जब 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सभी बरी हो गये और कोयला खादान घोटाले में कोई जेल नहीं पहुंचा तो सवाल सीएजी पर भी उठा कि घोटाले से राजस्व के घाटे का जो आंकड़ा दिया गया, वह सिर्फ आंकडा भर था या विपक्ष [ बीजेपी ] को राजनीतिक हथियार दिया गया। जब सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट ने पिंजरे में बंद तोता कहा तो लगा यही कांग्रेसी सत्ता में नैतिक बल नहीं और सत्ता परिवर्तन के बाद नैतिकता की दुहाई देती बीजेपी की सत्ता तोते को पिंजरे से मुक्त कर देगी । लेकिन संस्थानों की मुक्ति तो दूर सत्ता बदलने के बाद एक एक कर सारे संस्थान ही जब राजनीतिक सत्ता की हथेलियो पर नाचने लगे और सीएजी से लेकर सीआईसी। सीबीआई से लेकर सीवीसी । ईडी से लेकर इनकमटैक्स और चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट [चार जस्टिस की प्रेस कान्फेन्स] तक के भीतर से आवाज सुनाई देने लगी की लोकतंत्र खतरे में है, तो अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या लोकतंत्र के एसिड टेस्ट का वक्त आ गया है। और कल जब सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर आलोक वर्मा की याचिका पर जब सुनवाई होगी तो चीफ जस्टिस गोगोई का फैसला इस मायने में अहम
होगा कि देश में संवैधानिक व्यवस्था जिस " चैक एंड बैलेंस" की बात कहती है, वह किस हद तक सही है। क्योंकि संविधान चुनी हुई सत्ता को सबसे ताकतवर जरुर मानता है और संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहता है। लेकिन संविधान में इसकी व्यवस्था भी है कि कोई संस्था तानाशाही में तब्दिल ना हो जाये। और ध्यान दें तो इंदिरा गांधी ने भी आपातकाल लगाया तो संविधान से मिलने वाले हक को निलंबित कर दिया। यानी देश में संविधान लागू हो और संवैधानिक ढांचे में ही राजनीतिक सत्ता सेंध लगा रही हो ये आवाज लगातार बीते चंद बरसों से सुनाई तो दे रही है, लेकिन ये कितना संभव है या कितना असंभव है संयोग से सीबीआई का मामला अब जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है तो हर जहन में एक साथ कई सवाल है। मसलन , क्या सुप्रीम कोर्ट सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले को खारिज कर देगी। क्या विशेष डायरेक्टर अस्थाना के आरोप को सही ठहराते हुये सीवीसी के फैसले को सही करार दे देगी। क्या सीवीसी को वाकई ये अधिकार है कि वह सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति के वक्त लिये गये तीन सदस्यीय कमेटी के फैसलों को पलटने का सुझाव दें और सरकार उसे अमल में ले आये। और संयोग देखिये जिस कमेटी ने आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर बनाया उसमें प्रधानमंत्री मोदी और विपक्ष के नेता खडगे के अलावे चीफ जस्टिस भी शामिल थे। और अब सीबीआई डायरेक्टर का मामला चीफ जस्टिस की अदालत में आया है। यानी ये अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है कि जिस कमेटी में चीफ जस्टिस है, उस कमेटी के फैसले को ही सरकार ने सीवीसी के कहने भर से बदल दिया। यानी दो वर्ष के लिये बनाये गये सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को पद से हटाने से पहले सरकार ने नियुक्त करने वाली कमेटी से भी नहीं पूछा। जाहिर है ऐसे में तकनीकी वजह से भी चीफ जस्टिस चाहे तो कल सरकार को कठघरे में खड़ा कर सकते है।
