Tuesday, August 14, 2018

15 अगस्त 1975 लालकिले और 15 अगस्त 2018 के लालकिले का फर्क ?

इमरजेन्सी लगाकर  इंदिरा ने "नए भारत" का उदघोष किया अब मोदी  "न्यू इंडिया" का ऐलान करेंगे
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

15 अगस्त 1975 और 15 अगस्त 2018 । दोनों में खास अंतर है। पर कुछ समानता भी है। 32 बरस का अंतर है। 32 बरस पहले 15 अगस्त 1975 को देश इंतजार कर रहा था कि देश पर इमरजेन्सी थोपने के पचास दिन बाद तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लालकिले के प्रचीर से कौन सा एलान करेंगी। या फिर आपातकालके  जरिये नागरिकों के संवैधानिक अधिकारो को सस्पेंड करने के बाद भी इंदिरा गांधी के भाषण का मूल तत्व होगा क्या। और 42 बरस बाद 15 अगस्त 2018 के दिन का इंतजार करते हुये देश फिर इंतजार कर रहा है कि लोकतंत्र के नाम पर कौन सा राग लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी गायेंगे।

क्योंकि पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार चीफ जस्टिस ये कहकर सार्वजनिक तौर पर सामने आये कि "लोकतंत्र खतरे में है।" पहली बार देश की प्रीमियर जांच एजेंसी सीबीआई के निदेशक और स्पेशल डायरेक्टर ये कहते हुये आमने सामने आ खड़े हुये कि वीवीआईपी जांच में असर डालने से लेकर सीबीआई के भीतर ऐसे अधिकारियों को नियुक्त किया जा रहा है, जो खुद दागदार हैं। पहली बार सीवीसी ही सरकार पर आरोप लगा रही है कि सूचना के अधिकार को ही वो खत्म करने पर आमादा है। पहली बार चुनाव आयोग को विपक्ष ने ये कहकर कठघरे में खड़ा किया है कि वह चुनावी तारीख से लेकर चुनावी जीत तक के लिये सत्ता का मोहरा् बना दिया गया है। पहली बार सत्ताधारियों पर निगरानी के लिये लोकपाल की नियुक्ति का सवाल सुप्रीम कोर्ट पांच बार उठा चुका है पर सरकार चार बरस से टाल रही है।

पहली बार मीडिया पर नकेल की हद सीधे तौर पर कुछ ऐसी हो चली है कि साथ खड़े हो जाओ नहीं तो न्यूज चैनल बंद हो जायेंगे। पहली बार भीड़तंत्र देश में ऐसा हावी हुआ कि सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कहीं लोग कानून के राज को भील ना जाये यानी भीडतंत्र या लिंचिंग के अम्यस्त ना हो जायें। और पहली बार सत्ता ने देश के हर संस्थानों के सामने खुद को इस तरह परोसा है जैसे वह सबसे बडी बिजनेस कंपनी है। यानी जो साथ रहेगा उसे मुनाफा मिलेगा। जो साथ ना होगा उसे नुकसान उठाना होगा। तो फिर आजादी के 71 वें जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी क्या कहेंगे। इस इंतजार से पहले ये जरुर जानना चाहिये कि देश में इमरजेन्सी लगाने के बाद आजादी के 28 वें जन्मदिन पर इंदिरा गांधी ने लालकिले के प्राचीर से क्या कहा था। इदिरा गांधी ने तब अपने लंबे भाषण के बीच में कहा, "इमरजेन्सी की घोषणा करके हमें कोई खुशी नहीं हुई। लेकिन परिस्थितियों का तकाजे के कारण हमें ऐसा करना पड़ा। परन्तु प्रत्येक बुराई में भी कोई ना कोई भलाई छिपी होती है। कड़े कदम इस प्रकार उठाये जैसे कोई डाक्टर रोगी को कडवी दवा पिलाता है जिससे रोगी स्वास्थ्य लाभ कर सके । " तो हो सकता है नोटबंदी और जीएसटी के सवाल को किसी डाक्टर और रोगी की तरह प्रधानमंत्री भी जोड दें । ये भी हो सकता है कि जिन निर्णयों से जनता नाखुश है और चुनावी बरस की दिशा में देश बढ चुका है, उसमें खुद को सफल डाक्टर करार देते हुये एलान से हुये लाभ के नीति आयोग से मिलने वाले आंकडो को ही लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री बताने निकल पड़े।

