Tuesday, January 15, 2019

दिल्ली की बर्फिली हवा में स्वंयसेवक का कहवा....रास्ते पर चलते चलते साहेब ने खुद को ही रास्ता मान लिया तो भटका कौन ?


जिस रास्ते निकले थे उसी रास्ते ने रास्ता बदल लिया .....अब क्या करेगें ? ये सवाल किसी स्वयसेवक के मुख से किसी दूसरे स्वयसेवक को लेकर निकलेगा ये संघ में शायद ही किसी ने सोच हो । लेकिन दिल्ली की बर्फिली हवा के बीच गर्म गर्म कहवा की चुस्की के बीच स्वयसेवक की इस सोच ने कई सवालो को भी खडा किया और प्रोफेसर साहेब क साथ साथ मुझे भी हतप्रभ कर दिया ।  बिना लाग लपेट मैने भी सवाल दागा..स्वयसेवक से प्रचारक और प्रचारक से राजनीतिक कार्यकत्ता । फिर राजनीतिक कार्यकत्ता से सीएम होते हुये पीएम की यात्रा .... ये तो अटल बिहार वाजपेयी जी को भी नसीब नहीं हुआ । लेकिन जब रास्ता बदलने  का जिक्र आप कर रहे है तो इसका मतलब क्या है । मतलब क्या बिग़डते हालात को समझ कर ही महोदय कह रहे होगें । प्रोफेसर की टिप्पणी को लगभग काटते हुये स्वयसेवक महोदय गुस्से में बोल पडे । आपको पता है ना कहवा कहां का पेय है । कश्मीर का । जी कश्मीर का और वहां राज्यपाल के भरोसे सत्ता चला रह है । जवानो का जि्क्र आते ही पंजाब याद आता है ना वहां काग्रेस की सत्ता है । हरियाणा किस दिन फिसल जाये कोई नहीं जानता । हिमाचल प्रदेश में सीएम के पोस्टर पन्ना प्रमुख के सम्मेलन के लिये आज भी समूचे राज्य में चस्पां है । यानी कद सीएम का कहां पहुंचा दिया गया । यूपी के सीएम की गवर्नेंस समूचे यूपी में कहीं नजर आयेगी नहीं । अब तो 12 फरवरी से सुप्रीम कोर्ट में यूपी के इनकाउंटर की फाइल भी खुलने वाली है । पर यूपी के सीएम संघ/बीजेपी के नायाब पोस्टर ब्याय है ।यानी राम मंदिर बनायेगें नहीं लेकिन राम नाम का जाप करने वाले योगी को चेहरा बनायेगें ।बिहार में नीतिश कुमारके चेहरे के पीछे खडे है । ओडिसा और बंगाल में जीत नहीं सकते । झारखंड में रधुवर दास के पीछे मोदी-शाह ना हो तो अगले दिन ही इनकी छुट्ी हो जाये । अपने बूते अपनी सीट भी अब जीत पाना इनके लिये मुश्किल हो चला है ।  राजस्थान, मद्यप्रदेश, छत्तिसगढ अपनी ही अगुवाई में गंवा भी दिया । और जो पहचान यहा के बीजेपी कद्दावरो की थी उसे मिट्टी में मिलाकर उस संगठन के काम में लगा दिया जिस संगठन का स भी शाह है और न भी शाह । यानी राज्यो में भी विपक्ष के नेता के तौर पर शिवराज, वसुंधरा या रमन सिंह को कोई जगब नहीं दी बल्कि सभी को दिल्ली लाकर अपनी चपेट में ले लिया तो दूसरी कतार के नेता यहा कैसे खडे होगें जब दांव पर खुद अपने ही सागठनिक कार्य हो चले हो ।
यानी आप कह रहे है कि अमित शाह ने जान बूझकर तीनो राज्यो के पूर्व सीएम को दिल्ली बुला लिया । अरे छोडिये प्रोफेसर साहेब ...इतना तो आप भी समझ रहे है कि जब कोई कमजोर या फेल होता है तो अपने से ज्यादा कमजोर या फेल लोगो को ही तरजीह देता है । खैर मै तो आपको देश घुमा रहा हूं । महाराष्ट्र में शिवसेना बगैर सत्ता मिल नहीं सकती । गुजरात में मार्जिन पर सत्ता संभाले हुये है और कर्नाटक में मार्जिन से सत्ता से बाहर है । तमिलनाडु या केरल में सत्ता में आने की सोच नहीं सकते । नार्थ इस्ट में कब्जा जरुर है लेकिन उसका असर ना तो दिल्ली में है ना ही उनके अपने प्रदेश में । तो कौन सी सत्ता की कौन सी लकीर ये खिंच रहे है । क्या आप ही बता सकते है । अब सवाल की लकीर  स्वयसेवक महोदय ने ही खिंची और प्रोफेसर साहेब भी बिना देर किये बोल पडे । ....आपने ठीक कहां....लेकिन हम तो उस लकीर की बात को समझना चाह रहे है जो दिल्ली में दिल्ली के जरीये ही नजर आ रही है ।
तो आप बात सीबीआई की कर रहे है ।
हा हा सिर्फ सीबीआई की नहीं । लेकिन प्रचारक से पीएम बने संघ के स्वयसेवक का सच किसी स्वयसेवक से सुनने की बात ही कुछ और है । ...
और कहवा लिजिये....दिल्ली में कश्मीर इंपोरियम से मंगांये है ।
पी लेगें ...पर आप बात टालिये मत..सही सही बताइये...भीतर चल क्या रहा है या सोचा क्या जा रहा है ....
