दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की राजनीति का सच तो यही है कि सत्ता पाने के लिये नागरिकों को वोटरों में तब्दील किया जाता है। फिर वोटरों को जाति-धर्म-सोशल इंजीनियरिंग के जरीये अलग अलग खांचे में बांट जाता है। पारंपरिक तौर पर किसान-मजदूर, महिला , दलित , युवा और प्रोफेशनल्स व कारपोरेट तक को सपने और लुभावने वादों की पोटली दिखायी जाती है। और सत्ता पाने के बाद समूचे सिस्टम को ही सत्ता बनाये रखने के लिये काम पर लगाते हुये जनता की चुनी हुई सरकार के नाम पर हर वह काम करा जाता है, जो अंसवैधानिक हो। फिर इसके सामानांतर में अपने पारंपरिक चुनिंदा वोटरों के लिये कल्याण योजनाओं का एलान करते रहना। यानी चाहे अनचाहे लोकतंत्रिक देश का राजनीतिक मिजाज ही लोकतंत्र को हड़प रहा है। और खामोशी से वोटरो में बंटा समाज राजनीतिक दलों में अपनी सहुलियत अपनी मुश्किलों को देखकर हर पांच बरस में राजनीतिक लोकतंत्र को जीने का इतना अभ्यस्त हो चला है कि उसे इस बात का एहसास तक नहीं है कि उसके पडोस में रहने वाला शख्स कितना जिन्दा है, कितना मर चुका है।
ये अपने तरह का अनूठा या कहे सबसे त्रासदीदायक दौर है कि देश का 17 करोड़ 22 लाख मुसलमान [ 2011 के सेंसस के मुताबिक ] नागरिक है भी कि नहीं इसका कोई एहसास सत्ता को नही है। और मुसलमान भी इतनी खामोशी ओढ़ चुका कि उसे खुद के होने का एहसास 2019 के चुनाव की छांव में जा छुपा है। और लग ऐसा रहा है कि 2019 के चुनाव देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को जीने के लिये नहीं बल्कि आजादी मिलने के एहसास पर जा टिकी है। और इसी एहसास का दूसरा चेहरा देश के 20 करोड 14 लाख दलितो [ 2011 के सेंसस के मुताबिक ] में है । जो डरा हुआ है । सहमा है । लेकिन वह भी खुद को 2019 के चुनाव तले अपनी खामोश और आक्रोश की जिन्दगी को टाल रहा है । यानी 2014 के चुनाव परिणाम के बाद जिस तरह समूचा सिस्टम और सिस्टम को चलाने वाले तमाम संस्थान ही सत्तानुकुल हो गये उसमें पहले दो बरस काग्रेस की त्रासदी को याद कर नयी सत्ता के हर कार्य को लेकर उम्मीद और सपनों को जीने का स्वाद था। लेकिन उसके बाद सत्ता की छांव तले भीडतंत्र के न्याय ने कानून के राज को जिस तरह हवा कर दिया उसने 37 करोड की आबादी के सामने ये सवाल तो खड़ा कर ही दिया कि उसकी हैसियत सिवाय वोटर की नहीं। यानी संविधान जरीये मिलने वाले अधिकार भी मायने नहीं रखते है और कानून का राज भी सिमट कर सत्ता की हथेली पर नाचने वाले या कहे सुविधा पाने वाले तबके में जा सिमटा है। वाकई ये लकीर बेहद महीन है । पर सच यही है कि दलितों के खिलाफ औसतन हर बरस 36 हजार से ज्यादा उत्पीडन के मामले दर्ज होते रहे । और मुस्लिमों को वोट बैंक के दायरे में इतना डराया या बहलाया गया कि उसकी हैसियत सत्ता की तरफ ताकने के अलावे बची ही नहीं। एक तरफ यूपी में 20 करोड की आबादी में से करीब 4 करोड मुस्लिम कैसे सांस ले रहा है, ये जानने की कोशिश कोई नहीं करता। हर हर सांस थम जाये इसका वातावरण मुस्लिम बहुसंख्यक इलाकों में जा कर समझा जा सकचता है । बुलंदशहर में हाजी अलीम के माथे पर दो गोली मारी जाती है। पुलिस किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करती । उल्टे ये कहने से नहीं चुकती कि ये तो खुदकुशी लगती है। यानी खुद ही कनपटी पर पिस्तौल रख हाजी अलीम पहले एक गोली चलाता है फिर दूसरी। मुस्लिम समाज के भीतर सांस थामने वाली सिस्टम की ऐसी बहुतेरी किस्सागोई मिल जाती है । दो दर्जन इनकाउंटर उसका सबूत है ।
तो जिन्दगी के लिये सत्ता की रहम-करम। तो दूसरी तरफ पं. बंगाल में करीब ढाई करोड बंगाली मुस्लिम भी सत्ता की रियायत पर ही जिन्दगी जी सकता है। और रियायत की एवज में लोकतंत्र के उस राग को जिन्दा रखना है जहा दिल्ली या कहे बीजेपी की सत्ता का विरोध करती टीएमसी यानी ममता बनर्जी की सत्ता बनी रहे। तो सत्ता को कही बतौर नागरिक भी मुस्लिम बर्दाश्त नहीं तो कही वोटर होकर ही जिन्दा रह सकता है। और इस दायरे की सबसे त्रासदी दायक परिस्थितियां मुस्लिम समाज के भीतर जमा होते उस मवाद की है जिसमें सवा चार करोड मुस्लिम की जिन्दगी प्रतिदिन 28 से 33 रुपये पर कटती है। 42 फिसदी बच्चे कुपोषित पैदा होते हैं। एक हजार बच्चों में से कोई एक बच्चा ही तकनीकी शिक्षा पाने की स्थिति में होता है । जो
