Thursday, January 3, 2019

दीवार पर लिखी साफ इबारत को पढने में मोदी-शाह को हिचक क्यों ?


2019 के चुनाव को लेकर सत्ता के सामने सवाल दो ही है । पहला , ग्रामीण भारत की मुश्किलो को साधा कैसे जाये । दूसरा, अयोध्या में राममंदिर पर निर्णय लिया क्या जाये । और संयोग से जो रास्ता मोदी ने पकडा है वह उस वक्त भी साफ मैसेज दे नहीं रहा है जब आम चुनाव के नोटिफेकिशन में सौ दिन से भी कम का वक्त बचा है । ग्रामिण भारत को राहत देने के लिये तीन लाख करोड की व्यवस्था रिजर्व बैक से की तो जा रही है लेकिन राहत पहुंचेगी कैसे । और राहत देने के जो माप-दंड मोदी सत्ता ने ही जमीन की माप से लेकर फसल तक को लेकर की है उसके डाटा तक सरकार के पास है नहीं तो तीन लाख करोड का वितरण होगा कैसे कोई नहीं जानता । यानी अंतरिम बजट में अगर मोदी सत्ता एलान भी कर देती है कि खाते में रुपया पहुंच जायेगा तो भी सिस्टम इस बात की इजाजत नहीं देता कि वाकई एलान लागू हो जायेगा । यानी चाह अनचाहे बजट में सुविधाओ की पोटली एक और जुमले में समा जायेगीा । तो दूसरी तरफ राम मंदिर निर्माण पर जब मोदी ने अपने इंटरव्यू में साफ कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही कोई निर्णय होगा तो उसके मर्म में दो ही संकेत दिखायी दिये । पहला , विहिप, बंजरंग दल या कट्टर हिन्दुवादी ताकतो को राज्य सत्ता की खुली छूट है लेकिन राम मंदिर निर्माण में कानून का राज चलेगा । दूसरा , भीडतंत्र या कट्टरता को राज्यसत्ता तभी तक सहुलियत देगी जब तक कानून का राज खत्म होने की बात खुले तौर पर उभरने ना लगे । यानी लकीर धुंधली है कि जो मोदी सत्ता को अपनी सत्ता मानकर कुछ भी करने पर आमादा है वह संभल जाये या फिर चुनाव तक संभल कर भीडतंत्र वाला रवैया अखतियार करें । तो क्या अंधेरा इतना घना हो चला है कि मोदी अब इस पार या उस पार पर भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है ।
जाहिर है यही से मोदी सत्ता  को लेकर बीजेपी के भीतर भी अब नये सवाल खडे हो चले है जिसके संकेत नीतिन गडकरी दे रहे है । हालाकि गडकरी के पीछे सरसंघचालक मोहन भागवत की शह है इसे हर कोई नागपुर कनेक्शन से जोड कर समझ तो रहा है लेकिन गडकरी के पास भी जीत का कोई तुरुप का पत्ता है नहीं  , सभी समझ इसे भी रहे है । इसलिये तत्काल में बीजेपी के भीतर से कोई बडा बवंडर उठेगा ऐसा भी नहीं है लेकिन चुनाव तक ये बंवडर उठेगा ही नहीं ऐसा भी नहीं है । और बीजेपी टूट की तरफ बढ जायेगी । संघ किसी बडे बदलाव के लिये कदम उटायेगा । या मोदी -शाह की जोडी सिमट जायेगी । ये ऐसे सवाल है जिसका उतर बीजेपी संभाले अमित शाह और सरकार चलाते नरेन्द्र मोदी के उठाये कदमो से ही मिल सकता है । और दोनो के ही कदम बीजेपी और संघ परिवार को बीते चार बरस से ये भरोसा जताकर उठाये जाते रहे कि उनके ना खत्म होने वाले अच्छे दिन अब आ गये । या अच्छे दिन तभी तक बरकरार रहेगें जब तक मोदी-शाह की जोडी काम कर रही है । ध्यान दें तो इस दौर में ना तो बीजेपी के भीतर से कभी कोई ऐसी पहल हुई जिसमें अमित शाह निशाने पर आ गये हो या मोदी के गवर्नेंस को लेकर कोई सवाल संघ या सरकार के भीतर से उठा । और यूपी चुनाव में जीत तक वाकई सबकुछ अच्छे दिन वाला ही रहा । पर यूपी में सीएम और डिप्टी सीएम की लोकसभा सीट पर हुये उपचुनाव की हार के बाद कर्नाटक में हार और गुजरात में 99 सीटो की जीत ने कुछ सवाल  जरुर उठा दिये लेकिन बीजेपी - संघ परिवार के भीतर अच्चे दिन है.... जो बरकरार रहेगें की गूंज बरकरार रही  । लेकिन जिस तरह तीन राज्यो में हार को एंटी इनकंबेसी और तेलगना-मणीपुर को क्षेत्रिय दलो की जीत बताकर मोदी-शाह की जोडी ने आगे भी अच्छे दिनो के ख्वाब को संजोया या कहे बीजेपी-संघ परिवार को दिखाना चाहा उसमें पहली बार घबराहट सरकार-पार्टी-संघ परिवार तीनो जगह दिखायी देने लगी । गडकरी ने अगर हार की जिम्मेदारी ना लेने के सवाल उठाये तो मोहन भागवत ने 2019 में प्रधानमंत्री कौन होगा पर ही सवालिया निशान लगा दिया । बीजेपी सांसदो के सुर अपने अपने क्षेत्रानुकुल हो गये  । किसी को लगा राम मंदिर पर विधेयक लाना जरुरी है तो किसी को लगा दलित मुद्दे पर बहुत झुकना ठीक नहीं तो किसी ने माना गठबंधन के लिये  सहयोगी दलो के सामने नतमस्तक होना ठीक नहीं । और असर इसी का रहा कि एक तरफ अपनी कमजोरी छुपाने के लिये बीजेपी ने गठबंधन को महत्व देना शुरु कर दिया तो दूसरी तरफ मोदी सत्ता ने अतित के हालातो को वर्तमान से जोडने की कोशिश की । मसलन बिहार में पासवान की पार्टी एक भी सीट जीत पायेगी नहीं पर छह सीटे पासवान को दे दी गई । जिससे मैसेज यही जाये कि साथी साथ नहीं छोड रहे है बल्येकि सिर्फ सीटो के समझौते का संकट है । यानी बीजेपी के साथ सभी जुडे रहना चाहते है ये परसेप्शन बरकरार रखने की कोशिशे शुरु हो गई । लेकिन इसी के सामानातंर विपक्ष के महागठंबधन को जनता के खिलाफ बताकर खुद