खान साहेब ने 6 मई को लखनऊ से बनारस के लिये हवाई जहाज पकडा और 5 दिनो तक बनारस की गलियो से लेकर गांव तक की घूल फांकते रहे कि मोदी चुनाव ना जीते। राजकोट से राजू भाई दिल्ली होकर 7 मई को बनारस पहुंचे और बीजेपी के हर कार्यकर्ता से लेकर बनारस की गलियो में अलक जगाते रहे कि मोजी के जीत के मायने कितने अलग है। खान साहेब के पैसंठ हजार रुपये खर्च हो गये। राजू भाई के भी पचास हजार रुपये फूंक गये। दोनो ने रुपये अपनी जेब से लुटाये। किसी पार्टी ने या किसी उम्मीदवार ने उनके दर्द या खूशी को नहीं देखा या देखने-समझने की जुर्रत नहीं की। दोनो ने भी 12 मई के शाम पांच बजे तक कभी नहीं सोचा कि आखिर वो क्य़ो और कैसे मोदी के विरोध या समर्थन में बनारस पहुंच गये। बस आ गये। और अब लौट रहे है। बनारस हवाई अड्डे पर ही दिल्ली से मुंबई जाने वाले विमान पर लौटते वक्त संयोग से दोनो से मुलाकात हुई। दोनो ने एक दूसरे को लखनउ और राजकोट आने का न्यौता भी दिया। और तय यही हुआ कि जब कोई राजकोट या लखनउ जायेगा तो तीनो वहीं मिलेगें। पहले से बता दिया जायेगा। क्योकि तैयारी पहले से होनी चाहिये तो ही मंजिल मिलती है। यह बात अचानक राजू भाई ने कही तो खान साहेब ने चौक कर कहा। राजू भाई तो इसका मतलब है बनारस से लडना पहले से तय किया गया था। सिर्फ लडना ही नहीं हुजुर जो समूची कवायद मोदी ने की है वह किसी प्रोजेक्ट की तरह थी। आप खुद ही सोचिये अगर ब्लू प्रिट ना होता तो फिर मोदी 45 दिनो में कभी भी पल भर के लिये भटकते नहीं। तो क्या पीएम पद की उम्मीदवारी से लेकर 12 मई की शाम पांच बजे तक का ब्लू प्रिट तैयार था।
खान साहेब सिर्फ प्रचार खत्म होने तक का ही नहीं। पीएम बनते ही क्या-कुछ कैसे करना है। पहले छह महिने में और फिर अगले छह महिने में कौन सी कौन सी प्राथमिकताये है। हर काम का ब्लु प्रिंट तैयार है। तो क्या बाबा रामदेव से लेकर गिरिराज तक के बयान ब्लू प्रिट का ही हिस्सा था। नहीं-नहीं हुजुर। ब्लू प्रिट मोदी ने अपने लिये तैयार किया था। अब दाये-बांये से चूक हो रही थी तो उनकी जिम्मेदारी कौन लेता। पार्टी ने ली भी नहीं। लेकिन मोदी कही चूके हो या फिर कभी ऐसा महसूस हुआ हो कि मोदी जो चाह रहे है वह नहीं हो रहा है तो आप बताईये। लेकिन राजू भाई यह कहने की जरुरत पड जाये कि हमसे डरे नहीं। या फिर सत्ता में आये तो हर किसी के साथ बराबरी का सलुक होगा। इसका मतलब क्या है। संविधान तो हर किसी को बराबर मानता ही है। और आपने तो सीएम बनते वक्त ही संविधान की शपथ ले ली थी। खान साहेब बीते साठ बरस के इतिहास को भी तो पलट कर देख लिजिये। कौन सत्ता में रहा और किसने बराबरी का हक किसे नहीं दिया। आपको मौका लगे तो इसी गर्मी में दुजरात आईये। आपके यहा लगंडा या मालदा आम होता है। और महाराष्ट्र का नामी है अल्फांसो। इन दोनो