क्लर्क या प्रोफनल्स की नौकरी में है उनकी संख्या भी एक फिसदी से आगे की नहीं है। यानी किस तरह का समाज या देश गढा जा रहा है जो सिर्फ राजनीतिक सत्ता ही देखता है । और इसमें दलित को काढ दीजियेगा तो हालात बद से बदतर हो जायेंगे क्योंकि देश में 6 करोड दलित 28 से 33 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जीते हैं। और करीब 48 फिसदी दलित बच्चे कुपोषित ही होते हैं। शिक्षा या उच्च शिक्षा या तकनीकी शिक्षा के मामले में इनका हाल मुस्लिम को ही पछाड़ता है और वह भी उन आंकडो के साथ जिसका मुकाबला युगांडा या अफगानिस्तान से हो सकता हो । क्योंकि दो फिसदी से आगे के सामने किताब होती नहीं और दशमलव एक फिसदी उच्च शिक्षा के दायरे में पहुंच पाता है। पर इनका संकट दोहरा है। उनके नाम पर सत्ता आंखे बंद नहीं करती बल्कि सुविधा देने के नाम पर हर सत्ता इन्हे अपने साथ जोडने की जो भी पहल करती है वह सिवाय भीख देने के आगे बढ नहीं पाती ।
यानी राजनीतिक लोकतंत्र के दायरे में इनकी पहचान सिवाय वोट देने के वक्त ईवीएम पर दबाये जाते एक बटन से ज्यादा नहीं होती । किमत हर कोई लगाता है । पर इसका ये मतलब कतई नहीं है कि दलित मुस्लिम के अलावे देश में हर कोई नागरिक के हक को जी रहा है। व्यवसाय या रोजगार के दायरे में या फिर महिला या युवा होने का दर्द भी राजनीति सत्ता के लोकतंत्र तले क्या हो सकता है ये किसान की खुदकुशी और
मनरेगा से भी कम आय पाने वाले देश के 25 करोड किसान-मजदूर को देख कर या फिर सरकारी आंकडों से ही जाना जा सकता है । और इसी कतार में साढे चार करोड रजिस्टर्ड बेरोजगारों को खडा कर अंतर्राष्टरीय तौर पर जब आकलन कीजियेगा तो पता चलेगा भारत दुनिया का अव्वल देश हो चला है जहा सबसे ज्यादा
बेरोजगार है । सीएमआईए के मुताबिक साढे आढ करोड बेरोजगारों को ढोते भारत का अनूठा सच ये भी है कि राजनीतिक दलों के जरिये चुनाव के वक्त लोकतंत्र का डंडा उठाने वाले बेरोजगार युवाओ की तादाद साढ छह करोड हो चुकी है । तो कौन कैसे दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र को देखे और चुनाव के अक् तले ही लोकतंत्र को माना जाये या उससे हट कर भारतीय समाज के उस सच को उभारा जाये जिसे जबाने का प्रयास लोकतंत्र के नाम पर राजनीति ही करती है । क्योकि विकास उस सूराख वाले झोले में तब्दील हो चुका है जिसमें नेहरु से लेकर मोदी तक खूब रुपया डालते हैं पर जनता उसका उपभोग कर नहीं पाती और राजनीति-राजनेता-सियासत-सत्ता इतनी रईस हो जाती है कि जब सरकारी आंकडे ही ये जानकारी देते है कि देश की दस फिसदी आबादी 80 फिसदी संस्धानो का उपभोग कर रही है और उसके दस फिसदी के भीतर एक फीसदी का वही समाज है जो राजनीति में लिप्त है । या पिर राजनीति के दायरे में खुद को लाकर धंधा करने में मशगुल है जिसे क्रोनी कैपटलिज्म कहा जाता है । और इ एक फिसदी के पास देश का साठ पिसदी संस्धान है तो फिर लोकतंत्र या कानून का राज शब्द कितने बडे लग सकते है ये सिर्फ सोचा जा सकता है । क्योकि संविधान नहीं तो कानून
का राज भी नहीं और उसी का एक चेहरा देश में 14 लाख सरकारी पुलिस बल के सामानातंर 70 लाख निजी सुरक्षाकर्मियों के नौकरी करने का है । और राजनीतिक लोकतंत्र की बडी लकीर खिंचनी है तो फिर आखिर में दो सच को निगलना आना चाहिये ।
पहला ये व्यवस्था चलती रहे इसके लिये देश के संसाधनो से ही सत्ता की शह पर कमाई करने वाले कारपोरेट एक हजार करोड से ज्यादा का चंदा सत्ता को दे देते है । और दूसरा जनता में ये एहसास बने रहे कि उसकी
भागीदारी जारी है तो कल्याण या दूसरे नामो से सेस लगाकर 2014 से 2017 तक चार लाख करोड से ज्यादा जनता से ही वसूला जाता है जिसमें से सवाल लाख करोड रुपये सरकार खुद डकार लेती है । यानी जनता के पैसे से जो सुविधा जनता को देनी है उस सुविधा को भी सत्ता हडप लेती है । और इस कडी में राजनीतिक लोकतंत्र का समूचा हंगामा इंतजार कर रहा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 1352 करोड रुपये सिर्फ प्रचार पर उडाने वाली राजनीति 2019 में कितने हजार करोड प्रचार में उड़ायेगी । जिससे हर नागरिक के जहन में ये बस जाये कि लोकतंत्र का मतलब है राजनीति-सियासत-सत्ता पाने की होड़।
सत प्रतिशत सही लिखा है आपने ।।
ReplyDeleteमहोदय आपको दलित हित के अलावा और कुछ दिखता है।इन सब का कारण वर्तमान में जो आरक्षण व्यवस्था लागू है उनकी वजह से है।आर्थिक आधार पर हर वर्ग को आगे बढ़ाओ ।चाहे किसी भी समुदाय का हो
ReplyDeleteBhagwan jaane is desh ka Kya hoga??? Bas karm karte raho fal bhi ek na ek din jarur milega....
