अगर नरेन्द्र मोदी ने कुत्ते के बच्चे की जगह चींटी या हाथी का जिक्र किया होता या फिर जरा सोच कर देखिये की मोदी ने कोई भी उदाहरण गुजरात के 2002 के दंगों या नरसंहार को लेकर दिया होता तो क्या देश में बवाल नहीं मचता। यकीनन मोदी कुछ भी कहते तो हंगामा मचना ही था। क्योंकि मोदी एक बात तो तहे दिल में तय कर चुके है कि गुजरात में 11 बरस पहले जो कुछ हुआ या किया गया उसके लिये वह माफी नहीं मागेंगे। अब जरा इसके उलट सोचिये। बाबरी मस्जिद को लेकर अफसोस और माफी जता चुके लालकृष्णा आडवाणी अगर कोई उदाहरण अयोध्या कांड पर देते तो उस पर बवाल हो सकता है। यकीनन नहीं। इसी तरह अगर वाघेला के दौर में गुजरात कांड होता और वाघेला ही नहीं कोई भी सीएम जो उस वक्त होत अगर वह माफी मांग चुका होता तो पहली बात की उससे 11 बरस बाद सवाल नहीं पूछे जाते। अगर पूछे भी जाते तो कोई दिलचस्पी उसे जानने की देश में नहीं होती। अब सवाल है कि जिस मोदी से बार बार 2002 के गुजरात कांड पर सवाल होता है उसे पूछना वाला कोई भी पत्रकार हो अगर नरेन्द्र मोदी जवाब देते हैं। तो वह खबर बनेगी ही। क्योंकि दोनों जानते हैं कि सवाल और जवाब दोनों पर हंगामा होगा ही। अब कोई भी यह समझ सकता है कि नरेन्द्र मोदी 2002 को लेकर कब क्या कहते है और उसकी प्रतिक्रिया समाज-देश में कैसी हो सकती है इससे वह पूरी तरह वाकिफ भी होते हैं। तो रायटर को दिये इंटरव्यूह को पढने या देखने-सुनने से पहले जरा यह समझ लें कि आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी उससे मोदी पहले से वाकिफ है।
बावजूद इसके मोदी अगर गुजरात दंगों को लेकर माफी तो दूर उदाहरणों से अपने दुख को राषट्रवाद से जोड़ते है तो कई सवाल एक साथ खड़े हो सकते हैं। मसलन नरेन्द्र मोदी जिस भरोसे, जिस दम , जिस मासूमियत से खुद को सही ठहराते हैं या मनमोहन सरकार या सोनिया गांधी पर निशाना साधते है, उसके संकेत यही हैं कि मोदी खुद को आर-पार की लड़ाई के लिये तैयार कर रहे हैं। लेकिन यह आर-पार है क्या। और मोदी के लिये लगातार किसी भी विपक्षी नेता से कही ज्यादा तीखी चोट करना क्यों जरुरी हो गया है। नरेन्द्र मोदी के वक्तव्यों को अगर डी-कोड करें तो सबसे बडा सच सामने यही आयेगा कि मौजूदा दौर में जो राजनीति हर राजनीतिक दल या राजनेता कर रहे है उस रास्ते मोदी नहीं चल रहे। क्योंकि बीजेपी के नजरीये से अगर राजनीति होती तो भ्रष्ट्राचार, महंगाई, कालाधन, एफडीआई सरीखे मुद्दे उसी तर्ज पर उठते जिससे लगातर यह मैसेज जाता
कि मनमोहन सरकार नाकाबिल है। कांग्रेस सत्ता के मद में बेफिक्र है। और बीते दिनो संसद से सड़क तक जो माहैल बीजेपी ने कांग्रेस या सरकार के मुद्दों को लेकर ही जिस तरह संघर्ष किया व राजनीति बीजेपी को लगातार मजबूत विपक्ष बना रही थी और बता रही थी। जाहिर है दिल्ली के बीजेपी के धुरंधर इस दौर में सबसे खुश थे कि राजनीतिक चुनावी वक्त में बीजेपी की अगुवाई में एनडीए विकल्प बन सकती है। लेकिन झटके में नरेन्द्र मोदी ने बीजेपी के उस राजनीतिक विकल्प के मिथ को तोड़ दिया।