आमो की तासिर को मिला दिजिये तो गुजरात का कैसर आम खाकर देखियेगा। तब आप समझेगें गुजरात का जायका क्या है। राजू भाई सवाल फलो के जायके का नहीं है। ना ही सवाल आम के पेडो का है। अब आप ही बताईये मोदी जी सत्ता के जिस नये शहर को दिल्ली के जरीये बसाना चाहते है उस नये शहर में कौन बचेगा। कौन कटेगा। इसकी लडाई तो आरएसएस के दरबार से लेकर 11 अशोक रोड और गांधीनगर तक होगी। यह सवाल आपके दिमाग में क्यो आया। हमारे यहा तो हर किसी को जगह दी जाती है। सवाल उम्र का होना तो चाहिये। आखिर गुरु या गाईड की भूमिका में भी स्वयसेवको को आना ही चाहिये। नहीं , राजू भाई। मेरा मतलब है कोई नया शहर बनता है तो उसमें भी बरगद या पीपल के पेड को काटा नहीं जाता है। आप तो आस्थावान है। बरगद-पीपल को कैसे काट सकते है।
ऐसे में विकास के नारे तले कुकरमुत्ते की तरह कौन से नये शहर उपजेगें जो बिना बरगद या पीपील के होगें। खान साहेब , अगर आप लालकृष्ण आडवाणी , मुरली मनमोहर जोशी, शांता कुमार या पार्टी छोड चुके जसंवत सिंह की बात कह रहे है तो यह ठीक नहीं है। बरगद के पेड पर भी एक वक्त के बाद बच्चे खेलने नहीं जाते। और ठीक कह रहे आप। पीपल के तो हर पत्ते में देवता है। और आधुनिक विकास के लहजे में समझे तो लुटियन्स की दिल्ली में क्रिसेन्ट रोड पर अग्रेजो ने भी सिर्फ पीपल के पेड ही लगाये। क्योकि वहीं एक मात्र पेड है जो दिन हो या रात हमेशा अक्सीजन देता है। और इसी सडक पर अग्रेज सुबह सवेरे टहलने निकलते थे। तो क्या पार्टी में मोदी के अलावे आक्सीजन देने वाले नेता बचे है जिन्हे मोदी के कैबिनेट में जगह मिलेगी। अरे हुजुर , अभी 16 तारिख तो आने दिजिये। इतनी जल्दबाजी ना करें . ना मोदी को जल्दबाजी में ले। गुजरात के लोग मोदी को जानते समझते है। जो लायक होते है उन्हे चुन-चुन कर अपने साथ समेटते है। चाहे आप उनका विरोध ही क्यो ना करें। आप इंजतार किजिये। हो सकता है जसवंत सिंह की बीजेपी में वापसी हो जाये। तो क्या मोदी के ब्लू प्रिट में यह भी दर्ज है कि किसे किस रुप में साथ लाना है और उससे क्या काम लेना है। खान साहेब कम से कम अपने मंत्रिमंडल को लेकर तो मोदी का ब्लू प्रिंट बिककुल तैयार होगा। लेकिन आप ऐसा ना सोचियेगा कि इस बार कोई दलित नेता ही दलितो की त्रासदी को समझेगा या मुस्लिमो के घाव पर मलहम लगाने के लिये कोई मुस्लिम नेता बीजेपी भी खडा करेगी। तो क्या हर किसी के दर्द या उसकी पीडा की समझ किसी ऐसे नामसझ नेता के हाथ में दे दी जायेगी जो उस समाज या उस कौम का हो ही नहीं। राजू भाई, हम तो मानते है कि जर समाज -हर कौम को उसी समाज से निकला शख्स ज्यादा बेहतर समझ सकता है।
