Monday, December 24, 2012
बेमकसद देश के सामने मकसद खोजता राजपथ पर युवा
कड़क ठंड, पानी की धार, आंसू गैस ,बरसती लाठियां और लहुलूहान युवा। यह नजारा राजपथ का है। वही राजपथ जिस पर 26 जनवरी को गणतंत्र देश की गाथा दिखाने की तैयारी शुरु हो चुकी थी। तिरंगा लहराने के लिये राजपथ की लाल बजरी के दोनों किनारे लकड़ी गाढ़ी जा चुकी थी। राजपथ के दोनो तरफ गणतंत्र दिवस पर गर्व के साथ देश के गुणगाण करने वाली झांकियों को देखने के लिये लोहे और लकड़ियों की सीटों को लाया जा चुका था। लेकिन युवाओं के हाथो में लहराते प्लेकार्ड और जुबान से निकलते नारो ने जैसे जैसे हक और न्याय के सवालों को खड़ा करना शुरु किया वैसे वैसे सत्ता ने लोकतंत्र की परिभाषा बदलनी शुरु की। जैसे जैसे मकसद खोजता युवा बेमकसद व्यवस्था को कठघरे में खड़ाकर हमलावर होने लगा वैसे वैसे पुलिस-प्रशासन और राजनेता खुद को अपाहिज महसूस करने लगे। पानी की धार ने युवाओ को भिगोया तो तिरंगा लहराने वाली लकड़ियों को आग के हवाले कर युवाओ ने खुद में गर्मी पैदा की। आंसू गैस और लाठियों ने युवाओं को घायल किया तो नारों और गीतों के आसरे अपने जख्मों को मकसद मान कर और कहीं ज्यादा तल्खी और तेजी से खुद को आगे के संघर्ष के लिये तैयार करने में हर युवा लगा।
हर नये चेहरे हर चेहरे को अपने लगने लगे। गाजियाबाद के लोनी की 21 साल की मीना से लेकर गुड़गांव के हुड्डा चौक का 22 वर्षीय राजीव और फरीदाबाद की सलोनी से लेकर दिल्ली के डिफेन्स कॉलोनी के राघव पहली बार मिले लेकिन सभी के सुर एक। हक के सवाल एक। और न्याय की गुहार एक। सभी के मकसद भी एक। तो फिर रास्ता राजपथ का हो या जनपथ का। एक तरफ इंडिया गेट हो या 180 डिग्री में दूसरी तरफ राष्ट्रपति भवन। आमने सामने देश को चलाने वाले नार्थ-साउथ ब्लाक की कतार हो या संसद पर लहराता तिरंगा। हर युवा को यह सभी देश के होकर भी अपने नहीं लग रहे। कम्यूटर साइंस की छात्रा मोहिनी इन लाल इमारतो में अगर दफन होते अपने भविष्य को देख रही है तो जेएनयू के राकेश को लग रहा है कि सभी इमारतें उसे चिढ़ा रही हैं। हर युवा मन में ढेरों सवाल हैं। कोई युवा मीडिया के कैमरों के सामने नपी-तुली भाषा में अपने सवालों को रखने के लिये प्रशिक्षित नहीं है तो उसके आक्रोश की भाषा भी अलग है। कहीं नारो में तो कहीं गुस्से में हक की मांग, न्याय की गुहार यह समझ नहीं पा रही है कि ऐसा उन्होंने क्या मांग लिया जो सरकार की बात की जगह बेबात का पुलिसिया रंग उन्हें अपने रंग में रंगने की बार बार तैयारी करता है। बीते 48 घंटो में 18 बार लाठियां चली। सौ से ज्यादा आंसू गैस के गोले छूटे। तीन सौ पुलिसकर्मियों ने हजारों युवाओ को बसों में उठा-उठा कर भरा। छह गाडियों ने कड़क ठंड में 21 बार पानी की धार मारी। लेकिन हर बार कुछ नये चेहरे हक के सवालों को नये अंदाज में लेकर राजपथ पर कदम-ताल करने के लिये जुड़ते चले गये। मकसद पाने की तालाश में घायल होने के लिये को तैयार दिखे। राजपथ के दोनो किनारे डीयू, जामिया और जेएनयू ही नहीं बल्कि यूपी और हरियाणा के अलग अलग कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों के जमगठ लगातार नारे और हंगामे के बीच जिन सवालों का जवाब पाने के लिये बैचेन दिखे, वह देश के बेमकसद भविष्य को आइना
दिखाने के लिये काफी हैं। दिल्ली की टी-3 हवाई अड्डे के कुल खर्चे के महज दस फीसदी से समूची दिल्ली कैमरे के जरीये सुरक्षा घेरे में लायी जा सकती है फिर यह संभव क्यों नहीं है। चाणक्यपुरी और लुटियन्स की दिल्ली की सुरक्षा के बराबर बाकि समूची दिल्ली जो वीवीआईपी दिल्ली से एक हजार गुना बड़ी है, उसकी सुरक्षा एक बराबर कैसे हो सकती है।
