चाय की केतली से निकलता धुआं...और अचानक जवाब हमारी तो हालत ठीक नहीं है । क्यों इसमें आपकी हालत कहां से आ गई । अरे भाई पार्टी तो हमारी ही है। और जब उसकी हालत ठीक नहीं तो हमारी भी ठीक नहीं । यही तो कहेंगे । ठीक नहीं से मतलब । मतलब आप खुद समझ लीजिये । क्यों गली गली..बूथ बूथ ... घूम रहे हैं । हां जब कोई दरवाजे दरवाजे घूमने लगे तो समझ लीजिये। ये हालत यूपी में तो नहीं थी। नहीं पर गुजरात की गलियां तो उन्होंने ही देखी हैं । बाकी तो पहली बार गलियां देख रहे हैं। सही कहा आपने गुजरात की गलियां सिर्फ उन्होंने ने देखी हैं। बाकियों को कभी देखने दी ही नहीं गई। अब जब हालात बदल रहे हैं तो गली गली घूम रहे हैं । वर्ना ये घूमते ...फिर भी कितनी सीट मिलेंगी। सर्वे में तो 80 पार करना मुश्किल लग रहा है । सर्वे ना देखें मैनेज हो जायेगा । मैनेज हो जाये तो ठीक। क्यों ईवीएम ??? न न आप ईवीएम की गडबडी की बात मत करीये । ईवीएम में कोई गडबडी नहीं है ।
हमने तो 1972 का दौर भी देखा है जब इंदिरा गांधी जीत गई तो बलराज मघोक और सुब्रमण्यम स्वामी थे। उन्होंने कहा गडबडी बैलेट पेपर में थी। मास्को से बैलेट पेपर बन कर आये हैं। जिसमें ठप्पा कही भी लगाईये पर आखिर में दो बैलो की जोडी पर ही ठप्पा दिखायी देता है। ये सब बकवास तब भी था। अब भी है। तो अगर मैनेज हो ना पाया । तब क्या होगा । तब...संविधान कुछ और तोड़-मरोड़ दिया जायेगा । आप देख नहीं रहे है संसद का शीत कालीन सत्र टालना । और टालते हुये एहसास कराना कि " हम कुछ भी कर सकते है " । ये खतरनाक है । लेकिन हमें लगता है गुजरात हार गये तो डर जायेंगे । कुछ लोकतांत्रिक मूल्यो की बात होगी। अरे..तो डर में ही तो सबकुछ होता है । डर ना होता तो गुजरात देश से बड़ा ना होता । लेकिन कोई है भी नहीं जो कहें कि गलत हो रहा है । ठीक कह रहे है ...मूछें एंठते रहिये ..हम कैबिनेट मंत्री है । सारी ठकुराई निकल गई । पर गुजरात के बाद हो सकता है कोई निकले ...अरे तब निकलने से क्या होगा । याद कीजिये निकले तो जगजीवन राम भी थे । पर कब...और हुआ क्या । बहुगुणा को ही याद कर लीजिये । निकलने के लिये नैतिक
बल चाहिये । गाना सुना है ना आपने... " सब कुछ लुटाकर होश में आये तो क्या मिला " । तो पार्टी तो आपकी है ....फिर आप क्यों नहीं । देखिये अभी अपने अपने स्वार्थ के आसरे एकजूटता है । तो स्वार्थ हित कहता है विरोध मत करो । तो फिर हर कोई वैसे ही टिका है । और ये पार्टी दफ्तर नहीं रोजगार दफ्तर है । जो कार्यकत्ता बन गया उसे कुछ चाहिये । और कुछ चाहिये तो कुछ का गुणगाण करने भी आना चाहिये । तो चल रहा है । पर ये कब तक चलेगा । जबतक जनता को लगेगा । और जनता को कब तक लगेगा । जब तक उसे भूख नहीं लगेगी। भूख नहीं लगेगी का क्या मतलब हुआ। देखिये आज आपका पेट भी आजाद नहीं है । दिमाग तो दूर की बात है । आप खुद को ही परख लिजिये ...और बताइये..मीडिया का क्या हाल है..सभी के अपने इंटरेस्ट हैं। तो झटके में संपादक कहां चला गया । इंदिरा के दौर में तो संपादक थे। इमरेजेन्सी लगी तो
विरोध हुआ ।
अब देखिये वसुंधरा राज की नीतियों का विरोध करते हुये एक अखबार संपादकीय खाली छोड देता है तो आपके मन में ये सवाल नहीं आता जिस देश में सरकार ने आपकी जिन्दगी को कैशलैस कर अपनी मुठ्ठी में सबकुछ समेटने की कोशिश की है उसके खिलाफ क्यों नहीं कोई अखबार संपादकीय खाली क्यो नहीं छोडता है। देखिये लोकतंत्र का स्वांग आप भी कर रहे हैं। और लोकतंत्र के इस स्वांग को जनता भी देख रही है । अगर लोकतंत्र के चारो पाये ही बताने लगे कि लोकतंत्र का मतलब वंदे मातरम् कहने में है तो जनता क्या करेगी । उसकी लड़ाई तो भूख से है । रोजगार से है। हर कोई स्वांग कैसे कर रहा है आप खुद ही देख लिजिये...एक ने कहा गंगा में हाइट्रो पावर पोजेक्ट बनायेगे। दूसरा बोला गंगा में बडी बस चलायेगें । तीसरा बोला शुद्द करेंगे ....