एक तरफ हनीप्रीत का जादू तो दूसरी तरफ मोदी सरकार की चकाचौंध । एक तरफ बिना जानकारी किस्सागोई । दूसरी तरफ सारे तथ्यो की मौजूदगी में खामोशी । एक तरफ हनीप्रीत को कटघरे तक घेरने के लिये लोकल पुलिस से लेकर गृहमंत्रालय तक सक्रिय । दूसरी तरफ इक्नामी को पटरी पर लाने के लिये पीएमओ सक्रिय । एक तरफ हनीप्रीत से निकले सवालो से जनता के कोई सरोकार नहीं । दूसरी तरफ सरकार के हर सवाल से जनता के सरोकार । तो क्या पुलिस- प्रशासन, नौकरशाह-मंत्री और मीडिया की जरुरत बदल चुकी है या फिर वह भी डि-रेल है । क्योंकि देश की बेरोजगारी के सवाल पर हनीप्रीत का चरित्रहनन देखा-दिखाया जा रहा है । पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर हनीप्रीत के नेपाल में होने या ना होना भारी है । गिरती जीडीपी पर हनीप्रीत के रेपिस्ट गुरमीत के संबध मायने रखने लगे हैं। 10 लाख करोड पार कर चुके एनपीए की लूट पर डेरा की अरबो की संपत्ति की चकाचौंध भारी हो चली है । नेपाल में हनीप्रीत का होना नेपाल तक चीन का राजमार्ग बनाना मायने नहीं रख रहा है ।
जाहिर है ऐसे बहुतेरे सवाल किसी को भी परेशान कर सकते हैं कि आखिर जनता की जरुरतो से इतर हनीप्रीत सरीखी घटना पर गृमंत्रालय तक सक्रिय हो जाता है और चौबिस घंटे सातों दिन खबरों की दिशा में हनीप्रीत की चकाचौंध . हनीप्रीत की अश्लीलता । हनीप्रीत के चरित्र हनन में ही दुनिया के पायदान पर पिछडता देश क्यों रुचि ले रहा है । या उसकी रुची भी अलग अलग माध्यमो से तय की जा रही है । अगर बीते हफ्ते भर से हनीप्रीत से जुड़ी खबरों का विश्लेषण करें तो शब्दो के आसरे सिर्फ उसका रेप भर नहीं किया गया । बाकि सारे संबंधो से लेकर हनीप्रीत के शरीर के भीतर घुसकर न्यूजचैनलों के डेस्क पर बैठे कामगारों ने अपना हुनर बखूबी दिखाया । यूं एक सच ये भी है कि इस दौर में जो न्यूज चैनल हनीप्रीत की खबरो के माध्यय से जितना अश्लील हुआ उसकी टीआरपी उतनी ज्यादा हुई ।
तो क्या समाज बीमार हो चुका है या समाज को जानबूझकर बीमार किया जा रहा है । यूं ये सवाल कभी भी उठाया जा सकता था । लेकिन मौजूदा वक्त में ये सवाल इसलिये क्योंकि 'वैशाखनंदन ' की खुशी भी किसी से देखी नहीं जा रही है। यानी चैनलों के भीतर के हालात वैशाखनंदन से भी बूरे हो चले है क्योकि उन परिस्थितियों को हाशिये पर धकेल दिया जा रहा है जो 2014 का सच था । और वही सच कही 2019 में मुंह बाये खडा ना हो जाये , तो सच से आंखमिचौली करते हुये मीडियाकर्मी होने का सुरुर हर कोई पालना चाह रहा है । याद किजिये 2014 की इक्नामी का दौर जिसमें बहार लाने का दावा मोदी ने चुनाव से पहले कई-कई बार किया। लेकिन तीन साल बाद महंगाई से लेकर जीडीपी और रोजगार से लेकर एनपीए तक के मुद्दे अगर अर्थव्यवस्था को संकट में खड़ा कर रहे हैं तो चिंता पीएम को होना लाजिमी है। और अब जबकि 2019 के चुनाव में डेढ बरस का वक्त ही बचा है-सुस्त अर्थव्यवस्था मोदी की विकास की तमाम योजनाओं को पटरी से उतार सकती है। क्योकि 2014 में