तो क्या नरेन्द्र मोदी राजनीति नहीं कुछ और कर रहे हैं। क्योंकि मोदी इस हकीकत को समझ चुके हैं कि मौजूदा राजनीतिक तौर-तरीको में वह फिट नहीं हैं या फिर उन्हें फिट होने नहीं दिया जायेगा। या फिर मोदी यह मान कर चल रहे हैं कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था और राजनेताओं के तौर तरीकों से देश के आम लोगों में आक्रोश है। और राजनीति के इसी रास्ते पर चलने का मतलब है आम लोगों के दिमाग में दूसरे राजनेताओं की तरह ही छवि बना देना। अगर ध्यान दें तो नरेन्द्र मोदी फिलहाल अपनी तरह के अकेले हैं, जो गुस्से में मनमोहन सरकार को निशाने पर लेता है। जो धर्मनिरपेक्षता की नयी परिभाषा हिन्दु राष्ट्रवाद के आसरे
गढ़ना चाहता है। जो संविधान के उन तत्वो को भी खारिज करने से नहीं कतराता जिसे संविधान व्याख्यायित तो करता है लेकिन राजनीतिक सत्ता संविधान के उन अनुच्छेदो को भी अपनी सियासत का हथियार बनाने से नहीं चुकती जिसे लागू आजादी के पहले पन्द्रह बरस में ही कर देना चाहिये था। संविधान तो भाषा से लेकर हाशिये पर पडी जातियों को भी मुख्यधारा में लाने के लिये राजनीतिक सत्ता को भी एक वक्त निर्धारित करता है लेकिन राजनीतिक सत्ता उसे वोट बैंक में बदल कर सियासत की नयी इबारत लिखने से नहीं चुकती। यह सवाल मंडल से लेकर कमंडल और जातीय आरक्षण के बाद धर्म के नाम पर आरक्षण के जरीये समाज को बांटने से भी उभरा। साथ ही संविधान से मिले हक को सियासत की मलाई तले छुपा कर अपने अपने चुनावी घोषणापत्र में डालकर आम लोगों के हक की बात राजनेताओं ने ही कुछ इस कदर की बार बार हर किसी को लगा की वह ठगा जा रहा है। लेकिन ठगने की परिस्थितियां भी जिन्दगी जीने की स्थितियों से इस तरह जुड़ी कि हर आम नागरिक को यही लगने लगा कि सत्ता अगर उसके वोट से बनती हुई दिखे तो उसका भला चाहे ना हो लेकिन कम से कम बुरा तो नहीं होगा।
बिहार में यादवों के साथ मुस्लिम आ गये तो दंगे रुक गये। यूपी में मुलायम की सत्ता में मुस्लिम समाज मौलाना मुलायम को खोजने लगा और अपने हक के लिये यादवों से भिडने को तैयार हो गया। तो यादव अपने जन्मसिद्द अधिकार पर आक्षेप मानने लगे। क्योकि समाजवादी की सत्ता का मतलब तो यादवों का कोतवाल हो जाना तय है। इसलिये चालीस जिलों में यादव-मुस्लिम का टकराव दंगों की शक्ल में उभरा। ऐसे मौके पर अगर सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों को परखे जो राजनीति के अपराधीकरण और जाति सूचक राजनीति को रोकता है तो झटके में फिर आम नागरिक मान लेगा कि लोकतंत्र है और जो काम संसद को करना था उसे कम से कम सुप्रीम कोर्ट तो कर रही है । यानी राजनीतिक व्यवस्था और राजनीतक सत्ता को लेकर जो आक्रोश आम लोगों में है उसे लोकतंत्र का चौपाया थाम सकता है । यानी सुधार की सोच । लेकिन मौजूदा विसगंति बरकरार। ठीक उसी तरह जैसे कभी टी एन शेषन के आस जगायी।