अगर ऐसा है तो मौलाना कलाम साहेब ने रामपुर से चुनाव क्यो लडा। यह कहते हुये जैसे ही मैने बीच बहस में अपनी बात कही। वैसे ही खान साहेब ने तुरंत तर्क दिये, आप तो पत्रकार है और आप जानते होगें 1957 में मौलाना ने दुबारा रामपुर से चुनाव लडने को लेकर नेहरु से विरोध किया था। ठीक कहते है आप। लेकिन मौलाना ने नेहरु से यह भी कहा था कि मै हिन्दुस्तान की नुमाइन्दी करने के लिये पाकिस्तान में नहीं गया। लेकिन नेहरु मुझे मुस्लिम बहुतायत वाले क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतार कर मुझे सिर्फ मुस्लिमो के नुमाइन्दे के तौर पर देखना-बताना चाहते है। मेरे यह कहते ही राजू भाई ने बिना देर किये टोका। प्रसून भाई, यह तो मै कह रहा हूं, मोदी का नजरिया नेहरु वाला या नेहरु परिवार तले बडी हुई काग्रेस वाला कतई नहीं होगा। बराबरी तो लानी होगी ही। नहीं तो अगले चुनाव में तुष्ठीकरण की सियासत फिर किसी तिकडमी को सियासत सौप देगी या क्षत्रपो का बोलबाला बरकरार रहेगा। या कहे काग्रेस की धारा बह निकलेगी। खान साहेब आप मोदी को समझने से पहले यह समझ लिजिये मोदी संघ परिवार के प्रचारक रह चुके है। मौका मिले तो देखियेगा। कुर्ते की उपरी जेब में एक छोटी डायरी और पेंसिल जरुर रखते है। जहा जो अच्छी जानकारी मिले उसे भी नोट करते है। प्रचार के दौर में किसी ने कहा रेलवे को कोई सुधार सकता है तो वह श्रीधरण है। तो मोदी जी ने श्रीधरण का नाम डायरी में लिख लिया। और खान साहेब यह भी जान लिजिये पहले से तैयार ब्लू प्रिट को आधार बनाकर आगे कोई कार्यक्रम तय करते है। यह नहीं कि जहा जब लाभ हो वहीं चल दिये। गुजरात में सीएम पद संभालने के बाद भी अक्टूबर 2001 से लेकर पहले चुनाव में जीत यानी 2003 तक के दौर को देखिये। जो 2001 में साथ दें वह 2003 के बाद मोदी के साथ नहीं थे। क्योकि 2001 में सीएम बनते ही मोदी ने 2003 के विधानसभा चुनाव के बाद का ब्लू प्रिट बनाना शुरु कर दिया था। इसलिये मंत्रिमंडल से लेकर साथी-सहयोगी सभी 2003 में बदल गये। लेकिन गोधरा कांड कहीये या गुजरात दंगे। मोदी ने विधानसभा चुनाव वक्त पर ही कराये। जबकि 2003 में चुनाव नहीं होगें इसी के सबसे ज्यादा कयास लगाये जा रहे थे। लेकिन दिल्ली के लिये तो ब्लू प्रिट पहले से ही तैयार होगा। होगा नहीं , है हुजुर।
इसीलिये ध्यान दिजिये बीजेपी में पहले दिन से मोदी के ब्लू प्रिट देखकर ही हर कोई बेफ्रिक है। नारा भी इसिलिये लगा, अबकि बार मोदी सरकार। तो क्या गुजरात में हर कोई जानता था। कि बीजेपी नहीं मोदी की ही चलेगी। खान साहेब सच तो यही है कि बीते 12 बरस में हर गुजराती मोदी के कामकाज के तौर तरीके को जान चुका है। मोदी हर काम में समूची शक्ति चाहते है और फिर उसे अंजाम तक पहुंचाते है। 2001 में समूची ताकत मोदी के पास नहीं थी। 