वाजपेयी की कविताएं, वाजपेयी के साहसिक निर्णय। वाजपेयी की संवेदनशीलता । वाजपेयी की कश्मीर नीति। वाजपेयी की सरकार चलाने की काबिलियत। अटल बिहारी वाजपेयी को कैसे याद करें या किन किन खांचो में वाजपेयी को बांटे ? ये सवाल भी है और शायद जवाब भी कि वाजपेयी को किसी एक फ्रेम में माला पहनाकर याद करते हुये भुलाया नहीं जा सकता है। यादों की परतें वाजपेयी के सरोकार से खुलेगी तो फिर नेहरु से लेकर मोदी तक के दौर को प्रभावित करने वाले शख्स के तौर पर रेखाये खिंचने लगेंगी। जिक्र नेहरु की कश्मीर नीति पर संसद के भीतर पिछली बेंच पर बैठे युवा अटल बिहारी वाजपेयी के उस आक्रोश से भी छलक जायेगा जो श्यामाप्रसाद मुखर्जी की सोच तले नेहरु को खारिज करने से नहीं चूकते। पर अगले ही क्षण नेहरु के इस एहसास के साथ भी जुड़ जाते है कि राष्ट्र निर्माण में पक्ष-विपक्ष की सोच तले हालातों को बांटा नहीं जा सकता बल्कि सामूहिकता का निचोड ही राष्ट्रनिर्माण की दिशा में ले जाता है। और शायद यही वजह भी रही कि नेहरु के निधन पर संसद में जब वाजपेयी बोलने खड़े हुये तो संसद में मौजूद तमाम धुरंधर भी एकटक 40 बरस के युवा सांसद की उस शब्दावली में खो गये जो उन्होने नेहरु के बारे कहीं।
देश की सांस्कृतिक विरासत और आजादी के संघर्ष को एक ही धागे में पिरोकर वाजपेयी ने नेहरु के बारे में जो कहा उसके बाद तब के उपराष्ट्पति जाकिर हुयैन से लेकर गुलजारी लाल नंदा ने भी तारिफ की। ये वाजपेयी का ही कैनवास था कि राष्ट्रीय स्वसंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर जनसंघ की उम्र पूरी होने के बाद जब 1980 में बीजेपी बनी तो वाजपेयी ने अपने पहले ही भाषण में गांधीवादी समाजवाद का मॉडल अपनी पार्टी के लिये रखा । यानी नेहरु की छाप वाजपेयी पर घुर विरोधी होने के बावजूद कितनी रही ये महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि विचारो का समावेश कर कैसे भारत के लोकतांत्रिक मूल्यो की जड़ों को और मजबूत किया जा सकता है , इस दिशा में बढ़ते वाजपेयी के कदम ने ही उन्हें जीवित रहते वक्त ही एक ऐसे लीजेंड स्टेट्समैन के तौर पर मान्यता दिला दी कि देश में किसी भी प्रांत में किसी भी पार्टी की सरकार हो या फिर देश में उनके बाद मनमोहन सिंह की सरकार बनी या अब नरेन्द्र मोदी अगुवाई कर रहे है लेकिन हर मुद्दे को लेकर वाजपेयी डाक्टरिन का जिक्र हर किसी ने किया । कल्पना कीजिये कश्मीर के अलगाववादी नेता भी वाजपेयी की कश्मीर नीति के मुरीद हो गये और लाहौर यात्रा के दौरान वाजपेयी ने जब पाकिसातन की जनता को संबोधित किया तो नवाज शरीफ ये बोलने से नहीं चूके कि "वाजपेयी जी आप तो पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते है।"
यूं वाजपेयी के बहुमुखी व्यक्तितव की ये सिर्फ खासियत भर नहीं रही कि आज शिवसेना को भी वाजपेयी वाली बीजेपी चाहिये। और ममता बनर्जी से लेकर चन्द्रबाबू नायडू और नवीन पटनायक से लेकर डीएमके-एआईडीएमके दोनों ही वाजपेयी के मुरीद रहे और है । बल्कि बीजेपी की धुर विरोधी कांग्रेस को भी वाजपेयी अपने करीब पाते रहे । इसीलिये तेरह दिन की सरकार गिरी तो अपने भाषण में वाजपेयी ने बेहद सरलता से कहा, विपक्ष कहता है वाजपेयी तो ठीक है पर पार्टी ठीक नहीं । यानी मैं सही हू और बीजेपी सही नहीं है। तो मैं क्या करूं। पर मेरी पार्टी मेरी विचारधारा बीजेपी से जुडी है। " यूं सच यही है कि सत्ता चलाने का हुनर भर ही नहीं बल्कि नीतियों का समावेश कर भारतीय जनमानस के अनुकूल करने की सोच कैसे वाजपेयी ने अपने राजनीतिक जीवन में ढाली और हर किसी को प्रभावित किया ये इससे भी साबित होता है कि पीवी नरसिंह राव की आर्थिक सुधार की नीतियों को ट्रैक-टू के जरीये 1998-2004 के दौर में जानते समझते हुये अपनाया कि संघ परिवार इसका विरोध करेगा ।