दरअसल नरेन्द्र मोदी इसी राजनीतिक व्यवस्था के उलट चल निकलना चाहते हैं। वह राजनीतिक सोच में बदलाव नहीं बल्कि राजनीतिक सोच को ही बदलना चाहते हैं । इसलिये सत्ता पाने के 2014 के मिशन को उन्होंने औजार बनाया है। क्योंकि इससे राजनीतिक व्यवस्था पर सीधी चोट भी की जा सकती है और राजनीतिक व्यवस्था के दायरे में खडे होकर मौजूदा राजनीति को ही खारिज भी किया जा सकता है। इसलिये मोदी राजनीति के वर्तमान तौर-तरीको की जड़ पर चोट भी कर रहे हैं और जिस राजनीतिक व्यवस्था ने अपनी सत्ता साधना के लिये नायाब सामाजिक ढांचा बनाया है उसे उलटना भी चाह रहे है । ध्यान दें तो नरेन्दर
मोदी तीन मुद्दों पर कांग्रेस या मनमोहन सरकार को घेर रहे हैं। पहला धर्मनिरपेक्षता दूसरा अर्थव्यवयवस्था और तीसरा राष्ट्रीयता। कांग्रेसी धर्मनिरपेक्षता को नरेन्द्र मोदी हिन्दु राष्ट्रवाद से खारिज करना चाहते हैं । मनमोहन की अर्थव्यवस्था को वह कारपोरेट के नजरिये से ही खारिज करना चाहते हैं। तो राष्ट्रवाद का सवाल कांग्रेस की सत्ता के दौर में लगातार हुये भारत के अवमूल्यन से जोड़ रहे हैं। आजादी के बाद से नेहरु की सत्ता
और उसके बाद काग्रेसी सत्ता ने कैसे भारत की जमीन , भारत के उघोग-धंधो को चौपट किया और जो चीन 1950 में भारत से हर क्षेत्र में पीछे था, वह 1975 में ही कई गुना आगे निकल गया। चाहे खेती की बात हो या उघोगों की । असल में मोदी मौजूदा राजनीतिक जोड-तोड की सियासी राजनीति में फंसना ही नहीं चाहते हैं। उन्हें लग चुका है कि इस दायरे में फंसने का मतलब है बाकियों की कतार में से एक होकर रह जाना । इसलिये मोदी जो बिसात बिछा रहे है उससे संघ परिवार भी खुश है। क्योंकि संघ के सवाल भी मोदी ही राजनीतिक व्यवस्था के दायरे में राजनीतिक तौर पर उठाते हुये संघ को भी सक्रिय कर रहे हैं। कांग्रेस के साफ्ट हिन्दुत्व ने कैसे संघ को आजादी के बाद काउंटर किया और एक वक्त बाद कैसे जेपी सरीखे काग्रेसी भी समझ गये कांग्रेस देश का भट्टा बैठा रही है तो वह 1975 में जेपी यह कहने से नहीं कतराये कि अगर आरएसएस सांप्रदायिक है तो मै भी सांप्रदायिक हूं। असल में मोदी काग्रेस को खारिज करने के लिये नेहरु के दौर से टकराने को तैयार हो रहे है। श्यामाप्रसाद मुखर्जी हिन्दु महासभा से जुडे थे ना कि आरएसएस से। नाथूराम गोडसे भी हिन्दु महासभा से जुडा था ना कि संघ से। लेकिन महात्मा गांधी की हत्या के बाद प्रतिबंध हिन्दु महासभा पर नहीं आरएसएस पर लगा। जबकि हिन्दु महासभा सावरकर की थ्योरी को लेकर कट्टर हिन्दुत्व राष्ट्रवाद को परोस रही थी । और आरएसएस को बनाने वाले हेडगेवार एक वक्त कांग्रेस के हिस्से थे लेकिन सत्ता के लिये जिस तरह कांग्रेस मुस्लिम लीग के साथ खड़ी हो जाती थी उससे आहत होकर हेडगेवार ने आरएसएस बनायी। जो कांग्रेस को बर्दाश्त नहीं थी । जबकि काग्रेस एक वक्त मुस्लिम लीग के साथ तो एक वक्त मुस्लिम लीग के खिलाफ कट्टरता के साथ खडी हिन्दु महासभा के साथ सत्ता के लिये खड़ी हो गई। यानी काग्रेस का राष्ट्रवाद सत्ता पाने से आगे निकला नहीं।