2003 के विदानसभा चुनाव में जीत के बाद मोदी ने गुजरात को अपने हाथ में लिया और गुजरात को बदल दिया। और सच यही है कि देश बदल जाये यह सोच कर पचास हजार रुपये खर्च कर मै गुजरात आ गया खान साहेब। लेकन राजू भाई अगर 16 मई को जनादेश ने पूरी ताकत मोदी को नहीं दी तब। इस तब का जबाब राजू भाई ने हंसते हुये यही कहकर दिया। खान साहेब आपकी फ्लाइट का वक्त हो रहा है। आप गुजरात आईये। खान साहेब भी निकलते निकलते कह गये। अगर जनादेश ने मोदी को पूरी ताकत दे ही दी तो फिर गुजरात आने की जरुरत क्या होगी राजू भाई। हम दोनो प्रसून के यहा दिल्ली में ही मिल लेगें। तो तय रहा जनादेश के मुताबिक या तो गुजरात या फिर दिल्ली।
खान साहेब सिर्फ प्रचार खत्म होने तक का ही नहीं। पीएम बनते ही क्या-कुछ कैसे करना है। पहले छह महिने में और फिर अगले छह महिने में कौन सी कौन सी प्राथमिकताये है। हर काम का ब्लु प्रिंट तैयार है। तो क्या बाबा रामदेव से लेकर गिरिराज तक के बयान ब्लू प्रिट का ही हिस्सा था। नहीं-नहीं हुजुर। ब्लू प्रिट मोदी ने अपने लिये तैयार किया था। अब दाये-बांये से चूक हो रही थी तो उनकी जिम्मेदारी कौन लेता। पार्टी ने ली भी नहीं। लेकिन मोदी कही चूके हो या फिर कभी ऐसा महसूस हुआ हो कि मोदी जो चाह रहे है वह नहीं हो रहा है तो आप बताईये। लेकिन राजू भाई यह कहने की जरुरत पड जाये कि हमसे डरे नहीं। या फिर सत्ता में आये तो हर किसी के साथ बराबरी का सलुक होगा। इसका मतलब क्या है। संविधान तो हर किसी को बराबर मानता ही है। और आपने तो सीएम बनते वक्त ही संविधान की शपथ ले ली थी। खान साहेब बीते साठ बरस के इतिहास को भी तो पलट कर देख लिजिये। कौन सत्ता में रहा और किसने बराबरी का हक किसे नहीं दिया। आपको मौका लगे तो इसी गर्मी में दुजरात आईये। आपके यहा लगंडा या मालदा आम होता है। और महाराष्ट्र का नामी है अल्फांसो। इन दोनो आमो की तासिर को मिला दिजिये तो गुजरात का कैसर आम खाकर देखियेगा। तब आप समझेगें गुजरात का जायका क्या है। राजू भाई सवाल फलो के जायके का नहीं है। ना ही सवाल आम के पेडो का है। अब आप ही बताईये मोदी जी सत्ता के जिस नये शहर को दिल्ली के जरीये बसाना चाहते है उस नये शहर में कौन बचेगा। कौन कटेगा। इसकी लडाई तो आरएसएस के दरबार से लेकर 11 अशोक रोड और गांधीनगर तक होगी। यह सवाल आपके दिमाग में क्यो आया। हमारे यहा तो हर किसी को जगह दी जाती है। सवाल उम्र का होना तो चाहिये। आखिर गुरु या गाईड की भूमिका में भी स्वयसेवको को आना ही चाहिये। नहीं , राजू भाई। मेरा मतलब है कोई नया शहर बनता है तो उसमें भी बरगद या पीपल के पेड को काटा नहीं जाता है। आप तो आस्थावान है। बरगद-पीपल को कैसे काट सकते है।
