Wednesday, December 5, 2018

या तो सत्ता के तंत्र के साथ रहो या फिर मारे जाओगे ....


इनकांउटर हर किसी का होगा जो सत्ता के खिलाफ होगा । इस फेरहिस्त में कल तक पुलिस सत्ता विरोधियो को निशाने पर ले रही थी तो अब पुलिसवाले का ही इंनकाउटर हो गया क्योकि वह सत्ता की धारा के विपरीत जा रहा था । बुलंदशहर की हिंसा के बाद उभरे हालातो ने एक साथ कई  सवालो को जन्म दे दिया है । मसलन, कानून का राज खत्म होता है तो कानून के रखवाले भी निशाने पर आ सकते है । सिस्टम जब सत्ता की हथेलियो पर नाचने लगता है तो फिर सिस्टम किसी के लिये नहीं होता । संवैधानिक संस्थाओ के बेअसर होने का यह कतई मतलब नहीं होगा संवैधानिक संस्थाओ के रखवाले बच जायेगें । और आखरी सवाल क्या राजनीतिक सत्ता वाकई इतनी ताकतवर हो चुकी है कि कल तक जिस पुलिस को ढाल बनाया आज उसी ढाल को निशाने पर ले रही है । यानी लोकतंत्र को धमकाते भीडतंत्र के पीछे लोकतंत्र के नाम पर सत्ता पाने वाले ही है । और इन सारे सवालो के अक्स में बुलंदशहर में पुलिस वाले को मारने वाले आरोपियो की कतार में सत्ताधारी राजनीतिक दल से जुडा होना भर है या सत्ता के अनुकुल विचार को अपने तरीके से प्रचार प्रसार करने वाले हिन्दुवादी संगठनो की सोच है । जो बेखौफ है और जो ये मान कर सक्रिय है कि , उनके अपराध को अपराध माना नहीं जायेगा । यानी अब वह बारिक सियासत नहीं रही जब सत्ताधारी के लिये कानून बदल जाता था । सत्ताधारियो के करीबियो के लिये कानून का काम करना ढीला पड जाता था । या सत्ता के तंत्र काम करते रहे उनके लिये सिस्टम सत्ता के महज एक फोन पर  खुद को लचर बना लेता था । अब तो लकीर मोटी हो चली है । सत्ता कोई फोन नहीं करती । कानून ढीला नहीं पडता । कानून को बदला भी नहीं जाता । बल्कि सत्तानुकुल भीडतंत्र की लोकतंत्र हो जाता है । सत्ता के रंग में रंगी भीड ही कानून मान ली जाती है । और सिसटम के लिये सीधा संवाद सियासत खुद की हरकतो से ही बना देती है कि उसे कानून के राज को बरकरार रखने के लिये नहीं बल्कि सत्ता बरकरार रखने वालो के इशारे पर काम करना है । और ये इशारा बीजेपी के एक अदने से कार्यकत्ता का हो सकता है । संघ के संगठन विहिप या बंजरंग दल का हो सकता है । गौ रक्षको के नाम पर दिन के उजाले में खुद को पुलिस से ताकतवर मानने वाले भीडतंत्र का हो सकता है । जाहिर है बुलंदशहर को लेकर  पुलिस रिपोर्ट तो यही बताती है कि पुलिसकर्मी सुबोध कुमार सिंह की हत्या के पीछे अखलाख की हत्या की जांच को सत्तानुकुल ना करने की सुबोध कुमार सिंह की हिम्मत रही । जो पुलिस यूपी में कल तक  29 इनकाउंटर कर चुकी थी और हर इंनकाउंटर के बाद योगी सत्ता ने ताली ही पीटी । और इनकाउंटर करती पुलिसकर्मी को आपराधिक नैतिक बल सत्ता से मिलता रहा । तो जब उसके सामने  उसके अपने ही सहयोगी निडर पुलिसकर्मी सुबोध कुमार सिंह  आ गये तो सत्ता की ताली पर तमगा बटोरती पुलिस को भी सुबोध की हत्या में कोई गलती दिखायी नहीं दी । यानी पुलिसकर्मी सुबोध को मरने के लिये छोडना  पुलिस वालो को भीडतंत्र के किस राज की स्थिति में ले जा रही है और पुलिस को कानून के राज की रक्षा नहीं करनी है बल्कि सत्तानुकुल भीडतंत्र को ही सहेजना है । और ये हिम्मत की बात नहीं है कि अब पुलिस की फाइल में आरोपियो की फेरहसि्त में बजरंग दल के योौगेशराज हो या बीजेपी के सचिन  या फिर गौ रक्षा के नाम पर गले में भगवा लपेटे खुद को हिन्दुवादी कहने वाले राजकुमार, मुकेश, देवेन्द्र , चमन, राजकुमार , टिंकू या विनित के नाम है बल्कि इन नामो को अब सत्ताधारी होने की पहचान बुलंदशहर में मिल गई है ।