अविरल कौन करेगा कौई नहीं जानता । और हालात इतने बुरे हो चले है कि दुनिया के रिसर्च स्कालर गंगा पर शोध कर समूचा खाका रख दे रहे है । अरे उन्हें ही पढ लो । आप भी पढिए ..आक्सफोर्ड पब्लिकेशन से एक किताब आई है ..गंगा फॉर लाइफ ..गंगा फॉर डेथ । सबकुछ तो उसने लिख दिया । और जि गंगा पर देश की 41 फिसदी आबादी निर्भर है । उस गंगा को लेकर भी आप मजाक ही कर रहे है । अरे...चाय तो पिजिये । ग्रीन टी है । इसमें केसर मिलाकर पिया किजिये इस मौसम में तबियत बिगडेगी नहीं । जी..अच्छी है चाय...हा हा इसमें शहद भी मिलाया कीजिये । गला साफ रहेगा...हां मेरी तो तबियत बिगडी हुई है । गला भी जाम है । पाल्यूशन दिल्ली में खासा बढा हुआ है । अब आप भी पल्यूशन के चक्कर मे ना रहिये ...दिल्ली कोई आज से पोल्यूटेड है ..याद कीजिये 70-80 के दशक से ही दिल्ली में राजस्थान से
रेगिस्तानी हवा उड़ कर आती थी । पूरा रिज का इलाका ...वहा भी सिर्फ धूल ही धूल.हम काली आंधी कहते थे ...घर के दरवाजे...खिड़की बंद करनी पडती थी । और ये गर्मी के वक्ततीन महीने मई से जुलाई के दौर में रहता था । तब पोल्यूशन नहीं रहता थाा क्या .....प्रदूषण पूरे देश में है । पर प्रदूषण से बचने के उपाय का बाजार दिल्ली में है । तो डर के इस बाजार को हर जगह पैदा किया जा रहा है । देखिये जब कोई काम नहीं होता है तो ऐसा ही होता है ....दिल्ली-मुबई के जरीये बताया गया...इज आफ बिजनेस....अरे भाई मौका मिले तो एक बार विदेश मंत्रालय की आफिसियल साइट को ही देख लिजिये..अगर देश में धंधा करना इतना शानदार है तो फिर बीते दो-तीन बरस में सबसे ज्यादा बारतीय देश छोडकर चले क्यो गये....लगातार जा रहे है ।
आपको आंकडे मिल जायेंगे.कैसे कब दो करोड से चार करोड भारतीय विदेश में बसने की स्थिति में आ गये....द इक्नामिक इंपोर्टेस आफ हंटिंग पढ़ें...आप बार बार किताबों का रेफरन्स देते है । तो क्या मौजूदा वक्त में कोई पढता नहीं ..पढ़ता होगा..पर आप जरा सोचिये जर्मनी की काउंसलर से लेकर हर कोई भारतीय प्रमुखों के सामने बैठे है...और अचनक एक नौकरशाह बताने लगे कैसे खास है हमारे वाले....बहुत बोलते नहीं ...पर बडे बडे काम खामोशी से करते है ....यानी राग दरबारी दुनिया के बाजार में भी...तो प्रभावित हर किसी को होना ही चाहिये...हो भी रहे है ...पहली बार हर कोई देख रहा है ...इस लहजे में भी बात होती है । आप जरा रुस के राष्ठ्रपति पुतिन को ही देख लें । कैसे आज की तारिख में वह कितने ताकतवर है । और कैसे हो गये । रुस तो खुलापन खोजते खोजते ढह गया..औ पुतिन के ही सारे सगे संबंधी हर बडी कंपनी के सर्वोसर्वा है ...अब गैस की पाइपलाइन को थोडा सा ही ऐंठ दिया तो जर्मानी तक पर संकट आ जायेगा....हर हम तो इनर्जी से लेकर रोजगार तक को लेकर ड्राफ्ट तैयार किया । देश की आठ प्राथमिकता क्या होनी चाहिये इसे बताया। 2014 कै मैनीपेस्टो को ही पलट कर आप देख लिजिये...देखिये बौद्दिकता एक जगह....सत्ता हांकना एक जगह । दिल्ली से सटा इलाका है मनेसर । वहा पर दिमाग का रिसर्च सेंटर है । पर जरा किसी से पूछिये दिमाग और माईंड में अंतर क्या है ..कौन बतायेगा । दरअसल ब्रेन इज द साउंड बाक्स आफ माइंड । या आप कहे ब्रेन कंप्यूटर है । पर माइंड साफ्टवेयर है । पर यहा तो बात हार्ड वर्क की हो रही है...कौन ज्यादा से ज्यादा दौडता नजर आ रहा है
......बाते चलती रही .चाय की और प्याली भी आ गई...पर ये बात किससे हो रही है,,कहा हो रही है । हमारे ख्याल से ये बताने की जरुरत नहीं होनी चाहिये..सिर्फ समझ लेना चाहिये हवा का रुख है कैसा..तो आप सोचिये कौन है ये शख्स ।
1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा जी की जीत के बाद बलराज मधोक और स्वामी ने आरोप लगाया था कि सोवियत संघ से केजीबी ने गायब हो जाने वाली स्याही भेजी थी जिसके कारण कांग्रेस जीती. 1972 के विधानसभा चुनाव तो बडे आसान थे क्योंकि 16 दिसम्बर 1971 को ढाका पर फतह हो चुकी थी.
ReplyDeleteKya ap ye batayenge kya hoga agar modi 2019 jiti timo???
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