Monday, January 7, 2019

खनन लूट में जांच हो तो हर सीएम जेल में होगा .....




राजनीति साधने वाले मान रहे है और कह रहे है कि अखिलेश यादव पर सीबीआई शिकंजा सपा-बसपा गंठबंधन की देन है । यानी गठंबधन मोदी सत्ता की खिलाफ है तो मोदी सत्ता ने सीबीआई का फंदा अखिलेश यादव के गले में डाल दिया । और राजनीति साधने वाले ये भी कह रहे है कि आखिर खनन की लूट में सीएम कैसे शामिल हो सकता है । जो अखिलेश पर सीबीआई जांच के खिलाफ है वह साफ कह रहे है कि दस्तावेजो पर तो नौकरशाहो के हस्तख्त होते है । लूट खनन माफिया करते है तो सीएम बीच में कहां से आ गये । तो सीबीआई जांच के हक में खडे राजनीति साधने वाले ये कहने से नहीं चूक रहे है कि सीएम ही तो राज्य का मुखिया होता है तो खनन लूट उसकी जानकारी के बगैर कैसे हो सकती है । चाहे अनचाहे सीबीआई जांच के हक में खडे बीजेपी के नेता-मंत्री की बातो को सही मानना चाहिये । और विपक्ष को तो इसे ठहरा कर बीजेपी से भी कही ज्यादा जोर से कहना चाहिये कि किसी भी राज्य में खनन की लूट हो रही होगी तो तात्कालिन सीएम को गुनहगार मानना ही चाहिये । और इस कडी में और कोई नहीं बल्कि मोदी सत्ता में ही खनन मंत्रालय की फाइलो को खोल देना चाहिये । और उसके बाद राज्य दर राज्य खनन लूट के आंकडो के आसरे हर राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग शुरु कर देनी चाहिये । इसके लिये बहुत विपक्ष को बहुत मेहनत करने की भी जरुरत नहीं है । क्योकि मोदी सत्ता के दौर में भी राज्यो में खनन लूट के जरीये राजस्व को लगते चूने को परखे तो गुजरात के सीएम विजय रुपानी तो जेल पहुंच जायेगें और चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हुये मद्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ भी सीबीआई जांच के आदेश आज नहीं तो कल शुरु हो ही जायेगें । क्योकि जिस दौर में यूपी में खनन की ळूट हो रही थी उसी दौर में मद्यप्रदेश , राजस्थान और गुजरात में सबसे ज्यादा खनन की लूट हुई । 2013-14 से लेकर 2016-17 के दौर में यूपी में जितनी खनन की लूट हुई या राजस्व का जितना चूना लगाया गया । या फिर जितने मामले खनन लूट के एफआईआर के तौर पर दर्ज किये गये उस तुलना में उसी दौर में मद्यप्रदेश ने तो देश का ही रिकार्ड तोड दिया । क्योकि 2013-14 में गैरकानूनी खनन के 6725 मामले मद्यप्रदेश में दर्ज किये गये थे । जो 2016-17 में बढकर 13,880 मामलो तक पहुंच गये । यानी चार बरस के दौर में खनन लूट के मामलो में सिर्फ मद्यप्रदेश में 52.8 फिसदी की बढतरी हो गई । इसी कडी में गुजरात के सीएम के तौर पर जब मोदी 2013-14 में थे तब 5447 अवैध या कहे गैर कानूनी खनन के मामले दर्ज किये गया । और मोदी दिल्ली में पीएम बने तो रुपानी गुजरात के सीएम बने और गैर कानूनी खननके जरीये राज्सव की लूट बढ गई । 2016-17 में गुजरात में अवैध खनन की लूट के 8325 मामले दर्ज किये गये । यानी यूपी में अकिलेश की नाक के नीचे अवैध खनन जारी था तो सीबीआई जांच करेगी तो फिर शिवराज सिंह चौहान हो या रुपानी उनके नाक भी तो सीएम वाली ही थी तो उनके खिलाफ भी सीबीआई जांच की शुरउात का इंतजार करना चाहिये ।
