जैसे जैसे लोकसभा चुनाव की तारिख नजदीक आती जा रही है वैसे वैसे बिसात पर चली जा रही हर चालो से तस्वीर साफ हो होती जा रही है । मोदी सत्ता की हर पालेसी अब बिखरे या कहे रुठे वोटरो को साथ लेने के लिये है । तो विपक्ष अब उस गणित के आसरे वोटरो को सीधा संकेत दे रहा है जहा 2014 की गलतीऔर 2018 तक मोदी की असफलता को महागठंबंधन के धागे में पिरो दिया जाये । गरीब अगडो के लिय दस फिसदी आरक्षण के बाद देशभर में नीतियो के जरीये वोटरो को लुभाने के लिय तीन कदम उठाने की तैयारी बजट सत्र के वक्त मोदी सत्ता ने कर ली है । चूकि बजट अंतरिम पेश होगा तो बडा खेल नीतियो को लेकर होगा। पहला निर्णय, तेलगना के केसीआर की तर्ज पर चा चार हजार रुपये किसान मजदूरो को बांटने की दिशा में जायेगें । क्योकि मोदी सत्ता को लग चुका है कि जब रुपयो को पालेसी के तहत केसीआर बांट कर चुनाव जीत सकते है तो फिर वह सफल क्यो नहीं हो सकते । और इसी को ध्यान में रखकर रिजर्व बैक से तीन लाखकरोड रुपये निकाले जा रहे है । दूसरा निर्णय , काग्रेस जब राज्य में बेरोजगारी भत्ता बांटने की बात कर बेरोजगार युवाओ को लुभा सकती है तो फिर देश में रोजगार ना होने के सिर पर फुटते ठिकरे के बीच समूचे देश में ही रोजगार भत्ते का एलान कर दिया जाये । तीसरा, पेंशन योजना के पुराने चेहरे को ही फिर स जिन्दा कर दिया जाये । जिससे साठ बरस पार व्यक्ति को पेंश न का लाभ मिल सके । जाहिर है तीनो कदम उस राहत को उभारते है जो गवर्नेंस या कामकाज से नीतियो के आसरे देश को मिल ना सका । यानी इकनामी डगमगायी या फिर एलानो की फेरहिस्त ही देश में इतनी लंबी हो गई कि चुनावी महीनो के बीच से गुजरती सत्ता के पास सिवाय सुविधा की पोटली खोलने के अलावे कोई दूसरा आधार ही नहीं बचा । इस कडी में एक फैसला इनकमटैक्स में रियायत का भी हो सकता है । क्योकि सु्ब्रमण्यम स्वामी की थ्योरी तो इनमटैक्स को ही खत्म करने कीरही है । लेकिन मोदी सत्ता अभी इतनी बडी लकीर तो नहीं खिंचेगी लेकिन पांच लाख तक की आय़ पर टैक्स खत्म करने का एलान करने से परहेज भी नहीं करेगी । लेकिन इन एलानो क साथ जो सबस बडा सवाल मोदी सत्ता को परेशान कर रहा ह वो है कि एलानो का असर सत्ता बरकरार रखेगा या फिर जाती हुई सत्ता में सत्ता के लिय एलान की महत्ता सिर्फ एलान भर है क्योकि साठ दिनो में इन एलानो को लागू कैसे किया सकता है ये असंभव है ?
