लाने लगता है कि राजा तो ---है, राजा तो ----है।
    अचानक आजतक पर एड आने लगी कि 10तक, डीडी न्यूज पर दिखाया जायेगा, तभी लग गया कि चैनल ने अपना आखरी स्वर भी म्यूट करने का समझौता कर लिया है, और उसके बाद सोमवार रात 9 बजे प्राईम टाईम रवीश ने नही प्रस्तुत नही किया, तब तो पक्का लगने लगा कि दोनों बालकों को दरबार से हटाने पर समझौता हो चुका है। आखिर चैनल मालिकों को भी तो अपना धंधा चलाना है। अब गोयनका जी का जमाना तो रहा नही, अब लोगों में जो भरम था, ये भ्रम भी नही रहा कि देश में मीडिया स्वतंत्र है या लोकतंत्र का चौथा खम्बा है। स्थिति देश में 75 से भी अधिक भयावह होने की दिशा में बढ़ रही है। बहरहाल स्थिति यह है कि प्राईम टाईम रवीश बिना और 10तक पुण्यप्रसुन बिना दिखाया जा रहा है।

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  3. Aaf kis tarah se likhte hai pata nahi. Par hamara dil ko chu leti hai sabd. Aaf desh k sabse bade bebak sehesil ek matra patrakar hai mere nazro mein. Aap se binti hai ki aap modi ji ka special interview lekar unhe kathghare me khada kijiye jo apne satta k nase me chur ho chale hai.
    Modi ka har mantri apna success yeh kehkar dikhate hai ki unki party itni itni seat jeet rahi hai.
    Masla yeh hai ki janta baat ko nahi samajh paa rahi hai aur desh k bhitar halat yeh hai ki media khulkar bat nahi keh paa rahi hai. Isloye aap hi ek option bache hai.
    Kripya reply dijyega.

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  4. पुण्यप्रसून जी एक दर्शक के रूप में मैं आपका बड़ा फेन हूँ,आपकी बेबाक वस्तूस्तिति पर जो विश्लेषण होता है वो लाजबाब होता है ,ज़मीन से जूडी समस्याओ को जिस प्रमुखता से आप सामने लाते है ,उसके पीछे छिपी आपकी मेहनत को महसूस किया जा सकता है ,लगता है देश में हम ब्रांडेड होगये है और एक तरफ हमने इसी को तरक्की का नजरिया मान लिया है,पर जो पीछे छूट गए वो काफी दूर रह गए है आज जरा रुक कर सोचने का समय है की हम लोग बहुत है और हमारी तरक्की का पैमाना भी हमे ही खोजना होगा वो तरक्की हमारी होगी जिसमे नैसर्गिक सुख और खुशहाली की महक हो ,दिशा दशा दोनों तय कर के हमे आगे बढ़ना होगा, आपको बहुत बहुत साधुवाद ,डॉ रामकुमार श्रीवास्तव 9826357660
    कभी ईश्वर ने चाहा तो मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझूगा की मैं आपसे मिल पाया।।

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  5. पुण्यप्रसून जी एक दर्शक के रूप में मैं आपका बड़ा फेन हूँ,आपकी बेबाक वस्तूस्तिति पर जो विश्लेषण होता है वो लाजबाब होता है ,ज़मीन से जूडी समस्याओ को जिस प्रमुखता से आप सामने लाते है ,उसके पीछे छिपी आपकी मेहनत को महसूस किया जा सकता है ,लगता है देश में हम ब्रांडेड होगये है और एक तरफ हमने इसी को तरक्की का नजरिया मान लिया है,पर जो पीछे छूट गए वो काफी दूर रह गए है आज जरा रुक कर सोचने का समय है की हम लोग बहुत है और हमारी तरक्की का पैमाना भी हमे ही खोजना होगा वो तरक्की हमारी होगी जिसमे नैसर्गिक सुख और खुशहाली की महक हो ,दिशा दशा दोनों तय कर के हमे आगे बढ़ना होगा, आपको बहुत बहुत साधुवाद ,डॉ रामकुमार श्रीवास्तव 9826357660
    कभी ईश्वर ने चाहा तो मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझूगा की मैं आपसे मिल पाया।।

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