Friday, June 7, 2019
द ग्रेट मोदी
हर चालिस मिनट मे एक किसान खुदकुशी करता रहा । लेकिन किसानो ने वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिया । खेतो से जुडे मजदूरो की खुदकुशी हर घंटे होती रही । लकिन उसने वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिया । बेरोजगारी के आंकडे हर दिन बढते रहे लेकिन बेरोजगार युवाओ ने वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिया । दिल्ली, मुबंई, बेगलुरु सरीखे एजुकेशन हब में उच्च शिक्षा और रिसर्च स्कालर के सामने इन्फ्रस्ट्रक्चर का संकट गहराता चला गया लेकिन वोट नरेन्द्र मोदी के ही नाम पर पडे । बस्तर, पलामू,बुदेलखंड सरीखे इलाको से दो जून की रोटी के लिये गांव वालो का पलायन बढता चला गया , लेकिन इन इलाको में रहने वाले अपने तमाम मुश्किल हालात को भूल कर वोट नरेन्द्र मोदी को ही दे आये । दलितो का उत्पीडन बढा । सडक से लेकर यूनिवर्सिटी तक में दलित निशाने पर आया लेकिन उसने वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिया । मुस्लिम समाज झटके में संसदीय चुनावी राजनीति में महत्वहीन हो या लेकिन उसने वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिया । नोटबंदी हुई तो 45 करोड लोगो को समेटे असंगठित क्षेत्र में अव्यवस्था रेगने लगी और रोजगार से लेकर सरोकार की इक्नामी भी डांवाडोल हो गई । लेकिन चुनाव के वक्त अपनी मुश्किलो से पल्ला झाड कर वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिया । जीएसटी से छोटे व्यापारियो की कमर टूट गई । बडे व्यापारी किसी तरह अपनी जमा-पूंजी से व्यापार संभाले रहे । लेकिन चुनाव आया तो सभी ने वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिया । बैकिंग सेक्टर से जुडे देशभर के बैककर्मी परेशान रहे लेकिन चुनाव के वक्त सभी ने वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिया । बरस दर बरस बैकिंग फ्राड की तादाद और करोडो के वारे न्यारे होते रहे लेकिन बैको में अपने धन को जमा करने वाली जनता पर इसका असर पडा नहीं और उसने वोट नरेन्द्र मोदी को ही दिये । 2014 से 2018 तक महीने दर महीने योजनाओ के आसरे बदलते भारत की तस्वीर दिखाने बताने की पहल जमीन पर बेहद कमजोर रही लेकिन योजनाओ के एलान में गुम देश ने वोट नरेन्द्र मोदी के ही नाम किया । और कैसे 2014 की तुलना में 2019 में नरेन्द्र मोदी एक ऐसे स्टेट्समैन के तौर पर उभरे की तमाम मुश्किल हालात जो उन्ही के पांच बरस के पहले कार्यकाल [ 2014-18 ] में उभरी वह सब चुनाव के वक्त बेमानी हो गये और नरेन्द्र मोदी कभी ना हारने वाले नेता के तौर पर देश-दुनिया के सामने उभर कर आ गये । जिसके बाद भारत को रश्क हो चला है कि ऐसा नेता देश को पहले मिला होता तो भारत की वह गत ना होती जो 2014 से पहले देश की थी । ये सारे तथ्य इसलिये महत्वपर्ण हो चले है क्योकि जनता पार्टी की सरकार से लेकर मनमोहन की सरकार तक के दौर में यानी बीते 40 बरस के चुनावी दौर में हर वह प्रधानमंत्री हारा जिसकी योजनाओ ने देश से ज्यादा सत्ताधारियो का ही कल्याण किया । और पांच बरस पहले की कहानी याद करेगें तो 2014 में काग्रेस की घपले-धोटालो की सत्ता , क्रोनी कैपटलिज्म के मिजाज से तंग जनता ने काग्रेस को जमीन से ही उघाड दिया । नरेन्द्र