दिल्ली में हर दिन 20 हजार गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन होता है और इस खर्चे के आधे में दिल्ली पुलिस हर तरह से सुरक्षा दायरा मजबूत कर सकती है। फिर यह क्यों नहीं हो पाता। जो बारह हजार पुलिस कर्मी वीवीआईपी सुरक्षा में लगे हैं, उनकी तादाद से महज 15 फीसदी ज्यादा सुरक्षाकर्मी समूची दिल्ली की सुरक्षा कैसे कर सकती है। जबकि वीवीआईपी सिर्फ 575 के करीब हैं और आम लोग सवा करोड़। दिल्ली पुलिस
के सामानांतर निजी सुरक्षा का खर्च सिर्फ दिल्ली में तीन सौ गुना ज्यादा है। जबकि निजी सुरक्षा के घरे में दिल्ली के सिर्फ 2 लाख लोग ही आते हैं । यह ऐसे सवाल हैं, जो बलात्कार के सवाल को कहीं ज्यादा तल्खी के साथ मौजूदा व्यवस्था के बेमकसद होने से जोड़ते है और इन सवालों के आसरे युवाओं की टोली अपने अपने घेरे में यह सवाल करने से नहीं चूकती कि आईएएस और आईपीएस होने के बाद क्या राजपथ पर मौजूद पुलिसकर्मियों और नार्थ-साउथ ब्लॉक में बैठे नौकरशाहों की तरह काम करना पड़ेगा। तो क्या हक और न्याय के सवाल राजनेताओं के गुलाम है। या सत्ता की सहुलियत ही लोकतंत्र है। बेचैन करने वाले यह सवाल उन्हीं युवाओं के हैं, जिनके हाथो में हक मांगते प्ले कार्ड हैं। नारो की गूंज के बीच खुद को घायल करने की तैयारी है। और भविष्य में किसी प्रोफेशनल की तर्ज पर काम करने की लगन के साथ साथ यूपीएससी की परीक्षा पास करने का जुनून भी है। लेकिन आईपीएस या आईएएस होने के बाद भी अगर राजपथ खड़े होकर सत्ता के गाल बजाना है तो फिर लाल इमारतों में बंद व्यवस्था को बदलने की दिशा में कदम क्यों ना बढ़ाये जायें। नवीन जेएनयू के एसआईएस का छात्र है। पांव घायल है। आंसू गैस का गोला पांव के पास फटा। लंगडाकर चल रहा है । लेकिन लौटने को तैयार नहीं है। लौट कर कहां जाये। यूपीएससी की पिछली परीक्षा में कैंपस के 32 लड़के पास हुये। 16 छात्र आईएएस तो 11 छात्र आईपीएस होंगे। वह नौकरी शुरु करेंगे तो उन्हें भी देश के किसी ना किसी हिस्से में ऐसी ही किसी राजपथ पर खड़े होकर सत्ताधारियों की व्यवस्था को चलाना होगा। मैं भी कल आईएएस हो गया तो मुझे भी यही करना होगा। तो क्यो ना इस बार सरकार की नीयत को परख लिया
जाये। शकील को तो सरकार की नीयत में ही खोट नजर आता है। युवाओं की उर्जा को खपाने का इससे बेहतर तरीका सरकार के पास है भी नहीं। जिन्दगी गुजारने या बिताने के लिये युवा के पास है ही क्या। तो ऐसे ही आंदोलनों के जरीये सरकार अपने होने और युवाओं के होने को आजमाती है। नहीं तो देश में कौन होगा जो बलात्कारी को तुरंत सजा दिलाने में देरी करे। कहीं ज्यादा गुस्से में डीयू की सुष्मिता है। सवाल सुरक्षा का नहीं,सवाल सुरक्षा को भी सत्ता के हंटर की गुलामी करके चलनी पड़ रही है। साथ में सत्ता ना हो तो कोई सुनता ही नहीं। कहीं मंत्री तो कहीं पैसा। यह ना हो तो कोई सुनता ही नहीं। अगर यही सत्ता है और सुरक्षा या कानून सिर्फ सत्ता के लिये है तो हम राजपथ का नाम बदल कर ही लौटेंगे। लेकिन राजपथ पर महीने भर बाद ही देश का गणतंत्र होने के सपने को जीना है तो पुलिस फिर उसी लाठी,आंसू गैस और पानी की धार के तले सफाई में लगी है। उसे राजपथ साफ चाहिये।
जब एन डी तिवारी, अमरमणि त्रिपाठी सरीखे चरित्रवान लोगों की खिदमत में देश की सुरक्षा यंत्रणा लगी हो, तो आम जनता की सुरक्षा कौन करे? जब कोयले से लेकर कफ़न तक से पैसा सींच कर, कोई भी राजनितिक जुगाड़ करके सरकार हथियाने की कवायत होती रहे तो आम जनता के पेट का ख़याल कौन करे? सत्ता में आने पर दसगुना संपत्ति जुटा कर जनता के लिए रामराज्य लाने की दिखावट कर बुनियादी मुद्दे छोड़ देश को बेमकसद कर अपने आगे की पीढ़ी की रोटी बनाने का मकसद साधना ही जरुरी हो जाता है।
ReplyDeleteSir, I wait for you everyday at 10:00 pm, on Zee News. Please do come soon. Pahle aapko Aaj Tak me dekhte the plhir Zee News me par ab ......Hope you are fine and in the best of your health.
