Monday, December 10, 2018
ना राजधर्म निभाया, ना धर्मसभा की मानेगें....
जयपुर के पांडे मूर्त्तिवाले । वैसे पूरा नाम पंकज पांडे है , लेकिन पहचान यही है जयपुर के पांडे मूर्त्तिवाले । और इस पहचान की वजह है कि देश भर में जहा भी प्रमुख स्थान पर भगवान राम की मूर्त्ति लगी है , वह पांडे जी ने ही बनायी है । यू श्रीकृष्ण और अन्य भगवान के मूर्त्तिया भी बनायी है और अलग अलग जगहो पर स्थापित की है । लेकिन भगवान राम की मूर्ति और वह भी अयोध्या में राम की प्रतिमा को लेकर पांडे जी इतने भावुक रहते है कि जब भी बात होती है तो बात करते करते उनकी आंखो में आंसू आ जाते है । आवाज भर्रा जाती है । और आखरी वाक्य अक्सर उनसे बातचीत में यही आकर ठहरती है कि अयोध्या में राम मंदिर तो बना नहीं लेकिन उन्होने भगवान राम की उस मूर्ति को बना कर रखा हुआ है जिसे राम मंदिर में स्थापित करना है । और अक्सर इस आखरी वाक्य से पहले आडवाणी की रथयात्रा से लेकर मोदी की ताकतवर सत्ता का जिक्र जरुर होता है । लेकिन राजनीति और सत्ता धर्म के मार्ग पर कहा चलते है इस सवाल पर संयोग से ह बार वह राजधर्म का जिक्र किया करते थे लेकिन 9 जिसंबर को राजधर्म की जगह धर्मसभा का जिक्र कर उन्होने यही उम्मीद जतायी कि 15 से 25 दिसंबर के बीच कोई बडा निर्णय होगा । निर्णय क्या होगा यह पूछने पर उन्होने चुप्पी साध ली लेकिन उम्मीद के इंतजार में रहने को कहा । और यही से यह बात भी निकली कि कैसे 50 की उम्र वाले पांडेजी आज 75 पार है लेकिन उम्मीद छूटती नहीं । लेकिन दूसरी तरफ दिल्ली में रामलीला मैदान की धर्मसभा में उम्मीद ही नहीं भरोसा भी गुस्से में तब्दिल होता दिखायी दिया । चाहे भैयाजी जोशी मंच से सत्ता से गुहार लगा गये कि राम मंदिर के लिये कानून तो सरकार को बनाना ही चाहिये । लेकिन संयोग से उसी दिन मोदी सत्ता के तीसरे कद्दावर नेता अरुण जेटली ने एक अंग्रेजी चैनल को दिये इंटरव्यू में जब साफ कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार चलेगी । तो चार सवाल उठे । पहला , सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखना चाहती है तो संघ परिवार सत्ता से विधेयक लाने की गुहार क्यो कर रहा है । दूसरा, सत्ता का मतलब है कि बीजेपी की सत्ता और बीजेपी जब खुद को संघ परिवार की सोच से अलग कर रही है तो फिर इसके संकेत क्या कानून तंत्र और भीडतंत्र को बांटने वाले है । तीसरा , क्या सत्ता तमाशा देखे और तमाशा करने करने के लिये विहिप -बंजरंग दल या स्वयसेवक तैयार है । चौथा , आखिर में राम मंदिर जब सियासत का प्यादा बना दिया गया है तो फिर अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर भीडतंत्र की हैसियत तो प्यादे वाली भी ना होगी । तो क्या वह सत्ता की मंशा पर मठ्टा डालने का मन बना चुका है । यानी राम मंदिर से अगर वोटो का ध्रूवीकरण होता है और पारदर्शी तौर पर ये दिखायी देने लगा है कि राम भक्ति से ज्यादा सत्ता भक्ति ही अब संघ परिवार पर छायी हुई है तो फिर खडा होगा कौन । और राम मंदिर की दिशा में बढेगा कौन । क्योकि रामलीला मैदान में एक पुराने स्वयसेवक से जब चर्चा होने लगी तो उन्होने बेहद सरल शब्दो में उपनिषद का सार समझा दिया । बोले, ईश्वर के पास तो सबकुछ है , तो उन्होने अपने को बहलाने के लिये सृष्टि की रचना की । और मनुष्य उन्ही के कण से बने । तो मनुष्य खुद को कैसे समझे और ईश्वर को कैसे जाने तो सृष्टि बनाते वक्त ईश्वर ने मनुष्य़ के मन, दिमाग और तन को खुद से इस तरह अलग किया कि जिससे मनुष्य अपने होने या खुद को पहचानने के लिये भटकता फिरे । और ध्यान दिजिये जिसका मन राम में रम गया या अपने इश्वर में लग गया तो वह उस माया से मुक्ति पा जाता है जिसके लिये मनुष्य खुद के जीवन को खत्म कर देता है । हमारी बातो भगवा पहने एक व्यक्ति भी सुन रहे थे तो उन्होने बीच में टोका, तो जो मनुष्य खुद को शक्तिशाली समझता है वह तो ईश्वर से उतना ही दूर हो गया । क्यों ...