मोदी पारंपरिक काग्रेसी सत्ता के खिलाफ जनता के आक्रोष को अपने भीतर समेट कर उम्मीद और भरोसे की पहचान लेकर उभरे । और जीत का सेहरा बांध कर नरेन्द्र मोदी ने हर उस लकीर के सामानातंर एक ऐसी बडा लकीर खिंचनी शुरु की जो समाज के भीतर के अंतर्विरोधो को उभार दे या फिर उस सच को सामने ला दें जिसे अभी तक पर्दे के पीछे से खेला जाता था । ये एक ऐसी लकीर रही जिसने समाज के भीतर अलग अलग जाति-धर्म-समुदायो के समाजिक-आर्थिक अंतर्विरोधो के जरीये सियासी बिसात पर हर किसी को ये कहकर प्यादा बनाया कि उन्हे पारंपरिक सोच त्याग कर या तो सत्ता के साथ खडा होना होगा या फिर सत्ता जिस नये भारत को गढेगी उसमें उन्हे खुद ही अपनी जिन्दगी जीने की जरुरते दिखायी देने लगेगी । यानी मुद्दो के आसरे सियासत की सोच या फिर सत्ता के पांच बरस के कार्यकाल तले सफलता-असफलता की राजनीति नये दौर में किस्सो-कहानियों में तब्दिल हो गई और पारंपरिक राजनीति को संभाले सियासी पार्टियो या नेता समझ ही नहीं पाये कि भारत तो अपने अंतर्विरोध तले ही दब चुका है । और सत्ता की सोच नागरिको के घरो में घुस कर खुले तौर पर ये एलान करने लगी कि आपके जीने के तरीके । जायके का लुत्फ । समाज को देखने समझने का नजरिया । या तक ही भारत को चकाचौंध में समाने से पहले अपनी जडो को देखना समझना होगा । और ये नजरिया चाहे कारपोरेट की पीठ पर सवार हो कर किसान-मजदूर-गरीब गुरबो का मुखौटा हो लेकिन सही उसे ही मानना होगा । क्योकि अंतर्विरोध में तो गरीबी हटाओ का इंदिरा का नारा भी फरेब था और 1991 में आर्थिक सुधार के जरीये भारत को बाजार में तब्दिल करने की समझ भी धोखा थी । यानी 70 बरस के दौर में तमाम हालातो को जीते हुये जब आपको हमको या फिर देश के बहुसंख्यक तबके को राहत मिली ही नहीं तो फिर कोई शख्स अगर अपनी सत्ता तले सबकुछ बदलने पर आमादा हो जाये तो आपको अच्छा लगेगा ही । क्योकि परिवर्तन हो रहा है ये सोच कर ही जिन्जगी तो बदलने लगती है । और वजह भी यही है कि वोटो के गणित का सवाल जो भारतीय संसदीय राजनीति को हमेशा से हांकता रहा उसे ही 2019 के एक ऐसे जनादेश ने बदल दिया जिसे कोई देख नहीं पा रहा था । 2014-18 के दौर में जिन मुद्दो ने देश को परेशान किया वही मुद्दे चुनावी दौर में परेसानी करने वाले मोदी सत्ता को इनाम देने की स्थिति में आ गये । बहस होती रही कि गार्मिण भारत के हालात नाजुक है । किसान परेशान है । लेकिन जब 2019 का जनादेश आया तो पता चला कि 2014 में तो ग्रमिण भारत ने 30.3 फिसदी वोट बीजेपी को दिया था । जिसके नेता नरेन्द्र मोदी थी । पर 2019 में बोजेपी को अपने भीतर समा चुके नरेन्द्र मोदी की महाअगुवाई वाली बीजेपी को 37.6 फिसदी वोट ग्रामिण भारत से ही मिल गये । यानी पांच बरस बाद 7.3 फिसदी के वोट का इजाफा मोदी की लोकप्रियता तले हो गया । ये लोकप्रियता ना तो नोटबंदी से कम हुई ना ही जीएसटी से । क्योकि शहरो में भी 1.9 फिसदी वोट का इजाफा मोदी के लिये हो गया । 2014 में जहा 39.2 फिसदी वोट बीजेपी को मिले थे वहीं 2019 में ये बढकर 41,1 फिसदी हो गया । और जो ग्रामिण-शहरी मिजाज के बीज अर्द्द शहरी इलाके है वहा 2014 की तुलना में 2.3 फिसदी की बढोतरी 2019 में हो गई । 