ReplyDeleteShiksha.
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ReplyDelete@SHIKSHA - As per my knowledge, Prasoon sir has resigned from Zee news due to Zee-Jindal clash.
ReplyDeleteMedia scholars said, His comparison of editors arrest with conditions like emergency damaged his reputation. Coz Many times he has criticized the media for being in relation with corporates. Even till he hasn't cleared his views on the matter. We are expecting him to join the TV News soon. He is different from other anchors / journos.
आप भीड तंत्र पर रोटी सेंकते हूऐ अपनी काग्रेस विरोधी मुहिम चलाऐ रखिऐ पर दिल्ली पुलिस के शहीद जवान सुभाष तोमर प्रदर्शनकारियों द्वारा घायल किये गए थे जिनका आज निधन हो गया उनके परिवार का दुख ......
ReplyDeleteSARKAR SE KISI NE NAHI KAHA KI "ALLAUDDIN" YA "BALBAN" KE TARJ PAR FAISLE LE PAR YE BHI APECHA NAHI HAI KI LOKTANTRA KO AISE PESH KIYA JAY JAHA KISI KA KUCH BHI TABAH HO JAAY AUR SATTA SYSTEM, POLICY, PROCESS KE NAM PAR NIYAM KANOON PADHAYE. KOI STAND LENA TO DOOR, SANSAD KA VISHESH SATR BHI GAWARAA NAHI..KAHE KI SAWEDANSHILTA ! KABHI TO NIYAM DAYRO SE HATKAR SATTA KO JANTA KI NABJ PAKDANI CHAIYE. YADI AISI GHATNA BHI SATTA KI MADHOSHI NAHI TODTI TO SAMJH LIJIYE KI JANTA KO MASHAAL HATH ME LENA HI HOGA..KYOKI SARKAR JIS NYAYA PRAKRIYA KI BAAT KAR RAHI HAI WAHA AIK POINT ADD KARNA JAROORI HAI KI AB NYAY NAHI HOTA KYOKI COURT ME CASES SIRF DISPOSE OF KIYE JAATE HAI..
ReplyDeleteSOACH KI SOACH-We still waiting to know your stand on this, Sirji..! Hope you wilL come back on screen soon with more energy and honesty.
ReplyDeleteसत्ताधारी का कथन है 'दोहराव न हो'
ReplyDeleteप्रश्न है किसका?? बलात्कार की घटना का
या घटना के विरोध का.....??
सरजी आप देख ही रहै हे की कीतने लोग आपसे गुजारीश कर रहे है की आप जल्द ही टीव्ही पर आहे. हमे आप जेसेही लोगोकी जरूरत हे.. मेने आपसे बात भी की थी.. सर प्लीस कम soon...
ReplyDeleteहममे से ज्यादा तर लोग सिर्फ फेसबुक पर ही अपना कमेंट दे रहे है. अब जरूरत रास्ते पर उतरकर सरकार को सबक सिखाने की है. मे उन युवाओ की कद्र और उन्हे सलाम करता हू जो यग बात लगाकर रख रहे हे.. लेकीन उन युवओ को बताना चाहता हू की फेसबूक पर चर्चा करने से बेहतर कुच ऐसा करो जिससे सरकार या प्रशासन इस गहरी निंद से जाग जाए. सरजी आपका लेख पडकर हमेश इस देश का असली चेहरा सामने आ जाता है..
हमारी भी यही ख्वाहिश हैं कि ऐसे समय हम सब को और इस देश को आपकी जरुरत है. आईये हम सब मिल कर इकठ्ठे होकर एक मजबूत जनतंत्र कि तरफ बढते है. ऐसे नाज़ुक मौके पर आप का प्रचार माध्यम से दूर रहना देश कि जनता का बहोत बड़ा नुक्सान है. और जब से आप नही है 'बड़ी खबर' में ना बड़ापन है ना दम है. मैंने उसे देखना भी बंद कर दिया है.
ReplyDeleteSir aap jindal wale mudde par apna rukh saf kare
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