इक्नामिस्ट मनमोहन सिंह भी फेल नजर आ रहे थे । और अब ये सवाल मायने नही रखते कि , नोटबंदी हुई मगर 99 फीसदी नोट वापस बैंक आ गए । एनपीए 10 लाख करोड से ज्यादा हो गया । खुदरा-थोक मंहगाई दर बढ रही है । उत्पादन-निर्माण क्षेत्र की विकास दर तेजी से नीचे जा रही है । आर्थिक विकास दर घट रही है । क्रेडिट ग्रोथ साठ बरस के न्यूनतम स्तर पर है । यानी सवाल तो इक्नामी के उस वटवृक्ष का है-जिसकी हर डाली पर झूलता हर मुद्दा एक चुनौती की तरह सामने है। क्योंकि असमानता का आलम ये है कि दुनिया के सबसे ज्यादा भूखे लोग भारत में ही । यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 19 करोड़ से ज्यादा लोग भुखे सोने को मजबूर हैं। सरकार की रिपोर्ट कहती है करोडपतियो की तादाद तेजी से बढ़ रही। दो फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों थोमा पिकेती और लुका सॉसेल का नया रिसर्च पेपर तो कहता है कि भारत में साल 1922 के बाद से असमानता की खाई सबसे ज्यादा गहरी हुई है ।
तो क्या हनीप्रीत सरीखे सवालों के जरिये मीडिया चाहे -अनचाहे या कहे अज्ञानवश उन हालातो को समाज में बना रहा है जहा देश का सच राम रहिम से लेकर हनीप्रीत सरीखी खबरो में खप जाये । और सक्रिन पर अज्ञानता ही सबसे ज्यादा बौधिक क्षमता में तब्दिल अगर दिखायी देने लगें । तो ये महज खबरो को परोसने वाला थियेटर नहीं है बल्कि एक ऐसे वातावरण को बनाना है जिसमें चुनौतियां छुप जाये । क्योंकि अगर अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी तो देश को जवाब देना मुश्किल होगा और उस वक्त सबकी नजरें सिर्फ एक बात टिक जाएंगी
कि क्या मोदी ब्रांड बड़ा है या आर्थिक मुद्दे। यानी चाहे अनचाहे मीडिया की भूमिका भी 2019 के लिये ऐसा वातावरण बना रही है जहां हनीप्रीत भी 2019 में चुनाव लड़ लें तो जीत जाये ।
आपका चैनल भी इसी सूची में शामिल है। इसलिए ज्ञान न बघारिये। अंदर झांक कर देखिये बहुत शर्मिंदा होंगे।और हां एंटरटेनमेंट चैनल और समाचार चैनल में फ़र्क करना सीखिये। अफसोस कि आप इसका हिस्सा हैं।
ReplyDeleteमीडिया की भी अपनी मजबूरी है,सरकार चाहती है कि जनता का ध्यान भटकाया जाए,और मीडिया कर्मी को भी मज़ा आरहा है trp के नाम पर ये गोरख धंधा फल फूल रहा है।राम रहीम भी साध्वी का बलात्कार बन्द कमरे में करता था लेकिन यहां तो खुले आम हानि प्रीत का चरित्र हरण खुद मीडिया वाले कर रहे है। किसी भी चैंनल का कोई दिन खाली नही जाता जब कम से कम 30 मिनट का स्लॉट बाबा और उसकी अय्याशी को न सौपा गया हो।लेकिन ये जनता है सब जानती है अभी चुनाव में समय है। कांग्रेस अपनी खूबियों और क़ाबलियत के दम पर तो वापसी नही कर सकती लेकिन गिरती जी डी पी और देश में बढ़ती महंगाई जनता का भाजपा से मोह भंग करा कर रहेगी।अगर अब भी सरकार ने होश के नाखून नही लिए तो समय दूर नही जब प्रधान मंत्री का भाषण भी काम नही आएगा क्योंकि भाषण कुछ देर लोगों का मन बहला सकता है लेकिन भाषण से भूकी जनता का पेट नही भर सकता।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब बेहतरीन रचनात्मक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteRam rahim or honeypreet ka news dekhna band kejea... Ram rahim ko jail ma sadna do.. App yuva divyangjan or unki rojjgari sa related news dekhao 10TAK pa.. desh ka divyangjan bahot paresan hai..
ReplyDeleteइमरजेंसी के वक्त प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गयी थी और अब ऐसा दौर आ चला है की प्रेस खुद ही अपनी स्वतंत्रता पर रोक लगाने और सरकार के ऐजेंडो को चलाने के लिए तैयार है । सवाल ये उठता है कि जनता किस पर भरोसा करे।
ReplyDeleteअंदर झांक कर देखिये
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