भारतीय मजदूर संघ व स्वदेशी जागरण मंच के निशाने पर होंगें। पर डिसइनवेस्टमेंट से लेकर एफडीआई और खुले बाजार के प्रवक्तक के तौर पर वाजपेयी ने सरकार चलाते हुये तब भी कोई समझौता नहीं किया जब दत्तोपंत ठेंगडी , गुरुमूर्त्ति , गोविंदाचार्य और मदगनदास देवी उनकी नीतियों का खुलेतौर पर विरोध करते नजर आये । विरोध हुआ तो वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को पद से हटाया जरुर लेकिन उसके बाद बने वित्तमंत्री जसवंत सिंह ने भी आर्थिक सुधार के ट्रैक-टू की लकीर को नहीं छोड़ा।
फिर खासतौर से मंडल-कमंडल में फंसे देश के बीच वाजपेयी के सामने ये भी मुश्किल थी कि वह किस दिसा में जाये । पर सामूहिकता का बोध लिये राजनीति को साधने वाले वाजपेयी की ही ये खासियत थी कि ना तो वह वीपी सिंह के मंडल कार्ड के साथ खडे हुये और ना ही सोमनाथ से अयोध्या तक के लिये निकली आडवाणी की रथयात्रा में कही नजर आये । यानी वाजपेयी भारतीय समाज के उस मर्म को बाखूबी समझते रहे कि अति की सोच भारत जैसे लोकतांत्रिक-सेक्यूलर देश में संभव नहीं है । इसलिये पीएम की कुर्सी पर बैठे भी तो उन विवादास्पद मुद्दो को दरकिनार कर जिसपर देश में सहमति नहीं हैा । पर बीजेपी ही नही संघ परिवार के भी वह मुख्य मुद्दे है । धारा 370 , कामन सिविल कोड और अयोध्या में राम मंदिर । यानी सहमति बनाकर सत्ता कैसे चलनी चाहिये और सत्ता चलानी पडे तो सहमति कैसे बनायी जानी चाहिये । इस सोच को जिस तरह वाजपेयी ने अपने राजनीतिक जिन्दगी में उतारा उसी का असर रहा कि नेहरु ने जीते जी युवा वाजपेयीा की पीठ ठोंकी । इंदिरा गांधी भी अपने समकक्ष वाजपेयी की शख्सियत को नकार नहीं पायी । सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी वाजपेयी के मुरीद रहे बिना राजनीति साध नहीं पाये। और इन सब के पीछे जो सबसे मजबूत विचार वाजपेयी के साथ रहा वह उनकी मानवीयता के गुण थे । और इसकी जीती जागती तस्वीर लेखक यानी मेरे सामने 2003 में तब उभरी जब वाजपेयी आंतकवाद से प्रभावित कश्मीर पहुंचे । और वहा उन्होने अपने भाषण में संविधान के दायरे का जिक्र ना कर जम्हूरियत , कश्मीरियत और इंसानियत का जिक्र किया । और भाषण के ठीक बाद श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही प्रेस कान्फ्रेस में जब मैने अपना नाम और संस्धान का नाम [ पुण्य प्रसून वाजपेयी , एनडीटीवी इंडिया ] बताकर सवाल किया , " कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिये जम्हूरियत , कश्मीरियत तो छीक है पर इंसानियत के जिक्र की जरुरत उन्हें क्यो पडी । " तो देश के प्रधानमंत्री वाजपेयी ने बेहद सरलता से जवाब दिया। " क्या एक वाजपेयी काफी नहीं है । और फिर जोर से ठहाका लगाकर बोले इंसानियत यही है। "
और शायद यही वह इंसानियत रही जिसकी टीस 2002 में वाजपेयी के जहन में गुजरात दंगों के वक्त तब उभरी जब उन्होने अब के पीएम और तब के गुजरात सीएम नरेन्द्र मोदी को 'राजधर्म" का पाठ पढ़ाया। और शायद राजधर्म को लेकर ही वाजपेयी के जहन में हमेशा से इंसानियत रही तभी तो अपनी कविता "हिन्दू तन-मन" में साफ लिखा,
'होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम।"
गोपाल-राम के नामों पर कब मैने अत्याचार किया ?
