Wednesday, December 19, 2018

स्वयंसेवक की बेबाक चाय : चुनाव का एलान 25 दिसबंर को हो जाये या मोदी अयोध्या चले जाये जाये तो ........



इस बार तो चाय कही ज्यादा ही गर्म है ।
क्यों चाय तो हर बार गर्म ही रहती है ।
न न गर्म चाय का मतलब चाय का मिजाज नहीं पिलाने वाले की गर्माहट है ।
क्यों ऐसे क्या कह दिया हमने ।
आप जिस तरह पानी पर लकीरे खिंच रहे है .... मुझे लगता नहीं है कि ये लकीरे टिकेगी ।
आपको इसलिये नहीं लगता क्योकि आप भीतर नहीं है बल्कि बाहर से देख रहे है ।
ऐसा क्या देख लिये आपने ....
मेरे और स्वयसेवक महोदय की गोल -मोल बातो पर प्रोफेसर साहेब सीधें बोल पडे...आप जो देख रहे है वह कहा तक सही होगा कह नहीं सकता लेकिन 15 बरस की सत्ता जिस अंदाज में बीजेपी ने मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ में गंवायी है उसने झटके में शिवराज और रमन सिंह की काबिलियत को मोदी-शाह से बेहतर करार दे दिया है ।
दरअसल चाय पर जिस तरह स्वयसेवक महोदय ने पहली बार 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर अलग अलग कयास का जिक्र किया वह वाकई चौकाने वाला था । क्योकि स्वयसेवक के कयास में हार को जीत में बदलने के लिये मोदी-शाह की ऐसी ऐसी बिसात थी जो इस बात का एहसास करा रही थी कि पांच राज्यो में चुनावी हार ने सत्ता को अंदर से हिला दिया है ...और अब जीत के लिये कोई भी रास्ता पकडने की दिशा में चिंतन मनन हो रहा है । और जैसे ही मंगलवार की शाम चाय पर बैठे वैसे ही स्वयसेवक महोदय ने ये कहकर हालात गंभीर कर दिये कि मान लिजिये अटलबिहारी वाजपेयी की जन्मतिथि के दिन यानी 25 दिंसबर को ही आम चुनाव का एलान हो जाये तब आप क्या कहेगें ।
जाहिर है इस वक्तव्य ने चैकाया भी और चौकाने से ज्यादा इस सोच का कोई मतलब भी नहीं लगा । लेकिन स्वयसेवक महोदय एक के बाद एक कर तर्क गढने लगें ।
देखिये काग्रेस ने किसानो की कर्ज माफी का जो दाव फेका है उसका जवाब मोदी सत्ता कैसे दे सकती है । सरकार का खजाना तो खाली है । और अगर किसानो को राहत देने के लिये तीन लाख करोड रुपये लुटा भी देती है तो भी मैसेज तो यही जायेगा कि काग्रेस ने किया तो मोदी सत्ता को भी करना पडा ।
तो क्या सिर्फ इसी डर से जल्द चुनाव कराने का एलान हो जायेगा । मेरे ये कहते ही स्वयसेवक महोदय बोल पडे । आप सवा ना करें तो हालात को समझे । बात सिर्फ कर्ज माफी की नहीं है । चुनाव में जीत के लिये वह कौन सा पर्सेप्शन है जो बीजेपी के पारंपरिक वोटरो के जहन में रेग सकता है और वह मोदी की सत्ता के जीत के लिये कमर कस लें ।
राम मंदिर है ना ।
देखिये आप बीच में ना टोके । इस बार प्रोफेसर साहेब को स्वयसेवक महोदय ने टोका । और फिर बोल पडे ..राम मंदिर ही है लेकिन पहले ये हालात समझे...सरकार को अंतरिम बजट देश के सामने रखना है । उससे पहले आर्थिक समीक्षा आयेगी । जो विकास दर के संकेत देगी । या कहे देश की माली हालत को बतायेगी । जाहिर है जो हालात पांच राज्यो के  चुनाव में उभरे । खासकर ग्रामिण वोटरो के वोट बीजेपी को सिर्फ 35 फिसदी ही मिले औकर काग्रेस को 55 फिसदी वोट मिले । फिर शहरी वोटरो में भी काग्रेस से बीजेपी पिछड गई । तो इसके मतलब समझे । एक तरफ बजट में बताने-दिखाने के लिये कुछ भी नहीं है तो दूसरी तरफ जिस लिबरल इक्नामी को मोदी सत्ता अपनाये हुये है वह राजनीतिक तौर पर फेल हो चली है । और राहुल गांधी की राजनीति ने अब आर्थिक खेल में भी मोदी को फंसा दिया है ।