पर कल का दिन सिर्फ सीबीआई डायरेक्टर भर से नहीं जुड़ा है। कल का दिन मोदी सरकार की उस साख से भी जा जुड़ा है, जहां वह संवैधानिक संस्थानों की ताकत को सत्तानुकुल बनाने की दिशा में बढते हुये भी ईमानदारी का पाठ ही जोर जोर से पढ़ती रही । यानी सवाल सिर्फ इतना भर नहीं है कि जो जस्टिस गगोई नौ महीने पहले चीफ जस्टिस मिश्रा के दौर में सार्वजनिक तौर पर "लोकतंत्र खतरे में है" कहने से हिचके नहीं थे, अब वह खुद चीफ जस्टिस है तो न्याय होगा ही। सवाल तो ये है कि आखिर संविधान की व्याख्या करते हुये कैसे जस्टिस गोगोई उन हालातो को उभारेंगे जो हर सत्ता को ताकत दे देती है कि वह संवैधानिक संस्थाओं के जरीये ही सत्ता को बनाये और बजाये रखने के लिये संविधान में ही सेंध लगाते हुये कार्य करती है। जाहिर है ये कार्य जितना कठिन है उससे ज्यादा कही हिम्मत भरा कार्य है। क्योंकि सीबीआई का अपना सच तो यही है कि बीते पांच बरस में वहा के 25 अधिकारी दागदार साबित हुये है । तीन सीबीआई डायरेक्टर भ्रष्टाचार के मामले में फंसे है । नौ हजार से ज्यादा मामले सीबीआई में पेंडिंग पडे है। और इसके सामानांतर जिस सीवीसी को मोदी सरकार ने ढाल बनाया है और कानूनी और तकनीकी तर्क से अपने फैसलों को सही करार दे रही है उस सीवीसी की 2017 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि 2017 में उसके पास 2016 तक के 1678 पेंडिंग पड़े मामले। और सीवीसी जिस तेजी से काम करती है उसमें 3666 पेडिग मामले उसने 2018 पर डाल दिये। पर उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि करप्शन पर नकेल कसने को लेकर सक्रिय सीवीसी ने नारा दिया , " मेरा लक्ष्य, भ्रष्टाचार मुक्त भारत"। और सीवीसी का काम है कि सीवीओ या सीबीआई जब किसी पर कोऊ आरोप लगाती है तो उसे वह परखे । और तत्काल निर्णय दे। क्योंकि तीन सौ से ज्यादा कर्मचारी और अधिकारी वहां इसीलिये नियुक्त किये गये हैं। और असर इसी का है कि सितंबर में सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर आस्थाना की शिकायत पर महीने भर में तमाम जांच के बाद सीबीआई डायरेक्टर के खिलाफ पुख्ता सबूत होते हुये जांच की बात कहते हुये पद से हटाने की बात कही गई और सरकार ने झट-पट सीबीआई डायरेक्टर को छुट्टी पर भेजकर एडिशनल डायरेक्टर को डायरेक्टर के पद पर भी बैठा दिया । लेकिन ये तेजी सीबीआई के ही तमाम मामलो को लेकर सीवीसी कैसे काम करती है ये जानना भी जरुरी है। 2017 में सीबीआई ने सीवीसी के सामने 171 मामले
रखे । जिसमें से सिर्फ 39 मामलो को ही साल भर में तमाम जांच प्रकिया के बाद निर्णय तक सीवीसी पहुंच पाये । और बाकि मामलो में कही आपराधिक सुनवाई चल रही है तो कही पेन्लटी भरने को कहा गया तो प्रशासनिक चेतावनी या एक्शन भर की बात कही गई । पर महत्वपूर्ण ये भी नहीं है कि किस स्वायत्त और संवैधानिक संस्था में कितनी तेजी से काम हो रहा है । राजनीतिक सत्ता के लिये संवैधानिक संस्था को लेकर हालात उलट होते है । यानी जो संस्था जितनी भ्रष्ट होगी । या फिर जिस संस्था में जितनी धीमी गति से काम होता होगा । वहा के अधिकारी/ कर्मचारियो में नैातिक बल उतना ही कम होगा और उसे सत्तानुकुल बनाने में उतनी ही आसानी किसी भी सत्ता को होगी । तो संस्थानों पर गौर करें ईडी या इन्कंम टैक्स में 80 फिसदी मामले लंबित पडे है ।
सीआईसी में आरटीआई कानून को लेकर दो फाड है । सीआईसी चैयरमैन आर्चुलु के ही मुताबिक सरकार चाहती है आरटीआई कानून निष्क्रिय हो । यानी सरकार जवाब देने से बचना चाहती है तो देश भर में इसे कमजोर करने की दिशा में पढ रही है । सीएजी ने चार महिने पहले मोदी सरकार के 11 मंत्रालयों में गड़बड़ी की रिपोर्ट दी तो उन अधिकारियों को ही शंट कर दिया गया, जो सक्रिय थे । पर उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जिस सीएजी की रिपोर्ट को मनमोहन सरकार के दौर में मीडिया