2014 में सेमी अर्बन इलाको में बीजेपी को 29.6 फिसदी वोट मिले थे तो 2019 में ये बढकर 32.9 फिसदी हो गये । और ध्याद दें तो बेहद बारिकी से जो नैरेटिव मोदी ने देश के सामने रखा उसमें जाति धर्म का पारंपरिक राजनीति सिरे से गायब थी । और जो परोसा गया उसके दो ही मायने रहे , स्थितियां या तो गरीब-अमीर की होती है या फिर उस इक्नामिक माडल की जिसमें मुनाफा ही हर किसी को चाहिये । यानी मुनाफा संवैधानिक संस्धानो को भी ढहा सकता है । लोकतंत्र को जीने के तरीके में भी बदलाव ला सकता है । क्योकि बीते पांच बरस के दौर में मीडिया की भूमिका अगर खुले तौर पर सत्ता से मिलने वाले मुनाफे पर जा टिकी तो हर्ज ही क्या है । आखिर मीडिया हाउस का जन्म तो पूंजी लगाकर पूंजी बनाना ही है । और अभी तक मुनाफे के रास्ते पत्रकारिता के मानदंडो पर टिके थे या फिर साख पर । तो सत्ता ने साख की परिभाषा और पत्रकारिय मानदंडो को ही बदल दिया और मुनाफा भी भरपूर दे दिया तो हर्ज क्या है । फिर देश के तमाम संवैधानिक-स्वयत्त संस्थानो को लेकर पारंपरिक बहस तो हमेशा से यही रही कि नौकरशाह भ्रष्ट्र होते है और सत्ता किसी की भी रहे भ्रष्ट्र कमाई के लिये सत्तानुकुल होकर काम करते है । यानी संवैधानिक संस्थानो के अंतर्विरोधो को जनता ने लगातार देखा समझा तो फिर संवैधानिक संस्थानो के स्वयत्त होने की परिभाषा ही अगर मोदी सत्ता ने बदल दी तो उसमें हर्ज ही क्या है । कल तक नौकरशाही के पास सत्ता से सौदेबाजी के पैतरे थे अब नौकरशाही को सत्ता के इशारे पर चलना है अन्यथा हाशिये पर चले जाना है । और इस कतार में सीबीआई, ईडी, सीवीसी ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग भी आ गये तो क्या फर्क पडता है । यू भी सुप्रीम कोर्ट के सरोकार आम जनता से कहा जुडे है और न्यायपालिका से न्याय लेना कितना मंहगा हो गया है ये जिले स्तर की कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक के हालात से समझा जा सकता है । और हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के बाहर लंबी लंबी गाडियो की कतार साफ बतलाती है कि रईसी कैसे न्यायपालिका में समा गई है । और चुनाव आयोग में एक वक्त मुख्यआयुक्त चावला भी तो काग्रेस को चुनावी तारिखो की जानकारी देने के आरोपो से घिर चुके है तो फिर अब सुनील अरोडा पर अगर सत्ता के लिये ही काम करने के आरोप लग रहे है तो इसमें गलत क्या है । और इस कतार में सबसे बडा सच तो जातियो के दूटने का है । गरीबो को इस एहसास में जीने का है कि आखिर सारा संघर्ष तो दो जून की रोटी का ही है । और 2014-18 के दौर में ये कमाल हुआ तो 2019 के जनादेश का मिजाज ही पहली बार बदल गया । 2014 में जिस गरीब के 24 फिसदी वोट बीजेपी को मिले थे । वह 2019 में मोदी के लिये बढकर 36 फिसदी हो गये । जो निम्न यानी लोअर तबका हो उसके वोट में भी 5 फिसदी की बढोतरी हो गई । 2014 में 31 तो 2019 में मोदी के नाम पर ये बढकर 36 फिसदी हो गये । फिर मद्यम वर्ग जिसकी उम्मीदे हर सत्ता से बहुत कुछ चाहती भी है और वोट के लिये सत्ता के तमाम नये सामाजिक-आर्थिक प्रयोग से सबसे ज्यादा वह प्रभावित भी होती है उसके वोटो में भी 6 फिसदी की बढतरी बीजेपी के लिये हो गई । 2014 में मध्यम वर्ग ने 32 फिसदी वोट बीजेपी को दिये थे तो 2019 में 38 फिसदी मोदी के नाम पर दिये । और जो अपर मिडिल क्लास यानी संघर्ष करते हुये सुविधाओ को भोगने वाले तबके का रुझान भी मोदी के खासा बढ गया । 