ReplyDeleteदेश के सवर्ण व् पिछड़े मध्यमवर्ग के बारे में कोई नहीं सोचता इन्हें न आरक्षण मिलता है, न किसी योजना का लाभ। इनका नाम न गरीबी रेखा में होता है और संपन्न वर्ग इनको अपनाता नहीं। वास्तव में प्रतिभा को दरकिनार किया जा रहा है। प्रतिभावान युवा दर दर की ठोकर खा रहे हैं।
ReplyDeletebahut hi acha likhe hai
ReplyDeleteHow many tume you have use the word " satta".. shame on you
ReplyDeleteसर एक बात है जैसी प्रजा वेसा राजा आज हमे खुद को बदलना पड़ेगा खुद से शुरू करना होगा खुद से शुरूवात करनी होगी
ReplyDeleteThe country needs rational journalists like you.... Keep writing dear..
ReplyDeleteबहुत ही घटिया आंकलन है सर, सिर्फ एक मर्डर को लेकर पूरी सत्ता की बेज़्ज़ती कर रहे हैं। जब ऐसा लेख लिखा कीजिये तो उदाहरण भी 4 रखा करिये, जैसे सपा ने सिर्फ यादवों को बढ़ावा दिया जबकि वोट मुसलमानों से भी लिया, यही कांग्रेस, आप और बसपा ने किया। कमसे कम आज की सत्ता ने मुसलमानों को वोट बैंक तो नहीं बना रखा है।
ReplyDeleteएबीपी न्यूज़ चैनल से क्यों गए आपसे निवेदन है ये जरूर लिखे क्योंकि पत्रकार की हैसियत आज कल चम्मच बाली हो गई है
ReplyDeleteडेमोक्रेसी के लिए काबिल नागरिकों की जरूरत होती हैं
ReplyDeleteजो हमारे पास नही
अमेरिका का को राजनेता ने नही वहाँ की अवाम ने बनाया
शत प्रतिशत सच कहा आपने।
ReplyDeleteवाजपेयी जी आप जैसे लोग जब ऐसा लिखते हैं तब ज्यादा विखंडन होता हैं,बाकी को समेत कर क्यों नहीं लिखते इस तरह के आर्टिकल से आप दिखाते हैं की आप सत्ता पक्ष का विरोध लिख कर उसको सहानुभूति दिला कर वोट दिला रहे हो और दूसरी तरफ मुस्लिम दलित को बाँट कर नफरत का बीज बो रहे हो, वैसे इस तरह के गंदे लेख लिखने की कितनी दलाली मिलती है????
ReplyDeleteउदार केवल मानवता-प्रिय(चाहे कोई भी धर्म/जाति/लिंग/भाषा/क्षेत्र के हो ) मित्रों के लिए -:
ReplyDeleteदेखो मित्रों जब धान के खेत में अच्छी पैदावार लेनी होती है तो सबसे पहला शर्त उसका समतलीकरण होता ,फसल के पहले खेत चाहे जितना भी उबड़-खाबड़ ,ढालू ,बड़े-बड़े ढेले हो ,सबको टूटकर छोटा होना ही पड़ता है और खुद को समतलीकरण में शामिल करना ही पड़ता है . तब कहीं जाकर अच्छी उत्पादकता का खेत तैयार होता है .
अब कल्पना कीजिए यदि ओ बड़े ढेले सोचेंगे कि हम तो बड़े हैं अन्य से ,खेत के राजा हैं ,ऐसे कैसे टूटेंगे ,ठीक उसी प्रकार
ऊँचा हिस्सा बोलेगा की भाई हम तो सदा से पूर्वजों से ऊँचे रहे हैं ,हमारी पूरी पीढ़ी ऊँची है ,ऐसे कैसे निचले भाग के बराबर होने तैयार होंगे ? लहू-लुहान करके खून की नदिया बहा देंगे लेकिन समतलीकरण के लिए खेत के निचले भाग के बराबर होने कतयी
स्वीकार नहीं करेंगे .
क्या ऐसे में खेत समतल हो पाएगा ??? क्या ऐसे में खेत की उत्पादकता बढ़ेगी ??
