Monday, July 30, 2018

कॉरपोरेट फंडिंग के आसरे महंगे होते लोकतंत्र में जनता कहीं नहीं

6 अरब पॉलिटिकल फंडिंग कर 60 खरब की रियायत
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तो कॉरपोरेट देश चलाता है या कॉरपोरेट से सांठगांठ के बगैर देश चल नहीं सकता। या फिर सत्ता में आना हो तो कॉरपोरेट की जरुरत पड़ेगी ही । और कॉरपोरेट को सत्ता से लाभ मिले तो फिर कॉरपोरेट भी सत्ता के लिये अपना खजाना खोल देता है। ये सारे सवाल हैं। और  सवालों से पहले एक हकीकत तो यही है कि 2015-17 के बीच कॉरपोरेट फंडिग होती है 6 अरब 36 करोड 88 लाख रुपये की । और सत्ता कॉरपोरेट को डायरेक्ट या इन डायरेक्ट टैक्स में रियायत दे देती है 60 खरब 54अरब 48 करोड की । तो आप क्या कहेंगे । तो तमाम सवालों के अक्स में समझने की जरुरत है कि कैसे कॉरपोरेट मॉडल ही देश का इकनॉमिक मॉडल है। और ये खुला मॉडल 2014 के चुनाव को लेकर ही कैसे उभरा जो अब रफ्तार पकड चुका है। इसके लिये 2013 से 2015 में कॉरपोरेट फंडिग जो राजनीतिक दलों के लिये हुई उसकी फेहरिस्त को देखे । भारती एयरटेल [53,00,80,000 ], डीएलएफ [45,01,00,000] , इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लि.[40,00,00,000 ], जेएसडब्ल्यू स्टील लिं [25,00,00,000 ] , हीरो मोटोकार्प लि.[19,00,40,000 ], टाटा स्टील [ 14,13,45,659 ] , भारती इन्फ्रा लि [12,00,80,000 ], डीएलएफ साइबर सिटी डेवलेपर्स लि [12,0050,000 ] , टौरन्ट पावर लिं-.[ 10,00,00,000 ] , जीएमएमसीओ [ 6,00,45,000 ] , जुबलियन्ट फुडवर्क्स लिं.[-5,00,00,000 ] ,टाटा सन्स लिं-[ 4,74,39,333 ] , नेशनल इंजिनियरिंग इंडस्ट्री लि [4,00,30,000 ] , इंटरग्लोब एविशियन लि. [4,00,00,000 ] , कल्पतरु पावर ट्रासमिशन लि.[ 4,00,00,000 ] जुबलियंट लाइफ साइंस लि.[ 3,88,00,000  ] , बजाज आटो लि.[ 3,00,00,000 ] , चंबल फर्टलाइजर एंड कैमिकल लिं [2,00,20,000 ] , डीसीएम श्रीराम लि. [2,00,00,000 ],
ओरियन्ट सीमेंट लि.[ 2,00,00,000 ] , अखिल गुप्ता [2,00,00,000 ], टाटा मोटर्स लि. [1,84,06,574 ], गुजरात फ्लोरोकैमिकल्स लि [1,50,00,000 ] टाटा कैमिकल्स लि.[1,49,46,399 ] टाटा कंसलटेन्सी [ 1,48,96,029 ], सीईएटी लि.[1,35,00,000 ], जेनसर टेकनोलाजी लि.[1,34,00,000 ], केइसी इंटनेशनल्स लि. [1,33,00,000 ], ग्लोबल बेवरेजिस [1,23,97,645 ], जेके लक्ष्मी सिमेंट लिं[ 1,10,15,000 ] , धुनसेरी पेट्रोकैम एंड टी  लिं [1,00,00,000 ] ,कोरोमंडल इंटरनेश्नल लि.-[1,00,00,000 ],चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट एंड फाइनेंस [1,00,00,000], टयूब इनवेस्टमेंट आफ इंडिया लि.[1,00,00,000 ], ये उन चंद कंपनियो के नाम जिन्होंने एक करोड़ या उससे ज्यादा पॉलिटिकल फंडिंग दी । पर सवाल तो उस इक्नामिक माडल का है जो चाहे अनचाहे कॉरपोरेट बगैर अधूरा है और देश में  त्ता कॉरपोरेट के आसरे बनायी जाती है । तो जरा सिलसिलेवार तरीके से कारपोरेट फंडिंग को समझे । जब नरेन्द्र मोदी का नाम बीजेपी पीएम पद के लिये रखती है झटके में कारपोरेट मे बहार आ जाती है क्योंकि मनमोहन सिंह सरकार के घोटालों को लेकर 2011-12 में तो खुलकर कारपोरेट सीधे मनमोहन सरकार पर चोट करने से कतरा नहीं रहा था ।

