होना तो यही चाहिये था कि संघ अपने कान को देखता लेकिन वह भी कौवे के पीछे ही भाग रहा है । चाय की चुस्की और कई मुद्दो पर लंबी चर्चा के बीच जब स्वयसेवक महोदय ने आरएसएस को लेकर ही ये टिप्पणी कर दी तो पूछना पडा । कान और कौवा है कौन । अब आप भी मासूम की तरहल सवाल कर रहे है । दो दिन पहले आपने ही तो जिक्र किया था कि अयोध्या में अब जमा होने से क्या होगा । 1992 में तो बाबरी मस्जिद विध्वंस करने तो सभी जमा हो गये । अब जमा होकर किसे ढहायेगें । वह तो ठीक है मान्यवर लेकिन कौवा कौन और कान क्या है ये तो आप ही डि-कोड किजिये । अब प्रोफेसर साहेब बोले थे । तो शादी समारोह के हंगामे के बीच एक कमरे में बैठ कर संघ और सियासत पर चर्चा का मजा ही कुछ और है । और मजा भी जिस तरह मौजूदा मोदी सत्ता के हुनरमंद तौर तरीको पर कटाक्ष कर स्वयसेवक संघ की त्रासदियो को उभार रहे थे वह भी अपने आप में अजूबा ही था । जी, बताईये न...मैने कहा और अब स्वयसेवक सीधे ही बोल पडे । आप तो जानते है कि अयोध्या की चाबी सरकार के पास है लेकिन संघ के निशाने पर सुप्रीम कोर्ट है ।
मुझे टोकना पडा , क्या ये संभव है कि संघ मोदी सत्ता को निशाने पर लें लें या फिर दुनिया को बताने लगे कि सत्ता की चाबी के लिये अयोध्या की चाबी को मोदी सत्ता ने सुप्रीम कोर्ट के नाम पर छुपा लिया है ।
ना ना वाजपेयी जी ....मुश्किल ये नहीं है कि सच कौन बोलेगा । या फिर जो सच है अयोध्या की चाबी का , उसे छुपाया क्यो जा रहा है । मुश्किल ये नहीं है कि मोदी सत्ता इस अंतर्विरोध में फंस गई है कि राम मंदिर की चाबी निकाली तो भविष्य शून्य हो जायेगा और चाबी नही निकाली तो मौजूदा वक्त में ही सत्ता चली जायेगी । कटघरा तो संघ के लिये खडा हो चुका है । वह धीरे धीरे संकरा होते हुये संघ को ही जकड रहा है । हर दांव उलटा पड रहा है । विहिप समझ नहीं पा रही है कि जिस प्रवीण तोगडिया को निकाल दिया अब अगर बच्चा बच्चा राम का कहने वाले कार सेवको को प्रवीण तोगडिया का नया संगठन आकर्षित कर रहा है तो वह क्या ऐसा करें जिससे विहिप की उपयोगिता बनी रहे ।
आप सिर्फ विहिप ही क्यो कह रहे है । बजरंग दल से जुडे सैकडो कार्यकत्ता भी तो प्रवीण तोगडिया के पीछे जा खडे हो रहे है । और नागपुर में जब मोहन राव [ सरसंघचालक मोहन भागवत ] भी राम मंदिर पर बयान देने सामने आये तो प्रवीण तोगडिया की ही तरह सफेद कुर्ते पर गले में उसी रंग-तरीके का साफा लटका कर पहुंचे ।
आर रंग-रोगन पर ना जाईये । सिर्फ ये समझने की कोशिश किजिये कि आखिर संघ कान को क्यो नहीं देखना चाह रहा है ...वह कौवे के पीछे क्यो भाग रहा है । जबकि उसी भी पता है कि धीरे धीरे संघ के भीतर भृी वैसे ही सवाल उठने लगेगें जैसे बीजेपी के भीतर आज की तारिख में मोदी-शाह की सत्ता को लेकर उठते है ।
कैसे सवाल ..? अब प्रोफेसर साहेब बोल पडे ।
यही कि 1989 में ही पालमपुर प्रस्ताव में बकायदा बीजेपी ने ही संसद में कानून बनाने का प्रस्ताव पारित किया था । और उ दौर में संघ के अखिल भारतीय प्रतिनिधी सभा के प्रस्ताव को भी पढ लिजिये । रास्ता सिर्फ यही माना या बनाया गया कि बहुमत मिला नहीं कि राम मंदिर निर्माण करेगें ।