ठीक वैसा ही खेत की जगह देश है ,अगर देश को आगे बढ़ाना है तो सामाजिक-आर्थिक राजनैतिक (समानता/स्वतंत्रता/बंधुता/अधिकार/शक्ति/कर्तव्य/सम्मान/अवसर इत्यादि ) का समतलीकरण करना होगा ,अगर ऐसा हुआ तो हम विश्व के पहले देश होंगे मानवता की जीत प्राप्त करने वाले ,
अतः आज का पढ़ा लिखा मित्र इन बातों को समझे ,और हम सभी आपस में मिलकर हाथ से हाथ मिलकर इन विभाजनकारी/शोषणकारी(जाति/धर्म ) पहचानो/विशेषाधिकारों का त्याग करें . और केवल एक ही पैमाना(संविधान/योग्यता/मानवता/नैतिकता) रखें
और अपने आँख से शोषकप्रवृत्ति के चश्मे को जरा उतारकर देखिए बिना सामाजिक-राजनितिक समानता के आर्थिक समानता संभव है ?
किस मेरिट आधारित योग्यता की बात करते हैं ? रेस के मैदान में अकेले दौंड रहे हैं और दूसरों को इसलिए जबरन भूखा रखा की वह दौड़ने का अभ्यास ही न कर पाए ?? फिर बोल रहे की रेस के विजेता आप ही हैं ??
देखिए मित्रों अगर आज का पढ़ा लिखा युवा नहीं जागा और नहीं समझा तो खेत का पैदावार भूल जाना ही बेहतर होगा ,फिर तो यह आपके देश निर्माण नहीं है बल्कि अपनी शोषक सत्ता/विशेषाधिकार के अस्तित्व को बचाने की लड़ाई है
न हमें रुढी प्रथा रीती रिवाजों से ,न तो हमें जाति से कुछ मिलने वाला है और न ही मंदिर मस्जिद की लड़ाई से ,अतः आइये मेरे युवा साथियों जाति को ख़तम करें और मंदिर मस्जिद की जगह देश में बड़ी बड़ी लाइब्रेरी बनवाएँ ,स्कूलों/कॉलेजों/विश्वविद्यालयों को अत्याधुनिक बनाएँ
शून्य अपराध वाला कानून का राज वाला समाज बनाएँ ,सविधानवाद को अपनाएँ और दुनिया में एक आदर्श पेश करें . यह केवल युवा ही कर सकते हैं
शोषक-जाति मानसिकता औलादों के लिए -:
टिप्पणियों में "दलित शब्द " सुनकर कितने लोगो के सीने में जलन सा होने लगता है !.............
अभी तो छिनकर लेंगे सभी हक़ .........तब इन उच्च-शोषक जाति पुत्रों का क्या होगा ????????
न्यायपलिका में 97% उच्च-शोषक जाति (ब्राह्मण/क्षत्रिय/बनिया... ), प्रशासन(IAS/IPS/IFS) में लगभग 80% उच्च-शोषक जाति ,
संसद और विधायिका में आरक्षित सीटों को छोड़ दें तो शेष सीटों के अधिकांश भाग पर इनका ही कब्ज़ा है ,पूरा मिडिया घराना ,एंकर बिरादरी इनका ही गुलाम है
और इन शोषक जातियों की जनसँख्या कितनी है ????
एक अम्बेडकर से इनके तसरीफ में इतना जलन होता है कि खुलें आँखों से सपने देखने लगे हैं ,राष्ट्रपति वेद का शपथ लेगा(केंद्र सरकार में मंत्री ),मनुवाद लागु होगा ,ब्राह्मणराष्ट्र बनेगा
ओ तो गाँधी जी ने अनसन करके इनके ह्रदय-परिवर्तन के लिए समय माँगा था , पर कितना ह्रदय-परिवर्तन हुआ वह इनके सीने के और तसरीफ के जलन से बखूबी नजर आ रहा है !
जब सभी जगह इनको केवल जनसँख्या के अनुपात में केवल 12-15% हिस्सा मिलेगा जो अभी 97 या 80 प्रतिशत है ,तब कहाँ कहाँ जलन नहीं होगा ???.
हा हा हा अपने इसी शोषक सत्ता को बचाने ,भगवा कारखाने में क्या-क्या तैयार होता है जरा गूगल करो
अंतिम बात ...........हक़ तो छिनकर लेंगे ...बहुत जल्द !