प्रोफेसर साहेब से इस तरह सीधे सवाल .... वह भी कटघरे में खडा करते हुये सवाल की बात तो मैने भी नहीं सोची थी..लेकिन ये हो सकता है कि कहवा की गर्माहट माहौल को गर्म किये जा रही हो....तो स्वयसेवक महोदय भी उसी अंदाज में बोले ... क्या सुनना चाहता है प्रोफेसर साहेब....राजनीति या गवर्नेंस...
दोनो
तो पहले गवर्नेंस ही समझ लें .... राफेल की फाइल पर 2015-16 के बीच कोई नोटिंग आपको नहीं मिलगी । फिर एकाएक दो देसो के प्रमुखो के बीच राफेल समझौता । क्या समझे...
क्या समझे ...यानी
प्रोफेसर साहेब...ना तो कही रक्षा मंत्री है ना ही रक्षा मंत्रालय के नौकरशाह....तो हुआ क्या या आगे होगा क्या ...
फिर सीबीआई और सीवीसी के खेल ने आपको क्या समझाया
और उस बीच सुप्रीम कोर्ट ने आपको कौन सा पाठ पढाया ।
आप ही बताइये ...हम तो समझे नहीं...
अरे वाजपेयी जी आप सब समझते है ....बसआप चाहते है कि मै ही सब कह दूं ... तो समझने की कोशिश किजिये नौकरशाही कोई काम कर नहीं रही । जस्टिस सीकरी के हां-ना ने तमाम जजो को भी संदेश दे दिया....अब कोई बडा फैसला ना लें या कहे कोई समझौता ना करं ....या फिर सीबीआई की तरह सुप्रीम कोर्ट को भी सिर्फ संस्थान मान कर खत्म ना करें ।
मतलब.....अब प्रोफेसर साहेब बोले ...
मतलब क्या सबसेंसटियल इविडेन्स समझते है प्रोफेसर साहेब...
हा क्यो नहीं
तो सुप्रीम कोर्ट के राफेल से लेकर आलोक वर्मा और  सीकरी से लेकर आस्थाना या नागेश्वर राव को लेकर जो हुआ उसका सबसेंसटियल इविडेन्स क्या बताने की जरुरत है कि लोगो ने क्या समझा ।
दरअसल दिल्ली में सत्ताधारी जो समझे ....लकिन इस सच को तो आप भी गांठ बांध लिजिये कि शहरी मिजाज चाहे सरल हो लकिन ग्रमिण भारत में जिन्दगी जीने की जटिलता तमाम जटिल सियासत को बाखूबी समझती है । इसीलिये सेवक की सियासत की गांठे हर गांव की हर चौपाल पर साफ समझी जा सकती है .... और असल ललक उसी वोट बैक को लेकर है । तो आप किसी को मूर्ख बना नहीं सकते ।  और इस गवर्नेंस की राजनीति को समझना है तो यूपी और महाराष्ट्र को समझ लिजिये...यूपी में चुनाव से पहले काम कर रहे थे केशव प्रसाद मौर्य ...जिसने अगडो-व्यापारी की पार्टी के लिये दलित-पिछडो के बीच जमीन बनायी । लेकिन सत्ता मिली तो सीएम हो गये उंची जाति के योगी..जो राम मंदिर के पोस्टर ब्याय थे । और जातिय समीकरण में फंसे मौर्य को सीएम देखने वाला तबका अब किधर जायगा .... जह उसे ताकत मिले... और मौर्य का पद सिर्फ सुविधाओ की पोटली या इनाम में मिलने वाला डिप्टी सीएम का ऐसा पद था जिसके सामानातंर राजनीतिक जमीन पर काम किये बिना दिनेश शर्मा भी बैठ गये...क्योकि उनकी यारी गुजरात के जमाने से साहेब के साथ की थी । तो यूपी में अब सपा-बसपा के मिलने के बाद बीजेपी दोहरे संकट मेंजा फंसी है कि वह खुद को अगडी जाती का माने ये सोशल इंजिनियरिंग का कोई नया प्रयोग करें .....नये प्रयोग के लिये उसके पास कोई आयेगा नहीं । और बीजेपी के भीतर ही ये सवाल तबाही मचाये हुये है कि बीजपी की सियासी जमीन यूपी में है कौन सी । और बीजेपी गठबंधन से लडे या काग्रेस से । यानी राहुल बनाम मोदी की चाह यूपी में चलेगी नहं क्यो वहा तो मोदी बनाम मायावती या मोदी बनाम अखिलेश हो जायेगा । इसी तरह बिहार में मोदी बनाम तेजस्वी हो जायेगा । और महाराष्ट्र में पहले मोदी बनाम उद्दव ठाकरे से निजात मिले तो मोदी बनाम पवार वाले हालात सामने आ खडे होगें ।
तो क्या स्वयसेवक निराश हो चले है .....
अरे वाजपेयी जी .... स्वयसेवक निराश नहीं होता ....वह तो नये रास्ते बनाता है ।
तो क्या संघ का रास्ता अपने ही स्वयसेवक को छोड चला है .... जी नहीं स्वयसेवक अपने रास्ते पर है । फिर रास्ता तो अपनी जगह है...भटकी सत्ता है जिसे एहसास ही नहीं कि रास्ता ही उसका साथ छोड रहा है और संघ हमेशा रास्ते पर चलता है...
तो क्या प्रचारक भटक कर खुद को ही रास्ता मान बैठा है....
हा हा .....साहेब ही रास्ता है...क्या बात है....कभी इन्दिरा गांधी ने भी खुद को ही इंडिया माना था....और दो दिन पहले रामलीला मैदान में शाह ... साहेब को दुनिया का सबसे लोकप्रिय शख्स बता रहे थे .....भटके कई है । या कहे मात से पहले सत्ता का भटकना फितरत है ..क्योकि सत्ता का सुरुर तो यही है । और संघ कभी सत्ताधारी नहीं होता वह तो सत्ता को गढता है । तो भटका कौन.....   