तो दूसरी तरफ विपक्ष की बिसात है । जिसमें सबसे बडा दांव सपा-बसपा गठबंधन का चला जा चुका है । और इस दांव ने तीन संकेत साफ तौर पर मोदी सत्ता को दे दिये है । पहला, बीजेपी यूपी में चुनावी जीत का दांव पन्ना प्रमख या बूथ मैनेजमेंट से खेलगी या फिर टिकटो के वितरण से । दूसरा , टिकट वितरण सपा-बसपा गठबंधन के जातिय समीकरण को ध्यान में रखकर बांटेगी या फिर ओबीसी-अगडी जाति के अपने पारंपरिक वोटर को ध्यान में रख कर करेगी । तीसरा, जब 24बरस पहले नारा लगा था , मिले मुलायम काशीराम , हवा में उड गये जय श्री राम । तो 24 बरस बाद अखिलेश - मायावती के मिलने के बाद राम मंदि के अलावे कौन सा मुद्दा है जो 2014 के मैन आफ द मैच रहे अमित शाह को महज दस सीट भी दिलवा दें । और इन्ही तीन संकेतो के आसरे हालातो को परखे तो मोदी-शाह की जोडी के सामने काग्रेस की रणनीति बीजेपी के राजनीतिक भविष्य पर ग्रहण लगाने को तैयार है । क्योकि सपा-बसपा के उम्मीदवारो की फेरहिस्त जातिय समीकरण पर टिकेगी।और उनके सामानातंर यूपी में अगर बीजेपी सिर्फ सवर्णो पर दाव खेलती है । तो पहले से ही हार मान लेने वाली स्थिति होगी । तोदूसरी तरफ काग्रेस ज्यादा से ज्यादा सर्वोणो को टिकट देने की स्थितिमें होगी । यानी बीजेपी का संकट ये है कि अगर दलित वोट बैक मेंगै जायव मायावती के पास नहीं जाता है तो फिर काग्रेस और बीजेपी में वह बंटेगा । इसी तरह ओबीसी का संकट ये है क मोदी सत्ता के दौर में नोटबंदी और जीएसटी ने बीजेपी से मोहभंग कर दिया है । तो ओबीसी वोट भी बंटेगा । और ब्रहमण,राजपूत या बनिया तबके में बीजेपी को लेकर ये मैसेज लगाातर बढ रही है कि वह सिर्फ जीत के लिये पारंपरिक वो बैक के तौर पर इनका इस्तेमाल करती है । और तीन तलाक के मुद्दे पर ही मुस्लिम वोट बैक में सेंध लगाने की जो सोच बीजेपी ने पैदा की है और उसे अपने अनुकुल हालात लग रह है उसके समानातंर रोजगार या पेट की भूख का सवाल समूचे समाज के भीतर है । तो उसकी काट बीजेपी योगी आदित्यनाथ के जरीये भी पैदा कर नहीं पायी । बुनकर हो या पसंमादा समाज । हालात जब समूचे तबके के बुरे है और बीजेपी ने खुले एलान के साथ मोदी-शाह की उस राजनीति पर खामोशी बरती जो मुस्लिम को अपना वोट बैंक मानने से ही इंकार कर रही थी । यानी चाहे अनचाहे मोदी-शाह की राजनीतिक समझ ने क्षत्रपो के सामने सारे बैर भूलाकर खुद को मोदी सत्ता के खिलाफ एकजूट करने की सोच पैदा की । तो मुस्लिम-दलित -ओबीसी और सर्वणो में भी रणनीतिक तौर पर खुद को तैयार रहने भी संकेत दे दिये । यानी 2019 की लोकसभा चुनाव की तरफ बढते कदम देश को उस न्यूनतम हालातो की तरफ खिंच कर ले जा रहे है जहा चुनाव में जीत के लिये ही नीतिया बन रही है । चुनावी जीत के लिये आरक्षण और जातिय बंधनो में ही देश का विकास देखा जा रहा है । चुनावी जीत की जटिलताओ को ही जिन्दगी की जटिलताओ से जोडा जा रहा है । यानी जो सवाल 2014 में थे वह कहीं ज्यादा बिगडी अवसथा में 2019 में सामने आ खडे हुये है ।
मोदी की वापिस मुमकिन नहीं
ReplyDeleteGood analysis
ReplyDeleteNice sir
ReplyDeleteशानदार विश्लेषण किया गया है।
ReplyDeleteशानदार विश्लेषण किया गया है ।
ReplyDeleteGood analysis
ReplyDeleteलोकतंत्र मॉबलिंचिंग का शिकार हो रहा है ...