मैने सवाल किया तो वह बेहिचक बोले क्योकि हर राजा को लगता है कि उसके पास सबकुछ है तो अपने मनोरंजन के लिये ही वह अपनी जनता से खेलता है । और वह ये भूल जाता है कि वह खुद उस ईश्वर के कण से बना है जिन्होने सृष्टि ही अपने लिये बनायी । यानी कण कण में भगवान का मतलब यही है कि सभी तो ईश्वर के कण से बने है और ताकतवर खुद को ही इश्वर मानने लगता है तो फिर ये भी इश्वर का तमाशा ही है । जाहिर है बातो में ऐसा रस था कि मैने सवाल कर दिया ...अब तो लोकतंत्र है राजा कहां कोई होता है । पर लोकतंत्र को भी शाही अंदाज में जीने की चाहत मुखौटे और चेहेर में कैसे बंट जाती है ये तो आप राम मंदिर के ही सवाल पर देख रहे है । स्वयसेवक महोदय ने ना कहते हुये भी जब मुखौटे का जिक्र किया तो मैने उसे और स्पष्ट करने को कहने की मंशा से अपनी समझ को राम मंदिर से इतर मौजूदा सामाजिक राजनीतिक हालात की दिशा में ये कहते हुये मोड दिया कि ..ऐसा तो नहीं मोदी के सत्ता में आने पर बतौर मुखौटा सिर्फ गरीबी गरीब , किसान-मजदूर की बात बीचे साढे चार बरस में लगातार जारी है लेकिन असल चेहरा कारपोरेट हित और सत्ता की रईसी के लिये पूंजी के जुगाड में ही रमा हुआ है । और संयोग से तभी साध्वी रितंभरा मंच से बोलने खडी हुई और मंदिर कानून बनाने का जिक्र किया तो स्वयसेवक महोदय बोल पडे , अब मंदिर कानून का जिक्र कर रही है तो ये सवाल वृंदावन में अपने आश्रम के लिये सरकारी चंदा लेते वक्त क्यो नहीं कहा । यानी ...यानी क्या सरकार के साथ अंदरखाने मिलाप और बाहर विलाप ? मुश्किल यही है कि 1992 के आंदोलन की पूंजी पर आज की गुलामी छुपती नहीं है । और यही हाल संघ परिवार का होचला है । कोई नानाजी देशमुख सरीखा तो है नहीं कि एक धोती और एक गमछा ले कर चल निकले । अब तो घुमने के लिये आलीशान गाडिया भी चाहिये और विमान प्रवास में सीट भी ए 1 । इन बातो को सुनते हुये एक और पुराने स्वयसेवक आ गये जो मंच से सत्ता को राम मंदिर के नाम पर लताड कर आये ते । उनकी आंखो में आंसू थे ..लगभग फूट पडे...देख लिजिये कोई सत्ता का आदमी आपको यहा दिखायी नहीं देगा । लेकिन राम मंदिर से सत्ता हर किसी को दिखायी दे रही है । गुलामी होने लगी है । साढ चार बरस बोलते रहे विकास है तो चुप रहो । अब विकास से कुछ हो नही रहा है तो राम राम कहने के लिये कह रहे है । अच्छा ही है जो इनके चंगुल से कक्काजी , दयानंद दी , शरद जी , मिश्रा जी , तोगडिया जी और ऐसे सैकडो अच्चे प्रचारको को निकाल दिया गया । और लगे सत्ता की गुलामी करने । मेरा तो ह्रदय दिन में रोता है और आंखे रात में बरसती है । बात बढती जा रही थी ..चंद भगवाधारी और जमा हो रहे थे । और जो जो जिन शब्दो में कहा गया उसका अर्थ यही निकल रहा था कि भगवा भीड भी अब संङल रही है और सत्ता तंत्र के खेल में प्यादा बन खुद को भीडतंत्र बनाने के लिये वह भी तैयार नही है ।
Sir aap aise he likhte rahiye 👌🙏
ReplyDeleteसर मेरा एक सवाल हैं... ये धर्मसभा में भीड़ जुटाने का असली मकसद किसका रहा है. भिन्न संगठनों की पॉवर दिखाने का.. ?? या सरकार को वोट का समीकरण दिखाने का. .??