ये तो आप ठीक कह रहे है .....अमित शाह से कोई भी मुश्किल सवाल करें तो जवाब यही आता है कि जनता ने हमें चुना है, हम आपके सवालो का जवाब क्यो दें । फिर जब मोदी सत्ता से ये पूछ दिजिये कि जनता ने क्या आपको राम मंदिर के लिये नही चुना है । तो चुप्पी साध ली जाती है । और बिना जमीन वाले कैबीनेट मंत्री ही कहने लगते है , सबका साथ सबका विकास का नारा तो दिया है ना ।
यही तो हम भी कह रहे है ...तमाम मुद्दो पर जिस रास्ते बीजेपी निकल चुकी है उसमें संकट ही यही है कि कहीं 2019 के बाद अपने दस करोड कार्यकत्ता के होने के दावे तले ही ये ढह ना जाये । और बीजेपी सत्ता के आसरे जो संघ लगातार अपनी बढती शाखाओ की गिनती बता कर अपने विस्तार की लकीर खिंच रहा है वह भी डगमगा ना जाये ।
यानी खतरा दोनो तरफ है । अब प्रोफेसर बोले
प्रोफेसर साहेब ...मामला सिर्फ अयोध्या का भी नहीं है । रिजर्व बैक का ही क्या हो रहा है । जैसे जैसे 2019 नजदीक आ रहा है वैसे वैसे ये सवाल भी बडा हो रहा है कि रिजर्व बैक में जमा कितना रुपया सरकार बाजार में लाने को तैयार है और उसका असर होगा क्या । या फिर चंद दिनो बाद जब रिजर्व बैक बोर्ड बैठक में एक ट्रिलियन रुपया बाजार में लाने पर मुहर लग जायेगी तब सरकार किस तेजी से अपने उस एंजेडा को अमली जामा पहनाने की दिशा में बढेगी , जिससे वोटरो को लुभाया जा सके । और संवयसेवक तो छोड दिजिये बीजेपी के भीतर ये सवाल है कि आंकडो से पेट नहीं भरता तो फिर 2019 का चुनाव कैसे लडेगें । और अगर रिजर्व बैक एक ट्रिलियन रुपया रिलिज कर भी देता है तो मोदी सत्ता के पास ऐसा कौन सा सिस्टम है जो इस तेजी से काम करेगा कि जनवरी में अंतरिम बजट और मार्च में चुनावी नोटिफिकेशन के बीच वोटरो के बैक खातो में रुपया पहुंच जायेगाा ।
आप सिस्टम क्यो खोज रहे है । अब तो हर सिस्टम पीएमओ है । यानी वहां अंगुलिया नाचेगीं और झटपट काम होने लगेगा ।
वाजपेयी जी आप इसे गंभीरता से लिजिये । क्योकि नोटबंदी के वक्त मोदी सत्ता को यही लगता रहा कि तीन लाख करोड रुपया उसके पास होगा जिसे वह अपने वोटरो में बांटेगें और बतायेगें कि कैसे रईसो की जेब से उन्होने गरीबो की कल्याण योजनाओ के लिये घन निकाल लिया । लेकिन हुआ क्या । ये तो सरकार के ही कृर्षि मंत्रालय की रिपोर्ट ने भी जतला दिया कि अंसगठित और ग्रमीण भारत में कितनी मुश्किलात बढ गई । और इस दौर में सांसदो और मंत्रियो को लगा दिया गया कि वह आंकडो के जरीये ग्रमीण भारत के पेट को भर दें । और अब रिजर्व बैक से एक ट्रिलियन रुपया निकाल कर देश में होने क्या वाला है इसका अहसास भर है आपको ।
क्यों नहीं , मंहगाई बढेगी । डालर और मंहगा होगा । पेट्रोल -डिजल की किमते भी बढेगी । और आखिरकार मुस्किल में वही किसान मजदूर या गरीब तबके को आना है जिसकी हथेली जिन्दगी सबकुछ खाली है ।
बंधुवर एक बात कहूं....मुझे लगा स्वयसेवक ही जब सबकुछ बोले दे रहे है तो फिर चुनावी सियासत की छौक जरुरी है ।
जी कहिये...