यानी
यानी जो खेल बीचे चार बरस से अलग अलग रियायत या सुविधा के नाम पर मोदी सत्ता केल रही थी । पांचवे बरस या कहे चुनावी बरस में उसी खेल को अपनी बिसात पर खेलने के लिये काग्रेस ने मोदी को मजबूर कर दिया है । लेकिन फिर सवाल वहीं है कि 2013-14 में मोदी कुछ भी कहने के लिये खुले आसमान में उडा रहे थे । क्योकि वह सत्ता में नहीं थे । तो अब राहुल गांधी उसी भूमिका में है और मोदी सत्ता में है तो वह जवाबदेही के लिये बाध्य है ।
पर मोदी किसी भी जवाबदेही को अपने मत्थे कहा लेते है । वह तो काग्रेस को ही निशाने पर लेकर अतित के हालातो को ज्यादा जोर शोर से उठाते है ।
ठीक कह रहे है प्रोपेसर साहेब....लेकिन पांच राज्योके चुनाव परिणाम ने बता दिया आपका काम ही मायने रखता है । और तेलगना इसका एक बेहतरीन उदाहरण है । जहा ना राहुल - चन्द्रबाबू की दाल गली ना ही हिन्दुत्व की बासुरी बजाते योगी आदित्यनाथ की । फिर तुरंत चुनाव मैदान में कूदने के हालात विपक्ष को एकजूट होने भी नहीं देगें । खासकर यूपी में गढबंधन बनेगा नही ।
जल्दी चुनाव बेहद घातक साबित हो सकता है महोदय । अब प्रोफेसर बोले तो तथ्यो को गिनाने के लिहाज से बोले । और तल्खी भरे अंदाज में कहा बंगाल में ममता काग्रेस के साथ नहीं आये तो मुस्लिम वोट बैक क्या सोचेगा । यूपी में अखिलेश-मायावती काग्रेस के साथ ना आये तो दलित-मुस्लिम वोट बैक क्या सोचेगा । अजित सिंह अगर काग्रेस के साथ ना आये तो जाट वोट बैंक क्या राजस्थान में काग्रेस के साथ जाकर यूपी में काग्रेस के विरोध में खडा हो पायेगा । यानी खाप भी बंटेगी क्या । नवीन पटनायक को उडीसा में बीजेपी से ही दो दो हाथ करने है तो रणनीति के तौर पर वह काग्रेस का विरोध कैसे करेगें । चन्द्रशेखर राव की भूमिका ममता के साथ खडे होकर काग्रेस विरोध की कैसी होगी । 2019 के लिये बिछती बिसात में गठबंधन की जरुरत क्षत्रपो को है या फिर काग्रेस को । और जनादेश का मिजाज ही जब बीजेपी विरोध का ये हो चला है कि 15-15 बरस पुरानी बीजेपी सत्ता हवा हवाई हो रही है तो फिर क्षत्रपो की सत्ता कैसे टिकेगी अगर ये मैसेज जनता के बीच जाता है कि काग्रेस का विरोध बीजेपी को लाभ पहुंचा सकता है । तो क्या जिन हालातो में मोदी सत्ता चली उसने अपने आप को एक ऐसी धुरी बना लिया जहां तमाम विपक्ष तमाम अंतर्विरोधो के बावजूद मोदी सत्ता के खिलाफ एकजूट होगा ही । और मोदी सत्ता बीजेपी या संघ परिवार के तमाम अंतरविरोध के बीच भी अपनी 4 बरस से खिंच रही लीक छोडेगी नहीं तो चुनाव भी जल्द कैसे होगें ।
...आपको तो ये बताना चाहिये कि अब मोदी-शाह के पास कौन सा ब्रमास्त्र है । जिसका प्रयोग 2019 के चुनाव से एन पहले होगा ।
हा हा हाल हा ....ठहके लगाते हुये स्वयसेवक बोले ... जब जनता को सपना बेच सकते है तो खुद के लिये भी सपना बुन सकते है । और सपने की ही कडी में 25 दिसबंर के चुनाव में जाने का एलान हो सकता है ।
और ना हुआ तो ....