और जिस मोटी लकीर का जिक्र शुरु में किया गया वह कैसे अब और मोटी की जा रही है इसे समझने के लिये तीन स्तर पर जाना होगा । पहला , पुलिस के लिये आरोपी वीआईपी अपराधी है । दूसरा वीआईपी आरोपी अपराधी की पहचान अब विहिप, बजंरग दल , गो रक्षा समिति या बीजेपी के कार्यकत्ता भर की नहीं रही , उसका कद सत्ता बनाये रखने के औजार बनने का हो गया । तीसरा , जब पुलिस के लिये सत्तानुकुल हो कर अपराध करने की छूट है तब न्यायलय के सामने भी सवाल है कि वह जाच के सबूतो के आधार पर फैसले दें जिस जांच को पुलिस ही करती है । और किसा तरह इन तीन स्तरो को मजबूत किया गया उसके भी तीन उदाहरण है । पहला तो सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुये जस्टिस जोसेफ के इस बयान से समझा जा सकता है जब वह कहते है कि पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के वक्त उपर से निर्देश दिये जा रहे थे । और रोटी पानी के लिये कैसे वह समझौोता कर सकते है । यानी सुप्रीम कोर्ट की कारर्वाई को भी अगर जस्टिस जोसेफ के नजरिये से समझे तो सत्ता सुप्रीम कोर्ट को भी अपने खिलाफ जाने देना नहीं चाहती और दूसरा न्याय की खरीद फरोख्त सत्ता के जरीये भी हो रही है । यानी जो बिकना चाहता है वह बिक सकता है । लेकिन इसके व्यापक दायरे को समझे तो सत्ता कोई कारपोरेट संस्था नहीं है । बल्कि सत्ता तो  लोकतंत्र की पहचान है । संविधान के हक में खडी संस्था है । लेकिन जिस अंदाज में सत्ता काम कर रही है उसमें सत्तानुकुल होना ही अगर सबसे बडा विचार है या फिर जनता द्वारा चुनी हुई सत्ता लोकतंत्र को प्रभावित करने के लिये आपराधिक कार्यो में संलिप्त हो जाये या आपराधिक कार्यो से खुद को बरकरार रखने की दिशा में बढ जाये तो क्या होगा । जाहिर है इसके बाद कोई भी संवैधानिक संस्था या कानू का राज बचेगा कैसे  ? दरअसल इस पूरी प्रक्रिया में नया सवाल ये भी है कि क्या चुनाव अलोकतांत्रिक होते माहौल में एक सेफ्टी वाल्व है । और अभी तक ये माना जाता रहा कि चुनाव में सत्ता परिवर्तन कर जनता अलोकतांत्रिक होती सत्ता के खिलाफ अपना सारा गुस्सा निकाल देती है । लेकिन इस प्रक्रिया में जब पहली बार ये सवाल सामने आया है कि चुनावी लोकतंत्र की परिभाषा को ही अलोकतांत्रिक मूल्यो को परोस कर बदल दिया जाये । यानी पुलिस, कोर्ट , मीडिया , जांच एंजेसी सभी अलोकतांत्रिक पहल को सत्ता के डर से लोकतांत्रिक बताने लगे तो फिर चुनाव सेफ्टी वाल्व के तौर पर भी कैसे बचेगा ? क्योकि हालात तो पहले भी बिगडे लेकिन तब भी संवैधानिक संस्थाओ की भूमिका को जायज माना गया । लेकिन जब लोकतंत्र का हर स्तम्म सत्ता बरकरार रखने के लिये काम करने लगेगा और देश हित या राष्ट्रभक्ति भी सत्तानुकुल होने में ही दिखायी देगी तो फिर बुलंदशहर में मारे गये पुलिस कर्मी सुबोध कुमार सिहं के हत्यारे भी हत्यारे नहीं कहलायेगें । बल्कि आने वाले वक्त में संसद में बैठे 212 दागी सांसदो और देश भर की विधानसभाओ में बैठे 1284 दागी विधायको में से ही एक होगें । तो इंतजार किजिये आरोपियो के जनता के नुमाइन्दे होकर विशेषाधिकार पाने तक का ।   