तो  2013-14 में कॉरपोरेट फंडिंग 85 करोड 37 लाख रुपये की होती है । 2014 -15 में ऐन चुनाव के वक्त या तुरंत बाद 1 अरब 77 करोड 65 लाख रुपये की कॉरपोरेट फंडिंग होती है । और चुनाव के बाद इसमें दो तिहाई की कमी आती है । और सिर्फ 47 करोड 50 की कारपोरेट फंडिंग होती है । तो पिछले बरस उसमें खासी तेजी आ जाती है और कारपोरेट फंडिंग अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा 5 अरब 89 करोड 38 लाख रुपये की होती है । यानी 2013 से 2017 के बीच कारपोरेट जितना रुपया राजनीतिक दलों को देता है उसे मिला दिजियेगा तो ये 8 अरब 99 करोड 65 लाख रुपये होता है । पर बीते बरस अज्ञात सोर्स से भी पालिटिकल फंडिग होती हैं जो कि अपने आप में रिकार्ड है । 7 अरब 10 करोड 80 लाख रुपये की फंडिंग होती है और चुनाव आयोग को कोई जानकारी दी ही नहीं जाती कि ये रुपया किसने दिया । यानी 16 अरब 10 करोड 45 लाख रुपये कारोपेट राजनीतिक दलो को अगर देता है तो जाहिर है सिर्फ लोकतंत्र मजबूत करने के नाम पर तो नहीं ही देता होगा । तो सवाल कई है । मसलन , क्या कॉरपोरेट की पॉलिटिकल फंडिंग की देश के लोकतंत्र को जिन्दा रखता है । क्या कॉरपोरेट की फंडिंग औ सत्ता की मेहरबानी ही देश का इक्नामिक माडल है । क्या कॉरपोरेट को वाकई इतना मुनाफा होता है कि वह फंडिंग करे या फंडिंग करने के बाद मुनाफा होता है । क्योकि सिर्फ बीते बरस में जो सबसे ज्यादा फंडिंग 5अरब 89 करोड  38 लाख रुपये की फंमडिग होती है उसमें सबस् ज्यादा या कहे 98 फीसदी सत्ताधारी पार्टी के पास 5 अरब 32 करोड 27 लाख 40 हजार रुपये ही जाता है । और दूसरे नंबर पर विपक्ष की भूमिका निभाती कांग्रेस के पास महज 41 करोड 90 लाख 70 हजार रुपये जाते हैं । तो कॉरपोरेट सत्ताधारी पार्टी को ही फंड करेगा ये तो साफ है । पर राजनीति जब सत्ता पाने करे लिये होती है तो फिर कोई भी राजनीतिक दल रहे वह उन फंड के बारे में जानकारी देना नहीं चाहती जो छुपा कर फंडिंग करता है। और उसी का असर है कि पिछले बरस इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हुये 166 पालिटिकल फंडिंग करने वालो के पैन नंबर की जानकारीपार्टिया दे नहीं पायी । और ऐसा भी नही है कि बिना पैन या बेक या चैक  नंबर के फंडिग होने का लाभ सिर्फ सत्ता धारी को मिलता है । सत्ता को ज्यादा लाभ जरुर होता है पर लाभ कांग्रेस को भी हुआ । मसलन 2016-17 में अज्ञात सोर्स से बीजेपी को 4 अरब 64 करोड 94 लाख रुपये मिल  । तो 2016-17 में ही कांग्रेस को अज्ञात सोर्स से 1अरब 26 करोड 12 लाख 40 हजार रुपये मिले । यानी कारपोरेट जितना रकम पॉलिटिकल पार्टी को देते है उससे कम रकम सरकार किसानों की कर्ज माफी के लिये देती हैं। या कहें कल्याणकारी योजनाओं के लिये सरकार जितने बजटका एलान करती है उससे ज्यादा कॉरपोरेट पॉलिटिकल पार्टी को फंड दे देता है । तो ये सवाल किसी भी जहन में उठेगा ही की आखिर इसकी एवज में कितना लाभ कॉरपोरेट को मिलता होगा । जिनकी संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती है । क्योंकि एक तरफ 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने पालिटिकल फंडिंग को लेकर लकीर खिंची और उसके बाद चुनाव आयोग सक्रिय हुआ और देश में कॉरपोरेट फंडिंग को कानूनी जामा पहनाते हुये साफ कर दिया गया कि आखिर राजनीतिक दलों को चलना तो कॉरपोरेट फंड से ही तो फिर सात ट्रस्ट बने ।