को जनता बताने की भी कोशिश मोदी-शाह ने शुरु की । लेकिन इस पहल से कही ज्यादा घातक अतित के हालातो को नये हालातो पर हावी करने की सोच रही । जैसे तेजस्वी यादव के बाल्यकाल के वक्त हुये लालू के घोटालो में तेजस्वी यादव को ही आरोपी बनाया गया । इसी तरह राहुल गांधी भी बोफोर्स और इमरजेन्सी के कटघरे में खडे किये गये । ध्यान दें तो जो छल गरीब किसान मजदूर का मुखौटा लगाकर कारपोरेट के हित साधने वाली नीतियो तले आम जनता से हुआ । कुछ इसी अंदाज में विपक्ष की सियासत को साधने के लिये अतीत के सवाल उठाये जा रहे है । यानी चाहे अनचाहे मोदी-शाह की थ्योरी तले एक थ्योरी जनता में भी बन रही है कि आज नहीं तो कल उनका नंबर आ जायेगा । जहा सत्ता उनसे छल करेगी । यानी खुद की कमजोरी छुपाने के लिये उटाये जाते कदम ही विपक्ष की कतार को कैसे बडा कर रहे है ये तीन राज्यो के जनादेश में झलका । और यही हालात 2019 के जनादेश में छिपा हुआ है । क्योकि पन्ना प्रमुख से लेकर बूथ पर कार्यक्ताओ की फौज को लगने की कमर्ठता वामपंथी रणनीति की तर्ज पर बीजेपी ने अपनाया । फिर 10 करोड से ज्यादा सदस्य बोजेपी से जुडने और तमाम तकनीकी जानकारी के साथ सत्ता भी हाथ में होने के बावजूद अगर बीजेपी तीन राज्हायो में हार गई तो मतलब साफ है कि मोदी सत्ता ने समाज के किसी समुदाय को अपना नहीं बनाया । हर समुदाय को अच्छे दिन के सपने दिखाये गये । लेकिन हर किसी ने खुद को छला हुआ पाया । तो पार्टी चलाने का वृहत इन्फ्रसट्रक्चर हो या सत्ता के पास अकूत ताकत । जब जनता ही साथ जोडी नहीं गई तो फिर ये सब कैसे और कबतक टिकेगा । यानी सवाल ये नहीं है कि जातिय समीकऱण में कौन किसके साथ साथ होगा । या राजनीतिक बिसात पर महागठबंधन की काट के लिये बीजेपी के पास सोशल इंजिनियरिंग का फार्मूला है । दरअसल साढे चार बरस में नीतियो के एलान तले अगर जनता का पेट खाली है । हथेली में रोजगार नहीं है तो फिर मुद्दा जातिय या धर्म या पार्टी के सांगठनिक स्ट्रक्चर को नहीं देखेगी । ये  एहसास अब बीजेपी और  संघ परिवार में भी हो चला है । तो आखरी सच यह भी है कि मोदी-शाह की जोडी सत्ता-पार्टी पर नकेल ढिला करेगी नहीं । और बाहर से उठी कोई भी आवाज बीजेपी की टूट की तरफ बढेगी ही । और 2018 में चुनावी हार के बाद जो इबारत मोदी-शाह पढ नहीं पाये 2019 में तो दीवार पर किसी साफ इबारत की तरह वह लिखी दिखायी देनी लगी है । अब कोई ना पढे तो कोई क्या करें ।