यानी डाक्टर नही स्टेट्समैन की भूमिका में खुद को खड़े रखने का वैसा ही प्रयास करें जैसा 32 बरस पहले इंदिरा गांधी ने लालकिले के प्राचीर से ये कहकर किया था , " हमारी सबसे अधिक मूल्यवान संपदा है हमारा साहस , हमारा मनोबल, हमारा आत्मविश्वास । जब ये गुण अटल रहेंगे,तभी हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर सकेंगे। तभी हम गरीबों के लिये कुछ कर सकेंगे. सभी सम्प्रदायों और वर्गों के बेरोजगारों को रोजगार दिला सकेंगे। उनके लिये उनकी जरुरतो की चीजे मुहैया करा सकेंगे। मै आपसे अनुरोध करूंगी कि आप सब अपने आप में और  अपने देश के भविष्य में आस्था रखे। हमारा रास्ता सरल नहीं है। हमारे सामने बहुत सी कठिनाइयां हैं। हमारी राह कांटों भरी हैं।

"जाहिर है देश के सामने मुश्किल राह को लेकर इस बार प्रधानमंत्री मोदी जिक्र जरुर करेंगे। और टारगेट 2022 को लेकर फिर एक नई दृष्टि देंगे। पर यहा समझना जरुरी है कि जब देश के सामने सवाल आजादी के लगते नारो के हो। चाहे वह अभिव्यक्ति की आजादी की बात हो या फिर संवैधानिक संस्थानों को लेकर उठते सवाल है या फिर पीएमओ ही देश चलाने के केन्द्र हो चला हो। तो ऐसे में किसी भी प्रधानमंत्री को हिम्मत तो चाहिये कि वह लालकिले के प्राचीर से आजादी का सवाल छेड दें। पर इंदिरा गांधी में इमरजेन्सी लगाने के बाद भी ये हिम्मत थी। तो प्रधानमंत्री मोदी क्या कहेंगे ये तो दूर की गोटी है लेकिन 42 बरस पहले इंदिरा गांधी ने आजादी का सवाल कुछ यूं उठाया था , ' आजादी कोई ऐसा जादू नहीं है जो गरीबी को छु-मंतर कर दें और सारी मुश्किलें हल हो जाये । ...आजादी के मायने ये नहीं होते कि हम जो मनमानी करना चाहे उसके लिये हमें छूट मिल गई है । इसके विपरीत , वह हमें मौका देती है कि हम अपना फर्ज पूरा करें । ...इसका अर्थ यह है कि सरकार को साहस के साथ स्वतंत्र निर्णय ले सकना चाहिये । हम आजाद इसलिये हुये जिससे हम लोगो की जिन्दगी बेहतर बना सके । हमारे अंदर जो कमजोरियां सामंतवाद, जाति प्रथा , और अंधविश्वास के कारण पैदा हो गई थी । और जिनकी वजह से हम पिछडे रह गये थे उनसे लोहा लें और उन्हें पछाड दें । " जाहिर अगर आजादी के बोल  प्रधानमंत्री मोदी की जुंबा पर लालकिले के प्रचीर से भाषण देते वक्त आ ही गये तो दलित शब्द बाखूबी रेगेंगा । आदिवासी शब्द भी आ सकता है । और चुनावी बरस है तो आरक्षण के जरीये विकास की नई परिभाषा भी सुनने को मिलेगी । पर इस कडी में ये समझना जरुरी है कि आजादी शब्द ही देश के हर नागरिक के भीतर तंरग तो पैदा करता ही है । फिर आजादी के दिन राष्ट्रवाद और उसपर भी सीमा की सुरक्षा या फौजियों के शहीद होने का जिक्र हर दौर में किया गया। फिर मोदी सरकार के दौर में शांति के साथ किये गये सर्जिकल स्टाइक के बाद के सियासी हंगामे को पूरे देश ने देखा-समझा। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी लालकिले के प्रचीर से विपक्ष के सेकुलरइज्म पर हमला करते हुये किसतरह के राष्ट्रवाद का जिक्र करेंगें, इसके इंतजार तो देश जरुर करेगा। लेकिन याद कीजिये 42 बरस पहले इंदिरा गांधी ने कैसे विपक्ष को निशाने पर लेकर राष्ट्रवाद जगाया था, 'हमने आज यहां राष्ट्र का झंडा फहराया है और हम इसे हर साल फहराते हैं क्योंकि यह हमारी आजादी से पहले की इस गहरी इच्छा की पूर्ति करता है कि हम भारत का झंडा लालकिले पर फहरायेंगे। विपक्ष के एक नेता ने एक बार कहा था : यह झंडा आखिर कपडे के एक टुकडे के सिवाल और क्या है ? निश्चय ही यह कपडे का एक टुकडा है , लेकिन एक ऐसा टुकडा है जिसकी आन-बान-शान के लिये हजारो आजादी के दीवानों ने अपनी जानें कुर्बान कर दी । कपड़े के इसी टुकडे के लिये हमारे बहादुर जवानों ने हिमालय की बर्फ पर अपना खून बहाया। कपड़े का ये टुकडा आरत की एकता और ताकत की निशानी है । इसी वजह से इसे झुकने नहीं देना है । इसे हर भारतीय को , चाहे वह अमीर हो या गरीब , स्त्री हो या पुरुष , बच्चा हो या युवा अथवा बूढा , सदा याद रखना है । यह कपडे का टुकडा अवश्य है लेकिन हमें प्राणो से प्यारा है ।" तो इमरजेन्सी लगाकर । नागरिकों के संवैधिनिक अधिकारों को सस्पेंड कर ।