12 comments:

  1. Too good! Need to bring down such 'venomenous' govt

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  2. अति उत्तम गुरुजी

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  3. अब तो मुझे अपने आप पर शर्म आने लग गई कि मैं पत्रकार हूं क्या पत्रकार होना कोई गुनाह है अगर गुनाह है तो ऐसे ईमानदार पत्रकारों को कोई हक नहीं जो सत्य और इमानदारी की लड़ाई के लिए खुद की जान को जोखिम भरी जिंदगी में डाल दें क्योंकि आज काल की पत्रकारिता सिर्फ पैसे के दम पर चलती है सत्य और इमानदारी के दम पर नहीं अगर हम फिर से इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो बस मन में एक ही सवाल उठते हैं और शायद मरते दम तक यह सवाल उठते रहेंगे क्या पता करना कोई गुनाह है

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  4. सर,जब से मैंने पत्रकारिता में पहला कदम रखा तब से लेकर आज तक जो कुछ भी हूं? उसके मार्गदर्शक आप हो और आप ही रहोगे!

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  5. लगेगी आग तो जद में कई घर आएंगे, यहाँ हमारा मकान थोड़ी ही न है, जो कि हिंसा फैला के चुनाव जीतना चाहते हैं तानाशाही लोग ,

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    मेरेप्रियआत्मन!
    पुण्यप्रसुनबाजपेईजी!
    प्रणाम!
    समूचा लोकतन्त्र एवम लोकतान्त्रिक प्रक्रिया दोषपूर्ण है जो "इण्डियनपोलिसएक्ट" समेत सब ब्रिटिश जमाने का ही है जो अब भी सब सत्ता के ही अनुकूल बनाया गया है जो हमेशा से होता चला आ रहा है सत्तारुपी गाडी के चाहे जितने ड्राईबर(दल) बदलो परिणाम यही है जैसे प्रतापगढ मेँ राजाभैया के क्षेत्र मेँ जब सपा सरकार मे कारागार मन्त्री थे तब एक डिप्टी एसपी(CO) की रँजीशन/साजिशन हत्या हुई थी जिसकी CBI जाँच भी हुई असल दोषियोँ को क्लीन चिट दे दी गयी/ मिल गयी खैर! आखिर लोकतन्त्र मेँ आरोप-प्रत्यारोप उनका(नेताओँका) जन्मसिद्ध अधिकार है लेकिन जन्ता के हितमे असल मुद्दोँ पर कभी आमसहमति नही बनाएगेँ क्यूँकि ये सिस्टम उनके स्वहित मेँ हैँ बेशक अँग्रेजियत का हो कोई फर्क नही पडता है तभी आज तक तथाकथित हमारी आजादी जो आजादी नहीँ एक धोखा है/ पाखण्ड है/ षणयन्त्र है को जब "राजीवभाईदीक्षित" ने उघाडा दिया तो उसकी षणयन्त्र से जहर देकर हत्या कर दी जाती है और उसके सहयोगियोँ समेत देश का समूचा लोकन्त्र/ उसके तथाकथित चारोँ स्तम्भोँ समेत उसके सारे रखवाले सभी सबके सब मौन हैँ/चेहरे पर घूँघट डालकर/ हाथोँ पर चूडियाँ पहनकर/ किसी की रखैल बनकर क्यूँ मौन है ? सवा सौ करोड के देश मेँ क्या कोई एक भी मर्द नही है जो इनकी नथ उतार देँ