वैसे देश में खनन की लूट ही राजनीति को आक्सीजन देती है या कहे खनन लूट के जरीये राजनीति कैसे साधी जाती है ये बेल्लारी में खनन लूट से लेकर गोवा में खनन लूट पर जांच कमीशन की रिपोर्ट से भी सामने आ चुका है । लेकिन धीरे धीरे खनन लूट को सत्ता की ताकत के तौर पर मान्यता दे दी गई । और खनन लूट को सियासी हक मान लिया गया । तभी तो राज्यवार अगर खनन लूट के मामलो को परखे और परखने के लिये मोदी सत्ता की ही फाइलो को टटोले तो कौन सा राज्य या कौन से राज्य का कौन सा सीएम सीबीआई जांच से बचेगा ये भी अपने आप में देश का नायाब सच है । क्योकि राजस्थान में वसुंधरा राज में 2013-14 में खनन लूट के 2953 मामले दर्ज हुये तो 2016-17 में ये बढकर 3945 हो गये । पर खनन लूट का सच इतना भर नहीं है कि एफआईआर दर्ज हुई । बल्कि लूट करने वालो से फाइन वसूल कर सीएम अपनी छाती भी ठोकतें है कि उन्होने इमानदारी से काम किया और जो अवैध लूट कर रहे थे उनसे वसली कर ली । पर इसके एवज में कौन कितना हडप ले गया इसपर सत्ता हमेशा चुप्पी साध लेता है । मसलन मद्यप्रदेश जहा सूसे ज्यादा खनन लूटे के मामले दर्ज हुये वहा राज्य सरकार ने अपनी सफलता 1132.06 करोड रुपये वसूली की तहत दिखाये । लेकिन इसकी एवज में खनन लूट से राज्य को एक लाख करोड से ज्यादा का नुकसान हो गया इसपर किसी ने कुछ कहा ही नहीं । इसी तरह बीजेपी शासित दूसरे राज्यो का हाल है । क्योकि महाराष्ट्र सरकार ने 281.78 करोड की वसूली अवैध खनन करने वालो से दिखला दी । लेकिन इससे सौ गुना ज्यादा राजस्व के घाटे को बताने में कोताही बरती । गुजरात में भी 156.67 करोड रुपये की वसूली अवैध खनन करने वालो से हुई इसे बताया गया । पर राज्सव की लूट जो एक हजार करोड से ज्यादा की हो गई । इ पर खामोशी बरती गई । यही हाल छत्तिसगढ का है जहा अवैध वसूली के नाम पर 33.38 करोड की वसूली दिखायी गई लेकिन इससे एक हजा गुना ज्यादा के राजस्व की लूट पर खामोशी बरती गई । पर ये खेल सिर्फ बीजेपी शासित राज्यो भर का नहीं है बल्कि कर्नाटक जहा काग्रेस की सरकार रही वहा पर भी 111.63 करोड की वसूली अवैध खनन से हुई इसे दिखलाया गया । लेकिन 60 हजार करोड के राजस्व लूट को बताया ही नहीं गया । काग्रे बीजेपी ही क्यो आध्रप्रदेश में भी क्षत्रप की नाक तले 143.23 करोड की वसली दिखाकर ये कहा गया कि अवैध खनन वालो पर शिकंजा कसा गया है लेकिन इसकी एवज में जो 50 हजार करोड के राजस्व का नुकसान कहां गया या कौन हडप ले गया इसपर किसी ने कुछ कहा ही नहीं । और इस खेल में इंडियन ब्यूरो आफ माइन्स की ही रिपोर्ट कहती है कि खनन लूट का खेल एक राज्य से दुसरे राज्य को मदद मिलती है । तो दूसरी राज्य से तीसरे राज्य को । क्योकि खनन कर अवैध तरीके से राजय की सीमा पार करने और दूसरे राज्य की सीमा में प्रवेश के लिये बकायदा ट्राजिट पास दे दिया जाते है । और जिस तरीके से देश में खनन की लूट बीस राज्यो में जारी है अगर उस खनन की कितम अंतर्ष्ट्रीय बाजार की किमत से लगायी जाये तो औसतन हर बरस बीस लाख करोड से ज्यादा का चूना खनन माफिया देश को लगाते है ।
तो वाकई अच्छी बात है कि खनन की लूट के लिये मुख्यमंत्री को भी कटघरे में खडा किया जा रहा है । तो मनाईये अखिलेश यादव के खिलाफ सीबीआई जांच हर राज्य के सीएम के खिलाफ सीबीआई जांच का रास्ता बना दें । और सिर्फ नौकरशाह को ही कटघरे में खडा ना किया जाये । और ये हो गया तो फिर सीएम की कतार कहां थमेगी कोई नहीं जानता और जो बात प्रधानमंत्री ने बरस के पहले दिन इंटरव्यू में ये कहकर  अपनी कमीज को साफ बतायी कि राफेल का दाग उनपर नहीं सरकार पर है तो जैसे सीएम की नाक वैसे ही पीएम की नाक । बचेगा कौन । पर देश का संकट तो ये भी है कि सीबीआई भी दागदार है । यानी लूट खनन भर की नहीं बल्कि सत्ता के नाम पर लोकतंत्र की ही लूट है । जिसकी जांच जनता को करनी है । 