2014 में उसने बीजेपी को 38 फिसदी वोट किये थे तो 2019 में मोदी के नाम पर 44 फिसदी ने वोट किये । यानी पहली बार गजब का बदलाब संसदीय राजनीति में ही नहीं बल्कि चुनावी मिजाज में भी आ गया और पहली बार सवाल ये भी उठा कि क्या बीजे 70 बरस के दौर को राजनीतिक सत्ता के जरीय भगते भोगते जनता उब चुकी थी और अब उसे राजनीति से नेताओ से घृणा हो चुकी थी तो उसने अपने ही कटघरे को तोड दिया और तमाम राजनतिक दलो को सीख दे दी कि अब और नहीं । क्योकि 2019 के जनादेश की नब्ज को पकडियेगा तो चौकाने वाले सामाजिक समीकरण नजर आयेगें । क्योकि किसानो ने 2014 में आय दुगुनी होने के वादे तले बीजेपी को 33 फिसदी वोट किये । लेकिन आय दुगुनी होना असंभव सा है ज ये किसानो को लगने लगा तब 2019 में किसानो ने 38 फिसदी वोट मोदी को किये । यानी किसानो ने 6 फिसदी ज्यादा वोट 2014 की तुलना में मोदी को दे दिये । दलितो के भीतर मायावती से लेकर तमाम दलित राजनीति करने वालो को लेकर कुछ सवाल हमेशा से थे तो 2014 में मोदी के दलित उत्पीडन बंद करने को लेकर जो आवाज आई उसमें दलतो ने 24 फिसदी वोट बीजेपी को किये । लेकिन उसके बाद दलितो पर उत्पीडन जिस तरह बढे और राजनीतिक सवाल मुद्दो की शक्ल मे जन्म लेने लगे तो 2019 में दलितो ने ही 33 फिसदी वोट मोदी के पक्ष में कर दिये । यानी 2014 की तुलना में2019 में दलितो के 9 फिसदी ज्यादा वोट बीजेपी को मिले । आदिवासी इलाको में संघ के आधिवासी कल्याण संघ का कामकाज आसर लाया तो 2014 की तुलना में 2019 में 6 फिसदी वोट ज्यादा बीजेपी को मिले । फिर ओबीसी या अन्य पिछडे वर्ग के भीतर जो सवाल 2014-18 के बीच हर योजना और नोटबंदी-जीएसटी को लेकर थे वह सब 2019 के जनादेश में काफूर हो गये । आलम ये हो गया कि निचले स्तर पर ओबीसी यानी लोअर ओबीसी वर्ग ने 2014 में बीजेपी को 42 फिसदी वोट दिये थे । तो उसके बाद बीजेपी अध्यक्ष ने जिस तरह देश को बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ओबीसी है तो 2019 में लोअर ओबीसी के 48 फिसदी वोट मोदी को मिल गये । यानी 6 फिसदी वोट का इजाफा हो गया । लेकिन उससे भी बडी छलांग ओबीसी के उपरी तबके में लगी । जहा 2014 में सिर्फ 30 फिसदी वोट बीजेपी के हिस्से में आया था वहा 11 फिसदी की छलांग लगी और 2019 में 41 फिसदी अपर ओबीसी का वोट मोदी के हक में चला गया । और संभवत अखिलेश यादव को सबसे बडी झटका इसीलिये लगा कि जनादेश के बाद जो नैरेटिव उभरा उसमें यादव भी बंट गये । ना तो बिहार में आरजेडी और ना ही यूपी में सपा को एकमुश्त यादव वोट मिला । हालाकि ये सवाल अनसुळझा सा रहा कि जनादेश से पहले जाति-धर्म और गठबंधन को लेकर जो जिक्र सीएएसडीएस से लेकर समाम एक्जिट पोल वाले ये फिर मीडिया के धुरधंर पत्रकार कर रहे थे उनकी फिसाल्फी या उनका आंकलन जनादेश के बाद बदल कैसे गया । या फिर ये मान लया जाये कि अब समाजिक-आर्थिक-राजनीतिक आकंलन के भरोसे जनादेश नहीं आता बल्कि जनादेश के अनुकुल आंकलन करना होगा । ये सवाल सबसे महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक यानी मुस्लिम समुदाय को लेकर भी है । 