जो यूपी में अपने बूते हर समीकरण को तोडते हुये बीजेपी के लिये इतिहास रच
सकता है । उसे बीजेपी का अध्यक्ष क्यो नहीं बनाया जा सकता है । बेहद
महींन राजनीति के जरीये अमित शाह को लेकर अब यही तर्क बीजेपी के भीतर गढे
जाने लगे है । और संकेत उभरने लगे है कि अगर आरएसएस ने हरी झंडी दे दी तो
इधर नरेन्द्र मोदी पीएम पद की शपथ लेगें और दूसरी तरफ अमित शाह बीजेपी
के अध्यक्ष पद को संभालेगें । यानी सरकार और पार्टी दोनो को अब अपने
तरीके से चलाना चाहते है नरेन्द्र मोदी । दरअसल बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ
सिंह चुनाव के वक्त कई बार मोदी सरकार बनने पर कैबिनेट में शामिल होने से
इंकार किया । लेकिन चुनाव खत्म होते ही सरकार में जैसे ही दूसरे नंबर की
शर्त रखी वैसे ही बीजेपी के भीतर यह सवाल बडा होने लगा कि अगर राजनाथ
सिंह मोदी मंत्रिमंडल में गृह मंत्री बन जाते है तो फिर पार्टी अध्यक्ष
कौन होगा । ऐसे में पार्टी अध्यक्ष के पद पर नजरे नीतिन गडकरी की भी है ।
और गडकरी ने चुनाव के बाद जब दिल्ली में सबसे पहले लालकृष्ष आडवाणी के
दरवाजे पर दस्तक दी तो साथ में इनक्म टैक्स के वह कागज भी लेकर गये जिसके
जरीये वह बता सके कि उन पर अब कोई दाग नहीं है । और जिस आरोप की वजह से
उन्होने पार्टी का अध्यक्ष पद छोडा था अब जब उन्हे क्लीन चीट मिल चुकी है
तो फिर दिल्ली का रास्ता तो उनके लिये भी साफ है । गडकरी ने संकेत के तौर
पर खुद को अध्यक्ष बनाने का पत्ता फेंका । और यह बात दिल्ली में जैसे ही
खुली वैसे ही राजनाथ सिंह भी सक्रिय हुये और अपने लिये रास्ता बनाने में
लग गये । इसी वजह से उन्होने भी संकेत में सरकार में नंबर दो की हैसियत
की बात छेड दी । असल में नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट में कौन शामिल होगा या
मोदी खुद किसे पंसद करेंगे इसे लेकर इतनी उहापोह के हालात बीजेपी के भीतर
है कि कोई पहले मुंह खोलना नहीं चाहता है । इसलिये नरेन्द्र मोदी किस दिन
प्रधानमंत्री पद की शपथ लेगें इसपर भी आज संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद
अधयक्ष राजनाथ सिंह को खुले तौर पर कहना पडा कि अभी तारिख तय नहीं हुई है
और 20 मई को संसदीय दल की बैठक औपचारिक तौर पर मोदी को पीएम चुने जाने के
एलान के बाद ही शपथ की तारिख तय होगी । लेकिन पार्टी के भीतर का अंदरुनी
संकट यह है कि नरेन्द्र मोदी के साथ कौन कौन बतौर कैबिनेट मनिस्टर शपथ
लेगा इसपर कोई सहमति बनी नहीं है या कहे हर कोई खामोश है । यहा तक की
वरिष्ट् नेता मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज तक ने खामोशी के बीच इसी
संकेत को उभारा है कि अगर जीत का सारा सेहरा मोदी के सिर बांधा जा रहा है
तो फिर मोदी ही तय करें । आलम यह है कि मंत्रिमंडल को लेकर संघ परिवार
में भी खामोशी है । क्योकि संघ किसी भी रुप यह नहीं चाहता है कि देश के
सामने ऐसा कोई संकेत जाये जिससे लगे कि संघ की दखल सरकार बनाने में है ।
इसलिये वरिष्ठो को सम्मान मिलना चाहिये इससे आगे का कोई संकेत नागपुर में
मुरली मनमोहर जोशी की सरसंघचालक मोहन भागवत की मुलाकात के बाद निकले नहीं
। और वैसे भी मंत्रिमंडल में कौन रहे या कौन ना रहे यह अधिकार
प्रधानमंत्री का ही होता है । लेकिन पार्टी के अध्यक्ष पद को लेकर अगर
किसी नाम पर मुहर लगती है तो उसमें आरएसएस की हरी झंडी की जरुरत है । साथ
ही आडवाणी की सहमति से किसी के लिये भी अच्छी स्थिति हो सकती है । और
चुनाव के बाद नागपुर में संरसंधचालक से मुलाकात के बाद गडकरी ने पहले
आडवाणी और उसके बाद सुषमा स्वराज का दरवाजा भी यही सोच कर खटखटाया कि
जैसे ही बात अध्यक्ष पद को लेकर तो उनका नाम ही सबसे उपर हो । लेकिन
नरेन्द्र मोदी के कामकाज के तरीको को जानने वालो की माने तो मोदी ना
सिर्फ सरकार बल्कि संगठन को भी अपने तरीके से साधना चाहते है । और इसके