16 comments:

  1. goo.gl/3fWfZD Things that can ensure Modi Government win in 2019 election

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  3. सर, लिखने में काफी जगह गलतियां हैं। कई जगह शब्द समझ ही नहीं आ रहे कि लिखा क्या गया है। शब्द के ग़लत लिखे जाने से आर्टिकल में नेगेटिव फ़र्क पड़ता है।

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  4. Enter your comment... इबारत! / इमारत! / बुनियाद! / सँकल्पवृक्ष! / वटवृ! / कल्पवृक्ष! / सँगमतट! / पतँजलि! / पीएमओ! ये नव शब्द! शब्द नहीं वजीर! @narendramodi और फकीर! @yogrishiramdev के अस्तित्व हेतु सह-अस्तित्व हैँ।-जयहिन्द!

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  5. Bjp पार्टी का विश्लेषण अच्छा किया है, सवालों के ढेर सारे हैं, लेकिन मजदूर को अपनी मजदूरी ही नही मिलती, किसानों को आत्महत्या करने अलावा दूसरा रास्ता ही नही बचा है, फसल बीमा योजना का एक रुपया नही मिलता किसानों को,

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  6. Khoobsurat padh ke man ko santosh hua ki aaj bhi real power janta ke pas hai??

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  7. Enter your comment...
    मेरेप्रियआत्मन!
    परमादरणीय
    पुण्यप्रसूनबाजपेईजी
    (एक्चुअल फेस आफ मीडिया-AFOM)
    प्रणाम!
    1.इबारत! (द ट्‌रुथ इन्साइड स्टोरी आफ इण्डिया-एकलव्य?) / 2,इमारत! (भाजपा मुख्यालय का भवन-पँडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग) / 3,बुनियाद! (भारतस्वाभिमानट्रस्ट के 9 उद्देश्य) / 4,सँकल्पवृक्ष! (अध्यात्मिक - धार्मिक - आर्थिक - राजनीतिक - समाजिक मठाधीशत्व(एकाधिकार) खत्म करना था, है और रहेगा) / 5,वटवृक्ष! (भाजपारुपी वट वृक्ष अकेला ऐसा वृक्ष है जो फूलने-फलने के बावजूद कभी झुकता नही तटस्थ रहता है फिर भी प्रधानसेवकजी(नमो) ने भाजपा के 2014आमचुनाव मेँ मिशन 272+ और 2017यू0पी0 में मिशन 260+ के लक्ष्य के अनुसार प्रचण्ड जीत पर वृक्ष मेँ फल लगने के बाद झुकने की नसीहत दे डाली थी) / 6.कल्पवृक्ष! (मेरा सँकल्प किसी की भी कल्पना शक्ति से परे है क्यूँकि आज का वटवृक्ष(भाजपा) मेरे सँकल्पवृक्ष(भारतस्वाभिमान) के नीचे ही रोपित है) / 7.सँगमतट! (अर्धकुम्भ मेला प्रयागराज-2007 मेँ सँगमतट पर "श्रीपँचायती अखाडा बडा उदासीन निर्वाण की धर्मध्वजा के तले गुरु-शिष्य(रामदेव-एकलव्य?) का आत्मिक मिलन(सँगम) हुआ जो आत्मपरिवर्तन से व्यवस्थापरिवर्तन से युगपरिवर्तन की दिशा व दशा तय हुई) / 8.पतँजलि! (पतँजलि- गुरुशँकरदेव एवम राजीवभाईदीक्षित की रहस्यमयी-असामयिक विदाई के कारण पतन की राह(कगार) पर ही है) / पीएमओ! (आज भारत की महाभारत मेँ माँ गँगा का बेटा(नमो) जो हमारी हस्ती का हस्तिनापुर(दिल्ली) का रखवाला है मेरे यक्षप्रश्न रुपी बाणोँ की सैय्या पर है और उनके साथ उनके निकट सहयोगी द्रोणाचार्य(रामदेव) जिनके चक्रव्यूह मे अभिमन्यु(राजीवभाईदीक्षित) मारा जा चुका है एवम कृपाचार्य(श्रीश्रीरविशँकरजी-आर्ट आफ लिविँग भी दिल्ली के यमुना तीरे 140देशोँ के प्रतिनिधि को बुलाकर "वसुधैवकुटुम्बकम" की परिकल्पना को सार्थक सिद्ध करने का असफल सन्देश दे चुके हैँ जिन्होने रामदेव की रामलीला मैदान की लीला(सत्याग्रह आन्दोलन) विध्वँस के समय जब रामदेव का नारी अवतार हुआ और एक अबला स्त्री के वेष मेँ गिरफ्तार हुए तो उसके पश्चात एक साक्षात्कार मेँ रामदेव को रावण से सँज्ञाँ दी थी) क्यूँ? ये नव शब्द! शब्द नहीं वजीर! @narendramodi और फकीर! @yogrishiramdev के सफल / असफल एवम अस्तित्व को बचाने हेतु सह-अस्तित्व हैँ।-जयहिन्द!

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  8. Modi ji jyada padhe likhe nhi hain shayad isliye nhi padh pa the hain.. GST ki aazadi BJP ki barbadi me badal jayegi

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  9. only rhetorics or kuch bhi ni h...