42 बरस पहले जब इंदिरा गांधी देश के लिये मर मिटने की कसम खाते हुये लालकिले के प्रचीर से अगर अपना भाषण ये कहते हुये खत्म करती है, ' ये आराम करने और थकान मिटाने की मंजिल नहीं है ; यह कठोर परिश्रम करने की राह है । अगर आप इस रास्ते पर आगे बढते रहें तो आपके सामने एक नई दुनिया आयेगी , आपको एक नया संतोष प्राप्त होगा , क्योकि आप महसूस करेंगे कि आपने एक नए भारत का , एक नए इतिहास का निमार्ण किया है । जयहिन्द । "

तो फिर अब इंतजार कीजिये 15 अगस्त को लालकिले के प्रचीर से प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का । क्योंकि 42 बरस पहले इमरजेन्सी लगाकर इंदिरा ने नए भारत का सपना दिखाया था । और 42 बरस बाद लोकतंत्र का मित्र बनकर लोकतंत्र खत्म करने के सोच तले न्यू इंडिया का सपना जगाया जा रहा है और 15 अगस्त को भी जगाया जायेगा।

12 comments:

  1. Great blog Bajpai ji👏
    Sir we're really missing those facts & the tough journalism which you carried. The country needs your kind of journalists. We hope you join any news channel soon.

    ReplyDelete
  2. अबकी बार विकास की बरसात होगी

    ReplyDelete
  3. Sahi hai sir. Aap ka intzaar hai tv par.

    ReplyDelete
  4. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  5. Great blog sir u r great journlist in india

    ReplyDelete
  6. U r gr8 now becoming celebrity

    ReplyDelete
  7. Adamya sagas h SAP me, to Kaiser koi jhuka payega. Kayron ka samay h ye bhi Gujarat jayega..Best of Luck..Jitendra Hardoi

    ReplyDelete
  8. अदम्य का साहस है आप में तो कैसे कोई झुका पायेगा
    कायरों का समय है अभी ये भी गुज़र जायेगा

    ReplyDelete
  9. वाह सर।

    आपकी भाषा शैली भी लाजवाब है

    ReplyDelete
  10. Dear sir can you send me your contact details?

    ReplyDelete