great sir per iska koi solution bhi nahi h
ReplyDeletePART1
ReplyDeleteटिप्पणी खंड में मिश्रा,पाण्डेय के दर्द को देखिए जरा हा हा ,विचार मात्र से बौखला जाते हैं
आपका masterstroke चल रहा होता तो देश में बहुत बड़ा बदलाव अब तक आ चूका होता सर ,
हम सभी भाग्यशाली हैं कि देश में सविधान लागू हो गया और ये केवल इसलिए हो पाया क्योकि स्वतंत्रता संघर्ष के दीवाने
जिन-जिन मूल्यों की कमी महसूस करते गए हर वह मूल्य हमारे भविष्य के संविधान का अनुच्छेद बनता गया ,बिना व्यवस्थित और वैचारिक क्रांति के सुनहरे भविष्य का निर्माण असंभव है
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष भारत के भविष्य के लिए हर प्रकार का मार्गदर्शन उपलब्ध कराता है क्योकि एक वह व्यवस्थित और वैचारिक क्रांति है ,अब भी वैसे ही क्रांति की जरुरत है क्योकि बिना इसके परिवर्तन होने का
अंजाम हमने 2014 के चुनाव में देखा है ,
क्योंकी वर्तमान सरकार(NDA) पहले की सरकार(UPA) के केवल विरोध में आई थी न की भारत को बदलने के अपने किसी विजन के साथ , इसलिए मोदी जी और BJP को घमंड रहा पूरा शासन वर्ष तक जो अब भी जारी है ,
अब भारतियों को अगला सरकार मोदी के विरोध में चुनने की बजाए ,उसके खुद के विजन के आधार पर चुना जाना चाहिए
PART 2
ReplyDeleteभारत BJP और कांग्रेस के बापों की संपत्ति नहीं है कि एक नहीं तो दूसरा उस पर राज करेगा ही , जनता को समझना होगा और इसके लिए युवाओं को ही आगे आना होगा
की राजनितिक दल अपना अपना विजन रखें - जैसे
1) शिक्षा का बजट GDP का 8%
2)100% संविधानवाद जमीन पर लागु हो - अमेरिका में राष्ट्रपति भी ट्रेफिक नियम तोड़ने पर फ़ाईन भरता है ,और हमारे भारत में मोदी जी को लगता है ओ देश के प्रधानमंत्री नहीं राजा हैं ,और योगी तो गणेश गायतोंडे का चेला लगता है
3)साम्प्रदायिकता या जातिवाद फ़ैलाने वाले के लिए IPC कानून बने
4)भूमि सुधार को सही तरीके से पुरे भारत में लागु हो
5)देश का प्रधानमंत्री BSNL को मजबूत करे न की JIO को - आपने सोचा है अगर मोदी जी भारत में 4G और 5G क्रांति का कर्णधार BSNL को बनाते तो क्या होता ??? BJP का आलिशान मुख्यालय कैसे बनता ?
6) PSU को बेचने की बजाए मजबूत बनाए - जानबूझकर सभी PSU में संबित पात्रा जैसे लोगो को डायरेक्टर बनाते हैं और बर्बाद करते हैं फिर HAL के नाकामी दिखाने के लिए IAF(भारतीय वायु सेना ) प्रमुख सामने आते हैं अपना इमान बेचकर उनको शर्म तक नहीं आती
,वे भारतीय वायु सेना को किसी राजनितिक दल के सामने झुकाकर उन्हें अपमानित किये हैं ,क्योकि भारतीय सेना सविधान का रक्षक होता है न की राजनेता का ,और राफेल घोटाला में अनिल अम्बानी का बचाव ही करना था तो नवसेना प्रमुख को भी सामने आना चाहिए
क्योकि अनिल अम्बानी की कंपनी सैन्य जलपोत बनाकर देने में असफल रही तथा उनकी सारी कपनी या तो डूब चुकी हैं या कर्ज के बोझ में दबकर मोदी मोदी शाह शाह चिल्ला रही हैं .
शुक्र है भाई कि इसरो के डायरेक्टर में भी BJP और कांग्रेस अपने चापलूस कुत्तों को नहीं घुसाते नहीं तो क्या होता इसका कल्पना आप करें ???
7) कृषक के लिए विजन प्रस्तुत करें ,स्वास्थ्य के लिए ,युवा के लिए ,रोजगार के लिए ,अर्थव्यवस्था के लिए , हर मंत्रालय के हिसाब से विस्तृत विजन प्रस्तुत करें और 2019 का मतदान इन्ही आधारों पर हो ,जैसे ही ये झूठ बोलना शुरू करे CVC केस दर्ज कर कार्यवाही आरम्भ करदे
हाँ जो बड़ा जिम्मेदारी लेता है उससे कभी कभी गलती होती है लेकिन उसमे सुधार के लिए जरुरी है की उसको स्वीकार किया जाए , और जिम्मेदारी बड़ा है तो बड़ा कदम उठाने से पहला उतना ही ऊँचे दर्जे के शोध की जरुरत पड़ती है ,
ऐसा नहीं की नागपुर से फरमान आया और एकाएक सब ATM के लाइन में ............मानलो फेकू जी इसरो के प्रमुख हो जाते तो ,राकेट में भी दीनदयाल उपाध्याय का स्टीकर लगवा देते और रंग को भगवा करवा देते नाम भी PSLV ,GSLV की जगह राम ,कृष्ण ,अर्जुन और गोलवलकर रख देते
8) वैसे तो भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है - फिर भी "ब्राह्मणराष्ट्र" बनाना ही है तो ,राममंदिर के लिए देश जला दिए जाते हैं ,राम के नाम पर सविधान को चुनौती दी जाती है क्या वे राम भगवान् ऐसे थे ?