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  10. निसंदेह प्रसून जी आप पर मां शारदा की कृपा है लेखन में हर राजनीतिक दल के लिए यह न्याय प्रियता हमेशा बनाए रखियेगा जब भी आपका लेख पढ़ते हैं तो लगता है आप मूर्त रूप से सामने खड़े हैं , सभी राजनीतिक दल तो सामान्य जनो को धोखा देते हैं और उनकी भावनाओं के साथ खेलते हैं, फर्क नहीं पड़ता कि दल कौन सा है कोई ज्यादा धोखेबाज है तो कोई कम, काश कि राजनीतिक दल ऐसे धोखे सामान्य जनता के साथ ना करते तो आज हमारे देश के हालात कुछ और होते , आशा है आप जैसे ईमानदार पत्रकार अपने पथ से कभी विचलित नहीं होंगे और सदैव आम जनता की आवाज बनकर बोलते रहेंगे।

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  11. मुझे लगता है कि इतना विश्लेषण करने की जरूरत नही है।
    ध्यान दीजिए कैसे उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी को आश्चर्यजनक रूप से, उम्मीद से ज्यादा, बड़ी जीत मिल गयी। ईवीएम घपले का आरोप भी इसी चुनाव में लगा था। कर्नाटक में चुनाव आयोग द्वारा तिथि की घोषणा किये जाने से पहले ही भाजपा का एक नेता तिथि बता देता है। पांच राज्यो में चुनाव की तारीख घोषणा 11 बजे दिन में होने वाली थी पर मोदी की कांफ्रेंस के कारण उसे चुनाव आयोग ने टाला। और इसी टले हुये समय के बीच तीन राज्यो में बीजेपी नेताओ ने 170 परियोजनाओ का शिलान्यास किया। इन सब कारणो से यह मानना सहज हो जाता है कि चुनाव आयोग बीजेपी की पकड़ में है, बीजेपी के नियंत्रण में है। जब चुनाव आयोग ही नियंत्रण में है तो मोदी शाह को 2019 का चुनाव जीतने की कोई चिंता नही है। वो तो चुनाव आयोग जितवा ही देगा।
    जहां तक तीन राज्यो के विधानसभा चुनाव मे बीजेपी के हारने की बात है तो यह भी मोदी शाह द्वारा गढ़ा गया लगता है। राजस्थान मे तो बीजेपी खुद वसुंधरा राजे को दो साल से हटाना चाह रही थी लेकिन वसुंधरा बीजेपी पर भारी पड़ रही थी। शिवराजसिंह चौहान और रमन सिंह इस साल अगर सरकार बना लेते तो इनका कद मोदी के बराबर हो जाता। जिस तरह पिछले चार साल मे मोदी जी की नीतिया नाकाम रही है, यह संभावना भी बन रही थी कि बीजेपी के अंदर व घटक दलो द्वारा 2019 केलिए शिवराजसिंह चौहान का नाम आगे किया जाता। मोदी शाह ने यह खेल गढ़ कर ये स्थिति बना दी है जहां वो बीजेपी से भी बड़े हो चले हैं।
    बस इसमें कांग्रेस को थोड़ा खुश होने का मौका मिल गया है और बाकी सब दिखावे की कवायद चल रही है।

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  12. सर मोदी शाह को दोष न दीजिये. .
    एक लूटेरो बेईमानों का ईमानदार प्रशासक हैं तो दूसरा उन लूटेरो के ईमानदार प्रशासक का सहायक.. .

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  13. लगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन/पूर्णत: स्वदेशी शासन व्यवस्था नहीं है। लोकतन्त्र में नेता / जनप्रतिनिधि चुनने / बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
    सत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र पूर्णत: विदेशी शासन प्रणाली है। गणतन्त्र का अर्थ है- गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआंतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, तानाशाहीतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, सिद्धान्तहीनतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र - अवैध व्यापारतन्त्र - अवैध व्यवसायतन्त्र - हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) अर्थात् राष्ट्रविनाशकतन्त्र। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
    निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। इसीलिये देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी और प्रान्तीय समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
    विदेशी शासन प्रणाली और विदेशी चुनाव प्रणाली के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय और राजनैतिक दल के उम्मीदवार करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है, जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।

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