18 comments:

  1. रास्ते तो हार के बाद सोचे साहेब को क्या करना है।बस 2019 में अजादी चाहिये जुमलो से बस दो तबका बहुत डरा हूआ है। हमारे समाज में

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  2. बेहतरीन
    उम्दा
    सही कहा शिवराज माला पहनाए तो कोहनी का धक्का लग जाता है।
    वैसे अब स्व अटल जी आडवाणी जी और मुरली मनोहर जोशी का सम्मान बढेगा चुनाव तक

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  3. सर आप जैसे लोगों की राजनीति में जरूरत है आप भी राजनीति में आइए मैं आपसे गुजारिश करूंगा अनपढ़ लोगों से बहुत राजनीति हो गई और देश का भला नहीं हो पाया है आप एक समझदार राज नेता की जरूरत है मुझे लगता है कि आपको राहुल गांधी का साथ देना चाहिए या फिर राहुल गांधी को आपका साथ लेना चाहिए

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    1. श्रीमान PPB जी जो काम कर रहे हैं वही ठीक हैं जनता को सफ़ेद क्रान्ति के लिए जागरूक करते रहे अकेले कृष्ण भी महाभारत रच सकते हैं उनका चक्र उठाना आवश्यक नही हैं उचित भी नही

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  4. कुल मिला के एक और बकवास लेख पता नहीं इस चूतिये को लेखक मानते कौन है ?