प्रोफेसर जैसे ही बोले वैसे ही स्वयसेवक महोदय भी बोल पडे ...तब तो किसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ही अयोध्या में राम मंदिर की ईट को उठाते-जोडते नजर आ जायेगें .... तब आप क्या सोचियेगा ।
क्या कह रहे आप । प्रधानमंत्री तो सबका साथ सबका विकास का नारा लगाते हुये चल रहे है । और पीएम बनने के बाद अयोध्या गये भी नहीं है । मेरा सवाल खत्म होता उससे पहले ही स्वयसेवक महोदय बोल पडे ...
 तो हो सकता है प्रधानमंत्री मोदी एलान कर दें राम मंदिर बनेगा । और खुद ही कार सेवक के तौर पर नजर आ जाये..तब क्या होगा ।
होगा क्या ...हंगामा मच जायेगा....
और क्या चाहिये ..... संघ परिवार मोदी के पीछे एकजूट खडा हो जायेगा । वोटो का नहीं बल्कि समाज का ही ध्रुवीकरण हो जायेगा । झटके में किसान-मजदूर , बेरोजगारी या आर्थिक बदहाली के सवाल हाशिये पर चले जायेगें ।
बात हजम हो नहीं पा रही है मान्यवर .... अब मुझे टोकना पडा । 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वस के बाद क्या हुआ था । 1996 में सत्ता मिली तो 13 दिन में ही गिर गई । बीजेपी तब अनट्चबेल हो गई थी । और 1996 में बतौर प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा भी था कि बीजेपी कोई अछूत नहीं है जो उसके साथ कोई खडा नहीं है । लेकिन फिर याद किजिये 1998-99 में तमाम राजनीतिक दल साथ तभी आये जब राम मंदिर, धारा 370 और कामन सिविल कोड को ठंडे बस्ते में डालने का निर्णय बीजेपी ने लिया ।
जो कहना है कह लिजिये ...लेकिन इस सच को तो समझे क्षत्रपो की फौज सत्ता चाहती है । और सत्ता किसी की भी रहे । कौन सी भी मुद्दे रहे । क्या फर्क पडता है । कश्मीर में महबूबा बीजेपी के साथ सत्ता के लिये ही आई । पासवान ने अतित में बीजेपी को क्या कुछ नहीं कहा है । लेकिन आज वह बीजेपी के साथ सत्ता में है ना । नीतिश कुमार ने ही बीजेपी छोडिये मोदी को लेकर क्या क्या नहीं कहा लेकिन आज वह मोदी के मुरिद बने हुये है क्योकि सत्ता में रहना है । तो अब हालात बदल चुके है । सत्ता होगी तो सभी साथ होगें । और सत्ता नहीं तो फिर कोई साथ ना होगा । अभी तो कुशवाहा ने छोडा है इंतजार किजिये असम से खबर जल्द ही आयेगी ...मंहत ने भी बीजेपी का साथ छोड दिया ।
देखिये आप जो कह रहे है वह असभव सा है । जिसे कोई मानेंगा नहीं लेकिन आपकी बातो से ये तो महसूस हो रहा है कि मोदी-शाह की सत्ता पर खतरा मंडरा रहा है और वह कोई तुरप का पत्ता खोज रहे है जिससे सत्ता बची रह जाये ।
मेरे ये कहते ही प्रोफेसर साहेब बीच में कूद पडे....जी ठीक कह रहे है आप आजही तो नागपुर से खबर आई कि कोई किसान नेता किशोर तिवारी है उन्होने बकायदा सरसंघचालक मोहन भागवत और भैयाजी जोशी को खत लिखकर कहा है कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नीतिन गडकरी को बनाये ।
तो आप क्या कहना है कि बीजेपी या संघ के भीतर भी आवाज उठ रही है ।
क्या वाकई ऐसा हो रहा है ..मुझे स्वयसेवक महोदय से पूछना पडा ।
आप कह रहे है तो हवा कास रुख बदला है ये संकेत तो है ...लेकिन नया सवाल यही है कि सत्ता कोई छोडना चाहता नहीं है और सत्ता बरकरार रहे इसके लिये तमाम ताने-बाने तो बुले ही जायगें...
जारी....   