दरअसल मोदी सत्ता का समूचा खेल ही पूंजी पर जा टिका है । यानी देश में लोकतंत्र तो पहले भी मंहगा था । कुछ काला धान । कुछ बाहुबल का जमा धन । या फिर कारपोरेट फंड भी पहे खूब निकलता था । लेकिन अब तो सबकुछ पूंजी पर इस तरह टिका दिया गया है कि जैसे कारु का खजाना बीजेपी के पास है और जिसे जहा चाहा वहा खरीद लिया । जो खरीदा ना गया उसे पूंजी के आसरे दबा दिया गया ।
यानी...अब प्रोफेसर बोले
यानी यही कि प्रोफेसर साहेब पूंजी का माडल क्या होता है जरा इसे उदाहरम के साथ समझने के लिये छत्तिसगढ के चुनाव को समझे । ग्रामिण छत्तिसगढ जो कि 80 फिसदी है । वहा किसान मान रहा है कि काग्रेस सत्ता में आयेगी तो कर्ड माफी होगी । समर्थन मूल्य बढ जायेगा । तो उसने मंडी जाना ही बंद कर दिय़ा । क्योकि अभी जाने का मतलब होता औने पौने दाम में फसल बेचना । यानी जब हवा ये बन रही है कि छत्तिसगढ बीजेपी गंवा रही है तो सत्ता बरकतरार रखने के लिये जरा सोचिये कौन कौन सा खेल हो रहा होगा या 11 दिसबंर के बाद होगा ।
अब स्वयसेवक की जिज्ञासा जागी .... कुछ खेल तो मै जानता हूं ...लेकिन आप बताइये ।
ना ना आप क्या जानते है ...पहले अब आप ही बताईये...
यही कि छत्तिंसगढ को रमन सिंह समर्थन या विरोध पर ही टिका दिया गया है और उसी दायरे में काग्रेस को भी बांटने की तैयारी है ।
जी ,काफी छोटा सा हिस्सा आपने पकडा .... क्योकि आपके जहन में गोवा माडल होगा । लेकिन अब बात उसके आगे की है ।
वह कैसे ? प्रोफेसर बोले...
दरअसल काग्रेस अब बूथ लेबल तो मैनेज करना सीख गई है लेकिन काग्रेस के नीचे यानी सांगठनिकल तौर पर पुराना लेप ही अब भी चढा हुआ है । और पुराने लेप का मतलब ये है कि सत्ता के पैसे पर सत्ता के खिलाफ विपक्ष की सियासत करने वाले काग्रेस नेता ।
इसका क्या मतलब हुआ ....प्रोफेसर बोले
तो झटके में स्वयसेवक ही बीच में कूद पडे ....अरे प्रोफेसर साहेब छत्तिसगढ में बीजेपी की सबसे ज्यादा स्टेक है । क्योकि छत्तसगढ में खनन और पावर सेकटर का खेल है । सत्ता के करीबी कारपोरेट के खन हो या पावर सेक्टर ..उसके लिये काग्रेस के नेता काम करते है और कुछ भी बोलने से कतराते है । इस कतार में सिर्फ काग्रेसी बघेल को छोड दिजिये तो तीन चार जो भी आपको महत्वपूर्ण चेहरे नजर आते है जो सीएम की दौड में हो सकते है जरा जानकारी लिजिये क्यो कभी किसी ने वहा सत्ता से सटे खनन माफिया का नाम लिया । या फिर रमन सिंह को ही निशाने पर लिया । आलम तो ये है कि बीजेपी के सबसे ताकतवर विधायक अग्रवाल दक्षिण रायपुर से आते है और बरसो बरस से वह जीतते इसलिये रहे है क्योकि वही काग्रेसी उम्मीदवार तय करते है ।
इस बार भी किये है क्या ....
बिलकुल...और मजेदार बात तो ये है कि दक्षिण रायपुर सीट में सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर है । और जरा जा कर पता किजिये चुनाव वाले दिन ही कितनी बसे गरीब मुस्लिम वोटरो को लेकर अजमेर शरीफ चली गई । और मजा तो ये भी है कि जो वोटिंग के अगले दिन अपनी साफ अंगुली दिखा दें उसे पांच हजार रुपये मिल जाते है । पिछली बार ये रेट दो हजार था ।
तो क्या काग्रेस हाईकमान या कहे राहुल गांधी इसे समझ नहीं पा रहे है ..