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    1. इस तरह के लेखन समझना आप जैसे कम दिमाग लोगों की समझ के बाहर है, अच्छा हो कि आप मोदी भक्ति करें इस तरह के लेख आप जैसे लोगों के लिए नहीं है।

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    2. निवेदन है कि अपनी भाषा पर नियत्रण रखे bahjpaye जी पत्रकार है किसी भी सरकार की चापलूसी नही की । आप विरोध करे परंतु गली देना सोभा नही देता ।

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  5. sir Surya Samachar me kab aa rahe

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  6. Go lekhak mantey nhi wo pardhtay q hy

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  7. सटिक विश्लेषन सर जमीनी हालात सच मे बहुत खराब है मोदी के बारे मे

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  8. ये वही साहब है ना जो केजरीवाल की गोद में बैठके क्रांतीकारी क्रांतिकारी खेल रहे थे जैसे इनके आका के लिए एक मात्र एजेंडा मोदी विरोध है ऐसे ही इनके लिए भी देश की हर समस्या के लिए मोदी जिम्मेदार है | इनके तो अपने घर में भी कोई समस्या हो जाए तो उसके लिए भी मोदी जी ही जिम्मे दार होंगे |

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  9. अर्चना जी ज्यादा दिमाग की हमे जरुरत भी नहीं कम दिमाग में ही हम इन गधो को समझ जाते है पर ताजुब ये है की आपके पास हमसे ज्यादा दिमाग है फिर भी आप इन गधो को नहीं समझ पाती ?

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    1. अर्चना जी ये अनिल गुप्ता को बंदर मान लीजिए
      ओर कहावत है बंदर का जाने आदी के स्वाद

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    2. अनिल जी केजरीवाल पर भरोसा सिर्फ प्रसून जी ने ही नहीं भारत की ज्यादातर जनता ने किया था वजह है उनका सादगी का दिखावा और उनकी शैक्षणिक योग्यता थी,बदतर हालातों के बाद जिस तरह मोदी जी का चुनाव किया गया उनके उच्च कोटि के भाषणों और भविष्य के अच्छे दर्शन की वजह सेसच्चाई क्या है हालात बद से बदतर सोचा भी नहीं जा सकता था कि उच्च संस्थानों की इससे भी ज्यादा दुर्गति की जा सकती है आप लोगों को अपने इशारों पर नाच नचा रहे हैं,उर्जित पटेल आलोक वर्मा जीता जागता उदाहरण है फिर भी अगर आप ना देखना चाहें तो कोई बात नही, मैंने भी बहुत उम्मीदों के साथ मोदी जी का चयन किया था मैं सिर्फ आपसे एक विनम्र निवेदन करुंगी कि जागरूक नागरिक बनिये, वोटर नहीं,

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  10. पिछले साढ़े चार सालों में कितना फासला तय किया हमने?
    अंग्रेजों द्वारा लूटने के बाद भारत २०१४ में चाइना के बाद दूसरी सबसे बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाला विकासशील देश था और आज विश्व बैंक ने हमारा विकासशील देश का तमगा भी छीन लिया।
    2014 में हम टेक्नोलॉजी की बात करते थे और आज गए और गोबर पर बहस करते हैं।
    2014 में भ्रष्टाचार हमारा सबसे बड़ा दुश्मन था और आज हम उसे ही न्यायसंगत साबित करने में लगे हैं।
    2014 में हम देश की किसी समस्या के लिए सरकार से सवाल करते थे और आज "सत्तर साल का कचरा" कह कर पल्ला झड़ लेते हैं।


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    1. आपकी जागरूकता प्रशंसनीय है