    और तब हम "भारत माता की जय" बोलकर उसको असल सिद्ध कर सकते हैँ वर्ना लाश पर खडा लोकतन्त्र और उसके रखवाले ये विधवा विलाप/ चीख/ पुकार कभी भी खत्म करने मे सक्षम नही होगेँ ये अनवरत चलता रहेगा और सुहागिनोँ का सिन्दूर मिटता रहेगा/ चूँडिया उतरती रहेगीँ विधवा बनती रहेगी और हम भारत माता की जय बोलते रहेगेँ परन्तु जय कभी भी सुनिश्चित नही हो सकती है तो फिर मित्रोँ देश मेँ एक बहुप्रतीक्षित महाक्रान्ति / युवाक्रान्ति अवश्यम्भावी है सभी मानवतावादी मेरा साथ देँ/ मेरे साथ आएं क्यूँकि हमेँ एक भारत!/ श्रेष्ठ भारत!/ समृद्ध भारत!/ युवा भारत!/ अखण्ड भारत! बनाना है जिसका सँकल्प- भारत स्वाभिमान/ विकल्प- भारत समाधान है और आज भारत की महाभारत का चक्रव्यूह मेरे पास है लेकिन सबसे बडा दु:ख और दुर्भाग्य ये है कि वो भी अर्श से फर्श तक भयँकर उपेक्षित है जो असल मेँ ॥THE REAL & TRUTH INSIDE STORY OF INDIA॥। -(LIVE) को भी जन्म दे चुकी है जिसे देश की तथाकथित 5 सत्ताओँ अध्यात्मिक/ धार्मिक/ आर्थिक/ राजनीतिक/ समाजिक के किसी भी मठाधीश मेँ इन्कार/अस्वीकार करने की ऊर्जा/ शक्ति/ क्षमता/ सामर्थ्य/ औकात व हैसियत नही है।-जयहिन्द!

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    महोदयजी!
    आज स्वयम की जन्मतिथि/ धरती पर अवतरण की तिथि 5दिसम्बर1972 दिन मँगलवार रात्रि 8 बजे के पर्व पर 5 को जन्मे 5 के सँयोग मे जहाँ (पतँजलि/पीएमओकाअगाधसम्बन्ध) 5 बडी प्रमुख सत्ताओँ के मठाधीशोँ से निवेदन/ स्तुति/ विनती/ प्रार्थना/ याचना करता हूँ कि क्षुद्र स्वार्थोँ की अपूर्ति हेतु निजि वर्चस्व का बलिदान कर सब एसाथ एकात्मवाद के तल पर भारत और भारतीयता को बचा लेँ तो मानव और मानवता स्वत: बच जाएगी और यदि मानवता बच जाएगी तो मानव भी बच जाएगा तभी गाय और गँगा ही नहीँ बहुत कुछ अर्थात सबकुछ बच जाएगा।-जयहिन्द!

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      मेर प्रिय आत्मन!
      वजीर!(नमो) @narendramodi और फकीर!(रामदेव) @yogrishiramdev
      "निजि वर्चस्व की जँगरुपी वेदी मेँ समर्पण की आहुति का कभी कोई मोल अबतक न सम्भव हुआ है और न कभी होगा।-जयहिन्द!
      प्रेषक-
      ॥जिन्दाशहीद!॥
      @VKTiwari999

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  8. Very nice sir
    Please upload these words as video format on YouTube

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    ॥जिन्दाशहीद!॥
    @VKTiwari999
    "आत्मसमर्पण से ही स्वर्णिम भारत का अभ्युदय होगा जो होगा ही होगा।"-जयहिन्द!
    आज देश मेँ युवाक्रान्ति की जरुरत है।-एकलव्य?

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