"रघुकुल रित सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाए " और आप देश का ही नहीं शायद विश्व का भी सबसे झूठा फेकू इंसान का नाम बताओं जिसका जबान ही झूठ बोलने के लिए खुलता है ,जो वचन ही तोड़ने के लिए देता है
-किसी भी चौराहे पर बुलाना(नोटबंदी ),जब तक जिन्दा हूँ (आरक्षण ),GST(विरोध ),आधार (विरोध ) ,रुपया गिरता है देश की शान गिरती है और यह सरकार के भ्रष्टाचार का परिणाम है ,महंगाई ,CBI गंगवार अनगिनत हैं
PART 3
ReplyDeleteप्रिय "मित्रों" भाइयों और बहनों
ये जाति धर्म सब सत्ता द्वारा बनाए गए विभाजनकारी साधन मात्र हैं ,आम जनता को ऐसे विभाजित कर भ्रष्ट सत्ता अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए छल करती है ,आप हम पढ़े लिखें युवा हैं हमको जागना ही होगा
जो थोड़े जागरूक होते हैं सत्ता उनको थोडा सा अन्यों से विशेष होने का चटनी चटा देती हैं ,जिसका रसपान करके वह जनता अपने जागरूकता को कूड़े में फेक ऐसे सो जाती है जैसे अफीम खाया हो -जैसे अंग्रेजो ने भी किये
भारत को लुटने के लिए ही थोड़े थोड़े भारतियों को सत्ता में हिस्सेदार बनाते गए ,जमीदारों की दिवार खड़ी करते गए और ये भटके हुए भारतीय व्यवस्था में थोड़े से विशेषाधिकार का भागी होकर अन्य भारतियों का खुल्लम खुल्ला शोषण करते रहे
अंग्रेजो के लिए ,
अंग्रेजो के पास ज्यादा सैनिक नहीं होते थे आखिर ब्रिटेन की जनसंख्य है ही कितनी ? उन्होंने भारतियों से ही भारतियों पर राज किया ,उनके सेना में 75-80 % भारतीय ही थे टॉप के 20 % सैनिक अंग्रेज थे ,अब कल्पना कीजिए जबतक
इस 80 % सैनिकों के बीच विभाजन की लकीर नहीं खिंच दी जाती तो उन सभी भारतीय सैनिकों में एकता हो जाती उनके अन्दर की भारतीयता जाग जाती अतः वे विद्रोह कर देते इसलिए कई स्तरों पर इसका इंतजाम किया गया था कि ये 80 %
भारतीय सैनिक एक न हो सके ,अगर कुछ गुट में एकता हो भी जाए तो उनको लोकल हथियार दिए होते थे ,वह गुट अंग्रेजो का क्या ही उखाड़ लेते ? ,सभी ऊँचे ओहदे पर केवल अंग्रेजों को ही रखा जाना था ताकि किसी भारतीय द्वारा विद्रोह कर देने
के बावजूद भी आसानी से नियंत्रण किया जा सके और उनके सत्ता हो खास नुक्सान न हो ,और सबसे बड़ा और अचूक अटूट साधन था जाति के आधार पर बटालियन का निर्माण ,अंग्रेज बखूबी जानते थे भारतियों की औकात ,अब क्या जाति आधारित बटालियनों का
एक होना संभव बात थी ? अतः इस प्रकार सत्ता अपना अस्तित्वा बनाए रखने के लिए छल करती है जो आज भी बखूबी प्रयोग किये जाते हैं कुछ चीजें सेम टू सेम तो कुछ चीजें बदली हुई रूप में ,
यह हर भ्रष्ट सत्ता का चरित्र है कि जब भी नागरिक एक जुट होकर क्रांति करने का प्रयास करे उस नागरिक समूहों के प्रमुख या गिने चुने नेतृत्व को या तो थोडा सा सत्तापान करा अपने में मिला लो या उनको यह एहसास दिला दो की तुम अन्य से विशेष को फिर क्यूँ उनके
क्रांति में हिस्सा ले रहे हो ? तुम तो हमारे बिरादरी से सम्बंधित हो हमारे पक्ष से लड़ो इस तरह झूठी मिथ्या के कहानी गढ़ के भी या किसी भी प्रकार से उनको यह एहसास दिलाया जाता है तुम अन्य से ऊपर हो विशेष हो और सत्ता बिरादरी से हो . इस तरह उन नागरिकों
के एकता को समाप्त किया जाता ,उनके आन्दोलन को तोडा जाता है ,उस जनक्रांति का दमन किया जाता है और चली आ रही शोषण परम्परा की निरंतरता को हर हाल में कायम रखने का बंदोबस्त किया जाता है .
यह विभाजनकारी तरीका आन्दोलनकारी नागरिक समूह की प्रकृति के अनुसार बदल जाता है ,सत्ता यह गणना करता है की किस विभाजनकारी साधन से इनको कुचला जा सकता है फिर उसी का उपयोग किया जाता है जैसे -
कहीं मुसलमान अल्पसंख्यक का शोषण करना हो उनके आन्दोलन को दबाना हो तो ,इस लड़ाई को हिन्दू vs मुस्लिम बना दिया जाता है ताकि अन्य जागरूक समाज खुद को उनसे न जोड़ सके फिर उनको अन्दर से तोडा जाता है किसी को जेल करके ,लाठी चार्ज करके इत्यादि ,
अगर आन्दोलन अनुसूचित जाति जन जाति की है तो इसे तथाकथित उच्च जाति बनाम तथाकथित निम्न जाति बना दिया जाता है ताकि अन्य जागरूक युवा उनसे न जुड़ पाए ठीक अंग्रेजो की तरह उन युवाओं को एहसास दिलाया जाता है कि