10 comments:

  1. बिल्कुल यहीं हाल बुंदेलखंड का है यहाँ की राजनीति बालू के घाटों पर जा कर खत्म हो जाती हैं किसी भी राजनेता के पास कोई भी विकास को लेकर रूपरेखा नहीं है जो भी बजट पास होता है या सहायता राशि केन्द्र या राज के द्वारा स्वीकृत होती हैं उसका भी बंदरबांट नोकरशाह और नेता मिलके करते हैं जिस पर कोई भी सरकार कोई ना तो जांच करती है और ना ही ध्यान देती हैं।

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  2. इस देश का प्रार‌ब्ध यही है, राष्ट्र प्रेम तो सिर्फ बात है या कहे जुमला है इसे अंग्रेजों ने और मुगलों ने भी वैसे ही लूटा जैसे आज हमारे नेता लूट रहे और जनता आज भी निरीह है, सरकार का यह दोहरा चरित्र भविष्य मे इन्हीं की सबसे बड़ी मुसीबत बनेगा।सरकार चाहती है कि जनता 2014 के सारे वादे भूल जाएं और नए वादों की चाशनी में फिर से लिपट जाए और ये अनंत काल तक सत्ता से चिपके रहे जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है उसके लिए कहीं ना कहीं खाई खुद रही होती है यह चीज जितनी जल्दी समझ ले उतना ही अच्छा है।

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  3. साहेब को लग रहा रहा है अनंत काल के लिये आये है।

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  4. सच मे cbiजॉंच सभी पर होना चाहिए

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  5. लगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन/पूर्णत: स्वदेशी शासन व्यवस्था नहीं है। लोकतन्त्र में नेता / जनप्रतिनिधि चुनने / बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
    सत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र पूर्णत: विदेशी शासन प्रणाली है। गणतन्त्र का अर्थ है- गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआंतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, तानाशाहीतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, सिद्धान्तहीनतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र - अवैध व्यापारतन्त्र - अवैध व्यवसायतन्त्र - हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) अर्थात् राष्ट्रविनाशकतन्त्र। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
    निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। इसीलिये देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी और प्रान्तीय समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
    विदेशी शासन प्रणाली और विदेशी चुनाव प्रणाली के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय और राजनैतिक दल के उम्मीदवार करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है, जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।

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