जाहिर है नरेन्द्र मोदी इसी मर्म को छुना चाहते हैं। इसलिये नहीं कि संघ में उनका प्रभाव बढे। बल्कि मोदी मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को उलटना चाहते हैं और पहली बार सत्ता की दौड में भागते राजनेताओं को इसका एहसास कराना चाहते है कि सत्ता जोड-तोड या बंटे हुये वोटरों के मन के बीच आंकड़ों को जुटाना ठीक नहीं है। जाहिर है नरेन्द्र मोदी की यह थ्योरी बीजेपी के कद्दावर नेताओ को भी रास नहीं आयेगी। उन्हें लगेगा कि सत्ता पाने का गोल्डन चांस मोदी के आने से बीजेपी गंवा रही है। शायद यह ठीक भी है । और यह समझ गलत भी हो सकती है। क्योंकि नरेन्द्र मोदी जिस रास्ते चल निकले है वह राजनीति नहीं कुछ और है। और इस कुछ और में अगर राजनाथ सिंह या आडवाणी सरीखे नेता यह समझ रहे है कि आखिर में मोदी के नाम पर पीएम बनने की मोहर तो कोई लगायेगा नहीं तो वह जरा मोदी के हर भाषण के बाद बनते माहौल को परखें। असल में मोदी अपने अलावे 2014 में किसी भी बीजेपी नेता को पीएम की कुर्सी तक पहुंचने नहीं देंगे। क्योंकि मोदी मौजबदा राजनीतिक तौर तरीकों के खिलाफ सिर्फ निकले ही नहीं है बल्कि वह सत्ता से इतर अपने साथ आम वोटरों के मन को जोड़ना चाह रहे हैं। और मन को जोड़ने के तरीके राजनीति नहीं कुछ और कहलाते हैं। इस कुछ और में बीजेपी के तिकड़मी दिल्ली में बैठे नेता हो या सरकार में गणित बैठाते मंत्री की मोदी अगर इशरत जहां इनकाउंटर मामले में गिरफ्तार कर लिये जाये तो सब ठीक हो जायेगा। उनके लिये नरेन्द्र मोदी एक मुशिकल सबब तो अभी स बन चुके ह । इसलिय अब मोदी से यह पूछने का वक्त आ गया है कि तुम्हारी पालिटिक्स क्या है पार्टनर।
bajpei ji apka lekh padh ke Acha laga ......kintu is mudde se itar aaj man Bahot dukhi hua .apko shayad jankari ho ki aaj Allahabad ki sadko per aarakshan ki maar jhel rahe yuwao ka hujoom umda tha .apko shayad iska karan bhi Pata ho ..subah 9 baje se hi pratiyogi chatra Uppsc ke gate ke smne jama ho gae the aur sham 6 baje tak aandolan karte rahe .ye aandolan Kuch samay ke lie ugra bhi ho gaya tha ..kintu antatah shantipurn hi raha ....kintu sabse dukhad dukhad tathya ye hai ki us dauran midea ki bbhumika. badi hi nindaneeya rahi .jo lokpriya news chainals hai wo to dikhe hi nahi .shayad sarkar ki oor se inhe Kuch ni rdesh mila ho ..ha do char news chainals dikhe kintu Unhone is khabar ko Bahot mahatwa Nahi dia ..kintu ham Sabhi chatra apki oor asha bhari dristhi se dekha rahe hai ki aap is mudde ko rashtriya manch pradan karne ka anugrah karege ..waise ab mamla court me hai kintu isse rashtriya bahas ka bishay banaege to badi kripa hogi. Subh ratri .........