ReplyDeleteJay him
ReplyDeleteBest
ReplyDeleteजीतने के लिए
ReplyDeleteविश्व हिंदू परिषद
बजरंग दल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
हिंदू महासभा
स्वदेशी जागरण मंच और न जाने कौन कौन से संगठन यह अब सरकार के प्यादे बनकर रह गए हैं।
कुछ भी नहीं राम मंदिर अब केवल मुद्दा रह गया है जिसे अन्य मुद्दों को दबाने के लिए कारतूस के तौर पर काम में लिया जा रहा है
तमाम संवैधानिक संस्थाएं तहस-नहस हो गई परंतु बहाना
के राम मंदिर का
जय हो प्रभु जय हो हे राम
Sir aap ab news m nahi aate to accha nahi lagta
ReplyDeletePrasunji thoda chota likho.
ReplyDeletenice
ReplyDeleteVery nice sir,I hope very soon you will come back on TV screen.
ReplyDeleteशाबास!-जयहिन्द!
ReplyDeleteRespected sir,
ReplyDeleteAapse request h ki please aap thoda easy language me likha kare. Mai hamesha wait karta hu aapke blog ka lekin vo itna tuff language me or bahut depth me hota h OR MUJHE NIRASH HONA PADTA H Iss liye please thoda easy kar dijiye. Jagdeep singh. (M.A. pol. Science, M.A. HISTORY, B.ED.)
वाजपेयी जी नमस्ते। लगभग छः हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन नहीं है। लोकतन्त्र में जनप्रतिनिधियों का चयन करने के लिये गुप्त मतदान होता है। नामांकन नहीं होता है। इसलिये सभी मतदाता प्रत्याशी भी होते हैं। अत्यन्त निर्धन व्यक्ति भी प्रत्याशी होता है।
ReplyDeleteसत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र का अर्थ है- गनतन्त्र=बंदूकराज, गुण्डातन्त्र, गुट्टतन्त्र, जुआंतन्त्र=चुनाव लड़ना अर्थात् दांव लगाना, पार्टीतन्त्र=दलतन्त्र, परिवारतन्त्र= वंशपरम्परातन्त्र, गठबन्धन सरकार= दल-दलतन्त्र= कीचड़तन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र= अधर्मतन्त्र, आरक्षणतन्त्र= अन्यायतन्त्र, अवैध पूंजीतन्त्र= अवैध उद्योगतन्त्र, अवैध व्यापारतन्त्र, अवैध व्यवसायतन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र आदि। निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता/ जनप्रतिनिधि बनेगा उसका बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़़पूजक (मूर्ति एवं कब्र पूजने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसीलिये ग्राम प्रधान, पार्षद, मेयर, जिला पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मन्त्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि सब नेता भ्रष्ट हैं। सभी राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं । गलत चुनाव प्रणाली के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। निर्वाचन आयोग हमारे देश का सबसे बड़ी जुआंघर है। जहां निर्दलीय उम्मीदवार और राजनैतिक दल करोडयों-अरबों रुपये का दांव लगाते हैं। निर्वाचन आयोग ही एकमात्र ऐसा जुआंघर है जो जुआरियों (चुनाव लडयकर जीतनेवालों) को प्रमाण पत्र देता है। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है। ।
Very good
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