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  11. अर्चना जी अपना अपना नजरिया है अगर कोई अधिकारी अपने पद की गरिमा को तार तार करने पर खुद अमादा है तो सरकार उसे उसका सही मार्ग भी ना दिखाए | संस्थानों की दुर्गती नहीं मंथन हो रहा है जिसमे विष अलग और अम्रत अलग हो रहा है | क्या आलोक वर्मा का किसी परिवार की चाकरी करना जायज है ?मै नहीं जनता की आपकी कौन सी उम्मीदे थी पर हमने मोदी का चयन देश बचने के लिए किया था और उसमे मोदी खरा सोना है | मोदी ने कभी सत्ता के लिए समझोता नहीं किया | क्या जरुरत थी नोटबंदी करने की क्या जरुरत थी अपने ही कोर वोटरों को नाराज कर gst बिल लाने की या scst एक्ट अमेडमेंट की ?क्या जरुरत है तेल के दाम बड़ा आयल रिजर्व तयार करने की ? ठीक है आपके आदेश सर आँखों पर क्या करू जागरूक नागरिक के रूप में भी जब देखता हूँ तो मोदी से बेहतर किसी को नहीं पाता हूँ |

    बहुत बहुत धन्यवाद,

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  12. लगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन/पूर्णत: स्वदेशी शासन व्यवस्था नहीं है। लोकतन्त्र में नेता / जनप्रतिनिधि चुनने / बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
    सत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र पूर्णत: विदेशी शासन प्रणाली है। गणतन्त्र का अर्थ है- गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआंतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, तानाशाहीतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, सिद्धान्तहीनतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र - अवैध व्यापारतन्त्र - अवैध व्यवसायतन्त्र - हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) अर्थात् राष्ट्रविनाशकतन्त्र। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
    निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। इसीलिये देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी और प्रान्तीय समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
    विदेशी शासन प्रणाली और विदेशी चुनाव प्रणाली के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय और राजनैतिक दल के उम्मीदवार करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है, जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।
    इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पूर्णत: अविश्वसनीय उपकरण है। यह ई.वी.एम. भ्रष्टाचार का अत्याधुनिक यंत्र है। आम आदमी इन मशीनों द्वारा होने वाले जालसाजी से अनभिज्ञ हैं, क्योंकि उनके पास इस विषय में सोचने का समय और समझ नहीं है। इन मशीनों द्वारा होने वाली जालसाजी को कम्प्यूटर चलाने वाले और सॉफ्टवेयर बनाने वाले बुद्धिमान इंजीनियनर/तकनीशियन लोग ही निश्चित रूप से जानते हैं। वर्तमान में सभी राजनैतिक दल ई.वी.एम. से होने वाले भ्रष्टाचार से परिचित हंै, जब तक विपक्ष में रहते हैं तब तक ई.वी.एम को हटाने की मांग करते हैं, लेकिन जिस पार्टी की सरकार बन जाती है वह पार्टी चुप रहता है। अनेक देशों में ई. वी. एम. पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित है। ई. वी. एम. के स्थान पर कुछ जगह वी. वी. पेट. का प्रयोग किया जाता है, जो बहुत खर्चीला है। उसमें निकलने वाले मतपत्रों (पर्चियों) को सुरक्षित रखने और गिनने से तो अच्छा है कि पुरानी पद्धति से बड़े-बड़े मतपत्रों में मुहर लगवाकर मतदान करवाया जाय। हमारे देश के सभी ई. वी. एम. और वी. वी. पेट मशीनों को तोड़-फोड़ कर, आग लगाकर या समुद्र में फेंककर नष्ट कर देना चाहिये।
    गणतन्त्र अर्थात् पार्टीतन्त्र/ दलतन्त्र/ दल-दलतन्त्र/ गठबन्धन सरकार में हमारे देश का राष्ट्रपति सत्ताधारी राजनैतिक दल की कठपुतली/ रबर स्टैम्प/ गुलाम/ नौकर/ बंधुआ मजदूर/ मूकदर्शक होता है। राजनैतिक दलों के नेताओं को आपस में कुत्तों जैसे लड़ते हुए देखकर, जनता को कष्टों से पीडि़त देखकर, देश को बर्बाद होते हुए देखकर भी चुप रहता है।

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