तुम्हारा सरनेम शर्मा वर्मा तिवारी दुबे चौबे त्रिवेदी चतुर्वेदी राजपूत सिंह अग्रवाल इत्यादि है और तुम उनसे विशेष हो तुम राज करने वाले हो तुम हम सत्त्धारियों के बिरादरी के हो तू समाज के राजा और नेतृत्व करता हो ,इतने में वह जागरूक युवा वही अंग्रेजों के सिपाही
की तरह गर्व महसूस करता है भ्रामक विशेषाधिकार के अफीम को पीकर
PART 4
ReplyDeleteजैसे हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने किया ,जैसे ही उनके पुलिस गुंडे के हाथों एक तिवारी की हत्या हो गई तुरंत 12 के अन्दर उनकी पत्नी को बुलाया और वही विशेष होने का एहसास दिला दिया
इतने में चुप हो गई ,आने वाले चुनाव से पहले उनको एक विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शहीद का दर्जा दिया जाएगा तो भी अतिश्योक्ति की बात नहीं होगी ,मंत्रियों द्वारा अपराधियों का मायार्पण करना भी वही मिजाज है कि तुम खास हो ,इसी तरह महिला आन्दोलन
किसान आन्दोलन ,विद्यार्थी आन्दोलन ,छोटे व्यापारी आन्दोलन ,नागरिक आन्दोलन सभी को ऐसे ही तब तक कुचला जाता है ,तब तक भगत सिंह राजगुरु सुखदेव चंद्रशेखर आजाद जैसे जागरूक युवा सामने नहीं आ जाते ,इन सबके बावजूद कुछ शर्मा (अभिसार ),
पाण्डेय(रविश कुमार ),बाजपेयी(पुण्य प्रसून ) जाग ही जाते हैं इतने विभाजनकारी परतों को पार कर ,परन्तु जैसा की भ्रष्ट सत्ता का चरित्र है इनको दूसरा पहचान देकर दबाने का भरपूर प्रयास किया जाता है ,नए-नए पहचान गढ़े जाते हैं ताकि इनका दमन किया जा सके
सबसे पहला तो कांग्रेस दलाल ,अगर यह काम नहीं किया तो एंटी हिन्दू ,एंटी इंडिया ,फिर पाकिस्तानी ,और आजकल नया गढ़े हैं "अर्बननक्सल" ,ताकि ये गिने चुने चंगुल से बाहर आ चुके जागरूक लोग पुरे भटके समाज को जागरूक न करदे नहीं तो इनकी दुकान बंद हो जाएगी
अब कोई भारतीय सैनिकों को एहसास दिला पाता कि अंग्रेजो ने तुम्हे जातिगत बटालियनो में क्यों बाट रखा है तो क्या अंग्रेज एक और दिन राज कर पाते ?? .लेकिन सत्ता याद रखे अमर शहीद भगत सिंह मरकर भी युवाओं में प्राण भर गए ,ये बात अलग है कि
जीवन भर साम्प्रदायिकता के विरोध में लड़ने वाले भगत सिंह की फोटो डालकर ही आजकल के सांप्रदायिक अपना दुकान चलाने लगे हैं ......हा हा अब ऐसे अंधे युवा भारत के कर्ण धार होंगे तो होगा वही जो इतिहास में हुआ जैसा बोओगे वैसा काटोगे
अतः युवा समझे और भ्रष्ट सत्ता के छल को पहचानना सीखे और हर उस पहचान को त्याग दे जिससे आपको विभाजित किये जाने का अचूक प्रयास किया जाता है ,हम इंसान यही हमारा पहचान है .
एक और मजेदार बात बताता हूँ मानलो पेड़ पौधे ,पशु पक्षियों का भी भाषा इंसानों को समझ आता और वे भी सत्ता से अपना अधिकार मांगने आन्दोलन करते तो भ्रष्ट सत्ता "इंसान होने के पहचान " से भी विभाजन करने का प्रयास करती और जो भले इंसान पेड़-पौधे ,पशु पक्षियों
के खिलाफ हो रहे अन्याय के खिलाफ उनकी आवाज़ में साथ देने जाता उनको तुरंत "एंटी इंसान " या इंसान द्रोह घोषित कर दिया जाता ,इससे और नेक इंसान उन आन्दोलन से खुद को जोड़ने से हिचकते क्योकि जैसे आज हर कोई केवल इसलिए अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज़
इसलिए नहीं उठता क्योकि उसको भी कोई कांग्रेस दलाल अगर UPA होती तो BJP दलाल ,अगर यह काम नहीं किया तो एंटी हिन्दू ,एंटी इंडिया ,फिर पाकिस्तानी ,और आजकल का नया "अर्बननक्सल" बोल देगा . तब भी हम ऐसे पहचान को उभर देते जो हमें एकता में
बंधने का अवसर देते ,खुद को प्रकृति के जिम्मेदार अंश का पहचान देते जिनका कर्तव्य है बुद्धिमान प्राणी होने के नाते दुसरे सभी प्राणी सही सम्पूर्ण प्रकृति की भी रक्षा करे .
इसलिए जागो युवा जागो ,और चाहे जिसे भी जिताओ उसके विजन और नियत के आधार पर जिताओ
जय पर्यावरण जय इंसान जय संविधान .
PART 5
ReplyDeleteYOUTUBE और SOCIAL MEDIA केवल युवाओं एवं कुछ नागरिकों तक ही सिमित है जो खुद भी सच और झूठ का पता कर लेने में सक्षम है परन्तु आप जैसे पत्रकार को उनका आवाज बन्ने की ज्यादा जरुरत है जो या तो केवल TV तक पहुँच रखते हैं
या गाँव में बिजली भी नहीं है .
