Thursday, January 24, 2019
एक परिवार काग्रेस को पुनर्जिवित करेगा तो दूसरा परिवार अपने ही स्वयंसेवक को हाथो खत्म हो चला है.....
काग्रेस की पहचान नेहरु-गांधी परिवार से जुडी है । बीजेपी की पहचान संघ परिवार से जुडी है । बिना नेहरु-गांधी परिवार के काग्रेस हो ही नहीं सकती तो काग्रेस की कमजोरी-ताकत दोनो ही नेहरु-गांधी परिवार में सिमटी है । और बिना संघ परिवार के बीजेपी का आस्त्तिव ही नहीं है तो वैचारिक तौर पर संघ की सोच हो या हिन्दुत्व की छतरी तले बीजेपी के राजनीतिक भविष्य को आक्सीजन देने का काम यह संघ परिवार पर ही टिका है । काग्रेस अभी तक नेहरु गांधी परिवार के करिष्माई नेतृत्व के आसरे सत्ता पर काबिज रही है चाहे वह नेहरु का काल हो या इंदिरा गांधी का या फिर राजीव गांधी या परदे के पीछे सोनिया गांधी की सियासत का । और इस दौर में जनसंघ से जनता पार्टी होते हुये बीजेपी में उभरी स्वयसेवको की टोली की ये पहचान रही कि वह काग्रेस के मुस्लिम तुष्टिकरण के विरोध के आसरे धीरे धीरे आगे बढती रही । और सत्ता के जरीये काग्रेस विरोध के दायरे को बढाती भी रही और काग्रेस विरोध के आसरे अपनी सत्ता गढती भी रही । लेकिन सौ बरस की उम्र पार कर चुकी काग्रेस में ये पहला मौका है कि नेहरु गांधी परिवार की पांचवी पीढी के दो सदस्य काग्रेस को संभालने के लिये एक साथ चलने को तैयार है । और दूसरी तरफ 2025 में सौ बरस की होने जा रहे संघ परिवार से निकले स्वयसेवको का सत्ताकरण ही कुछ इस तरह हुआ कि वह संघ परिवार को ही कमजोर कर सत्ता की ताकत तले संघ परिवार को ले आये । तो ये वाकई दिलचस्प हो चला है कि एक तरफ करिष्माई नेतृत्व के आसरे सत्ता की चौखट पर पहुंचने वाली काग्रेस में धीरे धीरे राहुल गांधी ने चुनावी जीत के आसरे खुद को करिष्माई तौर पर स्थापित करने की दिशा में कदम बढाये है तो प्रियकां गांधी की राजनीतिक झलकियो ने ही उन्हे पहले से करिष्माई मान लिया है । तो दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी ने पूंरव स्वयसेवको की लीक छोड 2014 मेंखुद को करिष्माई तौर पर स्थापित तो किया लेकिन इसी स्थापना को अपनी ताकत मान कर संघ परिवार की सोच तक को खारिज कर दिया । या कहे मोदी सत्ता के दौर में संघ परिवर के मुद्दे भी सरोकार खो कर मोदी के करिष्माई नेतृत्व में ही हिन्दुत्व से लेकर स्वदेशी और भारतीयकरण से लेकर स्वयसेवक होने के पीछे के संघर्ष को ही खत्म कर बैठे । तो नेहरु-गांधी परिवार और संघ परिवार की इसी बिसात पर 2019 का आम चुनाव होना है । तो पांसे कैसे और किस तरह फेंके जायेगें ये वाकई रोचक है । और सवाल कई है ।
मसलन, क्या मोदी का करिष्माई नेतृत्व बीजेपी-संघ परिवार की सत्ता को बरकरार रख पायेगा । क्या राहुल गांधी के साथ खडी प्रियंका का करिष्मा मोदी सत्ता की जडे हिला देगा । क्या मोदी-शाह में सिमट चुकी बीजेपी के पास कोई नेता ही नहीं है जो काग्रेस के करिष्माई नेतृत्व को चुनाव मैदान में पटकनी दे दें । या फिर बीजेपी में हर नेता के सामने ये चुनौती है कि वह कैसे मोदी-शाह को पहले पटकनी दें फिर खडा हो सके । क्या राहुल प्रियंका की जोडी अब मोदी विरोध के गठबंधन के सामने ही चुनौती बन रह है । यानी एक वक्त के बाद क्षत्रपो के सामने संकट होगा कि वह बीजेपी विरोध के साथ काग्रेस विरोध की दिशा में भी बढ जाये । जाहिर है ये सारे सवाल है । लेकिन इन सवालों के आसरे ही चुनावी राजनीति के परखे तो तीन सच सामने उभरगें । पहला , प्रियकां के जरीये महिलाये और युवाओ का वोट सिर्फ बीजेपी ही नहीं बल्कि अखिलेश-मायावती से भी खिसकेगा । दूसरा , यूपी में चेहरा खोज रही काग्रेस को पियंका का एक ऐसा चेहरा मिल चुका है जो लोकसभा चुनाव के बाद आखिलेश-मायावती के उस सौदबाजी में सेंघ लगाने के लिये काफी है कि राज्य कौन संभाले और केन्द्र कौन संभाले [ अगर लोकसभा चुनाव के बाद मायावती पीएम उम्मीदवार के तौर पर उभरती है ] । क्योकि काग्रेस ने अभी प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी की कमान सौपी है । अगला कदम रायबरेली से चुनाव मैदान में उतारना होगा । और फिर 2022 में यूपी विधानसभा के वक्त प्रिंयका गांधी को ही सीएम उम्मीदवार पद के लिये उतरना । तीसरा, क्षत्रपो को अब समझ में आने लगा है कि गठबंधन का मतलब तभी है जब उसमें काग्रेस शामिल हो । यानी सिर्फ क्षत्रपो का मिलना गठबंधन तो है लेकिन वह सिर्फ सत्ता के लिये सौदेबाजी का दायरा बढना है । और इन तीन हालातो के दौर को और किसी ने नहीं बल्कि मोदी के करिष्माई नेतृत्व ने ही पैदा किया है । और मोदी के करिष्माई नेतृत्व के पीछे संघ परिवार को ही कमोजरी करना रहा । क्योकि संघ परिवार का हर वह संगठन जो काग्रेस की सत्ता को चुनौती देने के लिये संघर्ष करते हुये बीजेपी का रास्ता अभी तक बनाता रहा उसे ही मोदी के करिष्माई नेतृत्व ने खत्म कर दिया । विहिप के पास प्रवीण तोगडिया नहीं है तो विहिप को प्रवीण तोगडिया के हर कदम से लडना पडा रहा है । किसान संघ के सक्षम नेतृत्व को कैसे मोदी सत्ता के काल में खत्म किया गया ये मध्यप्रदेश में क्काजी के जरीये उभरा । फिर भारतीय मजदूर संघ हो या स्वदेशी जागरण मंच या फिर आदिवासी कल्याण संघ , हर संघठन को कमजोर किया गया । या कहे संघ के हर संगठन का काम ही जब करिष्माई नेतृत्व मोदी के लिये ताली बजाना हो गया तो फिर वह नीतिया भी बेमानी हो गई जो किसान को खुदखुशी की तरफ धकेल रही थी । युवाओ को बेरोजगारी की तरफ । उत्पादन ठप पडा है तो उघोगपतियो के पास काम नहीं । व्यापरियो के सामने जीएसटी से लेकर विदेशी निवेश और ई-मारकेटिंग का खतरा है । मजदूर को नोटबंदी ने तबाह कर दिया । यानी संकट काल स्वयसेवक की सत्ता के वक्त संघ की सोच के विपरीत है ।
तो आखरी सवाल यही हो चला है कि काग्रेस की राजनीति ने संघ या पुरानी बीजेपी की कार्यशौली को अपना लिया है । और मोदी के करिष्माई नेतृत्व ने काग्रेस के करिष्माई सोच को अपना लिया है ।
Right...
ReplyDeleteसूपर
ReplyDeleteI will wait for the day
ReplyDeleteSuper blog post
ReplyDeleteEk dam Sahi sir
ReplyDeleteReally a great article
ReplyDeleteबढ़िया 👍
ReplyDeleteGreat ... writing
ReplyDeleteKrantikari ji pet me laat kuch jyada jor se lagi hai dimagi santulan Puri tarah se kharab ho chuka hai tabhi Pappu or Priyanka me karishmai netritva dikh raha hai
ReplyDeleteआप मोदी जी की व्हाट्सएप इंडस्ट्री का हिस्सा बने रहिए, यहां आप जैसे की आवश्यकता नहीं है, कृपया अपनी भाषा का स्तर सुधारिए।
Deleteव्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वालों को इतनी गहरी बातें कहाँ से समझ में आएगी???