ऐसे में विकास के नारे तले कुकरमुत्ते की तरह कौन से नये शहर उपजेगें जो बिना बरगद या पीपील के होगें। खान साहेब , अगर आप लालकृष्ण आडवाणी , मुरली मनमोहर जोशी, शांता कुमार या पार्टी छोड चुके जसंवत सिंह की बात कह रहे है तो यह ठीक नहीं है। बरगद के पेड पर भी एक वक्त के बाद बच्चे खेलने नहीं जाते। और ठीक कह रहे आप। पीपल के तो हर पत्ते में देवता है। और आधुनिक विकास के लहजे में समझे तो लुटियन्स की दिल्ली में क्रिसेन्ट रोड पर अग्रेजो ने भी सिर्फ पीपल के पेड ही लगाये। क्योकि वहीं एक मात्र पेड है जो दिन हो या रात हमेशा अक्सीजन देता है। और इसी सडक पर अग्रेज सुबह सवेरे टहलने निकलते थे। तो क्या पार्टी में मोदी के अलावे आक्सीजन देने वाले नेता बचे है जिन्हे मोदी के कैबिनेट में जगह मिलेगी। अरे हुजुर , अभी 16 तारिख तो आने दिजिये। इतनी जल्दबाजी ना करें . ना मोदी को जल्दबाजी में ले। गुजरात के लोग मोदी को जानते समझते है। जो लायक होते है उन्हे चुन-चुन कर अपने साथ समेटते है। चाहे आप उनका विरोध ही क्यो ना करें। आप इंजतार किजिये। हो सकता है जसवंत सिंह की बीजेपी में वापसी हो जाये। तो क्या मोदी के ब्लू प्रिट में यह भी दर्ज है कि किसे किस रुप में साथ लाना है और उससे क्या काम लेना है। खान साहेब कम से कम अपने मंत्रिमंडल को लेकर तो मोदी का ब्लू प्रिंट बिककुल तैयार होगा। लेकिन आप ऐसा ना सोचियेगा कि इस बार कोई दलित नेता ही दलितो की त्रासदी को समझेगा या मुस्लिमो के घाव पर मलहम लगाने के लिये कोई मुस्लिम नेता बीजेपी भी खडा करेगी। तो क्या हर किसी के दर्द या उसकी पीडा की समझ किसी ऐसे नामसझ नेता के हाथ में दे दी जायेगी जो उस समाज या उस कौम का हो ही नहीं। राजू भाई, हम तो मानते है कि जर समाज -हर कौम को उसी समाज से निकला शख्स ज्यादा बेहतर समझ सकता है।
अगर ऐसा है तो मौलाना कलाम साहेब ने रामपुर से चुनाव क्यो लडा। यह कहते हुये जैसे ही मैने बीच बहस में अपनी बात कही। वैसे ही खान साहेब ने तुरंत तर्क दिये, आप तो पत्रकार है और आप जानते होगें 1957 में मौलाना ने दुबारा रामपुर से चुनाव लडने को लेकर नेहरु से विरोध किया था। ठीक कहते है आप। लेकिन मौलाना ने नेहरु से यह भी कहा था कि मै हिन्दुस्तान की नुमाइन्दी करने के लिये पाकिस्तान में नहीं गया। लेकिन नेहरु मुझे मुस्लिम बहुतायत वाले क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतार कर मुझे सिर्फ मुस्लिमो के नुमाइन्दे के तौर पर देखना-बताना चाहते है। मेरे यह कहते ही राजू भाई ने बिना देर किये टोका। प्रसून भाई, यह तो मै कह रहा हूं, मोदी का नजरिया नेहरु वाला या नेहरु परिवार तले बडी हुई काग्रेस वाला कतई नहीं होगा। बराबरी तो लानी होगी ही। नहीं तो अगले चुनाव में तुष्ठीकरण की सियासत फिर किसी तिकडमी को सियासत सौप देगी या क्षत्रपो का बोलबाला बरकरार रहेगा। या कहे काग्रेस की धारा बह निकलेगी। खान साहेब आप मोदी को समझने से पहले यह समझ लिजिये मोदी संघ परिवार के प्रचारक रह चुके है। मौका मिले तो देखियेगा। कुर्ते की उपरी जेब में एक छोटी डायरी और पेंसिल जरुर