ReplyDeleteदेश इन 5 सालो में बहुत अच्छी तरक्की कर सकता था पर गलत मंशा और गलत नीतियों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई. महंगे दामों में पेट्रोल डीजल बेच कर मोदी सरकार ने 12 लाख करोड़ रुपए कमाए पर यह पैसा कहां पर खर्च हुवा कुछ मालूम नहीं. स्वस्थ गंगा सेस लगा कर भी मोदी सरकार गंगा को साफ नही कर पाई. Modi जी ने कई AIIMS की घोषणा की पर एक भी AIIMS का कार्य अभी तक चालू नही हुवा है. राजस्थान के पचपदरा में रिफाइनरी का शिलान्यास कांग्रेस सरकार ने कर दिया आज इस बात को5 साल हो चुके हैं आज के वक़्त तक रिफाइनरी में प्रोडक्शन प्राम्भ हो चुका होता और रिफाइनरी के आस पास के कई जिलों में विकाश हो जाता कई उद्योग खुलते जिससे हज़ारो लोगो को रोजगार मिलता. मोदी सरकार में कोई नया एयरपोर्ट, AIIMS, IIT, IIM नही बना. बेरोजगारी मुँह फुला रही हैं जो किसी भी वक़्त एक चिंगारी बन कर उभर सकती हैं
ReplyDeleteVery nice Sir
ReplyDeleteआपने ठीक कहा अब भी मोदी जी सकता है परंतु इच्छा शक्ति होनी चाहिए आम जनता के लिए किसानों के लिए बेरोजगारों के लिए काम करने की परंतु इसकी इच्छा शक्ति नहीं है इन सभी समुदायों के लिए काम करने की यह तो बस जुमला चलाता है ग्राउंड पर काम करना नहीं चाहता जिस प्रकार इसने सर बड़ों के लिए 10 परसेंट आरक्षण दिया है इसी प्रकार अगर यह 45 योजनाएं गरीबों के लिए बेरोजगारों के लिए किसानों के लिए चला दे तो इसकी वापसी हो सकती है जिस पर जिस प्रकार से कम सरकार ने हर परिवार से एक व्यक्ति की सरकारी नौकरी दी है इसी प्रकार पूरे देश में एक व्यक्ति को नौकरी दे तथा किसानों के लिए पेट्रोल डीजल तथा अन्य प्रकार की डायरेक्ट बेनिफिट ₹10000 दे वापसी हो सकती है परंतु यह कल मैं तो चाहता ही नहीं तो इसकी वापसी क्या भाषणों से हो ग्राउंड पर काम करना नहीं चाहता इसीलिए आपसे निवेदन है यह जाते जाते हैं कुछ बेरोजगारों के लिए कुछ किसानों के लिए कुछ गरीब जनता के लिए कर जाए इस प्रकार के कुछ लेख लिखिए यह आपके लेखों को जरूर पड़ता होगा इसलिए आप के लेख में आम जनता के लिए फायदे के लिए जो कुछ भी इस को सुझाव दे सकते हैं बताया वापसी के वजह से उन सुझावों को मानले इसलिए आप अपने घर को छोड़कर इसको कुछ अच्छे अच्छे सुझाव दें जिससे यह कुछ झांसे में आ जाए और आम जनता के लिए फायदेमंद 24 योजनाएं चालू कर दे धन्यवाद
ReplyDeleteGST ,नोटबदी और उच्च संस्थाओं की दुर्गति के अलावा नकारात्मक राजनीति यानी सिर्फ दूसरे दलों की बुराई करना उन में कमियां निकालना इन सब चीजों से जनता में भी नकारात्मकता पैदा होती है, भाषणों का गिरता हुआ स्तर अनुचित शब्दों का प्रयोग, पद की गरिमा के अनुरूप भाषा का प्रयोग ना करना ही प्रधानमंत्री के लिए सम्मान पैदा नहीं करता है, स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को तुच्छ समझना या कहें कि इतिहास पुरुष समझना, यह बातें मन में कुछ अजीब से भाव पैदा करती हैं, इन्होंने 4 साल सिर्फ दिखावे की और तानाशाही की राजनीति की है, जो जब चाहा तब कर दिया बिना आगे पीछे का विचार किए आखिर यह एक देश है कोई छोटा सा घर नहीं इसे आप अपने हिसाब से बनाए या तबाह कर दें। अब जनता की बारी है वह आपसे आपका हिसाब अवश्य लेकर रहेगी, सजग रहिए ।
ReplyDeleteअर्चना जी ने शतप्रतिशत् तत्थ्यों को परख कर लिखा है साक्षर बेरोज़गार भारतीय नागरिक इन बातों को सोच समझ कर ही अगले चुनाव में वोट डालेगा!
DeleteAbki bar...gyi sarkar!!
ReplyDeleteBjp वापस नहि आनेवाली
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअगर वाकई में मोदी जी विकाश करना चाहते थे तो कर सकते थे पर नही कर पाए. किसानों को ट्रैक्टर की जरूरत होती हैं पर ट्रैक्टर पर 28% GST लगा रखी है. पेट्रोल डीजल से जो मोदी सरकार ने 12 लाख करोड़ रुपये वसूल किये हैं उनसे देश की कोई भी व्यक्ति गरीबी रेखा से बाहर आ जाता फिर देश में कोई गरीब नही रहता फिर किसी को सब्सिडी देने की जरूरत नहीं पड़ती
ReplyDeleteसर बाजपेयी,
ReplyDeleteआपका कहना बिलकुल सही है,ये मोदी ओर शाह
की सरकार ने नोट बन्दी लाई थी उस समय लगभग बीजेपी
नेता ओर मीडिया इसे देश भक्ति से जोड़ रही थी,
पर कोई नेता या मीडिया ये सत्य ना कह सकी ,भरतीय राजनीत
का खुन ,कलधनं,को बिपक्षी पार्टियो के नश से निचोड़ कर
मोदी सरकार ने यौपी चुनाव अपने नाम कर लिया,
बाकी के इस नोटबंदी गंगा मे कितनो ने अपना पाप धोएं है ?