Deleteजबरदस्त विश्लेषण के साथ सटीक पूर्वानुमान 👌
सटीक विश्लेषण!
DeleteHaha bhakt found!
DeleteWhatsapp forwards par uchhalne wale bhakto ko is tarah ki shandaar piece ki ahmiyat ka andaza nhi ho sakta
यशस्वी भव:
ReplyDeleteयशस्वी भव:
ReplyDeleteबहुत सही कहा हैं सर आपने ....
ReplyDelete👍
Sir ji aap kab waps ane wale ho T.V par......
ReplyDeleteबेहतरीन विश्लेषण।
ReplyDeleteAap Bharat mata ke sapoot hai.
ReplyDeleteas usual you are super and ultimate.
ReplyDeleteहमेशा की तरह सटीक विश्लेषण
ReplyDeleteउम्दा एवं चरितार्थ .. I am a fan of yours prason sir . 🙏🙏❤️ We all love you a lot
ReplyDeleteअब अगर कांग्रेस सपा बसपा से गठबंधन करती है तो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी स्वयं मारेगी।
ReplyDeleteपु प्र, आप तो बड़े से बड़े दरबारी दिखाई देते हैं, गाँधी परिवार के, आपका नाम दरअसल "पापी प्रसून बाजपेई" होना चाहिए था।
ReplyDeleteJo sheeshe ke Ghar mein rehte Hain wo doosron ke gharo par pathar nahi fekte, mahodaya apni bhabhi ka intezar kijia.
Deleteकम से कम एक विचारधारा रखने वाले को आपका लेख नही पढ़ना चाहिए। सटीक बात व विश्लेषण के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteVery true Sir
ReplyDeleteModi ji ne tum logo ki dakoon band Kar Diya Randi Rona shuru karenge sare piddi milkar
ReplyDeleteModi ji ke follower isi level ki baat kar sakte hai,kyo frustat ho rahain hain.
Deleteसटिक विश्लेषण
ReplyDeleteGajab!!!!!!
ReplyDeleteBahut badhiya
बिल्कुल सही वाजपायी जी
ReplyDeleteलगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन/पूर्णत: स्वदेशी शासन व्यवस्था नहीं है। लोकतन्त्र में नेता / जनप्रतिनिधि चुनने / बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
ReplyDeleteसत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र पूर्णत: विदेशी शासन प्रणाली है। गणतन्त्र का अर्थ है- गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआंतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, तानाशाहीतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, सिद्धान्तहीनतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र - अवैध व्यापारतन्त्र - अवैध व्यवसायतन्त्र - हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) अर्थात् राष्ट्रविनाशकतन्त्र। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। इसीलिये देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी और प्रान्तीय समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
विदेशी शासन प्रणाली और विदेशी चुनाव प्रणाली के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय और राजनैतिक दल के उम्मीदवार करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है, जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पूर्णत: अविश्वसनीय उपकरण है। यह ई.वी.एम. भ्रष्टाचार का अत्याधुनिक यंत्र है। आम आदमी इन मशीनों द्वारा होने वाले जालसाजी से अनभिज्ञ हैं, क्योंकि उनके पास इस विषय में सोचने का समय और समझ नहीं है। इन मशीनों द्वारा होने वाली जालसाजी को कम्प्यूटर चलाने वाले और सॉफ्टवेयर बनाने वाले बुद्धिमान इंजीनियनर/तकनीशियन लोग ही निश्चित रूप से जानते हैं। वर्तमान में सभी राजनैतिक दल ई.वी.एम. से होने वाले भ्रष्टाचार से परिचित हंै, जब तक विपक्ष में रहते हैं तब तक ई.वी.एम को हटाने की मांग करते हैं, लेकिन जिस पार्टी की सरकार बन जाती है वह पार्टी चुप रहता है। अनेक देशों में ई. वी. एम. पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित है। ई. वी. एम. के स्थान पर कुछ जगह वी. वी. पेट. का प्रयोग किया जाता है, जो बहुत खर्चीला है। उसमें निकलने वाले मतपत्रों (पर्चियों) को सुरक्षित रखने और गिनने से तो अच्छा है कि पुरानी पद्धति से बड़े-बड़े मतपत्रों में मुहर लगवाकर मतदान करवाया जाय। हमारे देश के सभी ई. वी. एम. और वी. वी. पेट मशीनों को तोड़-फोड़ कर, आग लगाकर या समुद्र में फेंककर नष्ट कर देना चाहिये।
बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteVery nice
ReplyDelete