2014 में काग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण निशाने पर थी । और मोदी उम्मीद का हिमालय संजोय सत्ता के लिये संघर्ष कर रहे थे तो 2014 में मुस्लिम के 9 फिसदी वोट बीजेपी के हक में गये जो खासी बडी बात थी । लेकिन 2014 से 2018 के बीच तीन तलाक के सवाल को एक तरफ मोदी ने अपनी सफलता की कुंजी माना तो दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय को जिस तरह बीजेपी संघ से बार बार संदेश सीधा गया कि वह खुद को मुसलिम ना मान कर देश के नागरिक या गरीबी से निजात पाने के सवाल तले रखे और फिर जिस तरह कड्डर हिन्दुवादियो के निशाने पर मु्सलिम आये उसमें विपक्ष ने माना कि अब तो मु्सिलम खामोश हो गया है और जनादेश के दौर में वह मोदी को हराने क लिये ही एकमुश्त उभरेगा . लेकिन जनादेश के आंकडे बताते है कि 2019 में भी 8 फिसदी मु्सिलमो ने मोदी को वोट दिया । यानी 2014 से 2019 की तुलना करते हुये सिर्फ मु्सिलम ही वह तबका है जिसने बीजेपी को दिये अपने वोट में महज एक फिसदी की कमी की । लेकिन वोट दिया । तो क्या सबका साथ सबका विकास का जादू काम कर रहा था । या फिर राजनीतिक पंडितो को ये समझ बी नहीं आ रहा था की देश इतना बदल चुका है कि उसे अब जाति धर्म में बांटा नहीं जा सकता है । हालाकि इस कडी में सबसे ज्यादा वोट मोद के पक्ष में उंची जतियो के पडे । जिसमें 7 फिसदी की बढोतरी हो गई । 2014 में जहा उंची जातियो के 54 फिसदी वोट बीजेपी को मिले थे वहीं 2019 में उंची जातियो के 61 फिसदी वोट मोदी के पक्ष में पडे । तो जनादेश की नब्ज जब ये बता रही है कि जातियों के खुद के बंधन को तोड दिया है । धर्म मायने नहीं रखता । मुद्दे बेमानी है । जिन्दगी जीने के दौरान संघर्ष या फिर उच्च शिक्षा के बाद भी समाज अब बराबरी की दिशा में जा रहा है , जहा बहुत पढा लिखा होना मायने नहीं रहता । बहुत पूंजी समेट रईसी या फिर रईसी और दंबगई के सहारे नेतागिरी करने की सोच भी अब गले में भगवा गमछा लपेटे गरीब गुरबो को ज्यादा अधिकार राहत देन पर उतारु है । कानून व्यवस्था का राज भी सत्ता के अनुकुल कार्य करने पर उतारु है क्योकि देश को मजबूत नेता पहले चाहिये संविधान या लोकतंत्र बाद में । और अब हमारे पास सबसे मजबूत नेता है । लोकतंत्र की ताकत समेटे सबसे शानदार मंत्रिमंडल है । और इस आभामंडल को बताते हुये देश को सही रास्ते पर लाने के लिये मीडिया संस्थानो में होड है । हर कोई कह रहा है , ' द ग्रेट मोदी ' । तो फिर आईये मिल कर गाये...वन्दे मातरम् । क्योक स्वतंत्रता का मंत्र, वंदे मातरम् ही था जो राष्ट्रगीत बना ...जो जल्द ही राष्ट्रगान बन सकता है... वन्दे मातरम्! / सुजलाम, सुफलाम् मलयज-शीतलाम् / शस्यश्यामलाम् मातरम् / वन्दे मातरम् / शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम् / फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम् / सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम् / सुखदाम्, वरदाम्, मातरम्! / वन्दे मातरम् / वन्दे मातरम् .....
Yes ..The great modi ...teri kyu jal rahi hain ..
ReplyDeletePpvajpeyi ne shi bola great modi to Teri q jal rhi Hai...tu khus ho na bhakt..
Deleteतेरी जलती है बहन के लौङे फेकूआ हिजङे का दलाल
DeleteTatti ho be Tum.. 😃
Deletetou kya parjatnter ,loktenter, samvidhanik adhikar kewal narrative me hi simat ke reh jayenge??