 यानी ट्रस्ट के जरीये राजनीतिक दलो को फंड दिया जाता है। पर ट्रस्ट के भीतर का सच भी अनूठा है । मसलन सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट में 26 कारपोरेट है । तो टाटा ने अपनी 8 कंपनियों को लेकर प्रोग्रेसिव ट्रस्ट बनाया । बजाज इंडस्ट्री ने अपना बजाज इलेक्टोरल ट्रस्ट बनाया । और जनरल ट्रस्ट में कारपोरेट का नाम नहीं है सिर्फ जनरल इलेक्टोरल ट्रेस के नाम पर फंडिग होती है । और  तमाम ट्रस्ट में देश के 51 कॉरपोरेट या औघोगिक बिजनेस हाउसेस है जो  राजनीतिक दलो को फंडिग करते है । उसका सबसे बडा केन्द्र दिल्ली ही है । क्योकि बीते बरस जो चुनावी फंडिग हुई वह दिल्ली से ही सबसे ज्यादा हुई । मसलन दिल्ली से 2,90,90,00,000 कारपोरेट फंडिग हुई । तो महाराष्ट्र से 1,12,31,00,000 की कारपोरेट फंडिंग हुई । यूपी से 20,22,00,000 की कारपोरेट फंडिंग हुई । पं बंगाल से 14,63,00,000 की कीरपोरेट फंडिग हुई और हरियाणा से 11,65,00,000 की कारोपेट फंडिग हुई । यानी अलग अलग राज्यों के जरीये कॉरपोरेट फंडिंग का मतलब है कि क्षत्रपों को भी कारपोरेट फंड करते है । पर सबसे अहम तो ये है कि फंडिग की जाती है पर उसके सोर्स की जानकारी कोई नहीं देता । आलम ये है कि 2016-17 में 91,91,00,000 रुपये किसने फंडिंग की इसकी जानकारी चुनाव आयोग को दी ही नहीं गई । पर ये सवाल अब भी अनसुलझा है कि आखिर कॉरपोरेट जब इतनी फंडिंग करता है तो उसे सरकार से लाभ क्या मिलता है । तो हैरान करने वाले हालात है कि देश के चुनावी माडल तले इक्नामी इस तरह रेंगती है कि कारपोरेट को कई गुमा ज्यादा रियायत दी जाती है । मसलन 2015-16 में कारपोरेट ने 47 करोड 50 लाख रुपये की पालिटिकल फंडिग की और कारपोरेट को इसी बरस डायरेक्ट-इनडायरेक्ट टैक्स में 28 खरब 71 अरब रुपये की छूट मिल गई । इसी तरह 2016-17 में कारपोरेट ने 5 अरब 89 करोड 38 लाख रुपये की पालेटिकल फंडिग की और उसे 2016-17 में ही 31 खरब 33 अरब 48 करोड का डायरेक्ट-इनडायरेक्ट टैक्स में रियायत दी गई । तो पॉलिटिकल फंडिंग से कई गुणा ज्यादा रियायत कारपोरेट को मिलती है ये सच है । पर अगला सवाल ये भी है कि जब चुनावी फंडिंग को ही ट्रस्ट बनाकर  कानूनी तौर पर वैध कराया गया तो फिर परेशानी क्या है । यानी खुले तौर पर ट्रस्ट पालिटिकल फंड देते है और खुले तौर पर सरकार रियायत देती है ।