लिये अध्यक्ष पद पर अमित शाह को चाहते है । फिर यूपी और बिहार में जिस
तरह मोदी लहर ने जातिय समीकरण की धज्जिया उडा दी है और यूपी में जिस महीन
तरीके से अमित शाह ने समूचे प्रदेश के राजनीतिक तौर तरीको को ही बदल दिया
है उसके बाद बीजेपी ने नये सांसदो के लिये अमित शाह सबसे बडे रणनीतिकार
और नेता भी हो चले है । यही स्थिति बिहार के नये सांसदो की भी है । वहीं
नरेन्द्र मोदी संगठन को अपने अनुकुल करने के लिये बीजेपी के
मुख्यमंत्रियो को भी अपने पक्ष में कर चुके है । छत्तिसगढ के सीएम रमन
सिंह हो या फिर राजस्थान की सीएम वसुधरा राजे या फिर गोवा के मनमोहर
पारिकर । सभी मोदी के सामने नतमस्तक है । एकमात्र मध्यप्रदेश के सीएम
शिवराज सिह चौहान है जो पूरी तरह झुके नहीं है । हालाकि मोदी के पक्ष
लेने में कोई कोताही वह भी नहीं बरत रहे है । वैसे बीजेपी के भीतर के
हालात बताते है कि अगर नरेन्द्र मोदी का कद बढता चला जा रहा है और अब
अमित शाह को अध्यक्ष पद पर बैठाने के लिये जब पत्ता फेंका जा रहा है तो
उसके पीछे बीजेपी के तमाम नेताओ की अपनी कमजोरी है । बीजेपी के भीतर
मौजूदा वक्त में किसी नेता के पास इतना नैतिक बल नहीं है कि वह मोदी या
अमित शाह की किसी थ्योरी का विरोध कर सके । यानी कभी कुशाभाउ ठाकरे या
सुंदर सिंह भंडारी जैसे नैतिक बल वाले नेता बीजेपी में होते थे जो ताल
ठोंक सकते थे । लेकिन मौजूदा वक्त में बीजेपी अपने ही कर्मो से इतनी नीचे
आ चुकी है कि दिल्ली में बीजेपी का कार्यकर्त्ता हो या देश भर में फैला
कैडर उसके लिये बीजेपी से ज्यादा नरेन्द्र मोदी मायने रखने लगा है ।
इसलिये मोदी को पीएम की कुर्सी तक बीजेपी या संघ परिवार ने सिर्फ नहीं
पहुंचाया है बल्कि उस जनसमुदाय ने पहुंचाया जो बीजे दस बरस में बीजेपी से
पूरी तरह दूर हो चुका था ।
Dear sir,i am an AAP supporter(and a very exhausted one)...aapko ek bahut hi aacha reporter maanta hn jiski pakad h zammen ke halat par.isiliye aapse anurodh kar raha hn king ek article likhiye kejriwal.& AAP ke halat par...agar delhi mein assembly elections hote hain to AAP ke kya chances hain is baate mein kuch bataiye please
ReplyDeleteप्रणाम सर,
ReplyDeleteआपने भाजपा में चल रही चुनाव बाद की उठा पटक का सटीक आकलन पेश किया है एकदम !!
प्रसून जी व्यक्ति जब पत्रकार बनने के बजाय किसी पार्टी का भक्त बन जाता है तो उसका वही हश्र होता है जो आपका हुआ है.चाहे लोकसभा चुनाव का आकलन हो या पार्टियों की आंतरिक घघमासान आपके आकलन की निष्पक्षता हमेशा संदिगध रहती है.
ReplyDeleteGujarat mein modi ke prabhav se opposition nahi bacha .....aur ab desh mein unke prabhav se Auron ko to jaane dijiye khud bjp nahi bachegi....sach hi hai hindutva ki ek hi dhara mein ideology, identity ,diversity Sab kuch vileen se ho gaye hai....ab isse loktantra kis disha mein aur kaise aage badhta hai ......dekhne aur samajhne wali baat hai.....
ReplyDeleteYogi Aditynath ne sach kaha....ki Hindutva aur Vikas ek dusre ke poorak hain....example Gujarat. Aur ab to sare Bharat me bhi yehi mantra chalne wala hai....Modi ka Vikas ke sath soft Hindutva ka formula safal raha aur sare vote bank fail ho Gaye.....Ab hoga Bharat ka Vikas....aur tumhara kachrawal to bas jhadu hi lagata reh jayega.
ReplyDeleteबहुत क्रांतिकारी, बहुत ही क्रांतिकारी लेख लिखा है अंतर्यामी पत्रकार ने|
ReplyDeletekya baat
ReplyDeleteGreat minds discuss ideas; average minds discuss events; small minds discuss people.
ReplyDeletekya baat
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