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर में नरसंहार किया ?
कोई बतलाए काबुल मे जा कर कितनी मस्जिद तोडी
भू भाग नही शत शत मानव के हदय जीतने का निश्चय
हिन्दु तन-मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय ।।
you r alwys with indian people
ReplyDeleteSalute sir,,,
ReplyDeleteवाजपेई की बीजेपी और वर्तमान की बीजेपी में बड़ा फर्क है... अलविदा अटल जी😢🙏
ReplyDeleteअटल बिहारी वाजपेयी... क्या कहूँ क्या ना कहूँ.. यूँ भले ही वाजपेयी के एक्टिव राजनीतिक काल को मैं खुद के अॉब्जरवेशन से भले ना समझ पाया... लेकिन सच यह है कि जितना मैंने उन्हें समाचारों आलेखों में पढ़ा या पापा से उनके किस्से सुनें उससे मात्र इतना समझा कि अगर राजनीति में व्यक्ति के बदले नीति के आधार पर विरोध किया जाए... तो गंदी राजनीति अच्छी भी हो सकती है...शायद ही मैं या हममें से कई किसी राजनीतिज्ञ के मौत पर यूँ दुखी होंगे लेकिन आज वाजपेयी की मौत ने शायद मुझे भी आज कहीं ना कहीं झकझोर दिया....सच बड़ा दुख हुआ...आज कुछ और नहीं... लोकप्रिय कई हो सकते हैं, एक विशेष समुदाय का सामुदायिक जननेता कोई भी हो सकता है... लेकिन हर कोई जननेता नहीं हो सकता है... अटल जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि....!
ReplyDeleteअद्भुत शब्दों के द्वारा अटल जी का जिक्र कर आपने
ReplyDeleteसचमुच उनकी महानता का अद्वितीय वर्णन किया।
अटल जी सदा ही हमारे बीच रहेंगे।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।।����
बाजपेई जी का व्यक्तित्व व कद इतना बड़ा था कि बीजेपी का वर्तमान शीर्ष नेतृत्व उनके पैरों तक की भी पहुंच नहीं रखता
ReplyDeleteBajpai ji Adarsh bale neta the .hame aise hi neta chahiye.
ReplyDeleteIf you want I can create a website for you. As you are a public figure and a credible journalist, You can earn from your website and also reach to million of people in the country.
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विनम्र श्रद्धांजलि - श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी - ब्लॉग बुलेटिन परिवार में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteBlog ki kaun si site ha koi mujhe bta skta h plz free wali
ReplyDeleteGoogle Blogger
DeleteAapka blog read Kar hi Santosh karna pad Raha hai, ऐसी प्रस्तुति कौन देग, जब आपकी तुलना दूसरे पत्रकारों से करता हु तो दूर दूर तक कोई नज़र नही आता। आप TV पे आइये, नही आ सकते तो FB पे आकर देश का हाल बताईये। मुझे लगता है आप झुकने वालो में से नही है।आपकी पत्रकारिता 2014 से पहले लोबो को बहुत अच्छी लगती थी, अब चुभती है,परवाह न करे , हुम् भी तोह देखे,ऊँची ऊंची बातें करनेवाले लोग कितना गिर सकते है।
ReplyDeleteAAJ aap ki jarurat hai Desh ko Nidar patrkarita Aap jaisa koi nhi kar sakta
ReplyDeleteI will waiting.
I need to speak with you urgently, 9818369838. aman ahluwalia
ReplyDeletePm जब स्मृति स्थल पर आ रहे तो वहा सभी लोग खड़े हो कर उनकी अभिवादन कर रहे थे किन्तु सर संघ मोहन भागवत बैठा रहा
ReplyDeletePm जब स्मृति स्थल पर आ रहे तो वहा सभी लोग खड़े हो कर उनकी अभिवादन कर रहे थे किन्तु सर संघ मोहन भागवत बैठा रहा
ReplyDeleteबहुत उम्दा आलेख सर ।
ReplyDelete