राहुल गांधी अभी संगठन के निचले पायदान पर पहुंचे नहीं है । तो जो शोर नीचे से सुनाई देता है उसे ही कैडर का सच मान लिया जाता है और उसी शोर को तवोज्जो भी मिल जाती है ।
तो क्या ये माना जाये कि पन्ना प्रमुख या बूछ मैनेजमेंट के आगे का रास्ता अब अमित शाह अपना चुके है ।
जी , अब आपने लाइन पकडी ।
तो बंधु वह लकीर है क्या.....मुझे स्वयसेवक महोदय से पूछना पडा ।
लकीर साफ है , समूचा ग्रामीण भारत मुस्किल में है । और छत्तिसगढ मध्यप्रदेश या राजस्थान में 70 फिसदी वोटर ग्रामीण ही है । औकर बीजेपी ये मान कर चल रही है कि मुश्किल तीनो राज्यो में है ।
क्या तीनो में बीजेपी निपट भी सकती है .....प्रोफेसर साहेब का सीधा सवाल सुन कर स्वयसेवक महोदय झटके में बोल पडे...मै कोई ज्योतिष तो हू नहीं ....क्या होगा ये तो 11 दिसबंर को सामने होगा । लेकिन मेरा सिर्फ यही कहना है कि रिजल्ट के बाद कैसे सत्ता बरकरार रहे इसकी मशक्कत अभी से तीनो राज्यो में प्लान बी-सी के तहत हो रही है । और संघ यही समझ नहीं पा रहा है कि जब सब ठीक है कि बात कही गई तो फिर दांव उल्टा नजर क्यो आ रहा है ।
तो क्या संघ ने भी हाथ खिंच लिये है ....
हाथ नहीं खिंचे है ...लेकिन मै आपको मध्यप्रदेश में हफ्ते भर पहले की एक घटना बताता हू....देर रात करीब 70 सीटो की सूची लेकर सीएम महोदय या नी शिवराज सिंह चौहाण संघ के उस श्खस के निवास पर पहुंचे जिसके पास मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी है । ....
उन 70 सीटो में क्या था...
कुछ नहीं बीजेपी इन 70 सीटो पर हार देख रही थी और संघ से मदद मांग रही थी । लेकिन समझना होगा कि मदद सरसंघचालक या दूसरे नंबर के भैयाजी जीशी से मदद नहीं मांगी गई ।
तो इसका मतलब...
मतलब यही कि जब सारा कमाल करने की क्षमता मोदी-अमित शाह में ही है तो फिर बीजेपी का अदना कार्यकत्ता क्या करें और संघ का स्वयसेवक क्या करें ....
क्यो सत्ता तो बरकरार रहेगी....
वाजपेयी जी...सत्ता हर बीजेपी कार्यकत्ता की नही होती और लाभ हर स्वयसेवक को नहीं मिलता .....
तब तो बीजेपी की हैट्रिक होने वाली है .....
हा हा हा हा .....प्रोफेसर की इस टिप्पणी से स्वयसेवक ठहाका लगा कर हंस पडे...
जारी.........
👌
ReplyDeleteSahab AAP Congress ki itani kahe chatate hai.
ReplyDeleteYe Sara Gyan kaha tha jab mata ji aur damad ji dono hatho see lootane me lage the
Dhanan hy pravu sabkuch kha kar vi kuch nhi kha
ReplyDeleteMp से to BJP gyi...
ReplyDelete👌
ReplyDeleteWe might have to resort to alternate journalism.
ReplyDeleteThanks for doing this work Bajpayeeji.
Respect
Sir I need to contact you ? Pls tell me how do I contact you ? It's important pls
ReplyDeleteशानदार जबरदस्त
ReplyDeleteMr punay bajapay ji please give to your contact number I am working to our country so I need
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ReplyDeleteBahut achha likha hain,Vajpayee ji, aapne
ReplyDeleteSangh se b aage nikal gye hai modi shah ab inka time khatm lgta hai politics maj
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