रखते है। जहा जो अच्छी जानकारी मिले उसे भी नोट करते है। प्रचार के दौर में किसी ने कहा रेलवे को कोई सुधार सकता है तो वह श्रीधरण है। तो मोदी जी ने श्रीधरण का नाम डायरी में लिख लिया। और खान साहेब यह भी जान लिजिये पहले से तैयार ब्लू प्रिट को आधार बनाकर आगे कोई कार्यक्रम तय करते है। यह नहीं कि जहा जब लाभ हो वहीं चल दिये। गुजरात में सीएम पद संभालने के बाद भी अक्टूबर 2001 से लेकर पहले चुनाव में जीत यानी 2003 तक के दौर को देखिये। जो 2001 में साथ दें वह 2003 के बाद मोदी के साथ नहीं थे। क्योकि 2001 में सीएम बनते ही मोदी ने 2003 के विधानसभा चुनाव के बाद का ब्लू प्रिट बनाना शुरु कर दिया था। इसलिये मंत्रिमंडल से लेकर साथी-सहयोगी सभी 2003 में बदल गये। लेकिन गोधरा कांड कहीये या गुजरात दंगे। मोदी ने विधानसभा चुनाव वक्त पर ही कराये। जबकि 2003 में चुनाव नहीं होगें इसी के सबसे ज्यादा कयास लगाये जा रहे थे। लेकिन दिल्ली के लिये तो ब्लू प्रिट पहले से ही तैयार होगा। होगा नहीं , है हुजुर।
इसीलिये ध्यान दिजिये बीजेपी में पहले दिन से मोदी के ब्लू प्रिट देखकर ही हर कोई बेफ्रिक है। नारा भी इसिलिये लगा, अबकि बार मोदी सरकार। तो क्या गुजरात में हर कोई जानता था। कि बीजेपी नहीं मोदी की ही चलेगी। खान साहेब सच तो यही है कि बीते 12 बरस में हर गुजराती मोदी के कामकाज के तौर तरीके को जान चुका है। मोदी हर काम में समूची शक्ति चाहते है और फिर उसे अंजाम तक पहुंचाते है। 2001 में समूची ताकत मोदी के पास नहीं थी। 2003 के विदानसभा चुनाव में जीत के बाद मोदी ने गुजरात को अपने हाथ में लिया और गुजरात को बदल दिया। और सच यही है कि देश बदल जाये यह सोच कर पचास हजार रुपये खर्च कर मै गुजरात आ गया खान साहेब। लेकन राजू भाई अगर 16 मई को जनादेश ने पूरी ताकत मोदी को नहीं दी तब। इस तब का जबाब राजू भाई ने हंसते हुये यही कहकर दिया। खान साहेब आपकी फ्लाइट का वक्त हो रहा है। आप गुजरात आईये। खान साहेब भी निकलते निकलते कह गये। अगर जनादेश ने मोदी को पूरी ताकत दे ही दी तो फिर गुजरात आने की जरुरत क्या होगी राजू भाई। हम दोनो प्रसून के यहा दिल्ली में ही मिल लेगें। तो तय रहा जनादेश के मुताबिक या तो गुजरात या फिर दिल्ली।
Thoda confusing tha but nice
ReplyDeleteBahut hi acha article tha sir jee..
ReplyDeleteBahut badhiya
ReplyDeleteAur pehli baar janta he shakuni mama(ppbajpai) ko Sanjay samjha....lekin YouTube pe " krantikari" video leak hote hi Mama Shakuni aur Duryodhan(kejru) ka tilism toot gaya.
ReplyDeleteRaju bhai is good for Nation
ReplyDeleteits so cnfusing......waiting for the next...
ReplyDeleteaap ka voe % 6% in 4 states par kar gya krpya tweet kar k batayie
ReplyDelete