'सेंसरशिप' की तैयारी मे जुट रहे हैं नौकरशाह
न्यूज चैनलों पर नकेल कसने के लिये सरकार ने अपनी पहल तेज कर दी है। इंडियन इनफॉरमेशन सर्विस यानी आईआईएस के उन बाबुओं को दुबारा याद किया जा रहा है, जिन्हें न्यूज चैनलों की मॉनिटरिंग का अनुभव है।1995 से 2002 तक सरकारी गाइडलाइंस के आधार पर सूचना प्रसारण के नौकरशाह पहले दूरदर्शन और मेट्रो चैनल पर आने वाले समसामायिक कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग करते रहे। इस दौर में न्यूज और करेंट अफेयर के तमाम कार्यक्रमों की स्क्रिप्ट पहले सरकारी बाबुओं के पास आती थीं। उसके बाद पूरा कार्यक्रम बाबुओं की टीम देखती। जो तस्वीरें हटवानी होती, जो कमेंट हटाने होते, उसे हटवाया जाता।
उसके बाद निजी चैनलों का दौर आया तो शुरुआत में मॉनिटरिंग स्क्रिप्ट को लेकर ही रही। लेकिन इसके लिये पहले से स्क्रिप्ट मंगवाने की जगह महीने भर देखने के बाद चैनलों को नोटिस भेजने का सिलसिला जारी रहा। लेकिन एनडीए सरकार के दौर में सूचना प्रसारण मंत्री प्रमोद महाजन ने न्यूज चैनलों की मॉनिटरिंग यह कह कर बंद करायी कि जो कन्टेंट टीवीटुडे के अरुण पुरी या एनडीटीवी के प्रणव राय तय करते हैं, उनसे ज्यादा खबरों की समझ नौकरशाहों में कैसे हो सकती है। उस वक्त न्यूज चैनलों की मॉनिटरिंग करने वाले नौकरशाहो ने सरकारी गाइडलाइन्स का सवाल उठाया। तब प्रमोद महाजन ने सरकारी गाइडलाइन्स किसने बनायी और उसका औचित्य क्या है, इन्हीं मामलो में नौकरशाहो को उलझाया और धीरे धीरे मॉनिटरिंग खानापूर्ति् में तब्दील हो गई।
लेकिन अब सरकार ने दो स्तर पर काम शुरु किया है, जिसमें पहले स्तर पर उन नौकरशाहों को याद किया जा रहा है जो न्यूज चैनलों की मॉनिटरिंग के माहिर माने जाते हैं और फिरलहाल रिटायर जीवन बीता रहे हैं। और दूसरे स्तर पर वर्तमान नौकरशाहों के जरीये ही मॉनिटरिंग की नयी गाइडलाइन्स बनाने की प्रक्रिया शुरु की गई है। चूंकि 7 अक्टूबर को कैबिनेट ने अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग गाइडलाईन्स, 2005 को मंजूरी देते हुये न्यूज चैनलों की संहिता के भी सवाल उठाये और यह भी कहा गया कि कोई टेलीविजन चैनल कार्यक्रम और विज्ञापन संहिता के पांच उल्लंघनों का दोषी पाया गया तो सूचना प्रसारण मंत्रालय के पास उसका लाइसेंस रद्द करने का अधिकार होगा । लेकिन वे उल्लंघन होंगे क्या ? या फिर उल्लंघन के दायरे में क्या लाना चाहिये, इस पर चिंतन-मनन की प्रक्रिया शुरु हो गई है। और जो निकल कर आ रहा है, अगर वह लागू हो गया तो टीआरपी की दौड़ मे लगे उन न्यूज चैनलों का लाइसेंस तो निश्चित ही रद्द हो दायेगा, जो खबरो के नाम पर कुछ भी दिखाने से परहेज नहीं करते। नयी गाइडलाइन्स के तहत नौकरशाह का मानना है कि नंबर एक की दौड में न्यूज चैनल अव्वल नंबर पर बने रहने या पहुंचने के लिये खबरों से खिलवाड़ की जगह बिना खबर या दकियानूस उत्साह को दिखाने लगते हैं। मसलन, कैसे कोई नागमणि देश का भविष्य बदल सकती है। कैसे अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम भारत को बर्बाद कर सकता है। कैसे कंकाल रोबोट का काम कर सकता है। वहीं दूरदर्शन में रहे कुछ पुराने नौकरशाहो का मानना है कि जिस तरह कॉलेज से निकली नयी पीढ़ी रिपोर्टिंग और एंकरिंग कर रही है, और वह किसी भी विषय पर जिस तरह कुछ भी बोलती है उस पर लगाम कैसे लगेगी। क्योंकि मीडिया अगर यह सवाल करेगा कि जो न्यूज चैनल बचकाना होगा, उसे खुद ही लोग नहीं देखेंगे। यानी न्यूज चैनलो की साख तो खबरों को दिखाने-बताने से खुद ही तय होगी। लेकिन मुंबई हमले के दौरान जिस तरह की भूमिका बिना साख वाले चैनलों ने निभायी और उसे देखकर पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठनों ने अपनी रणनीति बनायी, उसे आगे कैसे खुला छोड़ा जा सकता है।