अतः आपको बिना समय बर्बाद किये खुद का चैनल खोलना चाहिए पुण्य प्रसून बाजपेयी सर ,मुझे लगता है क्राउडफंडिंग से आपका चैनल जरुर खड़ा हो जाएगा क्योकि भारत की जनता इतना तो जरुर करेगी . आप कब तक
ब्लॉग लिखते रहेंगे इससे बहुत कुछ होगा नहीं और कुछ समय बाद आप स्वयं थक जाएँगे .
इसलिए आप बस विजन उजागर कीजिए सर मुझे लगता है भारत का युवा हर घर से 1-1 रुपया लेकर आएगा लोकतंत्र को संविधान को बचाने के लिए
अगर गद्दार समूहों द्वारा स्वतंत्रता आन्दोलन को हाइजैक कर लिया गया होता तो स्वतंत्र भारत न जाने कैसा होता ???? यह सोचकर ही मन सिहर उठता है
उज्जवल भविष्य के निर्माण के लिए सर्वदा जरुरी है कि इतिहास से शिक्षा लें ,गलतियों से सबक लें ,और आप जैसे जानकारों को ठीक इसी लेख की तरह सभी वर्तमान प्रासंगिक
अवसरों पर उन इतिहासों को उजागर करने का काम करें ,आज के युवा को सोचने के लिए सही दिशा दें मार्गदर्शित करें
The situation of Indian politics really on wrost condition..Seems its not correct time to tell that Indian is a decmocratic country its not thing but religions country (Dharma pradham desh).After formation of BJP Govt.maximum people forget about Indian culture and fighting to support BJP even country grouth and development running on last stage in last 4years.Business and jobs opportunity also going in cave day by day..But we fighting for caste and creeze...Hindu -Muslims,Dalit,Upercaste..The time have come to open our hidden eye and fight against such political Paris who spreading castimzed politics...Gandhi,Patel,Bose dont expect such future of India after independent...We are educated person and its our duties to collapse wrong systems/politics which opposit to development of our country..
ReplyDeleteJay hind jai bharat..
You are quite right sir...
ReplyDeleteप्रसून जी देश की आमजनता को लेकर लिखा गया लेख समाज की सही स्थित को दर्शाता है, किन्तु सिर्फ जनजाति या मुसलमान ही सत्ता की कार्य प्रणाली के शिकार नहीं है। इसमें आप उच्च जातियों को भी शामिल कीजिये। आप का ही कहना है की देश के संसाधनों पर 1% का कब्जा है। तो सहज ही समूचे देश की आमजनता की आर्थिक स्थिति क्या है ? सत्ता बदलती है तो सिर्फ चेहरे बदल जाते हैं। आचरण या सोच में बहुत ही महीन फर्क पड़ता है। आपने ही लिखा है कि सत्ताधारी जनता के टैक्स का खुद के लिए प्रयोग करते हैं। देश की सभी जातियों को लेकर भी आंकलन किया जाये तो किसी भी परिवार की आर्थिक हालत सामान्य से भी नीचे है। सामान्य जिंदगी जीने के लिए जितनी आय की जरुरत है उससे आधी भी जुटा लेना तीर निशाने पर मारने जैसा है। वर्तमान में हालत यह हैं कि जन्म से लेकर अंतिम साँस लेने तक जिंदगी घिसट-घिसट कर ही बिताई जा रही है। जन्म, पालन-पोषण, शिक्षा, उपचार, व्यवसाय या नौकरी सभी दुर्लभ से भी अति दुर्लभ है। बाजार में बिना धन के कुछ नहीं मिलता। हर सुविधा की जो कीमत है वह आम तो क्या आम से कई गुना ऊपर आय वाला हासिल नहीं कर सकता। सरकार ने सभी सुविधाएं (जिम्मेदारी ) देना बंद कर दिया है। अब तो जेब कितनी भारी है उसी आधार पर सुविधाएँ हासिल होती हैं। सामान्य सी बात है कि 99 % व्यक्ति की जेब भारी तो क्या खाली ही खली है। यदि इसी तरह देश के संसाधनों पर सत्ता से लाभ लेने वालों का कब्जा होता गया तो देश का आम आदमी भूख से काल के गाल में समां जायेगा। सरकार तो अमीरों के लिए ही रह गई है। जिसे उच्च वर्ण कहकर बेसहारा छोड़ दिया है उसमें 95 % तो जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। मजबूर ही मौत को गले लगता है। जिसे आत्म हत्या कहा जा रहा है।
ReplyDeleteSir ye Hindustan hei aap kinking baat kar rahey hein Ambedkarji mer gaye bechare inkeliye ye sub andhey, bhare aur goongeye hein inko jagana namur kind hein. Reservations ka jhunjhana Thamha rakha hei kuch karengey toh mar diye jayenge ye sub begar karney ke liye hee baney hein aur ashey hee mar jayenge.
ReplyDeleteबेहतरीन सर।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
ReplyDeleteआप के लिखे इस लेख को पढ कर बहुत दुखी हुआ।क्या आप उत्तर प्रदेश के बिगत दिनों का अल्पसंख्यक तुस्टीकरण देखकर अन्देखा किये या वर्तमान परिवेश के सवर्णों की दुर्दशा आपको देखने का वक़्ती तौर की जरूरत नहीं समझते है,समझ से पड़े है!आशा करेंगे की विश्लेष्ण पुर्वाग्रहों से इतर करेंगे।
आशा करेंगे की आप इस बात को बिना दिल पर लिए महशूश करेंगे,कष्ट होने पर क्षमा करेंगे!!
आपका प्रशंसक