दरअसल देश के इकनामी माडल की यही खूबसूरती लोकतंत्र के उस राग को ही हडप लेती है जहा ये बात कही जाती है कि जनता सरकार चुनती है । और सरकारें जनता के लिय़ काम करती है । क्योंकि कारपोरेट माडल को मुनाफा पहुंचाने सरकार की जरुरत है । कारपोरेट फंडिग से चुनाव को महंगा करना राजनीतिक दल की जरुरत है । मंहगा चुनाव लोकतंत्र ना होकर बिजनेस में तब्दिल होता है । बिजनेस चुनावी जीत की बिसात तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । यानी चाहे अनचाहे देश में चुनावी इक्नामी का ऐसा मॉडल बन रहा है जिसमें बिना पूंजी चुनाव लड़ना मुश्किल है और चुनाव के लिये फंडिंग ना हो तो चुनाव जीतना मुश्किल है । और लोकतंत्र इसी कैसे जा फंसा है ये इससे भी समझा जा सकता है कि बजाज इलेक्टोरल ट्रस्ट  दिल्ली चुनाव के वक्त सिर्फ आमआदमी पार्टी को 3 करोड 5 लाख रुपये देता है । जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ओडिसा चुनाव के वक्त बीजेडी को 18 करोड  तो  शिवसेना को 2 करोड तो एमएनएस को डेढ करोड फंडिग करती है । यानी कारपोरेट को लाभ क्षत्रपो से भी चाहिये और क्षत्रपो को भी कारपोरेट फंडिग चाहिये । तभी तो झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी 2013-15 के बीच जनरल इलेकर्ट्रोल ट्रेस 75 लाख रुपये फंड करता है । तो सवाल दो है । पहला , कारपोरेट अपने बिजनेस में राजनीतिक दखल रोकने के लिये भी राजनीतिक  फंड करता है । दूसरा , राजनीतिक दल ऐसी सियासत करते है कि कारोपेरट फंड दिये बिना अपना काम कर नहीं सकता । तो फिर इक्नामी को कौन सा माडल देश में चल रहा है या ये कहे कि चुनावी इक्नामक माडल ही देश की अर्थव्यवस्था का आखरी सच है । यानी कारपोरेट एक तरह से राजनीतिक दलों को फंडिंग कर अपने मुनाफा को बढात भी है और दूसरी तरफ फंडिग कर अपने बिजनेस के रास्ते कोई नुकसान ना आने देने की स्थिति बनाने के लिये भी
करता है । तो सवाल कारपोरेट का है या सवाल उस राजनीति का है जिसे लोकतंत्र से कोई लेना देना नहीं । सिर्फ हर हालात को सत्ता तले कैसे निर्भर बना दिया जाये । और पूरा देश चुनावी जीत हार में फंसे । कारपोरेट सबसे बडा खिलाडी रहे । दुनिया के सबसे बडा लोकतांत्रिक देश का ये भी अनूठा सच हो चला है ।

10 comments:

  1. if congress just see your master stroke episode and explain properly in public then also they can win, but congress is sleeping now and will wake up at election time, till that time BJP set everything and will play with congress and look like match fixing.

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  2. पूर्व की भांति आज भी ABP News के "मास्टर स्ट्रोक" शो के दरमियान सिग्नल चला गया।यह एक साजिश,नही तो और क्या?

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  3. सर कुछ किजिए।

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  4. Aaj bajpayi sir nahi aaye to channel ka signal me koi problem nahi aaya...saath hi chinta bhi ho rahi ki Prasoon sir ko yaha bhi rok to nahi diya gaya ho...jungal raaj chal raha h..jahaan sirf chaaploos patrakar hi bol sakata h..sarkaar ki kuritiyon ki pol kholane wale patrakaar ko programme nahi karane diya jaayega...modi bhagaao desh bachaao.

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  5. सर हम आपके साथ है।

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  6. Modi corporate Ka khulla chamacha hai Jo appke duwara dikhai Gaye aakdho se dar apko sach bolne se rokta hai Hitler modi

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  7. कॉर्पोरेट हमेशा से ही सत्ताधारी दल को ज्यादा फंडिंग करता रहा है। कांग्रेस भी साफ नही है हालांकि 2014 के बाद bjp ने ज्यादा गंदगी फैलाई है जो कि अटल आडवाणी युग मे कभी नही थी।

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  8. Sir ham apke sath hai.. Dangaaeyo ko sach samne laao

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  9. लगेंगी लगेगी इस फंडिंग पर भी रोक😑जब तक आप जैसे पत्रकार निडरता से पत्रकारिता धर्म निभायेंगे , उम्मीद पर दुनिया कायम है 😑 जैसे लोगों में शिक्षा और जागरूकता का स्तर बढेब जनता भी कभी न कभी जागेगी😑

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