सिर पर बैठाये रहता था वह सीएजी की रिपोर्ट मोदी सरकार के 11 मंत्रालयो को लेकर कब आई और कब गायब कर दी गई इसे मीडिया ने छुआ तक नहीं । यानी सत्ता के काम करने का दायरा किस रुप में विस्तारित हुआ ये चुनाव आयोग के जरीये चुनाव की तारीखों के एलान में सत्ताधारी पार्टी की सुविधा और सुप्रीम कोर्ट में जजो की नियुक्ति को लेकर कोलेजियम के जरीये भिड़ने के तरीकों ले कर सीबीआई के भीतर भी दो फाड की स्थिति कैसे लाई गयी ये आस्थाना की स्पेशल डायरेक्टर के पद पर अचानक हुई नियुक्ति से भी समझा जा सकता है और आस्थाना के खिलाफ जाच कर रही टीम जिसे आलोक वर्मा के लोग करार दे दिया गया और उसे बदल कर तीन ऐसे लोगों को जांच टीम का हिस्सा बनाया गया जो आस्थाना की ही टीम का माना जाता है । यानी संवैधानिक संस्था के भीतर दो फाड कैसे हो सकते है ये स्थिति सामाजिक और आर्थिक तौर पर राजनीति करते हुये सत्ता किसे कैसे इस्तेमाल करती है ये भी किसी से छिपा नहीं है । और इसका बेहतरीन उदाहरण तो मीडिया ही है । जो पहले बंटा । फिर एकतरफा हो गया । यही हालात राजनीति के भी है । मायावती की चुनावी रणनीति और मुलायम या शिवपाल की राजनीति । या फिर तमिलनाडु में एआईडीएम का बंटना । यानी लकीर बेहद महीन है लेकिन चाहे अनचाहे इस महीन लकीर पर ही कल का फैसला आ टिका है। यानी संविधान की व्यख्या करते हुये सुप्रीम कोर्ट " चैक एंड बैलेंस " की उस लकीर को किस हद तक खिंच पायेगा, जिसमें सत्ता का ये भ्रम टूटे की पांच बरस की मनमानी के लिये जनता ने उसे नहीं चुना। और जनता में कितना भरोसा जागे कि आधी रात को सत्ता की हरकत जब संवैधानिक पद पर बैठे सीबीआई डायरेक्टर को डिगा सकती है तो उसकी क्या बिसात । इंतजार कीजिये दांव पर संविधान सम्मत लोकतंत्र है
Great sir ji
ReplyDeleteWould you like to do a story on our tragedy?
Please reply..
Kindly keep writing. The nation needs such writers urgently.
ReplyDeleteKushnaseeb hu jo aapko padhta hun
ReplyDeleteआपकी तारीफ के लिए मेरे पास शब्द नहीं रहते हैं
ReplyDeleteVery true journalism...
ReplyDeleteGood blog Bajpayeeji
ReplyDeleteBahut umda jnab
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा मास्टर स्ट्रोक वाली पुरी फीलिंग आपके लेखनी ने प्रदान की हैं । हम आपके साथ है ।
ReplyDeleteSir, iss lekh ko usi style me padha or jaise pure lekh ko explain karte hue aapki aavaz kano me gunj rahi thi. We all proud on Mr. Alokverma Verma jinhone yeh himmat dikhai or satta ke galat decision to challenge kiya. Or last me agar 'mann saaf nahi ho toh badi badi baate karne se janta toh bahak/impress ho sakti hai par bhagwan nahi bahakte or Satya or karm ke adhar par hi reault dete hai. Jai Hind
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण सत्ता और मद का।
ReplyDeleteEnter your comment... पुण्यप्रसूनबाजपेईजी! आपका कोई जोड नही अर्थात अजोड हैं तभी मै आपको "एक्चुअल फेस आफ मीडिया" कहता हूँ लेकिन दु:ख और दुर्भाग्य ये है कि इस भ्रष्ट्र लोकतन्त्र मेँ सच! कहने को कोई मँच नही है।-जयहिन्द!
ReplyDeleteदुनिया गोल है कैसे देखें
ReplyDeleteसीबीआई के पीछे आईबी है। आईबी के सिर पर डोभाल है। डोभाल के सिर पर मोदी है। आईबी के साथ रॉ है। रॉ का सीबीआई के वर्मा से पंगा है। रॉ के ऊपर पीएमओ है। पीएमओ में मिश्रा है। मिश्रा और मोदी साथ हैं। मिश्रा वर्मा को पसंद करता है। डोभाल को ये पसंद नहीं है। डोभाल को अस्थाना पसंद है जो कि मिश्रा को नापसंद है।
समझ में आया?