ReplyDeletebajpei ji apka lekh padh ke Acha laga ......kintu is mudde se itar aaj man Bahot dukhi hua .apko shayad jankari ho ki aaj Allahabad ki sadko per aarakshan ki maar jhel rahe yuwao ka hujoom umda tha .apko shayad iska karan bhi Pata ho ..subah 9 baje se hi pratiyogi chatra Uppsc ke gate ke smne jama ho gae the aur sham 6 baje tak aandolan karte rahe .ye aandolan Kuch samay ke lie ugra bhi ho gaya tha ..kintu antatah shantipurn hi raha ....kintu sabse dukhad dukhad tathya ye hai ki us dauran midea ki bbhumika. badi hi nindaneeya rahi .jo lokpriya news chainals hai wo to dikhe hi nahi .shayad sarkar ki oor se inhe Kuch ni rdesh mila ho ..ha do char news chainals dikhe kintu Unhone is khabar ko Bahot mahatwa Nahi dia ..kintu ham Sabhi chatra apki oor asha bhari dristhi se dekha rahe hai ki aap is mudde ko rashtriya manch pradan karne ka anugrah karege ..waise ab mamla court me hai kintu isse rashtriya bahas ka bishay banaege to badi kripa hogi. Subh ratri .........
ReplyDeleteमोदी को जितना बताया या दिखाया जा रहा हैं वो केवल मीडियाई स्वार्थ के अलावा कुछ नही हैं मोदी में न इतनी समझ हैं न इतनी काबलियत हैं और न ही इतना जनाधार, ये तमाम बाते केवल मीडिया के दिमाग की खुरापात ही हैं जो इतना महत्व दे रहे हैं , देश के सामने मोदी से कहीं ज्यादा और भी विषय है, जिसके प्रति भी मीडिया का दायित्व हैं, और जिनके लिऐ शायद मीडिया को आवश्यक इधन मिल नही रहा है ........ हम कसीदे तो इस तरह पढ रहे हैं जैसे चमत्कारी बाबा आ ही रहा हैं जो गुजरात को स्वर्ग बना कर देश को बना देगें ......हवा बनाऐ रखिऐ इधर मोदी पी एम और इस कतार के तमाम पत्रकार चैनलो के मालिक बन जाऐगें ........
ReplyDeleteआपके विश्लेषण का कोई जबाब नहीं.
ReplyDeleteBajpai g mai buss karta hu aur mp maharasta rajsthan aur gujrat mai mera agricultural se juda bussiness hai baki jo vayvatha modi g ki hai uska koi mukabla nahi modi g k kam kafi acche hai uske bare me sochna chahiye keval sampradayik mudde par nahi
ReplyDeleteBajpai g mai buss karta hu aur mp maharasta rajsthan aur gujrat mai mera agricultural se juda bussiness hai baki jo vayvatha modi g ki hai uska koi mukabla nahi modi g k kam kafi acche hai uske bare me sochna chahiye keval sampradayik mudde par nahi
ReplyDeleteBajpai g mai buss karta hu aur mp maharasta rajsthan aur gujrat mai mera agricultural se juda bussiness hai baki jo vayvatha modi g ki hai uska koi mukabla nahi modi g k kam kafi acche hai uske bare me sochna chahiye keval sampradayik mudde par nahi
ReplyDeleteसर प्रणाम...आपके ब्लॉग पढ़ता हूं. बहुत कुछ सीखने को मिलता है. एक गुजारिश थी कि अपने ब्लॉग पर लिखे अब तक के आर्टिकल्स में आपने समाजिक, शैक्षणिक तौर पर मिले आरक्षण के मुद्दे पर नहीं लिखा है. यूयूपीएससी पर ताजा घमासान से बात उठाकर कुल मिलाकर आरक्षण पर विभिन्न पार्टियों का नजरिया...सामाजिक, शैक्षणिक आरक्षण से अब तक के फायदे-नुकसान...क्या विकल्प बने कि देश बने. इस मुद्दे पर अपना आजाद नजरिया रखते हुए कृपया एक बेहतरीन जानकारियों के साथ आर्टिकल लिखें. बहुत मन कर रहा है पढ़ने का. मैं कई बार आपके कुल आर्टिकल्स को टटोल चुका लेकिन ये मुद्दा पता नहीं कैसे आपसे बचा हुआ है.
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