14 comments:

  1. Only hindutav save modi now vikas nahi chalega ram mandir lana parega

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    मेरे प्रिय आत्मन!
    पुण्यप्रसूनबाजपेईजी
    प्रणाम!
    देश है दलोँ के दलदल मेँ और क्या मुक्ति है कमल मेँ क्यूँकि कमल भी है कीचड मेँ!
    "राजीव भाई दीक्षित" के सपनोँ का भारत! बनाने हेतु जो भी दल समर्पण के साथ आत्मसात कर लेगा उसे मै देश की दिशा व दशा बदलने का अन्तिम विकल्प दे सकता हूँ जिसका दुष्परिणाम ये होगा कि यू0पी0ए0 और एन0डी0ए0 एकसाथ अपना वजूद खो देगेँ अर्थात देश सदैव के लिए दलोँ के दलदल से मुक्त हो जाएगा तो सभी के सभी थोडा सोँचे!/ थोडा विचार करेँ!/ थोडा ख्याल करेँ! कि वह सौभाग्यशाली दल कौन हो सकता है? और कौन होगा? जो भारत का भाग्यविधाता बनकर 133करोड भारतीयोँ के सौभाग्य की अमरगाथा लिख दे।-जयहिन्द!

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  3. Sir Masterstroke mara apke iss blog ne

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  4. कब मुलाकात होगी रात 9 बजे???? Bhout mudata ho gayi Bhai..! Apko sunane ko dil bhout chahat hai rozana, ab dil bhi nahi krta khabrein sunane ko, viraan si lagati hai khabaro ki duniya,...... I miss you.. Brother

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  5. लगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन नहीं है। लोकतन्त्र में नेता/जनप्रतिनिधि बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
    सत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र का अर्थ - गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआँतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र, अवैध व्यापारतन्त्र, अवैध व्यवसायतन्त्र, हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) आदि है। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
    निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। यही कारण है कि देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी, प्रान्तीय, मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी समस्यायें बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
    गलत चुनाव पद्धति के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय उम्मीदवार और राजनैतिक दल करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।

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  6. सर सिर्फ दस लोगों ने ही coment की है तो कम से कम आप बताइए कितने लोग आपके blog पढ़ते हैं please सर कुछ कीजिए और आप फेसबुक पर लाइव होकर अपना शो शुरू कीजिए और ईस तानाशाह के खिलाफ लड़ने की हमे ताकत दीजिए।

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  7. सत्ता में वही बैठैगा जिसे कारपोरेट, मीडिया, संत बिठालेंगें
    अंत भला तो सब भला। कुंभ नहा आइए सत्ता की डुबकी प्रयागराज में लगने वाली है।

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  8. BJP अंदर से खोखला हो रहि है लेकीन बाहर दिखती नहि

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  9. पिछले कुछ वर्षों से हम देख रहे हैं कि देश की जनता और नेता दोनो ही उलझे हुए हैं मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुस्लिम, राम-हनुमान, गाय-गोबर और राफेल में । इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि साम्प्रदायिक पार्टी और नेता जब भी सत्ता में आते हैं, वे भारत को पाकिस्तान बना देते हैं । और पाकिस्तान अपनी साम्प्रदायिक मानसिकता वाली राजनीति के कारण रखैल बनकर रह गया अमेरिका और चीन का । क्या हम ऐसे नेताओं, पार्टियों का समर्थन इसलिए कर रहे हैं कि पाकिस्तान को अपना आदर्श मानकर उसकी तरह होना चाहते हैं ?

    जिन समस्याओं पर नेताओं, पार्टियों जनता को ध्यान देना चाहिए उसके प्रति पूरी तरह से लापरवाह हैं सभी । हनुमान की जाति और नागरिकता को लेकर परेशान हैं सभी ।

    इसी बीच सुखद खबर यह आ रही है कि मणिपुर ने महत्वपूर्ण कदम उठा लिया ।

    देश में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के बावजूद केंद्र सरकार की ओर से कोई कानून नहीं बना है. लेकिन मणिपुर की एन बीरेन सिंह सरकार ने ये कर दिखाया है. 21 दिसंबर 2018 को मणिपुर विधानसभा में मॉब लिंचिंग के लिए एक कानून बनाया गया है. बिल का नाम है प्रोटेक्शन फ्रॉम मॉब वायलेंस बिल, 2018 . इसके तहत ये प्रावधान है कि अगर किसी भीड़ ने किसी की जान ली तो दोषियों को आजीवन कारावास और पीड़ित परिवार को 5 लाख रुपए तक की मदद दी जाएगी. देश में अपनी तरह का ये पहला प्रयास है.

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