ReplyDeleteवाजपेयी जी कुछ दिन केदारनाथ की गुफाओ मे चले जाओ ,वरना अभी 5 साल ह ,पगला जाओगे
ReplyDeleteकेजरीवाल के रास्ते न चले, जो अच्छा हो रहा है उसका तारिफ करे, जाति पर वोट नहीं पड़ा क्या ये गलत हुआ?
ReplyDeleteअभी बहुत कुछ गलत होने वाला है, तथ्य एवं तर्क के साथ आलोचना करियेगा, लोग पढेंगे और समझेंगे भी।
Sir,you are the great man of the India. you are right sir, Aap Sahi Hain lage rage, Varna ae log desh ko bech denge or ye sare Modi Modi karte rah jayenge.
ReplyDeleteSir, aapko Delhi aane se kaun rok Raha hai.
ReplyDeleteDamru Nahi baja denge, ye damru toh theek hai,
Lekin Delhi aane se kaun rok Raha hai.
Well written. But as you said Modi is great... yes he is. Whether you accept or not.
ReplyDeleteEVM is great
ReplyDeleteBjp मध्य प्रदेश मे 15 साल से ओर सभी शिक्षक को time से वेतन मिल रहा था पर जब से कांग्रेस सरकार बनी है लोगो की 2 से 4 महीने का वेतन नहीं मिला है..कांग्रेस को वोट देने से कोई फायदा नहीं ये लोग बस जनता को परेशान करते है. ओर ठगते है
ReplyDeleteआपकी काबिलीयत को आपके नकारात्मक रुझानों ने निगल लिया प्रसून जी और ईमानदारी को केजरीवाल से करती आपकी सेटिंग ने .
ReplyDeleteबेहतरीन विवेचना
ReplyDeleteUnemoployment country so bhoot ka counry ban gai too budhi too ghas carne chali gai too aachha karne soach kahne se ayegi ek ghada dench dench karta he too baki gadhe bhi dench dench karne lage hen lagte bahgwan ram he ayenge or dustoo se neezat delyinge
ReplyDeleteसर बचपन से आपकी पत्रकारिता को ना सिर्फ स्क्रीन पर देखा बल्कि पढ़ा भी वो चाहें अखबार हो या फिर आपकी लिखी किताब मीडिया डिजस्टर... सर सच तो ये है कि उस धारदार पत्रकारिता को देखकर हमने भी तय किया कि पत्रकार बनना है. फिलहाल छात्र हूँ. लेकिन जो कुछ आपके साथ हुआ उसे देखकर हौसले पस्त हो गए हैं. जी चाहता है आधे रास्ते से लौट जाऊं
ReplyDeleteJab hr taraf andhera hi andhera hojaye aur log andhere ko pasand krne lag jaye ayese waqt m agr koi roshni k bare m bataye to use afwah hi samjha jayega
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वीं जयंती - राम प्रसाद 'बिस्मिल' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteइसी तरह कुढते रहो..... जहां तक रोजगार की बात है 5 सालों में 10 गुना से ज्यादा बढ़ा है... हमारे छोटे से गांव में भी 150 से ज्यादा लोगों ने मुद्रा लोन लेकर अपना काम कर रहे हैं और 200 से ज्यादा लोगो को रोजगार भी दिया है..... सरकारी नौकरी तो सभी को अमेरिका भी नहीं दे सकता
ReplyDeleteSir apko TV par aana hi hoga jaldhi se jaldhi
ReplyDeleteI request you to joined TV in public interest as soon.
ReplyDeleteNL Meena
EVM means - Every Vote Modi
ReplyDeletePls come on screen ...India needs your journalism
ReplyDeleteआपका आकलन गलत है कि जाति-धर्म की दीवारें टूट गई... असल में पूरा वोट धर्म के नाम पर पड़ा,BJP ने सभी जातियों को हिंदुत्व की छाया तले सफलतापूर्वक एकत्रित कर लिया है। जाति की दीवारें टूटी हैं धर्म की नहीं।
ReplyDeleteSir kya aapko ye dar nahi lagta k bjp wale aapko Marva dege.
ReplyDeleteप्रसूनजी आपसे विनती है एक बार राजीव दीक्षित जी पर vdo बनाइए
ReplyDeleteजिनकी मौत में बाबा रामदेव का हाथ है..