ये तो जंच का बिषय है ,जिसे सत्तारूढ़ सरकार तो करने से रही
दुखद ओर डरावना ये है की जिस मीडिया को देश हित मे जनता को सत्य से रुबरु कराना चाहिये वो ,सब अब बीजेपी के पर्चारक
कार्यकर्ता बन गया है
नोटबन्दी को आज तीसरा साल है आज तक देश का आम आदमी और छोटे मोटे व्यापारी इससे उभर नही पाए हैं पर इसके बावजूद अमित शाह जिस सहकारी बैंक के अध्यक्ष थे उस बैंक में5 दिन में 750 करोड़ रुपये जमा होते है और अमित शाह का बेटा जय शाह 60000 रुपये से सीधा80 करोड़ बना लेता है
ReplyDeleteअजित डोभाल का बेटा नोटबन्दी के 13 दिन बाद टैक्स हेवन देश में कंपनी खोलकर खरबपति बन जाता है और कोई इस D कंपनी की जांच नही हो रही है और कल CAG की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मोदी जी ने 4 लाख करोड़ रुपए का खर्च ओर कर्ज़ छुपाया है
ReplyDeleteचार साल जुमले की सरकार रही बस ।
ReplyDeleteलगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन/पूर्णत: स्वदेशी शासन व्यवस्था नहीं है। लोकतन्त्र में नेता / जनप्रतिनिधि चुनने / बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
ReplyDeleteसत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र पूर्णत: विदेशी शासन प्रणाली है। गणतन्त्र का अर्थ है- गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआंतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, तानाशाहीतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, सिद्धान्तहीनतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र - अवैध व्यापारतन्त्र - अवैध व्यवसायतन्त्र - हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) अर्थात् राष्ट्रविनाशकतन्त्र। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। इसीलिये देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी और प्रान्तीय समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
विदेशी शासन प्रणाली और विदेशी चुनाव प्रणाली के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय और राजनैतिक दल के उम्मीदवार करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है, जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पूर्णत: अविश्वसनीय उपकरण है। यह ई.वी.एम. भ्रष्टाचार का अत्याधुनिक यंत्र है। आम आदमी इन मशीनों द्वारा होने वाले जालसाजी से अनभिज्ञ हैं, क्योंकि उनके पास इस विषय में सोचने का समय और समझ नहीं है। इन मशीनों द्वारा होने वाली जालसाजी को कम्प्यूटर चलाने वाले और सॉफ्टवेयर बनाने वाले बुद्धिमान इंजीनियनर/तकनीशियन लोग ही निश्चित रूप से जानते हैं। वर्तमान में सभी राजनैतिक दल ई.वी.एम. से होने वाले भ्रष्टाचार से परिचित हंै, जब तक विपक्ष में रहते हैं तब तक ई.वी.एम को हटाने की मांग करते हैं, लेकिन जिस पार्टी की सरकार बन जाती है वह पार्टी चुप रहता है। अनेक देशों में ई. वी. एम. पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित है। ई. वी. एम. के स्थान पर कुछ जगह वी. वी. पेट. का प्रयोग किया जाता है, जो बहुत खर्चीला है। उसमें निकलने वाले मतपत्रों (पर्चियों) को सुरक्षित रखने और गिनने से तो अच्छा है कि पुरानी पद्धति से बड़े-बड़े मतपत्रों में मुहर लगवाकर मतदान करवाया जाय। हमारे देश के सभी ई. वी. एम. और वी. वी. पेट मशीनों को तोड़-फोड़ कर, आग लगाकर या समुद्र में फेंककर नष्ट कर देना चाहिये।
गणतन्त्र अर्थात् पार्टीतन्त्र/ दलतन्त्र/ दल-दलतन्त्र/ गठबन्धन सरकार में हमारे देश का राष्ट्रपति सत्ताधारी राजनैतिक दल की कठपुतली/ रबर स्टैम्प/ गुलाम/ नौकर/ बंधुआ मजदूर/ मूकदर्शक होता है। राजनैतिक दलों के नेताओं को आपस में कुत्तों जैसे लड़ते हुए देखकर, जनता को कष्टों से पीडि़त देखकर, देश को बर्बाद होते हुए देखकर भी चुप रहता है।