खास बात यह भी है कि नौकरशाह नयी गाइडलाइन्स बनाते वक्त न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिेएशन और ब्रॉडकास्ट एडिटर्स को लेकर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं। सूचना मंत्रालय के पुराने खांटी नौकरशाहों का मानना है कि बिना साख वाले न्यूज चैनल या खबरों से इतर कुछ भी दिखाने वाले न्यूज चैनलों के संपादक भी जब न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिेएशन और ब्रॉडकास्ट एडिटर्स से जुड़े हैं और बाकायदा पद पाये हुये हैं तो फिर इनका कितना भी आत्ममंथन कैसे न्यूज चैनलो को खबरों में बांध सकता है। और फिर जो न्यूज चैनल बिना खबर के खबर दिखाने का लाइसेंस लेकर धंधे कर मुनाफा बनाते है तो उन्हें मीडिया का हिस्सा भी कैसे माना जाये और उन पर नकेल कसने का मतलब सेंसर कैसे हो सकता है। लेकिन खास बात यह भी है कि सरकार के भीतर नौकरशाहों के सवालो से इतर अन्ना हजारे आंदोलन के दौरान मीडिया कवरेज ने परेशानी पैदा की है और नयी आचार संहिता की दिशा कैसे खबर दिखाने वाले न्यूज चैनलों को पकड़ में लाये, इस पर भी चितंन हो रहा है। और पहली बार सरकार की नयी गाइडलाइन्स में इमरजेन्सी की महक इसलिये आ रही है क्योंकि न्यूज चैनलो के जरीये सरकार को अस्थिर किया जा रहा है, यह शब्द जोड़े गये हैं। गाइडलाइन्स में सरकार को अस्थिर करने को सही ठहराने के लिये खबरों के विश्लेषण और सरकार के कामकाज को गलत ठहराने पर जोर दिया जा रहा है। मसलन चुनी हुई सरकार की नीतियों को जनविरोधी कैसे कहा जा सकता है। सड़क के आंदोलन को संसदीय राजनीति का विकल्प बताने को अराजक क्यों नहीं माना जा सकता। तैयारी इस बात को लेकर है कि गाइडलाइन्स की कॉपी यूपी चुनाव से पहले तैयार कर ली जाये, जिससे पहला परीक्षण भी यूपी चुनाव में ही हो जाये। और गाइडलान्स की कॉपी हर चैनल को भेज कर लाइसेंस रद्द करने की तलवार लटका दी जाये क्योंकि गाइडलाइन्स को परिभाषित तो नौकरशाहो की टीम करेगी जो यह समझ चुकी है कि न्यूज चैनलों के भीतर के अंतर्विरोध में सेंध लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है क्योंकि न्यूज चैनलो में चंद चेहरों की ही साख है, जिसे आम आदमी सुनता-देखता है। बाकी तो हंसी-ठहाका के प्रतीक हैं।
sir.......
ReplyDeleteअपने अभी तक मायावती के मूर्ति प्रेम के बारे मे कुछ नही लिखा
उसके बारे मे आपके विचार क्या है???
फिर पुरा देश अन्न बन जाएगा। कांग्रेस की सरकार ने अन्ना के आंदोलन में युवाओं की भागीदारी देखी है और वह ऐसा करने से हजार बार सोचेगी।
ReplyDeleteprasun ji ......
ReplyDeletenamskar
sarka ka mansik sntulan kho gaya hai koyki unko apne samne apna samrajya khote dikhai de ra hai phir bhi wo puri kosis karenge ye na ho lekin durbhagay se kuch logo ko pal ke rakh sirf bhokne ke liye
नकेल कसना ठीक कदम है लेकिन अपनी आलोचना के विरुद्ध सारे नियम बना लेना ठीक नहीं…मीडिया पर नियंत्रण तो एकदम आवश्यक है…लेकिन इसमें सरकार अपनी आलोचना वाले कार्यक्रम दिखाने का भी हौसला दिखाए।
ReplyDeleteमीडिया पर अंकुश लगाने का काम केंद्र की कांग्रेस सरकार द्वारा पुनः प्रारंभ करने के लिए प्रक्रिया शुरू किया जा रहा है ,जो हमें इमरजेंसी के दिनों के प्रिंट मीडिया के सेंसर शिप की याद दिलाता है ,जो इस भ्रष्ट सरकार के पराभव का कारण बनेगा.
ReplyDeleteविष्णु तिवारी.
Parsun bhai prin Media mein chapne ke liye to aap maramari karte hain aur apni peera ko akhbaroin mein bhi byan kjarte hain lekin kis news channel ne abtak mjaithia wage board ki report sarkar dus mahine se dabaye baithi hai is per kabhi kuch dekhane ki zarurat nahi samjhi. yeh doglapan kyon. print media aapki peera to chaap de lekin aap print media ke bare mein koyee samachar nahi chalayeinb ....is per bhi kabhi vichar karein..aakhir print se hi nikal ker aap electronic media mein gaye hain.
ReplyDeleteखबर तो बुरी है, लेकिन इस मामले में मीडिया की स्थिति बैकफुट वाली ही है। जिन चैनलों को अखबार को विकल्प कहा जा रहा था उनके आने के बाद अखबारों का महत्व लगातार बढ़ा ही है। जिस तरह हमने अपने पुरखों के बाद आजादी का उचित महत्व समझने में हम नाकाम रहे उसी तरह प्रेस की स्वतंत्रता समझने में इलेक्ट्रोनिक मीडिया नाकाम रहा है।
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