सारे मिलकर पागल बना रहे हैं 🎭🎭😅😅 #copy
सर, अपने इं लेखों को वीडियो के रूप में भी प्रस्तुत करने की व्यवस्था करें।
ReplyDeleteEnter your reply... सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ। हानि, लाभु, जीवनु, मरनु, जसु, अपजसु विधि हाथ॥ ये अधूरा अर्थात अर्धसत्य है पूर्ण सत्य यूँ है कि सोँच/विचार/वाणी/ व्यवहार/आचरण/नीति/ नियत भी नियति अर्थात विधि हाथ ही है।
ReplyDeleteअखण्डभारत के परिप्रेक्ष्य आचार्य चाणक्य ने कहा था कि "नियति जब कोई महापरिवर्तन करती है तो आवश्यक वातावरण वो स्वयम निर्मित कर लेती है" लेकिन तब ये बात सुनी नही जा सकी/सुनी नही जा सकती थी क्यूँकि ये बात उन्होने तब के के लिए नही अब के लिए कही थी जो तभी आज वो बात सुनी भी जा सकती है/देखी भी जा सकती है/ समझी भी जा सकती है।-जयहिन्द!
हम ऐसे निष्पक्ष रिपोर्ट कि आगे भी आशा करेंगे।
ReplyDeleteEnter your comment... आज देश मेँ लोकतन्त्र के तथाकथित चारोँ स्तम्भ जो चार चूतिया/चाटुकार सिद्ध हैँ मेरे चक्रव्यूह मेँ फँश चुके हैँ क्यूँकि देश की दिशा व दशा बदलने का अन्तिम विकल्प सिर्फ मेरे पास है किन्तु मैँ अर्श से फर्श तक भयँकर उपेक्षित हूँ तभी मैँ हमेसा कहता भी हूँ कि गुरुसत्ता/राजसत्ता मेँ तथाकथित एक वजीर(नमो) और एक फकीर(रामदेव) मेरे यक्षप्रश्न(राजीव भाई दीक्षित के सपनों का भारत!) के परिप्रेक्ष्य दोनो एकसाथ कठघरे मेँ निरत्तर खडे हैं जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।-जयहिन्द!
ReplyDeleteशानदार ब्लॉग सरजी,
ReplyDeleteमास्टर स्ट्रोक
Sir aapka ye blog bahut hi sacchha he lekin cji ke fesle ke baad hi pata chalega ki desh kis disha me aage badhega
ReplyDeleteSir ap nov me ane k bat kehe rahe the
ReplyDeleteDate or channel ka nam jara bata dijie taki pehele din se apka show dekh saku.
Aap thik hi kehete he sir ki ravish sir ki tarah apko v apka channel help karta to aap sarkar ko hi ukhar fek dena ka samta rakhte ho.jaldi channel me ayie
Great job sir ji. India want you and your thoughts which is important for democracy
ReplyDeleteसच तो इतना है कि सारा का सारा लोगोँ तक
ReplyDeleteपहुंचाया जा सके और समझाया जा सके तो
एक बैचारिक क्रांति खड़ी हो सकती है लेकिन आम
जनमानस की भाषा और समझ के के मुताबिक
समझा सकने बाले तमाम बुद्धिजीवी निजी स्वार्थ
के चक्कर मे पड़कर अपने अपने तर्को के अनुसार
सही या गलत सिद्ध करने में लग जाते है
Leta wait till noon
ReplyDeleteसही है पर जनता भगत बन गयी है और मीडिया चाटूकारों का जमघट।आप जैसे कुछेक पत्रकार हैं जो तूफान में दिया जला कर रोशनी फैला रहे हैं।
ReplyDelete4 सालो मे जो सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा था वो भी अब कमजोर हो गया है सुप्रीम कोर्ट की अब साख पर भी सवाल आने लगे है जो कभी सोचा भी नहीं था अब लोगपाल आना जरूरी हो गया है
ReplyDelete#अनुप्रास_अलंकार_का_नया_उदाहरण
ReplyDeleteCBI ने CBI हेडक्वार्टर पर छापा मारकर
CBI को गिरफ्तार किया
CBI कोर्ट मे पेश,
CBI जज ने CBI आरोपी को 7 दिन की
CBI रिमांड पर भेजा।